डॉ. राम मनोहर लोहिया के सामाजिक विचार | Ram Manohar Lohiya Ke Samajik Vichar

 डॉ. राम मनोहर लोहिया के सामाजिक विचार

डॉ. राम मनोहर लोहिया के सामाजिक विचार | Ram Manohar Lohiya Ke Samajik Vichar


 

राम मनोहर लोहिया के सामाजिक विचार

  • डॉ. लोहिया ने भारतीय सामाजिक व्यवस्था पर कड़ा प्रहार किया। वे हिन्दू होते हुए भी हिन्दू धर्म एवं समाज की मूल मान्यताओं के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने धर्म को ईश्वर तथा आत्मा के साथ न जोड़करमानव प्राणियों के कल्याण तथा लौकिक समृद्ध के साथ जोड़ा।


  • वे जाति एवं वर्ण व्यवस्था को कैंसर के समान मानते थे, जिसने भाद्रकमजोरदलित एवं महिलाओं के जीवन को नरक बनाया। समाज के कथित उच्च जातियों के लोग निम्न जातियों के लोगों पर अन्यायअत्याचार एवं शोषण करने से नहीं चुकते है समाज में विद्यमान आर्थिक संसाधन कुछ लोगों के हाथों में केन्द्रीत हो गये हैंइससे आर्थिक असमानता को बढ़ावा मिल रहा है।  वर्ण या जाति के नाम पर शुद्रों साथ छुआछुत जैसा अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है। इनके कारण समाज विखण्डित नजर आ रहा है। अतः डॉ. लोहिया ने जाति एवं वर्णवाद के निवारण की पहल की और शुद्रों के उत्थान की आवश्यकता पर बल दिया।

 

1 वर्ण व्यवस्था का विरोध

 

  • डॉ. लोहिया ने यह अनुभव किया कि भारत इतने समय तक वर्ण-व्यवस्था के फलस्वरूप तन्द्रा और सड़न की स्थिति में रहा है और अब आन्तरिक असामनता को समाप्त करने का संघर्ष प्रारम्भ हो गया है। उन्होंने यह नहीं माना कि वर्ण या जाति का आधार स्वभाव या कर्तव्य विभाजन है। वह यह मानते हैं कि वर्ण व्यवस्था बल द्वारा निर्मित की गई एक व्यवस्था हैजिसमें गुण-कर्म का कोई मूल्य नहीं है। 


2 सामाजिक विषमताओं पर प्रहार

 

  • डॉ. लोहिया ने यह माना कि भारतीय समाज का पतन यहाँ व्याप्त अनेक विषमतओं के कारण हुआ। उनके अनुसार सामाजिक विषमतओं में वर्ण व्यवस्था या जाति प्रथानर-नारी असमानताअस्पृश्यतारंगभेद-नीति और साम्प्रदायिकता प्रमुख है। हिन्दू समाज की दुर्दशा के लिए वे ब्राह्मणवाद को उत्तरदायी मानतें है। इसके मूल में ब्राह्मणवाद का षड्यंत्र समझ में आया। साथ ही वाणिकवाद की सांठ-गांठ का भी आभास हुआ। दोनों ने मिलकर ही जाति चक्र चना है। यह सामाजिक विषमता उसी का ही परिणाम है। इनसे व्याकुल होकर न समता पर आधारित समाज व्यस्था के पक्षधर थे। अन्य समता की अपेक्षा सामाजिक समता की स्थापना पर अधिक बल दिया।

 

3 सामाजिक प्रतिष्ठा का आधार कर्म होना चाहिए न कि जन्म

 

  • डॉ. राम मनोहर लोहिया का मानना था कि सामाजिक प्रतिष्ठा का आधार कर्म होना चाहिए न कि जन्म जन्म के आधार पर ब्राह्मणक्षत्रिय या वेश्य को उच्च समझना जाति प्रथा को बनाये रखना हैं। एक व्यक्ति के उच्च वर्ण में केवल जन्म लेने से वह उच्च नहीं हो जाताबल्कि उसमें उच्चता के अनुकूल गुण एवं योग्यता होनी चाहिए। जात प्रथा एक जड़-वर्ग की द्योतक है जिसके कारण भारत समग्र जीवन निष्प्राण हो गया। इसी कारण भारत दासता का शिकार हुआ।

 

4 जाति प्रथा के उन्नमूलन हेतु सुझाव

 

  • जाति प्रथा के उन्मूलन के डॉ. लोहिया ने अनेक सुझाव दिये। सामान्यतः अन्तर्जातीय विवाहों और सहभोजों को उन्होंने महत्व दिया। उनकी मान्यता थी कि अन्तर्जातीय विवाहों और सह भोजों से आवश्यक रूप से समता का भाव पैदा होने लगेगा। डॉ. लोहिया ने जाति प्रथा के जोड़ने में वयस्क मताधिकार और प्रत्यक्ष चुनाव की भूमिका पर बल दिया। उनका विचार था कि जैसे-जैसे यह वयस्क मताधिकार चलता रहेगाचुनाव चलते रहेंगेवैसे-वैसे जाति का ढीलापन बढ़ता रहेगा। संक्षेप में डॉ. लोहिया ने आम लोगों में राजनीतिक चेतना भरने और राष्ट्र को सशक्त बनाने के लिए जाति प्रथा की समाप्ति की दिशा में प्रत्यक्ष चुनाववयस्क मताधिकार और विशेष सिद्धान्त की आवश्यकता पर बल दिया।

 

5 आर्थिक दृष्टि से जाति प्रथा तोड़ने पर बल

 

  • जाति प्रथा के चलते छोटी जातियां सार्वजनिक जीवन से बहिष्कृत की जाती है। उसमें दासता की भावना पैदा हो जाती हैं इससे ये जातियां कमजोर एवं पिछड़ी हो जाती हैं। इसलिए डॉ. लोहिया की दृष्टि में कमजोर एवं पिछड़ी जातियों को आर्थिक रूप से सबल और उनमें आत्म सम्मान की भावना विकसित करने की आवश्यकता है। डॉ. लोहिया ने सुझाया कि सभी भूमिहीन मजदूरों को साढ़े छः एकड़ जमीन मिलेंखेतीहर मजदूरों की मजदूरी बढ़ायी जाए। ऊँची से ऊँची आमदनी या नीचे से नीचे आमदनी के बीच में एक मर्यादा बांधने वाली बात लागू की जाए। इस तरह सामाजिक व्यवस्था के सफल संचालन हेतु समाज में विद्यमान आर्थिक असमानता की खाई को पाटना होगा।

 

6 विशेष अवसर का सिद्धान्त

 

  • डॉ. लोहिया का विशेष अवसर का सिद्धान्त एक उच्च आदर्श एवं न्याय पर आधारित हैं। वह सामाजिक न्याय की बात ही नहीं करते थेबल्कि उसे व्यवहार में लाने के लिएऔर वर्ग विहिन तथा जाति-विहिन समाज की स्थापना की दृष्टि से कमजोर तथा पिछड़े वर्ग लोगों को हर क्षेत्र में प्राथमिकता देने पर बल देते थे। वे इन्हें आठ प्रतिशत आरक्षण देने के पक्षधर ताकि समाज में उन्हें सम्मान एवं प्रतिष्ठा प्राप्त हो सके। लोहिया इन कमजोर पिछड़े लोगों को नेतृत्व के पदों पर देखना चाहते थे। इस प्रकार लोहिया की दृष्टि में समान अवसर नहींबल्कि प्राथमिकता पर आधारित अवसर इन संकुचित बंधनों की दीवारों की ढहा सकता है।

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