आधुनिक भारतीय इतिहास की स्रोत सामग्री के रूप में समाचार पत्र एवं पत्रिकाएँ |Newspapers and magazines as source material of modern Indian History
आधुनिक भारतीय इतिहास की स्रोत सामग्री
आधुनिक भारतीय इतिहास की स्रोत सामग्री के रूप में समाचार पत्र एवं पत्रिकाएँ
Newspapers and magazines as source material of modern Indian History
- भारत में ब्रिटिश शासन के सुप्रभावों को यदि रेखांकित करना हो तो इनमें आधुनिक पत्रकारिता के आरम्भ को महत्वपूर्ण माना जा सकता है. हलांकि समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं का आरम्भ औपनिवेशिक शासन का सीधा परिणाम नहीं था, बल्कि भारत में आधुनिकता के प्रसार का नतीजा था. चूंकि राष्ट्रवादी विचारधारा का सीधा सम्बन्ध आधुनिकता से था, अत: आधुनिक चेतना के साथ-साथ भारत में राष्ट्रवाद का भी प्रसार हुआ. समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं का आरम्भ इसी चेतना के प्रसार का सीधा परिणाम था.
- हलांकि सबसे पहले अखबार अंग्रेज़ों ने ही निकाले, परंतु शीघ्र ही भारतीयों ने भी अखबार निकालना आरम्भ कर दिया. भारतीयों ने पहले पहल अंग्रेज़ी एवं फारसी के समाचार पत्र निकाले जहाँ फारसी पुराने शासकों की सरकारी भाषा थी, वहीं अंग्रेज़ी नये शासकों की भाषा, स्पष्ट है कि इन पत्रों का उद्देश्य सीमित एवं पड़े-लिखे उच्च वर्ग की भावनाओं को अभिव्यक्त करना या उन्हें प्रभावित करना भर था. फिर भी फारसी के कुछ समाचार पत्र निश्चय ही ब्रिटिश विरोधी भावना भड़का रहे थे.
- सी. ए. बेयली ने अपने एक महत्वपूर्ण अध्ययन इम्पायर एण्ड इनफॉरमेशन में यह विचार व्यक्त किया है कि 19वीं शताब्दी के आरम्भ में फारसी को सरकारी कामकाज की भाषा से हटाने में फारसी समाचार पत्रों का सरकार विरोधी रवैये का भी योगदान था. कुछ भी हो जैसे ही अंग्रेज़ी सरकारी कामकाज एवं शिक्षा की भाषा बन गई, बड़े पैमाने पर इस औपनिवेशिक भाषा में भारतीयों ने समाचार पत्र एवं पत्रिकाएँ निकालना आरम्भ कर दिया. राष्ट्रवादी भावना के प्रसार के साथ-साथ देशी भाषाओं में भी अख़बार निकलने लगे. जहाँ अंग्रेज़ी के समाचार पत्र अधिक राजनयिक भाषा का प्रयोग करते थे, वहीं देशी भाषाओं में निकलने वाले समाचार पत्रों में ब्रिटिश शासन की अधिक तीखी आलोचना होती थी.
- उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक देशी भाषा के समाचार पत्र राष्ट्रवादी भावना के प्रसार का मुख्य माध्यम बन चुके थे. अत: ब्रिटिश राज ने उनकी आवाज़ बन्द करनें के लिये प्रेस एक्ट बनाए. फिर भी, अंग्रेज़ी तथा भारतीय भाषाओं में निकलने वाले समाचार पत्र एवं पत्रिकाएं राष्ट्रवाद के प्रचार का सबसे सशक्त माध्यम बने रहे. यही कारण था कि लगभग प्रत्येक राष्ट्रवादी नेता किसी न किसी समाचार पत्र से जुड़ा था. महात्मा गाँधी ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में अपना पदार्पण यंग इंडिया और नवजीवन के संपादन से आरम्भ किया. बीसवीं सदी के तीसरे दशक के मध्य से, जब दलितों का सवाल राजनीतिक सवाल बन कर उभरा, गाँधीजी ने हरिजन का प्रकाशन आरम्भ किया. इसप्रकार समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं ने राष्ट्रीय आन्दोलन में अहम भूमिका अदा की. ये पत्र एवं पत्रिकाएँ इस काल का इतिहास जानने के अत्यंत महत्वपूर्ण स्रोत हैं.
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