निगम राजस्व | स्थानीय सरकार की केन्द्रीय परिषद् | Nigam Ke Rajsav

निगम राजस्व | स्थानीय सरकार की केन्द्रीय परिषद् | Nigam Ke Rajsav


निगम राजस्व

 

शहरी स्थानीय निकायों के आपके पाँच साधन हैं। वे साधन इस प्रकार हैं:

 

1. कर राजस्व     

  • स्थानीय करों से प्राप्त राजस्व के अंतर्गत संपत्ति करमनोरंजन करविज्ञापन करपेशा करजलकरमवेशी करप्रकाश करतीर्थ करबाजार करनये पुलों पर मार्ग करचुंगी तथा अन्य कर आते हैं। साथ हीनिगम के निकाय कई प्रकार के शुल्कजैसे- पुस्तकालय शुल्क शिक्षा शुल्कशिक्षा शुल्क आदि लगाते हैं। चुंगी जो स्थानीय क्षेत्र में आने वाली चीजों पर लगाया कर है जो उनके इस्तेमाल तथा बिक्री पर भी लगती है। ये चुंगियाँ कई राज्यों में हटा दी गई हैं। संपत्ति कर कर राजस्व में सर्वाधिक महत्व का है।

 

2. गैर-कर राजस्व

  • इस स्रोत के अंतर्गत आते हैं निगम संपत्तिफीसजुर्मानारायल्टी लाभलाभांशब्याजउपयोग फीस तथा अन्य अदायगियाँ। जन-सुविधा शुल्कजैसे-जलस्वच्छतामलवाहन ( swerage ) फीस तथा अन्य।

 
3. अनुदान

  • इनमें केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा निगम निकायों को कई विकास परियोजनाओं संरचना परियोजनाशहरी सुधार प्रक्रम तथा अन्य योजनाएं संचालित करने हेतु केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा दिए जाने वाले विभिन्न अनुदान शामिल हैं।

 

4. हस्तांतरण

  • इसके अंतर्गत आता है राज्य सरकार से शहरी स्थानीय निकायों को निधि का हस्तांतरण । यह हस्तांतरण राज्य वित्त आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर होता है।

 

5. कर्ज 

  • शहरी स्थानीय निकाय अपने व्यय के लिए राज्य सरकार तथा वित्तीय संस्थानों से भी कर्ज लेते हैं। पर वे राज्य सरकार की अनुमति से ही वित्तीय संस्थानों या अन्य संस्थाओं से कर्ज ले सकते हैं।

 
स्थानीय सरकार की केन्द्रीय परिषद्

 

  • इसकी स्थापना राष्ट्रपति के आदेश से भारत के संविधान के अनुच्छेद 263 के अंतर्गत की गई थी। मूल रूप से इसे सेण्ट्रल काउंसिल ऑफ लोकल सेल्फ गवर्मेन्ट कहा जाता था। हालाँकि बाद में सेल्फ गवर्मेन्ट (स्वशासन) को गवर्मेन्ट (शासन) से 1980 में प्रतिस्थापित कर दिया गया। 1958 तक इसका संबंध नगर सरकारों के साथ ही ग्रामीण स्थानीय सरकारों के साथ भी थालेकिन 1958 में बाद यह केवल नगरीय स्थानीय सरकारों के मामलों को ही देखता है।

 

  • परिषद एक परामर्शदात्री निकाय है। इसमें भारत सरकार के नगर विकास मंत्री तथा राज्यों के स्थानीय स्वशासन के प्रभारी मंत्री सदस्य होते हैं। केन्द्रीय मंत्रिपरिषद् में अध्यक्ष होते हैं।

 

परिषद के स्थानीय सरकार से संबंधित निम्नलिखित कार्य हैं:

 

(i) नीतिगत मामलों पर विचार करना तथा अनुशंसाएँ देना।

(ii) विधायन के लिए प्रस्ताव तैयार करना 

(iii) केन्द्र तथा राज्यों के बीच सहयोग की संभावना तलाश करना। 

(iv) कार्यवाही के लिए साझे कार्यक्रम का खाका तैयार करना। 

(v) केन्द्रीय वित्तीय सहयोग के लिए अनुशंसा करना । 

(vi) केन्द्रीय वित्तीय सहयोग से पूरा किए गए कार्यों की समीक्षा करना।


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