दलीय व्यवस्था और लोकतंत्र| Party system and Democracy in India
दलीय व्यवस्था और लोकतंत्र
क्या दलीय व्यवस्था से लोकतंत्र मजबूत हुआ है ?
- राजनीतिक दल एवं लोकतंत्र का नजदीकी संबंध है। यह संबंध लोकतंत्र के विभिन्न मानकों में प्रतिबिंबित होते हैं, जैसे, नीति निर्माण में लोगों की भागीदारी, उनकी लामबंदी, उनके अंदर राजनीतिक चेतना, उनके मुद्दों पर बहस तथा उनकी माँगों को पूरी करने का संकल्प।
- जनता नीति निर्माण की प्रक्रिया में सहभागिता करती है। उनकी सहभागिता राजनीतिक दलों द्वारा सरकार में शामिल होकर पूरी होती है। राजनीतिक दल चुनाव में अपने उम्मीदवार खड़े करती है। इस प्रकार राजनीतिक दलों द्वारा खड़े किये उम्मीदवार ही लोगों के लिए नीति निर्माण में सहायता करते हैं। ये उम्मीदवार ही संसद सदस्य एवं विधान सभा सदस्य के तौर पर लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- राजनीतिक दल ही सही तौर पर निर्णय निर्माण में भूमिका निभाने का उपकरण होते हैं। यह संभव नहीं कि सभी लोग चुनाव में में भागेदारी करे क्योंकि लोगों की संख्या अधिक है। वे अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से जो कि वे प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं, इसमें भाग लेते हैं।
- राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों के अलावा भी लोग अपना प्रतिनिधि गैर-राजनीतिक व्यक्ति को भी चुन हैं। इन उम्मीदवारों को स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर जाना जाता है। लेकिन वास्तव में । राजनीति दलों के उम्मीदवार ही सही तौर पर प्रतिनिधि माने जाते हैं बजाय स्वतंत्र उम्मीदवारों के राजनीतिक दल लोगों को आंदोलनों में लाने के लिये भी लामबंद करते हैं ।
- लोकतंत्र में, विपक्षी दलों का यह दायित्व है कि वे सरकार की नीतियों की आलोचना करे । विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि, स्वतंत्र उम्मीदवारों के साथ विधायी निकायों में भागीदारी करते हैं तथा लोकतंत्र को मजबूत बनाने में अपना योगदान देते हैं। जो नीतियाँ बनाई जाती हैं वे जनता के प्रतिनिधियों के बीच बहस से निकलती है जो सामान्य तौर पर राजनीतिक दलों के व्यक्ति होते हैं।
- राजनीतिक दल लोगों में राजनीतिक चेतना लाने में भी अपना योगदान देते हैं। वे लोगों को अपनी विचारधारा से अवगत कराते हैं ।
- अध्ययनों के अनुसार 1990 में कई राजनीतिक दलों के चुनाव में अपने प्रत्याशी खड़े किये थे जिसमें समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल है जैसे दलित, ओ.बी.सी., महिलाऐं इत्यादि ।
- जैफरलों और संजय कुमार के अनुसार, चुनाव में लोगों की भागेदारी बढ़ रही है । वे लोगों की बढ़ती भागीदारी को “राइज आफ प्लेबियन" कहते हैं।
- आशुतोष पार्ष्णेय के अनुसार भारत में सशक्त लोकतांत्रिक भारत में लोकतांत्रिक चेतना बढ़ रही है।
- योगेन्द्र यादव के अनुसार भारत में एक “प्रजातांत्रिक उथल-पुथल" (Democratic Upsurge) हुआ है। ये तर्क चुनावी राजनीति के बारे में है जो कि और भी लोकतांत्रिकरण हो गयी है।
- जैसा कि सब जानते हैं राजनीतिक दल चुनावी राजनीति में मुख्य भूमिका निभाते हैं, इससे यह पता चलता है कि भारत में लोकतंत्र मजबूत हुआ है।
- पिछले तीन दशकों की स्थिति 1950 और 1960 की तुलना में काफी अलग है । उस समय समाज के प्रभुत्व वर्ग ही राजनीति में अपना दबदबा रखता था । लेकिन, दलीय व्यवस्था में बदलाव के कारण तथा अनेक राजनीतिक दलों के उदय के बाद दलित पिछड़े वर्गों में चेतना जागृति हुई है। इसने लोकतंत्र को पिछले कुछ दशकों में और मजबूत किया है ।
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