कर्नाटक युद्धों से पूर्व हैदराबाद एवं कर्नाटक की स्थिति |Situation of Hyderabad and Karnataka before the Carnatic Wars
कर्नाटक युद्धों से पूर्व हैदराबाद एवं कर्नाटक की स्थिति
चूंकि यह युद्ध कर्नाटक में लड़ा गया, इसलिए इन तीनों कर्नाटक युद्धों से पूर्व कर्नाटक तथा हैदराबाद की स्थिति से अवगत होना आवश्यक है।
कर्नाटक युद्ध के पूर्व हैदराबाद की स्थिति
- हैदराबाद की राजनैतिक स्थिति जानना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि कर्नाटक हैदराबाद के अन्दर ही आता था, जो बाद में हैदराबाद से अलग होकर एक स्वतन्त्र राज्य के रुप में सामने आया।
- यह भी जानना आवश्यक है कि हैदराबाद एवं कर्नाटक दोनों ही सूबों में ऐसी क्या राजनैतिक स्थिति उत्पन्न हुई, जिसने इन दोनों विदेशी कम्पनियों के लिए राजनैतिक हस्तक्षेप की जमीन तैयार की। इसकी भी जानकारी आवश्यक है कि पतोन्मुख मुगल साम्राज्य एवं लड़खड़ाती दक्षिण की राजनीति में अंग्रेजों की प्रभुसत्ता स्थापित करने में हितकारी सिद्ध हुई।
- यहाँ पर मुझे 1904 में कर्जन का लंदन में दिया गया भाषण याद आता है, जिसमें उसने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा था, “भारत के लोगों का भाग्य ईश्वर द्वारा अंग्रेजों को ही सौंपा गया है। साथ ही साथ उसने यह भी कहा था कि “मेरे लिए यह संदेश ग्रेनाइड पर खुदा है कि हमारा काम उचित है और स्थाई बना रहेगा। “ कर्जन के इस आत्मविश्वास ने यह साफ कर दिया था कि भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना नैतिकता की कसौटी पर पूरी तरह से उतरता है।
- अल्फ्रेड मार्टिनों का मत है कि दक्षिण भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का विकास अंग्रेजों के उत्साह एवं प्रयासों से उतना नहीं हुआ, बल्कि “अशुभ शक्तियों द्वारा हुआ, जिन्हें हम संयोग या दैवयोग और कभी-कभी भाग्य का नाम देते है।“ अतः अल्फ्रेड मार्टिनों भी यह साफ करते है कि दक्षिण में ब्रिटिश प्रभुसत्ता की स्थापना वहाँ की लड़खड़ाती राजनीति का ही परिणाम थी।
औरंगजेब की मुत्यु कर्नाटक की स्थिति
- औरंगजेब की मुत्यु के बाद मुगल साम्राज्य तेजी से अपने पतन की ओर बढ़ रहा था, इस स्थिति का लाभ उठाते हुए कई मुगल सूबेदारों ने अपने राज्यों की स्वतन्त्रता की घोषणा की, जिनमें चिनकुलिच खाँ, जो बाद में निजाममुल्क के नाम से प्रसिद्ध हुआ, भी एक था।
- निजाममुल्क की बढ़ती शक्ति ने मराठों को आशंकित किया, जिसकी परिणती 1727 मंगीशेव गाँव के युद्ध में हुई, जिसमें निजाममुल्क की पराजय है। नादिरशाह के आक्रमण के परिपेक्ष्य में निजाममुल्क ने दिल्ली की ओर रवाना होने से पूर्व अपने पुत्र नासिरगंज को अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया। नासिरगंज ने स्वंय बेहतर उत्तराधिकारी सिद्ध किया एवं बाजीराव के विरुद्ध एक युद्ध में उसने मराठों के विरुद्ध अच्छी सफलता प्राप्त की।
- 1732 में कर्नाटक के नबाब सादुल्ला खाँ की मृत्यु हो गई। दोस्त अली उसका उत्तराधिकारी बना, परन्तु नए नबाब ने स्वंय को गद्दी के लिए उचित सिद्ध नहीं किया। शासन का सारा भार उसने अपने पुत्र सफदर अली एवं दिवान चंदा साहब पर छोड़ दिया।
- इसी बीच त्रिचनापल्ली के राजा की मृत्यु हो गई। इस अवसर का लाभ उठाकर त्रिचनापल्ली पर अधिकार कर लिया। विधवा रानी ने भी चंदा साहब से अच्छे सम्बन्ध स्थापित किए। त्रिचनापल्ली पर यह आक्रमण कर्नाटक को बहुत भारी पड़ा। मराठे, जो त्रिचनापल्ली के हिन्दू राज्य की समाप्ति से क्रोधित थे, ने कर्नाटक पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में दोस्त अली मारा गया तथा सफदर अली में को पीछे हटना पड़ा। आगे बढ़ते हुए मराठों ने अर्काट पर अधिकार कर लिया तथा बाध्य होकर सफदर अली को मराठों से सन्धि करनी पड़ी। सफदर अली अर्काट से निकलकर अपने बहनोई मुर्तजा अली के पास वेलोर पहुंचा। पर वहाँ मुर्तजा अली ने षडयंत्र कर सफदर अली को मार डाला एवं स्वंय को नबाब घोषित किया, परन्तु मुर्तजा अली के भाग्य में शासन बहुत अधिक दिन तक नहीं था और उसके स्थान पर सफदर अली के पुत्र मुहम्मद खाँ को नबाब घोषित किया गया निःसदेह रुप से निजामुल मुल्क, जिसकी नजर कर्नाटक पर थी, उसने इस परिस्थिति का लाभ उठाया तथा मराठों को पराजित कर न केवल त्रिचनापल्ली पर, बल्कि समस्त कर्नाटक पर अपना अधिकार कर लिया।
- निजामुल मुल्क अवयस्क सैय्यद मुहम्मद को, जो कि सफदर ने अली का पुत्र था, नबाब घोषित किया तथा अनवरूद्दीन को उसका संरक्षक नियुक्त किया सैय्यद मुहम्मद की हत्या कर दी गई, जिसके बाद अनवरुद्दीन वहाँ का नबाब बना।
- इसी बीच फ्रांसीसी दक्षिण में अपनी शक्ति को बढ़ाने में लगे हुए थे। पांडिचेरी में उन्होंने अत्यधिक मजबूत किले का निर्माण कराया था, इस मजबूत किले को इतनी अधिक प्रसिद्धी मिल चुकी थी कि मराठों के डर से चंदा साहब ने अपने परिवार के सदस्यों को वहाँ रखा था।
- मराठों ने जब फ्रांसीसियों से चंदा साहब के परिवार तथा 60 लाख रुपये की मॉग की, तब फ्रांसीसियों ने इस अनैतिक मॉग को ठुकराते हुए जबाब दिया “हमारे देश फ्रांस में न तो सोना पैदा होता है और न चॉदी। हम जो भी व्यापारिक माल खरीदने के लिए लाते है, वह हमें विदेशों से मिलता है। हमारे देश में तो लोग और सैनिक ही पैदा होते है, जिन्हें हम अन्यायपूर्ण छेड़छाड़ के विरुद्ध इस्तेमाल करना जानते है।
- भारतीय शासकों की फ्रांसीसियों पर निर्भरता तथा इनके द्वारा दिए गए मराठों को दो टुक जबाब से फ्रांसीसियों की बढ़ती शक्ति तथा उनका आत्मविश्वास साफ दिखाई देता है।
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