राजनीति और भाषा |Politics and language in India

जनीति और भाषा |Politics and language in India


राजनीति और भाषा

 

भारत में कई भाषाऐं है और प्रत्येक क्षेत्र को विशेष भाषा और बोलियों से पहचाना जा सकता है। 

भारत में राजनीति का एक महत्वपूर्ण पहलू भाषा है। भाषा क्षेत्रीय अस्मिताराज्यों के पुनर्गठन की राजनीति और भारत के अलग-अलग राज्यों की पहचान का आधार होते हैं। 

मतदान व्यवहार कारक के रूप में भाषा 

  • भाषा मतदान व्यवहार के निर्धारक के रूप में भी काम करती है। लेकिन आम तौर परअकेले भाषा मतदान व्यवहार को निर्धारित नहीं करती है। ऐसा अन्य कारणों से भी होता है। ये अन्य कारण है: जब भाषा को समुदायक्षेत्र या जातीय समूहों के पक्ष या भेदभाव का आधार माना जाता है। 
  • जातिधर्म जैसे अन्य कारकों की तुलना में भाषा कुछ पस्थितियों में निर्वाचन राजनीति में अधिक प्रभावी हो जाती है। 
  • तमिलनाडु में भाषा को सबसे अधिक प्रभावी माना गया है और यह हिंदी के खिलाफ आंदोलन में प्रतिबिंबित हुआ है। 
  • पूर्वोत्तर मेंविशेषकर1960 के दशक में असमी और बंगाली भाषाओं पर टकराव रहा है। इसके फलस्वरूप भाषा राज्य के निर्माण की माँग हुईऔर सन् 1972 मेंमेघालय का निर्माण हुआ था। 
  • असम समझौते के बाद बोडो भाषा बोड़ो प्रभावी क्षेत्रों में रणनीति का प्रमुख कारक बन गयी थी । ऐसी स्थिति क्षेत्रीयधार्मिक या जातीय समूहों में टकराव पैदा करती है

 

