राजनीतिक दल का क्या अर्थ है | दलीय व्यवस्था का अर्थ |What is the meaning of Political party
राजनीतिक दल का क्या अर्थ है | दलीय व्यवस्था का अर्थ
विषय सूची
- राजनीतिक दल का क्या अर्थ है, दलीय व्यवस्था का अर्थ
- भारत में दलीय प्रणाली एवं राजनीतिक दलों का विकास
- दलीय व्यवस्था और लोकतंत्र
- भारत में राजनीतिक दलों के प्रकार
- भारत के राष्ट्रीय दलों के बारे में जानकारी
- भारत के क्षेत्रीय राजनैतिक दल
- भारत में जाति व्यवस्था, जाति आधारित संगठनों का उदय
- जातिवादी गठबंधन
- चुनावी राजनीति में जाति की भूमिका
- गैर चुनावी राजनीति में जाति की भूमिका
- जाति और राजनीतिः क्षेत्र, जातिवादी प्रतीक एवं राजनीति
- भारत की राजनीति में नृजातीयता
- भारत की राजनीति में धर्म
- राजनीति और भाषा
- चुनावी राजनीति सोशल मीडिया की भूमिका
- भारत में जाति और राजनीति
- जाति और राजनीति में अंतःक्रिया , जाति के राजनीतिकरण की विशेषताएं
- भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका
- भारत की राजनीति में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने कारक, मतदान व्यवहार क्या है ?
राजनीतिक दल, दलीय व्यवस्था एवं लोकतंत्र
- लोकतांत्रिक देश में संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। राजनैतिक दल उन संस्थाओं का प्रतिनिधित्व करती है जिसमें लोग विधायी निकायों में राजनीतिक दलों के नामांकित व्यक्तियों को चुनकर भेजती है।
- ये राजनैतिक दल लोगों को राजनीतिक गतिविधियों में भी शामिल करती हैं। इन गतिविधियों के द्वारा लोगों की समस्याओं को सामने लाया जाता है ।
- इस प्रकार राजनीतिक दल लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिये आवश्यक है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में कई प्रकार के राजनैतिक दल उभरे ।
- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में एक दलीय व्यवस्था के प्रभुत्व का बोलबाला रहा, जिसमें 1950 से 1960 तक काँग्रेस पार्टी का दबदबा था तथा उसके बाद के काल में कई अन्य दलों का वर्चस्व देखने को मिला। यह इकाई दलीय राजनीतिक व्यवस्था राजनीतिक दलों का विकास, उनका संबंध तथा भारत में लोकतंत्र के साथ उसके संबंधों की चर्चा करती है ।
राजनीतिक दलों एवं दलीय व्यवस्था का अर्थ
राजनीतिक दल का क्या अर्थ है
- राजनीतिक दल एक राजनीतिक प्रणाली का महत्वपूर्ण घटक है। राजनैतिक दल वह संस्था है जिसमें नेताओं, अनुयायियों / कार्यकर्त्ता, नीतियों और कार्यक्रमों का संबंध होता है । इसके सदस्य या तो औपचारिक होते हैं या फिर वे औपचारिक सदस्य नहीं होते है और इसका समर्थन करते हैं। कई प्रकार के राजनैतिक दल होते हैं।
- राजनैतिक दलों में नेताओं, नीतियों कार्यक्रमों एवं विचार धारा के आधार पर अंतर किया जा सकता है।
- राजनीतिक दल का प्रमुख सिद्धांत यह है कि वह अन्य संगठनों से अलग होता है क्योंकि इसका प्रमुख उद्देश्य सत्ता प्राप्त करना है।
- राजनैतिक दलों के विपरीत दबाव समूह, हित समूह या गैर दलीय नागरिक समाज का उद्देश्य शक्ति या सत्ता प्राप्त नहीं करना है। लेकिन कभी-कभी ये संगठन भी चुनाव लड़ते है। लेकिन यह सामान्य तरीका नहीं है।
- गैर-दलीय संगठन केवल किसी विशेष अवसर पर ही चुनाव लड़ते हैं।
- राजनैतिक दलों का व्यक्तियों, राज्यों एवं समाज के बीच महत्वपूर्ण संबंध होते हैं।
