शहरी स्थानीय शासन का अर्थ | नगर निकायों का विकास | Nagar Nikay Ka Vikas
शहरी स्थानीय शासन का अर्थ
भारत में 'शहरी स्थानीय शासन' का
अर्थ शहरी क्षेत्र के लोगों द्वारा चुने प्रतिनिधियों से बनी सरकार से है । शहरी
स्थानीय शासन का अधिकार क्षेत्र उन निर्दिष्ट शहरी क्षेत्रों तक सीमित है, जिसे राज्य सरकार द्वारा इस उद्देश्य
के लिए निर्धारित किया गया है।
शहरी स्थानीय शासन के प्रकार
भारत में 8 प्रकार के शहरी स्थानीय शासन हैं –
- नगरपालिका-परिषद,
- नगरपालिका,
- अधिसूचित क्षेत्र समिति,
- शहरी क्षेत्र समिति,
- छावनी बोर्ड,
- शहरी क्षेत्र समिति,
- पत्तन न्यास और
- विशेष उद्देश्य के लिए गठित एजेंसी।
नगरीय स्थानीय शासन
नगरीय शासन की प्रणाली को 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा संवैधानिक दर्जा मिल गया ।
केन्द्र स्तर पर "नगरीय स्थानीय शासन" का विषय निम्नलिखित तीन
मंत्रालयों से संबंधित है:
1. नगर विकास मंत्रालय, जो कि 1985 में एक अलग मंत्रालय के रूप में सृजित हुआ।
2. रक्षा मंत्रालय, कैण्टोनमेण्ट बोर्डों के मामले में
3. गृह मंत्रालय,
संघीय क्षेत्रों
के मामले में
नगर निकायों का विकास
नगर निकायों का विकास का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
आधुनिक भारत में ब्रिटिश काल के दौरान स्थानीय
नगर प्रशासन की संस्थाएँ अस्तित्व में आई इस संदर्भ में प्रमुख घटनाएँ निम्नवत
हैं:
(i) 1687-88 में भारत का पहला नगर निगम मद्रास में स्थापित हुआ।
(ii) 1726 में बम्बई तथा कलकत्ता में नगर निगम स्थापित हुए।
(iii) 1870 का लॉर्ड मेयो का वित्तीय विकेन्द्रीकरण का संकल्प स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के विकास में परिलक्षित हुआ।
(iv) लॉर्ड रिपन का 1882 का संकल्प स्थानीय स्वशासन के लिए “ मैग्नाकार्टा" की हैसियत रखता है। उन्हें भारत में 'स्थानीय स्वशासन का पिता' कहा जाता है।
(v) 1907 में रॉयल कमीशन ऑन डीसेन्ट्रलाइजेशन की नियुक्ति हुई, जिसने 1909 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस आयोग के अध्यक्ष हॉब हाउस थे।
(vi) भारत सरकार अधिनियम, 1919 के द्वारा प्रांतों में लागू की गई द्विशासनिक योजना के अंतर्गत स्थानीय स्वशासन एक अंतरित विषय बन गया और इसके लिए एक भारतीय मंत्री को प्रभारी बनाया गया।
(vii) 1924 में कैण्टोण्मेन्ट एक्ट केन्द्रीय विधायिका द्वारा पारित किया गया।
(viii) भारत सरकार अधिनियम, 1935
द्वारा लागू प्रांतीय स्वायत्तता के अंतर्गत स्थानीय स्वशासन को प्रांतीय विषय
घोषित किया गया।
नगरीय शासन का संवैधानिकरण
- अगस्त 1989 में, राजीव गांधी सरकार ने लोकसभा में 65वां संविधान संशोधन विधेयक (नगरपालिका विधेयक) पेश किया । इस विधेयक का उद्देश्य नगरपालिका के ढांचे पर उनकी संवैधानिक स्थिति पर परामर्श कर उन्हें शक्तिशाली बनाना एवं सुधारना था । यद्यपि यह विधेयक लोकसभा में पारित हुआ किंतु अक्तूबर, 1989 में यह राज्यसभा में गिर गया और निरस्त हो गया ।
- वी.पी. सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने सितंबर, 1990 में लोकसभा में पुनः संशोधित नगरपालिका विधेयक पुरः स्थापित किया । फिर भी यह विधेयक पास नहीं हुआ और अंत में लोकसभा विघटित होने पर निरस्त हो गया ।
- सितंबर 1991 में पी. वी. नरसिम्हा राव सरकार ने भी लोकसभा में संशोधित नगरपालिका विधेयक पुर: स्थापित किया। अंततः यह 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के रूप में पारित हुआ और 1 जून, 1993 को प्रभाव में आया।
Post a Comment