प्रबोधक संचार |Persuasive Communication |अनुनय, मनाना, राजी करना, समझाना-बुझाना धारणा
प्रबोधक संचार |Persuasive Communication
(अनुनय, मनाना, राजी करना, समझाना-बुझाना धारणा)
- प्रबोधक का आशय एक ऐसी प्रक्रिया से है जिसमें दूसरों के विचारों, भावनाओं, अभिवृत्तियों एवं कार्यप्रणाली को सुतर्कों एवं संदेशों के माध्यम से परिवर्तित कर उन्हें कुछ विशेष मूल्यों, विश्वास एवं अभिवृत्ति को स्वीकारने या कुछ करने, न करने की धारणा मनोवृत्ति परिवर्तन का प्रयास किया जाता है। इसके माध्यम से लोगों की नकारात्मक प्रवृत्ति को सकारात्मक प्रवृत्ति में बदला जाता है।
- आरंभिक दृष्टिकोण के अन्तर्गत प्रबोधक करने वाला व्यक्ति कौन है, तथा कौनसी मनोवृत्ति परिवर्तन किस माध्यम से परिवर्तित करना चाहता है यह चार कारकों पर निर्भर करता है।
(i) प्रबोधकर्ता -Who
(ii) संदेश -What
(iii) लक्षित समूह-- Whom
(iv) संप्रेषण की प्रविधि - Which method.
प्रबोधनकर्त्ता (Persuader)
- मनोवृत्ति परिवर्तन में सफलता के लिए प्रबोधनकर्ता को विशेषज्ञ, विश्वसनीय होना चाहिए। जैसे- डॉक्टर के द्वारा साबुन का विज्ञापन। साबुन के विज्ञापन में डॉक्टर का आकर्षक होना अति आवश्यक है। कोई भी कम्पनी किसी वस्तु का विज्ञापन करती है, विज्ञापन में ऐसे व्यक्ति को लिया जाता है जो शारीरिक रूप से सुंदर हो जिससे दर्शक उन्हें ध्यानपूर्वक देखते हैं, उन्हें अपने आदर्श के रूप में स्वीकार कर उस वस्तु को अपनाते हैं, जिससे उनकी मनोवृत्तियों में इच्छित परिवर्तन लाने में सहायता मिलती है।
संदेश की अंतर्वस्तु- (Content Message)
- सबसे ज्यादा प्रभाव उस संदेश का होगा जो श्रोता, दर्शक की भावनाओं को उत्तेजित कर सके। यदि श्रोता, दर्शक के मन में भय, डर पैदा कर दिया जाए परंतु इसके साथ ही उसका समाधान भी बताया जाए तो इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जैसे- माउण्टेन ड्यू का विज्ञापन "डर के आगे जीत है" यदि किसी व्यक्ति के विषय में अनेक सूचनाएँ प्रदान की जाएँ तो जो सूचनाएँ शुरुआत में दी जाती है उसका प्रभाव अधिक होता है जैसे-
(a) कथन डॉ. सादेका खान एक बुद्धिमान मेहनती, कर्त्तव्यनिष्ठ, सत्यनिष्ठ, ईमानदार, घमंडी, क्रोधित, जिद्दी, अड़ियल, ईर्ष्यालु लड़की है।
कथन (b) डॉ. सादेका खान एक जिद्दी अड़ियल ईर्ष्यालु घमंडी, क्रोधित, बुद्धिमान, मेहनती, ईमानदार, कर्त्तव्यनिष्ठ, सत्यनिष्ठ लड़की हैं।
- अतः जिन व्यक्तियों को सूचनाएँ प्रथम कथन के क्रम में दी गई उनके मन में सादेका खान की सकारात्मक छवि बनेगी जबकि जिनको सादेका खान की विशेषताएँ दूसरे कथन के क्रम में दी गई तो उनके मन में नकारात्मक दृष्टिकोण बन जायेगा।
लक्षित श्रोता समूह (Target
Audience Group)
- प्रबोधक की सफलता श्रोता के आत्म-विश्वास की प्रकृति पर भी निर्भर करती है। यदि श्रोता आक्रामक हैं तो संप्रेषण का प्रभाव कम होगा परंतु यदि वह विनम्र है तो उस पर प्रभाव अधिक होगा।
संप्रेषण की प्रविधि (Method of Communication)
