ऑक्सफैम रिपोर्ट 2021 : इंडिया इनइक्क्वेलिटी रिपोर्ट 2021 इंडियाज़ अनइक्वल हेल्थकेयर स्टोरी" |India Inequality Report 2021

 

"इंडिया इनइक्क्वेलिटी रिपोर्ट 2021: इंडियाज़ अनइक्वल हेल्थकेयर स्टोरी"
(India Inequality Report 2021: India’s Unequal Healthcare Story) 
"इंडिया इनइक्क्वेलिटी रिपोर्ट 2021: इंडियाज़ अनइक्वल हेल्थकेयर स्टोरी" (India Inequality Report 2021: India’s Unequal Healthcare Story)



इंडिया इनइक्क्वेलिटी रिपोर्ट किसके द्वारा जारी की जाती है ?

  • ऑक्सफैम इंडिया (Oxfam India)


इंडिया इनइक्क्वेलिटी रिपोर्ट का विषय

 

  • यह रिपोर्ट देश में स्वास्थ्य असमानता के स्तर को मापने के लिये विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समूहों में स्वास्थ्य परिणामों का व्यापक विश्लेषण प्रदान करती है।


  • इसके निष्कर्ष मुख्य रूप से राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey) के तीसरे और चौथे दौर के माध्यमिक विश्लेषण तथा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (National Sample Survey) के विभिन्न दौरों पर आधारित हैं।


इंडिया इनइक्क्वेलिटी रिपोर्ट 2021 की प्रमुख बातें 


  • ऑक्सफैम इंडिया (Oxfam India) द्वारा जारी "इंडिया इनइक्क्वेलिटी रिपोर्ट 2021: इंडियाज़ अनइक्वल हेल्थकेयर स्टोरी" (India Inequality Report 2021: India’s Unequal Healthcare Story) शीर्षक वाली रिपोर्ट से पता चलता है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ व्याप्त हैं और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (Universal Health Coverage) की अनुपस्थिति के कारण हाशिये पर रहने वाले समुदायों के स्वास्थ्य परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।

 

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, जो राज्य मौजूदा असमानताओं को कम करने का प्रयास कर रहे हैं और स्वास्थ्य पर अधिक खर्च कर रहे हैं, उन राज्यों में कोविड-19 के कम मामले दर्ज किये गए।


इंडिया इनइक्क्वेलिटी रिपोर्ट  के निष्कर्ष:

 

विभिन्न समूहों का प्रदर्शन: 

  • सामान्य वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की तुलना में; हिंदू, मुसलमानों से; अमीर का प्रदर्शन गरीबों की तुलना में; पुरुष, महिलाओं की तुलना में तथा शहरी आबादी, ग्रामीण आबादी की तुलना में विभिन्न स्वास्थ्य संकेतकों पर बेहतर है।


  • कोविड-19 महामारी ने इन असमानताओं को और बढ़ा दिया है।


राज्यों का प्रदर्शन: 

  • जो राज्य (तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश एवं राजस्थान) पिछले कुछ वर्षों से सामान्य वर्ग और अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के बीच स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच जैसी असमानताओं को कम कर रहे हैं, उनमें कोविड के कम मामले देखे गए।


  • दूसरी ओर जिन राज्यों (असम, बिहार और गोवा) में स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का खर्च अधिक है, उनमें कोविड मामलों की रिकवरी दर अधिक है।


  • केरल ने बहुस्तरीय स्वास्थ्य प्रणाली बनाने के लिये  बुनियादी ढाँचे में निवेश किया है, जिसे सामुदायिक स्तर पर बुनियादी सेवाओं हेतु प्रथम संपर्क पहुँच प्रदान करने के खातिर डिज़ाइन किया गया है और साथ ही इसने निवारक तथा उपचारात्मक सेवाओं की एक शृंखला तक पहुँच प्राप्त करने के लिये प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल कवरेज का विस्तार किया है।


ग्रामीण-शहरी विभाजन: 

  • कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान ग्रामीण-शहरी विभाजनऔर अधिक गंभीर रूप से सामने आया, जब ग्रामीण क्षेत्रों में परीक्षण, ऑक्सीजन और अस्पताल में बिस्तरों की भारी कमी देखी गई थी।


