जून 2021 के चर्चित व्यक्ति | June 2021 Person in News Hindi
जून 2021 के चर्चित व्यक्ति June 2021 Person in News Hindi
प्रदीप चंद्रन नायर कौन हैं
- लेफ्टिनेंट जनरल प्रदीप चंद्रन नायर ने 1 जून, 2021 को असम राइफल्स के 21वें महानिदेशक के रूप में पदभार ग्रहण किया है। लेफ्टिनेंट जनरल नायर इससे पहले भारतीय सेना के भर्ती विभाग के महानिदेशक थे। लेफ्टिनेंट जनरल नायर को असम राइफल्स और पूर्वोत्तर की सुरक्षा के संबंध में काफी अनुभव है। वह असम राइफल्स (AR) में महानिरीक्षक और कंपनी कमांडर भी रहे हैं। इसके अलावा वह ब्रिगेड कमांडर के रूप में AR बटालियन की कमान संभाल चुके हैं। वह ‘पूर्वोत्तर के प्रहरी’ के रूप में जाने जाने वाले असम राइफल्स के 21वें महानिदेशक हैं। जनरल नायर को अति विशिष्ट सेवा पदक, युद्ध सेवा पदक से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें वर्ष 1985 में सिख रेजिमेंट में शामिल किया गया था। असम राइफल्स बल पूर्वोत्तर क्षेत्र की सुरक्षा के लिये उत्तरदायी है। यह बल सुरक्षा मुहैया कराने, जनकल्याण के कार्य करने और विकास कार्यों में मदद करने समेत विविध भूमिकाएँ निभाता है।
डेविड डियोप का उपन्यास ‘एट नाइट ऑल ब्लड इज़ ब्लैक
- डेविड डियोप ने अपने उपन्यास ‘एट नाइट ऑल ब्लड इज़ ब्लैक’ (वर्ष 2018) के लिये प्रतिष्ठित वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीता है। उन्हें यह पुरस्कार इस पुस्तक की अंग्रेज़ी अनुवादक ‘अन्ना मोस्कोवाकिस’ के साथ संयुक्त तौर पर प्रदान किया गया है। डेविड डियोप द्वारा लिखित यह उपन्यास एक सेनेगल सैनिक की कहानी बताता है, जो प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ्रांँस के लिये लड़ते हुए पागल हो जाता है। यह उपन्यास फ्रांँस में ‘बेस्टसेलर’ पुस्तक रही और कई प्रमुख साहित्यिक पुरस्कार जीते। डेविड डियोप एक फ्रेंको-सेनेगल लेखक और अकादमिक हैं, जिनका जन्म वर्ष 1966 में पेरिस में हुआ था। डेविड डियोप वर्तमान में दक्षिणी फ्रांँस के पऊ विश्वविद्यालय में 18वीं सदी का साहित्य पढ़ाते हैं। वह पुरस्कार जीतने वाले पहले फ्रांँसीसी लेखक हैं। ज्ञात हो कि ‘अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार’ अंग्रेज़ी भाषा के प्रतिष्ठित ‘बुकर पुरस्कार’ के समकक्ष हैं। ‘अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार’ अंग्रेज़ी भाषा से इतर अन्य भाषाओं में कार्य करने वाले लेखकों पर केंद्रित है और इसके तहत प्राप्त 50 हज़ार पाउंड यानी 44 लाख रुपए की धनराशि को अनुवादक और लेखक के मध्य विभाजित करना होता है। अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार (पूर्ववर्ती मैन बुकर अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार) मूल बुकर पुरस्कार के एक हिस्से के रूप में वर्ष 2005 में शुरू किया गया था।
अब्दुल्ला शाहिद-संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के नए अध्यक्ष
- मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद को हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के नए अध्यक्ष के रूप में चुना गया है, जिन्होंने अफगानिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री जलमई रसूल के विरुद्ध तीन-चौथाई बहुमत हासिल किये हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष पद का चुनाव विभिन्न क्षेत्रीय समूहों के बीच रोटेशन आधार पर प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है। इस बार 76वें संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र (वर्ष 2021-22) में एशिया-प्रशांत समूह की बारी थी। ज्ञात हो कि यह पहली बार होगा जब मालदीव का कोई प्रतिनिधि संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष के पद पर आसीन होगा। संयुक्त राष्ट्र चार्टर (UN Charter) के तहत वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र महासभा स्थापित की गई थी। यह महासभा संयुक्त राष्ट्र में विचार-विमर्श और नीति निर्माण जैसे मुद्दों पर प्रतिनिधि संस्था के रूप में काम करती है। 193 सदस्यों से बनी यह संयुक्त राष्ट्र महासभा अपने चार्टर के तहत कवर किये गए अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर बहुआयामी और बहुपक्षीय चर्चा के लिये एक बेहतरीन मंच प्रदान करती है। संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व महासभा में होता है। प्रत्येक सदस्य राज्य के पास एक वोट होता है। अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा, नए सदस्यों को स्वीकार करने और संयुक्त राष्ट्र के बजट जैसे प्रमुख मुद्दों पर निर्णय दो-तिहाई बहुमत से तय लिया जाता है, जबकि अन्य मामलों पर निर्णय साधारण बहुमत से होता है।