- सामूहिक संचार की तुलना में व्यक्तिगत संवाद का प्रभाव अधिक होता है। एक ब्रिटिश अनुसंधान में पाया गया कि सामूहिक संचार से 24 प्रतिशत मामलों में लोगों की मनोवृत्ति में परिवर्तन हुआ नते जबकि व्यक्तिगत संवाद के द्वारा मनोवृत्ति परिवर्तन 72% सफलता प्राप्त हुई। वहीं एक तरफा संप्रेषण की तुलना में दो तरफा संचार अधिक प्रभावशाली होता है।
- संज्ञानात्मक दृष्टिकोण में प्रबोधकारी संदेश के प्रति प्रेक्षक के मस्तिष्क की प्रतिक्रिया, अध्ययन का मुख्य बिंदु होती है। प्रेक्षण के मस्तिष्क में प्रबोधन की प्रक्रिया दो तरह से हो सकती है क्रमबद्ध प्रक्रिया जिससे संदेश सामग्री पर सावधानीपूर्वक विचार किया जाता है। जबकि स्वत: शोध प्रक्रिया में विचार अत्यन्त तेजी से किया जाता है या किया ही नहीं जाता है अर्थात मस्तिष्क केवल महत्वपूर्ण बातों को ग्रहण करता है। यदि श्रोता की बौद्धिक क्षमता बेहतर है और उसके पास विषय विशेष पर ज्ञान व समय भी है तो क्रमबद्ध प्रक्रिया प्रयोग किया जाएगा जबकि समय, ज्ञान, बौद्धिक क्षमता की कमी की स्थिति में स्वतः शोध प्रक्रिया का प्रयोग होगा।
- प्रबोधक तभी सफल होगा जब नई मनोवृत्ति उन प्रकार्यों को पूरा करेगी जो पुरानी मनोवृत्ति द्वारा किए जा रहे हैं। जैसे अगर कोई व्यक्ति साम्प्रदायिक है और उसे इस कारण अपने समूह में सम्मान प्राप्त हो रहा है तो धर्म निरपेक्षता की मनोवृत्ति अधिक तार्किक होकर भी उस पर तब तक पर्याप्त असर नहीं डालेगी जब तक यह नई मनोवृत्ति उस सम्मान का विकल्प न उपलब्ध कराए जो उसे पुरानी मनोवृत्ति के कारण प्राप्त हो रहा है भ्रष्ट व्यक्ति की मनोवृत्ति को तब तक बदलना मुश्किल है जब तक कि उसे भ्रष्टाचार से हो रहे लाभों की क्षतिपूर्ति न हो जाए। यह क्षतिपूर्ति आर्थिक हो यह आवश्यक नहीं है बल्कि यह अन्य रूपों जैसे कार्यालय में उसके सम्मान आदि में वृद्धि के माध्यम से भी हो सकती हैं।
प्रबोधक संप्रेषण / अनुनय
कोई भी ऐसा सम्प्रेषण जो श्रोता की मनोवृत्ति में परिवर्तन करना चाहता अनुनय कहलाता है।
आवश्यकता क्यों?
1. व्यक्ति के व्यवस्था में परिवर्तन
2. सुशासन की स्थापना
3. लक्ष्यों की प्राप्ति
4. शांति की स्थापना
5. जागरूकता हेतु
6. दृष्टिकोण
प्रबोधक / अनुनय का प्रयोग
• विपरीत मतों को बदलने या तटस्थ करने है वह
• अप्रकट मतों व सकारात्मक अभिवृत्तियों को उभारने,
• अनुकूल लोक मतों के संवर्धन में किया जाता है।
- सबसे कठिन अनुनय कार्य प्रतिकूल मतों को सहानुभूति में बदलना है, विकासके मामले में भारत के लोग परंपराबद्ध हैं और वे रूढ़िवादी मत धारण करते हैं। विकास परियोजनाओं में संलग्न लोक संबंध अभ्यासकर्ताओं को उन परंपरागत सोचों को बदलना कठिन होता है। इसलिए विकास संदेशों को कुछ इस प्रकार डिजाइन की जानी चाहिए कि वह किसी विषय के बारे में लोगों के आम स्वभाव के संगत हो। अनुनय का सबसे आसान तरीका संचार है जो कि सेवाओं व कार्यों के द्वारा प्रचलित किया जाता है.