भारत में डॉक्टर- रोगी अनुपात: 

  • वर्ष 2017 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल के तहत प्रत्येक 10,189 लोगों के लिये एक सरकारी एलोपैथिक डॉक्टर और प्रत्येक 90,343 लोगों के लिये एक सरकारी अस्पताल रिकॉर्ड किया गया था।


अस्पताल के बिस्तरों की कमी: 

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी अवसंरचना में निवेश की कमी के कारण बीते कुछ वर्षों में देश के अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या वास्तव में कम हो गई है, उदाहरण के लिये वर्ष 2010 की मानव विकास रिपोर्ट में प्रति 10,000 व्यक्तियों पर 9 बिस्तर मौजूद थे, जबकि वर्तमान में प्रति 10,000 व्यक्तियों पर केवल 5 बिस्तर ही मौजूद हैं।


  • भारत ब्रिक्स देशों में प्रति हज़ार जनसंख्या पर अस्पताल के बिस्तरों की संख्या ( 0.5) के मामले में सबसे निचले स्थान पर है। भारत में यह संख्या बांग्लादेश (0.87), चिली (2.11) और मैक्सिको (0.98) जैसे अल्प-विकसित देशों से भी कम है।


महिला साक्षरता: 

  • यद्यपि पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न सामाजिक समूहों में महिला साक्षरता में सुधार हुआ है, किंतु इस मामले में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति से संबंधित महिलाएँ सामान्य वर्ग से क्रमश: 18.6% और 27.9% पीछे हैं।


  • वर्ष 2015-16 में शीर्ष 20 प्रतिशत आबादी और निम्न 20 प्रतिशत आबादी के बीच 55.1% का अंतर मौजूद था।

 

  • हालाँकि मुस्लिमों महिलाओं के बीच साक्षरता दर (64.3%) सभी धार्मिक समूहों की तुलना में सबसे कम है, किंतु समय के साथ असमानता में कमी देखी गई है।

 

स्वच्छता: 


  • जहाँ तक स्वच्छता का प्रश्न है तो सामान्य श्रेणी में 65.7% घरों में बेहतर स्वच्छता सुविधाओं तक पहुँच उपलब्ध है, जबकि अनुसूचित जाति के परिवार इस मामले में 28.5% और अनुसूचित जनजाति के परिवार 39.8% पीछे हैं।.
  • जहाँ एक ओर देश के शीर्ष 20% घरों में से 93.4% घरों में बेहतर स्वच्छता सुविधाएँ हैं, वहीं केवल निम्न 20% घरों में से केवल 6% घरों में ही बेहतर स्वच्छता सुविधाएँ मौजूद हैं, इस तरह दोनों के बीच कुल 87.4% का अंतर है।


टीकाकरण: 


  • एसटी परिवारों में 55.8% टीकाकरण अभी भी राष्ट्रीय औसत से 6.2% कम है और मुस्लिम वर्ग में  टीकाकरण की दर सभी सामाजिक-धार्मिक समूहों में सबसे कम यानी 55.4% ही है।


  • बालिकाओं में टीकाकरण की दर बालकों की तुलना में कम है।
  • देश में 50% से अधिक बच्चों को अभी भी पूरक आहार (Supplements Food) नहीं मिलता है।


जीवन प्रत्याशा:

  • 20% परिवारों में धन/संपत्ति के आधार पर जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) 65.1 वर्ष से कम है, जबकि शीर्ष 20% हेतु जीवन प्रत्याशा 72.7 वर्ष है।


भारत में प्रसवपूर्व देखभाल: 

  • प्रसवपूर्व देखभाल सुविधा प्राप्त करने वाली माताओं का प्रतिशत वर्ष 2005-06 में 35% था जो  वर्ष 2015-16 में घटकर 21 % हो गया।
  • भारत में संस्थागत प्रसव की हिस्सेदारी 2005-06 के 38.7% से बढ़कर 2015-16 में 78.9% हो गई है।


शिशु मृत्यु दर: 

  • शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate- IMR) में समग्र सुधार सभी सामाजिक समूहों में एक समान नहीं है। सामान्य वर्ग की तुलना में दलितों, आदिवासियों और ओबीसी का IMR का प्रतिशत अधिक है।
  • आदिवासी समुदायों में IMR 44.4% है जो सामान्य वर्ग से 40% अधिक तथा राष्ट्रीय औसत से 10% अधिक है।


