मीडिया की भूमिका एवं समस्याएं| Media Ki Bhumika Evam Samsayane
मीडिया की भूमिका एवं समस्याएं| Media Ki Bhumika Evam Samsayane
मीडिया की उत्पत्ति
- मीडिया की उत्पत्ति वस्तुतः मनुष्य की जिज्ञासु प्रवृत्ति का परिणाम है। मानव स्वभावगत ही जिज्ञासु प्राणी है तथा अपने आस-पास घटित होने वाली घटनाओं को जानना चाहता है, जिसे व्यापक अर्थों में 'सूचना' शब्द से अभिहित किया जा सकता है। सूचनाओं को सम्प्रेषित करने में माध्यम की अनिवार्यता ने ही मीडिया शब्द को जन्म दिया।
- मीडिया शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द Medium से बना है, जिसका अर्थ होता है माध्यम, अर्थात् जिन माध्यमों के द्वारा सूचनाओं का आदान-प्रदान एवं सम्प्रेषण किया जाता है, उन्हें हम मीडिया के अन्तर्गत रखते हैं।
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भारतीय संविधान में मीडिया की स्वतंत्रता
- भारतीय संविधान में प्रेस एवं मीडिया की स्वतंत्रता को अलग से परिभाषित नहीं किया गया है, अपितु इसे अनुच्छेद 19(1) (a) वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अन्तर्गत ही रखा गया है। वस्तुतः भाषण की स्वतंत्रता एवं विचारों की अभिव्यक्ति किसी भी लोकतंत्र का मूल आधार होती है। सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या के अनुसार भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को हम सीमित अर्थों में स्वीकार नहीं कर सकते हैं। इस स्वतंत्रता के अन्तर्गत विचारों के प्रचारों की भी स्वतंत्रता आती है।
- भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है शब्दों, लेखों, चित्रों, मुद्रणों या किसी भी प्रकार से अपने विचारों को व्यक्त करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में किसी व्यक्ति के विचारों को किसी ऐसे माध्यम से अभिव्यक्त करना भी सम्मिलित है, जिसमें वह दूसरों तक उन्हें सम्प्रेषित कर सके। दूसरे शब्दों में भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केवल अपने ही विचारों के प्रसार तक सीमित नहीं है, इसमें दूसरे के विचारों एवं प्रकाशन की स्वतंत्रता भी सम्मिलित है, जो प्रेस मीडिया की स्वतंत्रता के अन्तर्गत ही आता है।
मीडिया पर युक्तियुक्त
निर्बंधन [ अनुच्छेद 19(2 )]
- भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार पूर्ण नहीं है अनुच्छेद 19 (1) (a) द्वारा नागरिकों को प्रदत्त स्वतंत्रता का अधिकार पूर्ण नहीं है। इस अधिकार पर अनुच्छेद 19 (2) द्वारा अंकुश लगाए गए हैं। किसी भी समय समाज में भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण नहीं हो सकती है। इस स्वतंत्रता पर नियंत्रण आवश्यक है।
भारतीय संविधान द्वारा भाषण की स्वतंत्रता पर युक्तियुक्त निर्बन्धन
लगाए गए हैं, जो निम्नलिखित प्रकार हैं
- कोई भी नागरिक इस प्रकार का भाषण नहीं दे सकता है, जिससे भारत की एवं अखण्डता प्रभावित हो। यदि कोई नागरिक इस प्रकार का भाषण करता है, तो उस व्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
- कोई व्यक्ति इस प्रकार का भाषण नहीं दे सकता है, जिसके कारण भारत की विभिन्न मित्र देशों से मित्रता समाप्त हो जाए।
- इस प्रकार के भाषण पर रोक लगाई जा सकती है, जिसके कारण सार्वजनिक व्यवस्था भंग होती है। राज्य सुरक्षा को प्रभावित करने वाले वह भाषण भी प्रतिबंधित किए जा सकते हैं, जो अपराधों को करने की प्रेरणा देते हैं।
- भाषण देने की स्वतंत्रता के स्वर्ष यह नहीं है। क कोई व्यक्ति आशिष्ट एवं करनेतिक भाषण दे तथा लोक शालीनता को त्याग दे।
- कोई व्यक्ति इस प्रकार का भाषण नहीं दे सकता है, जिससे न्यायालयों का अवमान (Contempt of Court ) हो ।
- भाषण की स्वतंत्रता के अन्तर्गत यह प्रतिबंध किया गया है कि भाषण अपमानकारी नहीं होना चाहिए।
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मीडिया के कार्य
