पंचायती राज व्यवस्था की असफलता के कारण |पंचायती राज के अप्रभावी निष्पादन के कारण |Reasons for failure of Panchayati Raj system

पंचायती राज व्यवस्था की असफलता के कारण  |पंचायती राज के अप्रभावी निष्पादन के कारण |Reasons for failure of Panchayati Raj system


पंचायती राज व्यवस्था की असफलता के कारण  


तिहत्तरवें विधेयक (1992 ) के जरिये संवैधानिक स्थिति तथा सुरक्षा प्रदान करने के बावजूद पंचायती राज संस्थाओं का काम संतोषजनक और आशानुकूल नहीं रहा । इस निम्नस्तरीय निष्पादन के कारण ये हैं

 

पंचायती राज के अप्रभावी निष्पादन के कारण


1. पर्याप्त हस्तांतरण का अभाव : 

  • अधिकतर राज्यों ने कार्यफंड तथा कार्यकारियों के हस्तारण के पर्याप्त उपाय नहीं किये हैं ताकि पंचायती राज संस्थाएँ अपनी संविधान निर्धारित प्रकार्य संपन्न कर सकें। आगे यह जरूरी हैं कि पंचायतों के पास अपनी जिम्मेदारियों का पूरा करने लायक संसाधन हों। जहाँ एक ओर राज्य वित्त आयोगों ने अपनी अनुशंसाएँ भेज दी हैं। वहीं दूसरी ओर बहुत कम ही राज्यों ने पंचायती राज संस्थाओं की वित्तीय व्यवहार्यता को सुनिश्चित करने के कदम उठाए। 

 

2. नौकरशाही का अत्यधिक नियंत्रण

  • कुछ राज्यों में ग्राम पंचायतों को अधीनस्थ स्थान दे दिया गया हो इसलिए ग्राम पंचायत के सरपंचों को आश्चर्यजनक रूप में अधिक समय प्रखंड कार्यालयों में फंड और / या तकनीकी अनुमोदन के लिए जाना पड़ता है। प्रखंड कार्यालय के कर्मचारियों के साथ काम करने से चुने गए प्रतिनिधि के रूप में सरपंचों की भूमिका पर आँच आती है।

 

3. फंडों की प्रकृति

  • इसके दो निहितार्थ हैं। कुछ परियोजनाओं के अंतर्गत निर्धारित गतिविधियाँ या कार्य जिले के सभी हिस्सों के लिए अनुकूल नहीं हैं। इसका नतीजा होता है गैर जरूरी कार्यान्वयन या निधि राशि का अधूरा व्यय। 

 

4. सरकारी निधि पर अत्यधिक निर्भरता

  • प्राप्त निधि तथा स्व-संगृहीत निधि की समीक्षा से देखा गया है कि पंचायतें सरकारी निधि व्यवस्था पर लगभग पूरी तरह निर्भर हैं। जब पंचायतें संसाधन स्वयं संगृहीत नहीं करतींआत्मनिर्भर नहीं होतीं और बाहर से निधि प्राप्त करती हैं तो जनता निधि व्यय के सामाजिक अंकेक्षण के लिए नहीं करेगी।

 

5. वित्तीय अधिकारों के प्रयोग की अनिच्छा

  • एक महत्वपूर्ण शक्ति जो ग्राम पंचायतों को हस्तांतरित की गई हैवह है- संपत्ति पर कर लगाने की शक्तिव्यापारबाजारमेला और अन्य उपलब्ध सेवाओं के लिए भी कराधानजैसे- सड़कों पर प्रकाश व्यवस्थासार्वजनिक शौचालयों की व्यवस्था । बहुत कम ही पंचायतें कर लगाने तथा वसूलने के अपने वित्तीय अधिकारों का प्रयोग करती हैं। पंचायतें यह तर्क पेश करती हैं कि जब आप खुद लोगों की बीच रहते हैं तो उनसे कर वसूलना कठिन काम है।

 

ग्राम सभा की स्थिति 

  • ग्राम सभाओं का सशक्तीकरणपारदर्शिताजवाबदेही तथा वंचित समूहों की भागीदारी के मामले में एक सशक्त प्रभावकारी हथियार है। लेकिन कई राज्यों के एक्ट ग्राम सभाओं के अधिकारों को स्पष्ट नहीं कर पाए हैंन ही इन सभाओं के प्रकार्यों की निर्दिष्ट कार्यविधियों को स्पष्ट किया गया। अधिकारियों को दंड देने की व्यवस्था के बारे में भी स्पष्टता नहीं है।

 

समांतर निकायों का गठन

  • प्रायः समांतर निकायों को त्वरित कार्यान्वयन तथा बेहतर जवाबदेही की आशा में गठित किया जाता है। हालांकि न के बराबर प्रमाण हैं कि ऐसी समांतर निकायें स्वयं को विकृतियोंयथा- पक्षपाती राजनीतिलूट की बंदरबाँटभ्रष्टाचार तथा संभ्रान्तों द्वारा कब्जे आदि से मुक्त रख पाई हैं। खास-खास पहलें (missions), जो मुख्य मुख्य कार्यक्रमों या कार्य योजनाओं को अनदेखी कर देती हैंवर्तमान ढांचे तथा उसके प्रकार्यों और नव निर्मित ढांचों तथा इसके प्रकार्यों के बीच मेल नहीं बनने देतीं समांतर निकायपंचायती राज संस्थाओं के वैध क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं क्योंकि उनके पास श्रेष्ठतर संसाधन बंदोबस्त होते हैं।

 

8. कमजोर संरचना: 

  • देश में अनेकों ग्राम पंचायतों में पूर्णकालिक सचिव नहीं होते। लगभग 25% ग्राम पंचायतों के पास अपने कार्यालय भवन नहीं होते। अनेकों के पास नियोजननिगरानी आदि के लिए आँकड़े या तथ्य संग्रह नहीं होते।


  • निर्वाचित पंचायती संस्थाओं के अधिकतर सदस्य अर्द्ध-शिक्षित हैं इसलिए ने अपने भूमिका जिम्मेदारीकार्ययोजनाकार्यप्रणाली तथा व्यवस्था के बारे में अनभिज्ञ रहते हैं। प्रायः सक्षमआवश्यक तथा आवधिक प्रशिक्षण की कमी के कारण वे अपने प्रकार्यों का सही निष्पादन नहीं करते हैं । हालांकि सभी जिला स्तरीय तथा मध्यवर्ती पंचायतें कंप्यूटरों से संपृक्त परंतु केवल 20% ग्रा पंचायतें ऐसी हैं जहाँ हैं कंप्यूटर पर काम करने की व्यवस्था है। कुछ राज्यों में ग्राम पंचायतों के पास कंप्यूटर की कोई व्यवस्था नहीं है।

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 पंचायती राज का संवैधानिकरण

73वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992

73वें संविधान संशोधन अधिनियम के अनिवार्य एवं स्वैच्छिक प्रावधान 

1996 का पेसा अधिनियम ( विस्तार अधिनियम )

पंचायती राज के वित्तीय स्त्रोत

पंचायती राज व्यवस्था की असफलता के कारण

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