भारत के आठ प्रकार के स्थानीय निकाय |शहरी शासन के प्रकार | Type of Urban Local Govt.
भारत में शहरी शासन के प्रकार
भारत में निम्नलिखित आठ प्रकार के स्थानीय निकाय नगर क्षेत्रों के प्रकाशन के लिए सृजित किए गए हैं:
- नगर निगम
- नगरपालिका
- अधिसूचित क्षेत्र समिति
- नगरीय क्षेत्र समिति
- छावनी बोर्ड
- टाऊनशिप
- बन्दरगाह न्यायस
- विशेष उद्देश्य एजेन्सी
1. नगर निगम
- नगर निगम का निर्माण बड़े शहरों, जैसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, बंगलुरु तथा अन्य शहरों के लिए है। यह संबंधित राज्य विधानमंडल की विधि द्वारा राज्यों में स्थापित हुईं तथा भारत की संसद के अधिनियम द्वारा केंद्रशासित क्षेत्र में राज्य के सभी नगर निगमों के लिए एक समान अधिनियम हो सकता है या प्रत्येक नगर निगम के लिए पृथक् अधिनियम भी हो सकता है।
- नगर निगम में तीन प्राधिकरण हैं जिनमें परिषद, स्थायी समिति तथा आयुक्त आते हैं।
- परिषद निगम की विचारात्मक एवं विधायी शाखा है। इसमें जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित पार्षद होता हैं तथा कुछ नामित व्यक्ति भी होते हैं जिनका नगर प्रशासन में ऊंचा ज्ञान तथा अनुभव होता है। संक्षेप में ] परिषद की सरंचना अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा महिलाओं का आरक्षण सहित 74वें संविधान अधिनियम द्वारा शासित होती है।
- परिषद का प्रमुख महापौर (मेयर) होता है। उसकी सहायता के लिए उप-महापौर ( डिप्टी मेयर) होता है। ज्यादातर राज्यों में उसका है चुनाव एक साल के नवीकरणीय कार्यकाल के लिए होता है। वास्तव में वह एक अलंकारिक व्यक्ति होता है तथा निगम का औपचारिक प्रधान होता है। उसका प्रमुख कार्य परिषद् की बैठकों की अध्यक्षता a करता है ।
- स्थायी समिति परिषद् के कार्य को सुगम बनाने के लिए गठित की जाती है जोकि आकार में बहुत बड़ी है। वह लोक कार्य, शिक्षा, स्वास्थ्य कर निर्धारण, वित्त व अन्य को देखती है। वह अपने क्षेत्रों में निर्णय लेती है।
- नगर निगम आयुक्त परिषद और स्थायी समिति द्वारा लिए निर्णयों को लागू करने के लिए जिम्मेदार है अतः वह नगरपालिका का मुख्य कार्यकारी अधिकारी है। वह राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है और साधारणतः आई.ए.एस. समूह का एक सदस्य होता है ।
2. नगरपालिका
नगरपालिकाएं कस्बों और छोटे शहरों के प्रशासन के लिए स्थापित की जाती हैं। निगमों की तरह, यह भी राज्य में राज्य विधानमंडल से संबंधित अधिनियम द्वारा गठित की गई हैं और केंद्रशासित राज्यों में भारत की संसद के द्वारा गठित की गई हैं।
- यह अन्य नामों, जैसे नगरपालिका परिषद, नगरपालिका समिति, नगरपालिका बोर्ड, उपनगरीय नगरपालिका, शहरी नगरपालिका तथा अन्य से भी जानी जाती हैं। नगर निगम की तरह, नगरपालिका के पास भी परिषद, स्थायी समिति तथा मुख्य कार्यकारी अधिकारी नामक अधिकार क्षेत्र आते हैं।
- परिषद निगम की वैचारिक व विधायी शाखा है। इसमें लोगों द्वारा सीधे निर्वाचित (काउंसलर) शामिल है।
- परिषद का प्रधान अध्यक्ष होता है। उपाध्यक्ष उसका सलाहकार है। वह परिषद की सभा की अध्यक्षता करता है। नगर निगम के महापौर के विपरीत नगर प्रशासन में उसकी महत्वपूर्ण एवम् प्रमुख भूमिका होती है। परिषद की बैठकों की अध्यक्षता के अलावा यह कार्यकारी शक्तियों का भी उपयोग करना है।
- स्थायी समिति परिषद के कार्य को सुगम बनाने के लिए गठित की जाती है। वह लोक कार्य, शिक्षा, स्वास्थ्य, कर निर्धारण, वित्त तथा अन्य को देखती है ।
