बंगाल में अंग्रेजों की पराजय का समाचार जब मद्रास पहुंचा, उस समय तक अंग्रेज दूसरी कर्नाटक युद्ध जीत चुके थें । क्लाइव इस विजय का नायक बन कर उभरा।
अरकाट के घिराव ने उसे प्रथम श्रेणी का राजनीतिज्ञ बना दिया था। इसलिए क्लाईव को बंगाल के लिए रवाना किया गया। उसकी सहायता के लिए वाट्सन को समुद्री बेड़े का इन्चार्ज नियुक्त किया गया ।
अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए अंग्रेजों ने षडयन्त्रों का जाल बुनना शुरु कर दिया व्यक्तिगत स्वार्थों से प्रेरित कुछ व्यक्ति भी नबाब को हटाना चाहते थे। इनमें प्रमुख थे, मीर जाफर राय, दुर्लभराय, अमीचंद तथा बंगाल के कुछ प्रमुख जगत सेठ ।
वाट्स उस समय मुर्शिदाबाद में था और उसने प्लासी के युद्ध से पूर्व की गई सौदेबाजी में सक्रिय भूमिका निभाई। अंग्रेजों ने नबाब पर आक्रमण करने में विलम्ब नही किया।
दोनों पक्षों की सेनाएं प्लासी के मैदान में एक दूसरे के सामने आ खड़ी इस समय नबाब के पास 50,000 सैनिक थे, जबकि क्लाइव के पास मात्र 8000 यूरोपियन तथा 2,200 भारतीय सैनिक ।
मीर जाफर तथा अन्य सेनानायकों के षड़यन्त्र के कारण प्लासी के युद्ध में नबाब की पराजय हुई तथा उसकी हत्या कर दी गई।
प्लासी का युद्ध का वर्णन कीजिये
प्लासी का युद्ध 1757 में सिराजुद्दौला और क्लाइव के
बीच हुआ था। इस युद्ध में क्लाइव की जीत हुई और मीर जाफर को बंगाल की गद्दी पर
बिठाया गया। प्लासी का युद्ध भारत के निर्णायक युद्धों में से एक था, यद्यपि सैन्य दृष्टि से यह एक मामूली-सी झड़प से अधिक कुछ नहीं था।
सैन्य इतिहास में भी इसका कोई विशेष महत्त्व नहीं है। इस युद्ध में क्लाइव की विजय
नवाब के कर्मचारियों के विश्वासघात का परिणाम थी।
बक्सर का युद्ध 1764 में लड़ा गया था। इस युद्ध में
ब्रिटिश सेना के विरुद्ध अवध के नवाब शुजाउद्दौला की सेना, उसके साथ मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय और बंगाल का नवाब मीर कासिम थे।
इस युद्ध में अंततः ब्रिटिश सेना की जीत हुई।
प्लासी का युद्ध, युद्ध नहीं था
कुछ इतिहासकार प्लासी के युद्ध को युद्ध ही नहीं मानते हैं। अंग्रेजों का पक्ष लेने वाले ब्रिटिश इतिहासकार पी0ई0 राबर्टस का भी मानना है कि प्लासी के युद्ध को युद्ध नहीं मानते हैं।
अंग्रेजों का पक्ष लेने वाले ब्रिटिश इतिहासकार पी0ई0 राबर्टस का भी मानना है कि प्लासी के युद्ध को युद्ध की संज्ञा नही दी जा सकती।
के0एम0 पनिक्कर के अनुसार प्लासी की घटना एक हुल्लड़ तथा भगदड़ थी, युद्ध नही ।
“ यद्यपि नबाब के पास एक विशाल सेना थी फिर भी अधिकांश सैनिकों ने इसमें भाग ही नहीं लिया। अंग्रेजों की फौज में मरने वालों की संख्या 23 थी, इसमें 7 यूरोपीय तथा 16 भारतीय सिपाही थे। 49 घायल हुए, जिसमें केवल 13 ही यूरोपीय सिपाही थे। दूसरी तरफ नबाब की सेना में 500 सिपाही मारे गए तथा मोहनलाल सहित काफी संख्या में लोग घायल हुए।
प्लासी के युद्ध के परिणाम
प्लासी के युद्ध का परिणाम बताते हुए जदुनाथ सरकार कहते है, 23 जून, 1757 को भारत में मध्यकालीन युग का अन्त हो गया तथा आधुनिक युग का शुभारम्भ हुआ।
प्लासी के युद्ध के 20 वर्ष बाद ही देश धर्मतन्त्री शासन के अभिषाप से मुक्त होने लगा।“ प्लासी के युद्ध के परिणामों का यह बड़ा रुढ़िवादी एवं एकपक्षीय विवेचन है ।
ल्यूक स्क्राफटन जो नबाब के दरबार में प्लासी के युद्ध के बाद कम्पनी का रेजीडेण्ट था, का विचार है "प्लासी के युद्ध से अंगेजों को वही स्थिति प्राप्त हो गई, जो उन्हें सिराजुद्दौला द्वारा कलकत्ता पर अधिकार से पूर्व थी।“ इस कथन में इस तथ्य को पूरी तरह से छुपा लिया गया है कि प्लासी के युद्ध से पूर्व मीर जाफर तथा अंग्रेजों के मध्य सन्धि हुई थी। इसमें अंग्रेजों ने नबाब की स्वतन्त्रता पर अनेक प्रतिबन्ध लगा दिए थे।
प्लासी के परिणामें की बक्सर युद्ध में अंग्रेजों की विजय द्वारा पुष्टी होती है। बीच के वर्षो में अंग्रेजों का वाणिज्यिक स्वरुप राजनैतिक हो गया।
प्लासी के युद्ध ने अंग्रेजों को तात्कालिक सैनिक एवं वाणिज्यिक लाभ प्रदान किए। अगले दस वर्षो के घटनाक्रम एक नवीन शासन के ने प्रभुसत्तापूर्ण प्रभाव की स्थापना की।
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