- राजनीतिक दल, सामाजिक प्रक्रिया और नीति निर्माताओं के बीच घनिष्ठ संबंध स्थापित करते है। ये सामाजिक समूहों के हितों से जुड़े मुद्दों पर वाद-विवाद और नीतियों पर प्रभाव डालते हैं।
दलीय व्यवस्था का अर्थ
- दलीय व्यवस्था का अर्थ देश में कई राजनैतिक दलों से संबंधित है। राजनीतिक व्यवस्था में उपस्थित पार्टियों की संख्या के आधार पर आमतौर पर एक दलीय प्रणाली, द्विदलीय प्रणाली एवं बहुदलीय प्रणाली के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
- जैसा कि उनके नामों से पता चलता है, लोकतंत्र में एक दलीय द्वि-दलीय एवं बहुदलीय व्यवस्था होती हैं ।
- भारत में आमतौर पर पार्टियों की पहचान उनके प्रदर्शन का स्तर और सरकार में उनकी मौजूदगी से लगाया जा सकता है। एक से अधिक दल की उपस्थिति एवं लोकतांत्रिक और बहुलवादी समाज की विशेषता है।
- कई दलों की उपस्थिति भारत में एक महत्वपूर्ण दलीय प्रणाली की विशेषता रही है।
- हालांकि, 1950 के बाद से भारत में पार्टी प्रणाली की संख्या में बदलाव देखने को मिला है। आजादी के बाद के पहले दशक में केवल काँग्रेस पार्टी का ही वर्चस्व या प्रभुत्व था। यह एक दलीय प्रभुत्व का युग था। लेकिन एक से अधिक दलों की अनुपस्थिति का नहीं।
- 1950 से 1960 के दशक की अवधि को रजनी कोठारी ने एक दल के वर्चस्व का युग बताया। इस युग के कॉंग्रेंस के वर्चस्व का युग कहा जाता है। एक पार्टी के प्रभुत्व का मतलब यह नहीं था कि भारत में केवल एक ही दल था। इसका अर्थ यह हुआ कि भारत में काँग्रेस के अलावा कई अन्य दल भी मौजूद थे जैसे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया भिन्न समाजवादी दल, स्वतंत्रता दल, रिपल्किन पार्टी ऑफ इंडिया जन संघ इत्यादि। लेकिन इन सबमें, काँग्रेस पार्टी को सभी राज्यों में उपस्थिति थी तथा इसने केन्द्र एवं राज्यों में सरकारों का भी नेतृत्व किया था।
- 1960 के दशक अंत में, काँग्रेस पार्टी का वर्चस्व कम हो गया था। 1967 के चुनावों में आठ राज्यों में इसे हार का सामना करना पड़ा था। उस वक्त से काँग्रेस के अलावा कई गैर काँग्रेस पार्टियों ने केन्द्र एवं राज्यों में सरकार बनाई। इसने भारत में बहुदलीय प्रणाली के महत्व को प्रदर्शित किया था।
- द्वि-दलीय व्यवस्था, केवल दो दलों के वर्चस्व को दर्शाता है। भारत में कुछ राज्यों में दो दलीय प्रणाली मौजूद है। इसका अर्थ यह नहीं कि उन राज्यों में दो दलों से अधिक दल नहीं है। इसका मतलब यह है कि इन सब दलों में केवल दो दल ही अधिक प्रभावशाली है। ऐसी व्यवस्था में दो दल अलग-अलग समय में सरकार बनाते हैं।
- एक दल सरकार बनाता है तो दूसरा दल विपक्ष की भूमिका निभाता है। कुछ विद्वान, जैसे संजय पालसीकर एवं योगेन्द्र यादव पार्टियों का वर्गीकरण चुनावी ध्रुवीकरण के आधार पर करते है।
- दलीय प्रणाली का अर्थ हमें राष्ट्रीय, क्षेत्रीय या राज्यीय दल के आधार पर नहीं करना चाहिये। ये बिल्कुल अलग है। दलीय प्रणाली का मतलब है दलों की संख्या तथा चुनाव में उनकी भागीदारी तथा सरकार बनाना ।
- दलों का वर्गीकरण चुनाव आयोग द्वारा उनके प्रदर्शन के आधार पर किया जाता है।
- चुनाव आयोग ने भारत में तीन प्रकार के राजनीतिक दलों का वर्गीकरण किया है। राष्ट्रीय दल, राज्य या क्षेत्रीय दल तथा पंजीकृत दल
- वर्तमान में, भारत में लगभग 2400 राजनीतिक दल हैं। जिनमें सात राष्ट्रीय दल हैं, 36 राज्य स्तरीय दल हैं, 329 क्षेत्रीय दल हैं तथा 2044 पंजीकृत या गैर पंजीकृत दल हैं।
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