- मुख्य कार्यकारी अधिकारी नगरपालिका के दैनिक प्रशासन का जिम्मेदार होता है। वह राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है ।
3. अधिसूचित क्षेत्र समिति
- अधिसूचित क्षेत्र समिति का गठन प्रकार के क्षेत्र के प्रशासन के लिए किया जाता है । औद्योगीकरण के कारण विकासशील कस्बा और वह कस्बा जिसने अभी तक नगरपालिका के गठन की आवश्यक शर्तें पूरी नहीं की हों लेकिन राज्य सरकार द्वारा वह महत्वपूर्ण माना जाए।
- चूंकि इसे सरकारी राजपत्र में प्रकाशित कर अधिसूचित किया जाता है, इसलिए इसे अधिसूचित क्षेत्र समिति के रूप में जाना जाता है । यद्यपि यह राज्य नगरपालिका अधिनियम के ढांचे के अंतर्गत कार्य करता है।
- अधिनियम के केवल वहीं प्रावधान इसमें लागू होते हैं, जिन्हें सरकारी राजपत्र अधिसूचित में किया गया है। इसे किसी अन्य अधिनियम के तहत शक्ति प्रयोग के लिए भी उत्तरदायित्व सौंपा जा सकता है। इसकी शक्तियां लगभग नगरपालिका की शक्तियों के समान हैं।
- यह पूरी तरह नामित इकाई है, जिसमें राज्य सरकार द्वारा मनोनीत अध्यक्ष के साथ अधिसूचित क्षेत्र समिति के सदस्य हैं। अतः न तो यह निर्वाचित इकाई है और न ही संविधिक निकाय है।
4. नगर क्षेत्रीय समिति
- नगर क्षेत्रीय समिति छोटे कस्बों में प्रशासन के लिए गठित की जाती है। यह एक उपनगरपालिका आधिकारिक इकाई है और इसे सीमित नागरिक सेवाएं; जैसे-जल निकासी, सड़कें, मार्गों में प्रकाश व्यवस्था और सरंक्षणता की जिम्मेदारी दी जाती है। यह राज्य विधानमंडल के एक अलग अधिनियम द्वारा गठित किया जाता है। इसका गठन, कार्य और अन्य मामले अधिनियम द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। इसे पूर्ण या आंशिक रूप से राज्य सरकार द्वारा निर्वाचित या नामित किया जा सकता है।
5. छावनी परिषद
- छावनी क्षेत्र में सिविल जनसंख्या के प्रशासन के लिए छावनी परिषद की स्थापना की जाती है। इसे 2006 के छावनी अधिनियम के उपबंधों के तहत गठित किया गया है, यह विधान केन्द्र सरकार द्वारा निर्मित किया गया है। यह केंद्रीय सरकार के रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन कार्य करता है। अतः ऊपर दी गई स्थानीय शहरी इकाइयों के विपरीत जो कि राज्य द्वारा प्रशासित और गठित की गई हैं, छावनी परिषद केंद्र सरकार द्वारा गठित और प्रशासित की जाती है ।
- 2006 का छावनी अधिनियम इस आशय से अधिनियमित किया गया था कि छावनी प्रशासन से संबंधित नियमों को संशोधित कर अधिक लोकतांत्रिक बनाया जा सके तथा छावनी क्षेत्र में विकासात्मक गतिविधियों के लिए वित्तीय आधार को और उन्नत किया जा सके। इस अधिनियम द्वारा छावनी अधिनियम 1924 को निरस्त कर दिया गया।
- वर्तमान में (2016) देश भर में 62 छावनी बोर्ड हैं। उन्हें चार कोटियों में नागरिक जनसंख्या के आधार पर बांटा गया है,
छावनी बोर्डों का वर्गीकरण
नागरिक जनसंख्या -
- प्रथम कोटि 50,000 के ऊपर
- द्वितीय कोटि 10,000 से 50,000
- तृतीय कोटि 2,500 से 10,000
- चतुर्थ कोटि 2,500 से कम
- एक छावनी परिषद में आंशिक रूप से निर्वाचित या नामित सदस्य शामिल होते हैं। निर्वाचित सदस्य 3 वर्ष की अवधि के लिए, जबकि नामित सदस्य (पदेन सदस्य) उस स्थान पर लंबे समय तक रहते है। सेना अधिकारी जिसके प्रभाव में वह स्टेशन हो, परिषद का अध्यक्ष होता है और सभा की अध्यक्षता करता है। परिषद के उपाध्यक्ष का चुनाव उन्हीं में से निर्वाचित सदस्यों द्वारा 3 वर्ष की अवधि के लिए होता है ।
