शासन में मूल्य | सामाजिक मूल्य की विशेषताएँ | नैतिक मूल्य का अर्थ | Meaning of Moral

 

शासन में मूल्य सामाजिक मूल्य की विशेषताएँ | नैतिक मूल्य का अर्थ 

शासन में मूल्य | सामाजिक मूल्य की विशेषताएँ | नैतिक मूल्य का अर्थ | Meaning of Moral



 नैतिक  मूल्य से क्या आशय है 

  • मूल्य किसी समाज के वे लक्ष्य व आदर्श होते हैं, जिनकी प्राप्ति की अपेक्षा समाज अपने सभी सदस्यों से करता है और उसी के अनुरूप अपने सदस्यों के व्यवहारों को है। निर्देशित करता।

 

  • मूल्य एक प्रकार के मापदण्ड व्यवहार के पैमाने होते हैं, जिनके आधार पर समाज उचित/ अनुचित, अच्छा बुरा, वांछित / अवांछित का निर्णय करता है एवं अपने सदस्यों के व्यवहार का मूल्यांकन करता है।

 

  • जैसे- मानवता, अहिंसा, न्याय, समानता, स्वतंत्रता, सच्चाई, ईमानदारी, देशभक्ति, प्रेम, आदर, शांति, सदाचरण आदि सामाजिक मूल्य हैं।

 

सामाजिक मूल्य की विशेषताएँ

 

  1. मूल्य समाज के लक्ष्य एवं आदर्श होते हैं जिसकी प्राप्ति की अपेक्षा समाज अपने सभी सदस्यों से करता है। 
  2. मूल्य क्या होना चाहिए?" से संबंधित है जो जीवन के उद्देश्य एवं उनको प्राप्त करने के साधनों को स्पष्ट करता है। 
  3. मूल्यों की प्राप्ति हेतु सामाजिक नियम / आचार का निर्माण होता है। इस प्रकार मूल्य साध्य होते हैं एवं सामाजिक नियम इन मूल्यों की प्राप्ति के साधन होते हैं।

 

साध्य मूल्य एवं साधन मूल्य


कुछ विद्वानों ने सामाजिक मूल्य एवं सामाजिक नियम / आचार को एक ही माना है एवं दोनों को समाज के आदर्श से एवं लक्ष्य के रूप में स्वीकार किया है व इन विद्वानों ने सामाजिक मूल्यों को दो भागों में विभक्त किया है

 

(a) साध्य मूल्य (सामाजिक मूल्य) 

(b) साधन मूल्य (सामाजिक नियम आचार) 


4- सामान्यतः मूल्य एवं आचार को एक-दूसरे के पर्यायवाची के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।


 सामाजिक मूल्य अलिखित होते हैं क्यों 

5. मूल्यों के निर्माण में समस्त समाज की भागीदारी होती है एवं समाज नियोजित ढंग से इसका निर्माण नहीं करता है बल्कि यह लंबे समय तक चलने वाली सामाजिक क्रिया है। यह अन्तः क्रिया के दौरान यह विकसित हो जाते हैं। इसलिए सामाजिक मूल्य अलिखित होते हैं।

 


विशिष्ट एवं सार्वभौम मूल्य


6. मूल्य विशिष्ट एवं सार्वभौम दोनों प्रकार के होते हैं।

 

विशिष्ट मूल्य

  • विशिष्ट मूल्य वे मूल्य हैं जो किसी विशेष समूह समुदाय या संगठन के लिए उपयोगी मानते हुए उनके द्वारा मान्य एवं स्वीकार्य होते हैं या उनके संदर्भ में विकसित होते हैं।


सार्वभौम मूल्य

  • जबकि सार्वभौम मूल्य वह मूल्य है जो दुनिया के सभी समाजों के लिए उपयोगी माने जाते हैं एवं सबके द्वारा मान्य होते हैं।

 

  • उदाहरणार्थ- एक पति को/पिता को पत्नी या पुत्र की सदैव रक्षा करना चाहिए, परिवार के संदर्भ में विशिष्ट सामाजिक मूल्य हैं जबकि न्यायकर्ता को सदैव न्याय करना चाहिए, सार्वभौम सामाजिक मूल्य के उदाहरण हैं। ईमानदारी, अहिंसा, न्याय, मानवता आदि सार्वभौम मूल्य कहे जायेंगे। जबकि पतिव्रता, सतीत्व या विभिन्न व्यवसाय से संबंधित मूल्य एवं आचार विशिष्ट मूल्यों में माने जायेंगे।

 

  • समकालीन वैश्विक समाज के संदर्भ में जहाँ समाज के हितों का विस्तार संपूर्ण विश्व तक फैल गया है इसलिए सामाजिक मूल्यों का संबंध आज सार्वभौम मूल्य से ही होता है।

 

  • अत: सार्वभौम मूल्य / आचार एवं विशिष्ट मूल्य/आचार के मध्य नैतिक द्वन्द्व की स्थिति में हमें सार्वभौम मूल्य के पक्ष में नैतिक निर्णय करना चाहिए। 


7. मूल्यों के प्रति समाज का एक संवेगात्मक लगाव होता है। मूल्यों को तोड़ने वालों को पूरा समाज दण्डित करता है।

 

8. मूल्य सापेक्षिक रूप से स्थिर होता है इनमें परिवर्तन आसानी से नहीं होता। हैं- क्योंकि समाज इनका संरक्षण करता है लेकिन मूल्यों में परिवर्तन से समाज में भी परिवर्तन हो जाता है।

 

9.  मूल्यों को इसके सामाजिक महत्व के आधार पर श्रेणीबद्ध किया जा सकता है। उदाहरण के लिए सच्चाई एवं अहिंसा (मानव हत्या नहीं करनी चाहिए) दोनों हमारे सामाजिक मूल्य है परंतु अहिंसा के मूल्य को सच्चाई के मूल्य से सदैव ऊपर रखा जाता है।

 

10.  चूँकि मूल्यों में सोपान होता है इसलिए मूल्यों में संघर्ष भी उत्पन्न होता है। उदाहरण के लिए आपके घर में एक बच्चा आकर छुप जाता है। उसकी हत्या करने के लिए कुछ आतंकवादी आते हैं। उसके बारे में पूछते हैं। यहाँ बच्चे की जीवन रक्षा एवं सच्चाई दो मूल्यों में संघर्ष उत्पन्न होता है परंतु सोपान क्रम को ध्यान में रखते हुए आप आतंकवादी से झूठ बोलकर बच्चे की जान बचा देते है एवं इसको अनैतिक नहीं माना जाता है (सच्चाई के मूल्य के उल्लंघन के बावजूद)


11.  मूल्यों में सामाजिक कल्याण की भावना छिपी होती है इसीलिए समाज इनको स्वीकृति देता है, इससे संवेगात्मक लगाव होता है एवं इनका संरक्षण करता है।


12.  मूल्य सामाजिक नियंत्रण के साधन होते हैं जिनसे आंतरिककरण कर लेने से व्यक्ति स्वतः व्यापक मानव हित में सामाजिक नियमों / आचारों के अनुसार व्यवहार करता रहता है इसलिए प्रत्येक समाज समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा अपने सदस्यों को सामाजिक मूल्यों को आंतरिकृत कराने का प्रयास करता है।

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