परम्परागत अर्थों में मीडिया
के कार्य को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत समझा जा सकता है
1) सूचना देना (To Inform)
3 ) मनोरंजन प्रदान करना (To Entertain)
2) शिक्षा देना (To Educate)
सूचना देना (To Inform)
- सूचना देना मीडिया का पहला महत्वपूर्ण कार्य है। सूचना ही शक्ति है। सूचना के इस बढ़ते प्रभाव की वजह से ही आज के विकसित समाज को 'सूचना समाज' कहा जाने लगा है। आज वास्तव में ज्ञानी वह है, जिसके पास सूचनाओं का अम्बार है।
शिक्षा देना (To Educate)
- शिक्षा देना मीडिया का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य है। यहां शिक्षा का अर्थ औपचारिक शिक्षा ही नहीं है, बल्कि ज्ञान सम्प्रेषण के समस्त रूप शिक्षा के अन्तर्गत आते हैं। शिक्षा के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है तथा मीडिया द्वारा सम्प्रेषित होने वाला प्रत्येक संदेश, चाहे वह सूचना रूप में हो या मनोरंजन के लिए, उसमें शिक्षा का तत्व किसी न किसी रूप में अवश्य होता है।
मनोरंजन प्रदान करना (To Entertain)
- मीडिया का तीसरा महत्वपूर्ण कार्य मनोरंजन प्रदान करना है। वास्तव में मनोरंजन निष्क्रिय भाव नहीं है, अपितु वह रचना, अभिव्यक्ति और आस्वादन तीनों क्रियाओं में निहित होता है। प्रत्येक संचार माध्यम की अपनी संरचना होती है, जिसके द्वारा मनोरंजक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं।
मीडिया एक सजग प्रहरी की भाँति पूर्वानुमान द्वारा खतरों से आगाह कराते हैं, उचित अनुचित कार्यों की पहचान कराते हैं एवं विचारों को सकारात्मक बनाने के लिए उचित मंच प्रदान करते हैं। साथ ही एक शिक्षक की भाँति विकास में सहायक होते हैं।
संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी के विकास ने
सूचनाओं की पहुंच एवं तीव्रता को अतिविस्तारित कर दिया है और इसी अनुक्रम में
मीडिया की भूमिका में भी बहुआयामी परिवर्तन हुए हैं। जनमत पर आधारित आधुनिक
लोकतांत्रिक प्रणाली में मीडिया की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई है, जिसे लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के रूप में
जाना जाता है।
मीडिया के प्रकार
प्रिंट मीडिया
मुद्रण तकनीक पर आधारित सूचनाओं का सम्प्रेषण ही प्रिंट मीडिया के अन्तर्गत आता है।
माध्यम - मुद्रण तकनीक (लिपि आधारित), उदाहरण समाचार पत्र पत्रिकाएं, उपन्यास, पम्पलेट आदि।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया
इलेक्ट्रॉनिक साधनों के माध्यम से जो जनसंचार होता है, उसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कहते हैं। इस संचार माध्यम में तीव्र प्रवाह एवं तीव्र नियंत्रण की क्षमता होती है, इसलिए इन्हें 'साइबरनेटिक्स माध्यम' की संज्ञा भी दी जाती है।
माध्यम - संचार तकनीक (दृश्य एवं अव्य माध्यम के रूप में), उदाहरण टी. वी., रेडियो, फिल्म, वीडियो, स्लाइडें, कम्प्यूटर आदि।
सोशल मीडिया
सामाजिक मीडिया पारस्परिक संबंध के लिए अंतर्जाल या अन्य माध्यमों द्वारा आभासी समूहों को संदर्भित करता है। दूसरे शब्दों में यह व्यक्तियों और समुदायों के साझा, सहभागी बनाने का माध्यम हैं। इसका उपयोग सामाजिक संबंध के अलावा उपयोगकर्ता सामग्री के संशोधन के लिए उच्च पारस्परिक प्लेटफार्म बनाने के लिए मोबाइल और वेब आधारित प्रौद्योगिकियों के प्रयोग के रूप में भी देखा जा सकता है।
माध्यम
इंटरनेट पर आधारित सूचनाओं का आदान-प्रदान ( समय एवं स्थान की बाध्यता से परे : Without Time & Space Limitation), उदाहरणार्थ इन्टरनेट फोरम, वेबलॉग, सामाजिक ब्लॉग, माइक्रोब्लागिंग, वाट्सअप, फेसबुक आदि।
विभिन्न क्षेत्रों में मीडिया की भूमिका एवं समस्याएं
- लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के रूप में मीडिया की भूमिका एक सजग प्रहरी के रूप में है। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के आधारभूत स्तम्भों एवं जनता के बीच एक मध्यस्थ की भूमिका भी निभाता है। फलतः समाज एवं राष्ट्र निर्माण में इसकी भूमिका बहुआयामी प्रवृत्ति की हो जाती है।
- भारतीय संदर्भ में मीडिया ने लोकतांत्रिक संस्थाओं के मजबूतीकरण में अहम भूमिका का निर्वहन किया है। लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के रूप में स्थापित मीडिया ने राजनीतिक जनजागृति बढ़ाने के साथ-साथ निचले स्तर पर स्थापित स्वाशासी संस्थाओं को भी विकास में सहभागी बनाने का कार्य किया है।
- चुनावों में बढ़ता मत प्रतिशत, पिछड़े एवं वंचित वर्गों की सहभागिता का बढ़ता स्तर लगातार लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत एवं परिपक्व कर रहा है, परन्तु वर्तमान समय में हावी बाजारवाद एवं व्यावसायिकता की प्रवृत्ति ने मीडिया को नकारात्मक रूपसे प्रभावित भी किया है ।
- 'पीत पत्रकारिता' के रूप में मीडिया उद्देश्यों से भटककर अनैतिक आचरण भी कर रहा है।
- 'पेड न्यूज' के रूप में वह जनता का नकारात्मक तरीके से प्रभावित करने की कोशिश करता है, तो कभी मीडिया ट्रायल के रूप में खुद को सर्वोच्च रूप से स्थापित करने का स्वयंभू प्रयास करता है।
- बाजारवाद एवं व्यावसायिकता की इस बढ़ती प्रवृत्ति ने सूचना एवं समाचारों को एक उत्पाद के रूप में स्थापित कर दिया है।
- व्यावसायिकता की इस बढ़ती प्रवृत्ति ने TRP (Television Rating Programme) के रूप में नई स्पर्धा को भी जन्म दिया है।
- मीडिया की साख को बचाए रखने के लिए इस प्रवृत्ति को रोकने की आवश्यकता है। इसके लिए नियामक तंत्र की मजबूत पहल के साथ-साथ मीडिया को स्वयं में भी सुधारों को जन्म देना पड़ेगा। ऐसा ही एक प्रयास इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अन्तर्गत BEA (Broadcast Editors Association) की स्थापना के रूप में सामने आया है।
- 'विकास पत्रकारिता' के रूप में मीडिया की अहम भूमिका विकास कार्यों की समीक्षात्मक रिपोर्टिंग के साथ-साथ क्षेत्रीय असमानता को दूर करने के लिए विशेष रूप से समाचारों को रेखांकित करने की आवश्यकता है, ताकि विकास को गति प्रदान की जा रके। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र के विकास के दृष्टिगत रखते हुए मीडिया को विशेष प्रयास करने चाहिए।
- सामाजिक जनजागृति हेतु मीडिया ने उल्लेखनीय कार्य किया है। चाहे महिला सशक्तिकरण का मुद्दा हो या महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के बढ़ते ग्राफ का मीडिया सदैव मुखर होकर सामने आया है। उदाहरणार्थ निर्भया केस आदि। इसके अलाव बाल समास्याओं दिव्यांगों की समस्याओं एवं वर्तमान में ट्रांसजेंडरों की समस्याओं को भी मीडिया ने प्रभावी रूप से रेखांकित किया है, लेकिन अभी इस दिशा में और प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
- सामाजिक के साथ-साथ सांस्कृतिक मूल्यों का प्रचार-प्रसार करना भी मीडिया की महती भूमिका में शामिल है, लेकिन व्यावसायिक होड़ में मीडिया को इस दिशा में गंभीर प्रयास करने होंगे, ताकि पश्चिमीकरण के अंधानुकरण को रोका जा सके तथा सामाजिक विघटन की बढ़ती प्रवृत्ति पर भी अंकुश लगाया जा सके।
इसके साथ-साथ मीडिया को वैश्विक सूचना तंत्र के साथ भी सामंजस्य स्थापित करना होगा, ताकि विदेशनीति के हर पहलू से सरकार एवं जनता को सूचित करने के साथ-साथ इंडियन डायस्पोरा (NRI + PIO) के हितों का भी संरक्षण एवं संवर्द्धन किया जा सके एवं उन्हें राष्ट्रीय विकास के साथ हितबद्ध किया जा सके।
निवारक उपाय
1) संविधान एवं कानूनों के अनुरूप व्यवहार
3 ) नियामक संस्थाओं की मजबूती
2) मूल्यपरक पत्रकारिता का विकास
4) जनता की मनोवृत्ति में परिर्वतन
5) स्वयं नियामक की भूमिका ।
6 ) जनता के साथ प्रत्यक्ष संवाद।
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