पहली कोटि के छावनी बोर्ड में निम्नलिखित सदस्य
होते हैं:
(i) केन्द्र का नेतृत्व करने वाला सैन्य अधिकारी
(ii) छावनी में कार्यरत एक कार्यपालिक अभियंता
(iii) छावनी में कार्यरत एक स्वास्थ्य अधिकारी
(iv) जिलाधिकारी द्वारा नामित एक प्रथम श्रेणी दंडाधिकारी
(v) केन्द्र का नेतृत्व करने वाले सैन्य अधिकारी द्वारा नामित तीन सैन्य अधिकारी
(vi) छावनी क्षेत्र के लोगों द्वारा निर्वाचित आठ सदस्य
(vii) छावनी बोर्ड का मुख्य कार्यकारी अधिकारी
- छावनी परिषद द्वारा किए गए कार्य नगरपालिका के समान होते हैं। यह अनिवार्य कार्यों एवं वैचारिक कार्यों में वैधानिक रूप से श्रेणीबद्ध । आय के साधनों में दोनों, कर एवं गैर-कर राजस्व शामिल हैं।
- छावनी परिषद के कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा होती है। यह परिषद और इसकी समिति के सारे प्रस्तावों एवं निर्णयों को लागू करता है और इस प्रयोजन हेतु गठित केन्द्रीय कैडर से संबद्ध होता है ।
6. नगरीय क्षेत्र
- इस तरह का शहरी प्रशासन वृहत सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा स्थापित किया जाता है। जो उद्योगों के निकट बनी आवासीय कॉलोनियों में रहने वाले अपने कर्मचारियों को सुविधाएं प्रदान करती है। यह उपक्रम नगर के प्रशासन की देखरेख के लिए एक नगर प्रशासक नियुक्त करता है। उसे कुछ इंजीनियर एवं अन्य तकनीकी और गैर तकनीकी कर्मचारियों की सहायता प्राप्त होती है। अतः शहरी प्रशासन के नगरीय रूप में कोई निर्वाचित सदस्य नहीं होते हैं वास्तव में, यह उपक्रमों की नौकरशाही संरचना का विस्तार है ।
7.न्यास पत्तन
न्यास पत्तन की स्थापना बंदरगाह क्षेत्रों
जैसे- मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और अन्य में मुख्य रूप उद्देश्यों के लिए की जाती है:
(अ) बंदरगाहों की सुरक्षा व व्यवस्था ।
(ब) नागरिक सुविधाएं प्रदान करना ।
न्यास पत्तन का गठन संसद के एक अधिनियम द्वारा किया गया है। इसमें निर्वाचित और गैर-निर्वाचित दोनों प्रकार के सदस्य सम्मिलित हैं। इसका एक आधिकारिक अध्यक्ष होता है । इसके नागरिक कार्य काफी हद तक नगरपालिका की तरह होते हैं ।
8. विशेष उद्देश्य हेतु अभिकरण
इन 7 क्षेत्रीय आधार वाली शहरी इकाइयों (या बहुउद्देशीय इकाइयां ) के साथ, राज्यों ने विशेष कार्यों के नियंत्रण
हेतु विशेष प्रकार की अभिकरणयों का गठन किया है जो नगर निगमों या नगरपालिकाओं या
अन्य स्थानीय शासनों के समूह से संबंधित हों । दूसरे शब्दों में, यह कार्यक्रम पर आधारित हैं न कि
क्षेत्र पर इन्हें 'एकउद्देशीय', 'व्यापक उद्देशीय' या 'विशेष उद्देशीय इकाई' या स्थानीय कार्यकारी ईकाई' के रूप में जाना जाता है। कुछ इस तरह की इकाइयां इस प्रकार हैं:
1. नगरीय सुधार न्यास
2. शहरी सुधार प्राधिकरण
3. जलापूर्ति एवं मल निकासी बोर्ड
4. आवासीय बोर्ड
5. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
6. विद्युत आपूर्ति बोर्ड
7. शहरी यातायात बोर्ड
यह कार्यकारी स्थानीय इकाईयां, सांविधिक इकाइयों के रूप में राज्य विधानमंडल या विभागों के अधिनियम द्वारा स्थापित की जाती । यह स्वायत्त इकाई के रूप में कार्य करती हैं और स्थानीय शहरी प्रशासन द्वारा सौंपे कार्यों को स्वतंत्र रूप से करती हैं अर्थात् नगर निगम, नगरपालिकाएं आदि। अतः ये स्थानीय नगरपालिका इकाइयों के अधीनस्थ नहीं हैं ।
Post a Comment