सुझाव

  • स्वास्थ्य के अधिकार को एक मौलिक अधिकार के रूप में अधिनियमित किया जाना चाहिये जो सरकार के लिये उचित गुणवत्ता के साथ समय पर, स्वीकार्य और सस्ती स्वास्थ्य देखभाल की समान पहुँच सुनिश्चित करने के उद्देश्य को अनिवार्य बनाता है तथा स्वास्थ्य के अंतर्निहित निर्धारकों को संबोधित करता है ताकि अमीर और गरीब के बीच स्वास्थ्य परिणामों में अंतर को समाप्त' किया जा सके।


  • नि:शुल्क वैक्सीन नीति के लिये एक समावेशी मॉडल को अपनाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि प्रत्येक व्यक्ति, चाहे उसका लिंग, जाति, धर्म या स्थान कुछ भी हो, साथ ही दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को बिना किसी देरी के टीका मिल जाए।


  • देश में अधिक न्यायसंगत स्वास्थ्य प्रणाली सुनिश्चित करने हेतु स्वास्थ्य व्यय को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाना तथा यह सुनिश्चित करना  कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये स्वास्थ्य हेतु केंद्रीय बजटीय आवंटन उनकी जनसंख्या के अनुपात में हो।


  • कमज़ोर/हाशिये की आबादी वाले क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिये और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों (IPHS) के अनुसार स्थापित, सुसज्जित और पूरी तरह कार्यात्मक बनाया जाना चाहिये।


  • बाह्य रोगी देखभाल को शामिल करने हेतु बीमा योजनाओं के दायरे का विस्तार करना। स्वास्थ्य पर प्रमुख व्यय बाह्य रोगी लागतों के माध्यम से होता है जैसे- परामर्श, नैदानिक परीक्षण, दवाएंँ इत्यादि।


  • एक केंद्र प्रायोजित योजना को संस्थागत बनाना जो सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के लिये मुफ्त आवश्यक दवाओं और निदान के प्रावधान हेतु धन आवंटित करे।


  • यह सुनिश्चित करना कि निजी स्वास्थ्य क्षेत्र को विनियमित कैसे किया जाए ताकि सभी राज्य सरकारें नैदानिक प्रतिष्ठान अधिनियम या समकक्ष राज्य कानून को अपनाएँ और उसे प्रभावी ढंग से लागू करें।


  • कोविड -19 महामारी के दौरान शुरू की गई मूल्य निर्धारण नीति का विस्तार करें ताकि निदान तथा  गैर-कोविड उपचार को शामिल किया जा सके और निजी अस्पतालों द्वारा लगाए जाने वाले अत्यधिक शुल्क को रोका जा सके और स्वास्थ्य पर होने वाले व्यापक व्यय को कम किया जा सके।
  • महिला फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं की सेवाओं को नियमित करके स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में मानव संसाधन और बुनियादी ढाँचे को बढ़ाना तथा मज़बूत करना।
  • महामारी की दूसरी लहर जैसी परिस्थितियों के लिये आकस्मिक योजनाएँ स्थापित करना।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये अंतर-क्षेत्रीय समन्वय को बढ़ावा दिया जाना चाहिये ताकि पानी और स्वच्छता, साक्षरता आदि मुद्दों का समाधान किया जा सके जो स्वास्थ्य की स्थिति में योगदान करते हैं।


स्वास्थ्य क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ दूर करने के सुझाव 


  • इस असमानता को दूर करने के लिये सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का मज़बूती से समर्थन किया जाना चाहिये।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली, विशेष रूप से प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल और भारत में अपर्याप्त स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे के लगातार कम वित्तपोषण को दूसरी लहर के विनाशकारी प्रभाव के पश्चात् भी सरकार द्वारा समाधान किया जाना शेष है। अन्यथा स्वास्थ्य आपात स्थिति केवल मौजूदा असमानताओं को बढ़ाएगी और गरीब एवं हाशिये पर स्थित व कमज़ोर वर्ग के लोगों को इससे नुकसान ही होगा।

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