मल्ल एवं वज्जिसंघ का उन्मूलन | Mull evam Vaj Sangh Ka Unmulan
मल्ल एवं वज्जिसंघ का उन्मूलन | Mull evam Vaj Sangh Ka Unmulan
- इन गणराज्यों को तत्कालीन राजतंत्रों की साम्राज्यवादिता का शिकार होना पड़ा क्योंकि उनमें राजतंत्रों का प्रतिरोध करने की शक्ति नहीं थी। केवल लिच्छविगण ने ही कुछ समय तक मगध का सामना किया था।
- वज्जि एक संघ गणराज्य था। वज्जियों, मल्लों एवं काशी-कोशल ने मिलकर एक विशाल संघ बनाया, जिसका उद्देश्य अजातशत्रु के आक्रमणों का सामना करना था।
- जैन कल्पसूत्र से ज्ञात होता है कि उस संघ में 9 लिच्छवि, 9 मल्ल तथा काशी-कोशल के 18 गणराज्य सम्मिलित थे। यद्यपि संघ के गणराज्य सदस्य स्वतंत्र थे क्योंकि कुछ राजाओं ने संघ की सदस्यता से हाथ खींच लिया था। अत: लिच्छवि गणाध्यक्ष चेटक को अजातशत्रु से अकेले युद्ध करना पड़ा।
- चेटक ने वैवाहिक संबंधों द्वारा अपनी स्थिति सुदृढ़ करने का प्रयास किया था। उसकी बहिन त्रिशला (महावीर का मां) का विवाह ज्ञातृक राजा सिद्धार्थ के साथ हुआ। चेटक की सात लड़कियां थीं जिनमें से एक चेल्लना का विवाह मगध नरेश बिम्बिसार के साथ और दूसरी मृगावती का वत्स राजा शतानीक साथ हुआ था। अपनी पुत्री का विवाह बिम्बिसार के साथ किये जाने पर भी चेटक मगध के साथ होने वाले संघर्ष को नहीं टाल सका।
- पालि ग्रंथों से जानकारी मिलती है कि लिच्छवि लोग आस-पास के प्रदेशों वाले में आक्रमण करके लोगों को परेशान करते रहते थे। लिच्छवियों के आतंक से पाटलिग्राम के निवासी भी दुःखी थे। कहा जाता है कि एक बार उन्होंने स्थानीय लोगों को घरों से निकाल कर वहाँ डेढ़ माह तक अधिकार बनाये रखा था। अजातशत्रु द्वारा वज्जिसंघ के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के और भी अनेक कारण थे जिनकी चर्चा आगे की जायेगी। किन्तु अजातशत्रु द्वारा वज्जियों की शक्ति का रहस्य जानने का प्रयास किया गया था। महापरिनिर्वाणसुत्त में उल्लेख मिलता है कि अजातशत्रु ने वस्सकार को वज्जियों के उन्मूलन का उपाय जानने के लिए बुद्ध के पास भेजा था।
अपरिहानिय धम्म
बुद्ध ने बताया कि वज्जि लोग जब तक सात बातों का पालन करते रहेंगे, तब तक अजेय रहेंगे, जिसे 'अपरिहानिय धम्म' की संज्ञा दी गई। अपरिहानिय धम्म का उल्लेख इस प्रकार किया जा सकता है
1. संघ सभा में पूर्ण उपस्थिति एवं नियत समय पर अधिवेशन;
2. संघ में एकमत या संपूर्ण रूप से उपस्थित रहना, अधिवेशन करना एवं संघ के कर्त्तव्य-कर्म करना;
3. अस्वीकृत निर्णय को स्वीकार न करना एवं स्वीकृत तथ्य का बहिष्कार न करना अर्थात् वज्जिसंघ के स्वीकृत उनके प्रति गौरव भाव रखना, सम्मान करना, पूजा करना
4. तथ्यों के अनुसार कार्य करना होता था; वज्जि संघ के वृद्धों, नेताओं का सत्कार करना, एवं आदेशों का पालन करना;
5. वज्जि संघ के चैत्यों की पूजा करना एवं धार्मिक कृत्यों का सम्पादन करना;
6. वज्जि संघ के धार्मिक अरहन्तों का सम्मान करना; और
7. वज्जि संघ के महल्लकों (वृद्धों) का सत्कार करना, उनका गौरव रखना, सम्मान करना, पूजा करना, कुल की स्त्रियों एवं कुमारियों का अपहरण न करना आदि।
इस विवरण से स्पष्ट होता है कि संघ के अधिवेशन नियत समय पर होते थे एवं बहुसंख्यक सदस्य उनमें उपस्थित रहते थे। इसके अतिरिक्त निर्धारित नीतियां नियमों का पालन किया जाता था। बड़ों के प्रति सम्मान भाव परस्पर एकता में वृद्धि करता था अर्थात् उनके संगठन की शक्ति का आधार एकता थी, जिसे वस्सकार जैसे कूटनीतिज्ञों ने भेद नीति द्वारा तोड़ने का सफल प्रयास किया था।
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