- वादामुक्त कार्य के बिना, स्त्रोत अपनी विश्वसनीयता खो देता है। जैसे वंचित वर्गों में शिक्षा को बढ़ावा देने के अभियान के क्रम में शैक्षिक केन्द्र की स्थापना का प्रयास भी किया जाना चाहिए अन्यथा वह अभियान व्यर्थ होगा।
प्रशासनिक संदर्भ में प्रबोधक/अनुनय की उपयोगिता
- 1- सरकारी योजनाओं के समयानुकूल प्रभावपूर्ण कार्यान्वयन हेतु जनजागरूकता एवं जनसहभागिता आवश्यक है। इसके लिए आवश्यक है कि समाज और प्रशासन के मध्य संवादहीनता खत्म हो । प्रशासन के प्रति लोगों में भय या संदेह की गुंजाइश न रहे। समाज और प्रशासन के बीच सकारात्मक संवाद सुनिश्चित करने में तथा लोगों को विकास प्रक्रिया और विकास की नीतियों से जोड़ने में अनुनयन की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। जैसे सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफलता में जनभागी का अभाव रहा है।
- 1- पर्यावरण संरक्षण हेतु कानूनी प्रक्रियाओं के साथ-साथ अनुनयन का उपयोग कर उन्हें संवेगात्मक रूप से जाग्रत कर उनके व्यवहार परिवर्तन किया जा सकता में है। बिजली, पानी, आदि की व्यर्थ बर्बादी कचरे का उचित निस्तारण वृक्षारोपण अभियान, पॉलिथीन के स्थान पर जूट से बने थैलों का प्रयोग आदि के संबंध में अनुनयः का प्रयोग कर लोगों की अभिवृत्ति का सकारात्मक दिशा में परिवर्तन किया जा सकता है। संसाधनों के अंधाधुंध दोहन को रोकने के लिए यह तर्क दे सकते हैं कि किस तरह से हमें जीने का अधिकार है उसी प्रकार से हमारी भावी पीढ़ी भी जीने की हकदार है। अतः भावी पीढ़ी के समुचित जीवनयापन की संभावनाओं को ध्यान में रखते। हुए हमारा यह कर्त्तव्य बनता है कि हम संसाधनों का समुचित दोहन करें।
- 3- सामाजिक कुरीतियों तथा परदा प्रथा बाल विवाह, दहेज प्रथा स्त्री शिक्षा, भ्रूण हत्या आदि के संबंध में जनमानस में विद्यमान नकारात्मक प्रवृत्ति को दूर करने में कानूनी पहल के साथ-साथ अनुनयात्मक शैली महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती लोगों को विभिन्न उपायों के माध्यम से यह समझाया जा सकता है कि वे महिलाओं के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाएँ उन्हें भोग की वस्तु रूप में व्यवहार न करे। भ्रूण हत्या के दुष्परिणाम एवं नैतिक अपराध बोध के रूप में चित्रित कर लोगों की भावना एवं सोच में परिवर्तन लाया जा सकता है। पुन: यहाँ इन्द्रा नूई, कल्पना चावला, साइना नेहवाल, चन्दा कोचर आदि के बारे में बताकर यह भावना प्रबल की जा सकती है कि बेटियाँ भी परिवार के लिए नाम, यश और उपलब्धि अर्जित कर परिवार का नाम रोशन कर सकती हैं।
- 4- आर्थिक संदर्भ में यह प्राय: देखा जाता है कि लोगों में कर चोरी, भ्रष्ट आचरण के माध्यम से अतिरिक्त धन का संचय करने की प्रवृत्ति पायी जाती है। इसका सीधा दुष्प्रभाव राष्ट्र के विकास एवं जनहितकारी कार्यक्रमों पर पड़ता है अतः यहाँ कानूनी प्रक्रियाओं के अतिरिक्त अनुनय की प्रक्रिया का प्रयोग कर उनकी मनोवृत्ति में सकारात्मक परिवर्तन किया जा सकता है।
- 5- वर्तमान में आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती के रूप में नक्सलवाद प्रकट हुआ। नक्सलवाद से निपटने के लिए अन्य तैयारियों के साथ-साथ अनुनय का भी प्रभावशाली तरीके से उपयोग कर उनके सरकार एवं लोकतंत्र विरोधी विचार को बदला जा सकता है तथा विकासात्मक कार्यों में उन्हें भागीदार बनाकर देश की मुख्यधारा उन्हें जोड़ा जा सकता है।
- 6- तीव्र जनसंख्या प्रसार को रोकने के लिए भी अनुनय का प्रभावशाली प्रयोग किया जा सकता है। बच्चों की बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य एवं भविष्य के बारे में बताकर उन्हें इस संबंध में जाग्रत किया जा सकता है।
- 7- इसी प्रकार अन्य क्षेत्र जिसमें व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक, साम्प्रदायिक, राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, पर्यावरण के संबंध में व्यक्ति की अभिवृत्ति में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है। एक बेहतर कार्य संस्कृति का निर्माण किया जा सकता है और संविधान की प्रस्तावना में वर्णित मूल्यों एवं आदशों को साकारित करते हुए सुशासन की ओर कदम बढ़ाया जा सकता है।
- 8- मतदान अनिवार्य करने के लिए कानूनी पहलुओं के साथ-साथ अनुनय के द्वारा उनकी मानसिकता की सकारात्मकता में परिवर्तन किया जा सकता है।
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