उत्तर प्रदेश की राजनीति में भाषा 

  • उत्तर प्रदेश की राजनीति में भाषा प्रायः राजनीति का हिस्सा बन जाती हैहिंदी को हिंदू पहचान का प्रतीक और उर्दू को मुस्लिम पहचान का प्रतीक माना जाता है । 
  • उर्दू को मान्यता देने की माँग कुछ हिंदुओं को अच्छी नहीं लगी और इसका उन्होंने विरोध भी किया था। 
  • 1950-1960 के दशक में हिंदी-उर्दू का विभाजन सांप्रदायिक वैमनस्य का आधार बन गया था उत्तर प्रदेश में भाषा को लेकर काफी विवाद रहा है। उर्दू राज्य की दूसरी राजभाषा है। 
  • 1950 के दशक से कांग्रेस सरकार और दूसरे दलों (समाजवादीकाम्यूनिस्टजनसंघ) ने उत्तरप्रदेश में उर्दू को दूसरी राजभाषा के रूप में बनाने का विरोध किया थालेकिन हिंदी को बढ़ावा देने के प्रयास किये थे। 
  • समाजवादियों ने 1960 के दशक में यू.पी. एवं बिहार में हिंदी को अनिवार्य करने और अंग्रेजी को हटाने का विरोध करने का आंदोलन किया । 
  • 1953 में हाई स्कूल की परीक्षाऐं में (1953 से) देने के लिये राज्य सरकार ने हिंदी को एक मात्र माध्यम बनाया। राज्य सरकार ने उर्दू माध्यम वाले स्कूलों को सरकारी सहायता देना निलंबित कर दिया। लेकिन नेहरु ने हिंदी और उर्दू के बीच समानता की माँग की। 
  • सन् 1961-1971 से उत्तर प्रदेश में हिंदी को अधिकारिक संरक्षण दिया गया। 
  • उत्तर प्रदेश की तीसरी राजभाषा संस्कृत थीउर्दू नहीं जबकि अन्य दो हिंदी और अंग्रेजी थी। 1970 के दशक में उर्दू बोलने वालो ने उर्दू को महत्व दिये जाने की माँग उठायी केन्द्रिय सरकार ने उर्दू बोलने की समस्या को दूर करने के लिये गुजराल समिती का गठन किया था । इस समिती ने उर्दू को ज्यादा जगह देने के लियेत्रि-भाषा सूत्र की सिफारिश की थी ।
  • इंदिरा गाँधी को उत्तर प्रदेश में विरोध की आशंका थी तथा जनता पार्टी ने इसे मुस्लिम तुष्टीकरण बताया। इसके परिणामस्वरूप उर्दू को तीसरी अधिकारिक राजभाषा के रूप में मान्यता नहीं मिली। 
  • 1980 में आपातकाल के बाद काँग्रेस के उदय के पश्चात् कांग्रेस ने हिंदू एवं मुसलमानों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की । उत्तर प्रदेश में काँग्रेस के घोषणा पत्र में उर्दू को दूसरी राजभाषा बनाने का वादा किया गया । इसका विपक्षी दलों ने विशेषकर बी.जे.पी.लोकदल एवं कुछ काँग्रेस के सदस्यों ने विरोध किया। हालांकि उर्दू के पक्ष में कुद रियासतें दी गयी।
  • 1982 में उर्दू को दूसरी भाषा बनाया गयालेकिन राजभाषा नहीं बनाया। मुस्लिम विधायकों ने इसके लिये विधेयक लाने की माँग की। 1984 में सरकार ने उर्दू को दूसरी भाषा बनाने का विधेयक पारित किया। लेकिन इस विधेयक को कोर्ट से मंजूरी नहीं मिली। 1989 में एन.डी. तिवारी सरकार ने उर्दू को दूसरी राजभाषा बनाने संबंधी विधेयक को सभा में पारित किया । इसने बंदायूं में सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई। अंत में 1994 में मुलायम सिंह की सरकार ने एक अध्यादेश लागू किया और इस प्रकार उर्दू को दूसरी राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ। लेकिन बिहार सरकार ने इसके उलट कार्य किया । 1989 में इसने सरकारी आदेश से उर्दू का समर्थन किया था

 

भारत में राजनीति का एक महत्वपूर्ण पहलू भाषा है समझाइए 

 

  • भारत में राजनीति का एक महत्वपूर्ण पहलू भाषा है। यह क्षेत्रीय पहचानराज्यों को पुनर्गठन की राजनीति और भारत के विभिन्न हिस्सों में पहचान के आधार पर टकराव का आधार रहा है। 
  • भाषा मतदान व्यवहार के निर्धारक के रूप में भी काम करती है। लेकिन आमतौर पर भाषा अकेले मतदान व्यवहार को निर्धारित नहीं करती है। ऐसा अन्य कारणों से मिलकर होता हैजब भाषा को समुदायक्षेत्र या जातीय समूहों के पथ और भेदभाव का आधार माना जाता है।
  • जातिधर्म जैसे अन्य तत्वों की तुलना में कुछ पस्थितियों में निर्वाचक राजनीति में वह अधिक प्रभावी कारक रही है। 
  • तमिलनाडु में हिंदी भाषा के खिलाफ इस तर्क के आधार पर आंदोलन हुआ कि हिंदी को उन पर थोपा जा रहा था। 
  • पूर्वोत्तर मेंविशेषकर 1960 के दशक में असमी और बंगाली भाषाओं का टकराव था । उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी भाषा राजनीति का हिस्सा बन जाती है। 
  • धर्म के आधार पर हिन्दी को हिन्दू पहचान का प्रतीक और उर्दू को मुस्लिम पहचान का प्रतीक माना जाता है ।

विषय सूची 

भारत की राजनीति में नृजातीयता
भारत की राजनीति में धर्म 
राजनीति और भाषा
चुनावी राजनीति सोशल मीडिया की भूमिका
भारत में जाति और राजनीति
जाति और राजनीति में अंतःक्रिया , जाति के राजनीतिकरण की विशेषताएं
भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका 

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