सिराजुद्दौला एवं अंग्रेजों के बीच टकराव | Sirajuddaula Aur Angrej Takrav
सिराजुद्दौला एवं अंग्रेजों के बीच टकराव Sirajuddaula Aur Angrej
- अलीवर्दी खाँ के शासन काल से ही नबाब तथा अंग्रेजों के बीच के सम्बन्ध काफी तनावपूर्ण रहे थे।
- 1752 में ओर्म ने अलीवर्दी के बारे में क्लाइव को लिखा था, “इस बूढ़े कुत्ते को अच्छी तरह से दंड देना ठीक रहेगा। मैं बगैर किसी कारण के यह नहीं कर रहा हूं। कम्पनी को गम्भीरतापूर्वक इस बात पर विचार करना होगा अन्यथा उसके लिए बंगाल का व्यापार निरर्थक हो जाएगा।“
- अलीवर्दी खाँ ने भी सिराजुद्दौला को अंग्रेजों के विरुद्ध सचेत किया था। हॉलवेल के अनुसार अलीवर्दी खाँ ने मरते समय सिराजुद्दौला से कहा था “देश में यूरोपियनों की शक्ति क्या है, इसका ध्यान रखो। तेलंगाना की भूमि में उनकी राजनीति एवं युद्धों को देखते हुए तुम्हें जाग्रत हुए। रहना चाहिए। अपने पारस्परिक झगड़ों के आधार पर उन्होंने राजा की भूमि और उसकी प्रजा की वस्तुओं को आपस में बाँध लिया है। अंग्रेज अधिक शक्तिशाली है, पहले उनकी शक्ति समाप्त करो। उन्हें कभी भी किले मत बनवाने देना।"
- इस प्रकार सिराजुद्दौला के नबाब बनने के पूर्व ही बंगाल के नबाब एवं अंग्रेजों के बीच युद्ध आवश्यम्भावी दिखने लगा था।
- अलीवर्दी खाँ की मृत्यु के बाद जब सिराजुद्दौला नबाब बना तो अंग्रेज बंगाल में व्यापार के क्षेत्र में पूर्ण रूप से अपनी मनमानी कर रहे थे। यहाँ तक कि भारतीय व्यापारी भी अंगेजों से दस्तक प्राप्त करके व्यापार करते थे। इसके अतिरिक्त अंग्रेंज जिन गॉवों के जमीदार थे उसकी पूरी आय अपने पास रख लेते थे।
- बंगाल के नबाब को उन्होंने लगान से बिल्कुल वंचित कर रखा था। सिराजुद्दौला ने जब इस तथ्य की छानबीन कराई तो ज्ञात हुआ कि अंग्रेजों ने 1717 ई0 से 1756 ई0 तक बंगाल सरकार को 18 लाख, 75 हजार पौंड की आय से वंचित रखा था।
- इसलिए सबसे पहले सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों द्वारा दस्तक जारी करने के अधिकार को छीन लिया। अंग्रेजों ने नबाब की आज्ञा के बिना अपनी फैक्ट्रियों की किलेबंदी कराई था। इस पर भी सिराजुद्दौला ने प्रतिबन्ध लगाया।
- सिराजुद्दौला के राज्याभिषेक के समय नियमानुसार अंग्रेजों ने दरबार में अपनी हाजरी नहीं लगाई, बल्कि इतना ही नही वे नबाब के विरोधियों, यानी शोकतजंग तथा घसीटीबेगम के साथ षडयन्त्रों में लगे रहे ताकि सिराजुद्दौला की जगह किसी कमजोर व्यक्ति को नबाब बनाया जाए, जिससे उनके आर्थिक हितों की पूर्ति हो सके।
- स्थिति तब और बिगड़ गई जब सिराजुद्दौला के एक सेवक किशनदास ने, जिसने 53 लाख कर गबन किया था, उसे अंग्रेजों ने शरण दी। जब नबाब ने ख्वाजा वाजिद तथा राम नारायण को अंग्रेजों से इस सन्दर्भ में बातचीत के लिए भेजा तो उनको बहुत अपमानित किया गया इससे स्पष्ट था कि अंग्रेजों को नबाब के आदेशों की कोई परवाह नहीं थी तथा वे सिराजुद्दौला को इसके विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए उकसा रहे थे।
- इन परिस्थितियों में सिराजुद्दौला को अंग्रेज व्यापारियों के खिलाफ कदम उठाना पड़ा तथा उसने अंग्रेजों की कासिम बाजार की फैक्ट्री पर अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् नबाब ने फोर्ट विलियम पर आक्रमण किया। अंग्रेज अधिकारी वहाँ से भाग निकले तथा जिन्हें बन्दी बनाया गया, उन्हें एक कोठरी में बन्द कर दिया गया।
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