बिरसा मुंडा जयंती
- उपराष्ट्पति एम. वेंकैया नायडू ने आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की पुण्यहतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि निडर आदिवासी नेता बिरसा मुंडा ने दमनकारी ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आदिवासी आंदोलन का नेतृत्त्व करके स्वडतंत्रता संग्राम में अमूल्यन योगदान दिया। बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को हुआ था। वे छोटानागपुर पठार क्षेत्र की मुंडा जनजाति के थे। उन्हें अक्सर 'धरती आबा' या ‘जगत पिता’ के रूप में जाना जाता है। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सलगा में अपने शिक्षक जयपाल नागो के मार्गदर्शन में प्राप्त की। वर्ष 1899-1900 में बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हुआ मुंडा विद्रोह छोटा नागपुर (झारखंड) के क्षेत्र में सर्वाधिक चर्चित विद्रोह था। इसे ‘मुंडा उलगुलान’ (विद्रोह) भी कहा जाता है। इस विरोध में महिलाओं की उल्लेखनीय भूमिका रही और इसकी शुरुआत मुंडा जनजाति की पारंपरिक व्यवस्था खूंटकटी की ज़मींदारी व्यवस्था में परिवर्तन के कारण हुई थी। उन्होंने धर्म को राजनीति से जोड़ दिया और एक राजनीतिक-सैन्य संगठन बनाने के उद्देश्य से प्रचार करते हुए गाँवों की यात्रा की। 3 मार्च, 1900 को बिरसा मुंडा को ब्रिटिश पुलिस ने चक्रधरपुर के जामकोपई जंगल में उनकी आदिवासी छापामार सेना के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। 9 जून, 1900 को 25 साल की छोटी उम्र में राँची जेल में उनका निधन हो गया। अपने छोटे से जीवनकाल में बिरसा मुंडा ने आदिवासी समुदाय को लामबंद किया और औपनिवेशिक अधिकारियों को आदिवासियों के भूमि अधिकारों की रक्षा हेतु कानून बनाने के लिये मज़बूर किया। उन्हीं के प्रयासों के परिणामस्वरूप ‘छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम’ पारित किया गया, जिसने आदिवासी से गैर-आदिवासियों में भूमि के हस्तांतरण को प्रतिबंधित कर दिया।
अनूप चंद्र पांडे कौन हैं
- सेवानिवृत्त IAS अधिकारी अनूप चंद्र पांडे ने हाल ही में देश के नए चुनाव आयुक्त के रूप में पदभार संभाल लिया है। वे मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा और चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के साथ तीन सदस्यीय निकाय में शामिल हो गए हैं। ज्ञात हो कि अनूप चंद्र पांडे, उत्तर प्रदेश कैडर के वर्ष 1984 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी हैं और वह वर्ष 2019 में उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। इसके अलावा अनूप पांडे रक्षा और श्रम एवं रोज़गार मंत्रालयों में भी अपनी सेवाएँ दे चुके हैं। भारत निर्वाचन आयोग, जिसे चुनाव आयोग के नाम से भी जाना जाता है, एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं का संचालन करता है। निर्वाचन आयोग में मूलतः केवल एक चुनाव आयुक्त का प्रावधान था, लेकिन राष्ट्रपति की एक अधिसूचना के ज़रिये 16 अक्तूबर, 1989 को इसे तीन सदस्यीय बना दिया गया। इसके बाद कुछ समय के लिये इसे एक सदस्यीय आयोग बना दिया गया और 1 अक्तूबर, 1993 को इसका तीन सदस्यीय आयोग वाला स्वरूप फिर से बहाल कर दिया गया। तब से निर्वाचन आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं।
बुद्धदेव दासगुप्ता
- राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने प्रख्यात बंगाली फिल्म निर्माता बुद्धदेव दासगुप्ता (77 वर्ष) के निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि बुद्धदेव दासगुप्ता ने अपनी विश्व प्रसिद्ध फिल्मों और कविताओं से हमारी कला तथा संस्कृति को समृद्ध किया है। गौतम घोष और अपर्णा सेन के साथ बुद्धदेब दासगुप्ता को 1980 और 1990 के दशक में बंगाल में समानांतर सिनेमा आंदोलन के ध्वजवाहक के रूप में जाना जाता है। दूरत्व (1978), गृहजुद्धा (1982) और अंधी गली (1984) जैसी उनकी प्रारंभिक फिल्में बंगाल में नक्सली आंदोलन और बंगाली लोगों की सामूहिक चेतना पर उसके प्रभाव पर केंद्रित थीं। बुद्धदेव दासगुप्ता ने अपने कॅॅरियर में पाँच बार सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिये राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता था, जिसमें बाग बहादुर (1989), चरचर (1993), लाल दर्जा (1997), मोंडो मेयर उपाख्यान (2002) और कालपुरुष (2008) शामिल हैं, जबकि उनकी फिल्में दूरत्व (1978) और तहदार कथा (1993) ने बांग्ला में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता था। उन्हें उनकी फिल्मों उत्तरा (2000) और स्वप्नेर दिन (2005) के लिये सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। वे एक महत्त्वपूर्ण कवि भी थे, जिन्होंने कई कविता संग्रहों का प्रकाशन किया। इसके अलावा उन्हें वर्ष 2008 में मैड्रिड में आयोजित ‘स्पेन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ में लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया था।
मार्गरिटा हैक
- हाल ही में गूगल ने एक एनिमेटेड डूडल के माध्यम से इतालवी खगोलशास्त्री मार्गरिटा हैक को श्रद्धांजलि अर्पित की। ‘मार्गरिटा हैक’ को वर्ष 1995 में क्षुद्रग्रह ‘8558 हैक’ की खोज करने का श्रेय दिया जाता है, जिसका नामकरण उन्हीं के नाम पर किया गया है। मार्गरिटा हैक का जन्म 12 जून, 1922 को फ्लोरेंस (इटली) में हुआ था और वह इटली के ही ट्रिएस्ट विश्वविद्यालय में खगोल विज्ञान की प्रोफेसर थीं। वह वर्ष 1964 से वर्ष 1987 तक ट्रिएस्ट खगोलीय वेधशाला की पहली इतालवी महिला भी थीं। मार्गरिटा हैक की वैज्ञानिक और अनुसंधान गतिविधियों में काफी अधिक रुची थी। हालाँकि उनकी प्राथमिक रुची अंतरिक्ष में मौजूद तारों की स्पेक्ट्रोस्कोपिक विशेषताओं के अवलोकन और व्याख्या करने में थी। वर्ष 1970 के दशक के दौरान उन्होंने कोपर्निकस उपग्रह से प्राप्त यूवी डेटा पर कार्य किया, जिसका उद्देश्य तारकीय वातावरण के बाहरी हिस्से में होने वाली ऊर्जावान घटनाओं का अध्ययन करना था। कोपर्निकस उपग्रह के डेटा पर आधारित उनका पहला शोध लेख वर्ष 1974 में ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। विज्ञान के अलावा वह शिक्षा और राजनीति के क्षेत्र में भी सक्रिय थीं। 12 जून, 2012 को उनके 90वें जन्मदिवस पर उन्हें इतालवी गणराज्य के सर्वोच्च सम्मान ‘दमा डि ग्रान क्रोस’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था।
प्रोफेसर राधा मोहन
- हाल ही में प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित प्रोफेसर राधा मोहन का 78 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। ओडिशा के पूर्व सूचना आयुक्त और अर्थशास्त्र के सेवानिवृत्त प्रोफेसर राधा मोहन और उनकी बेटी को जैविक तकनीकों का उपयोग करके बंजर भूमि के एक टुकड़े को दुर्लभ उपज वाले एक विशाल जंगल के रूप में बदलने का श्रेय दिया जाता है। कृषि क्षेत्र में उनके योगदान के लिये उन्हें वर्ष 2020 में उनकी बेटी साबरमती के साथ पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। वर्ष 1990 में उन्होंने 'संभव' नामक एक सामाजिक संगठन की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य किसानों को जैविक और प्राकृतिक खेती के बारे में शिक्षित करना है। वर्ष 1943 में ओडिशा के नयागढ़ ज़िले में जन्मे राधा मोहन ने अर्थशास्त्र में स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। इसके पश्चात् उन्हें राज्य सूचना आयुक्त नियुक्त किया गया, साथ ही उन्होंने राज्य के विभिन्न कॉलेजों में अर्थशास्त्र भी पढ़ाया।
मेघा राजगोपालन
- भारतीय मूल की पत्रकार मेघा राजगोपालन ने चीन के सामूहिक डिटेंशन शिविरों में उनकी खोजी पत्रिकारिता के लिये अमेरिका का शीर्ष पत्रकारिता पुरस्कार ‘पुलित्जर पुरस्कार’ जीता है। मेघा राजगोपालन ने उपग्रह प्रौद्योगिकी का उपयोग करने वाली नवीन रिपोर्टों के लिये यह पुरस्कार जीता है, जिसके तहत उइघुर मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यक जातियों के लिये चीन के सामूहिक डिटेंशन शिविरों की सच्चाई को उजागर किया गया था। मेघा राजगोपालन और उनके सहयोगियों ने चीन के कुल 260 डिटेंशन शिविरों की पहचान की है। पुलित्ज़र पुरस्कार को पत्रकारिता के क्षेत्र में अमेरिका का सबसे प्रतिष्ठित सम्मान माना जाता है। इस पुरस्कार की शुरुआत वर्ष 1917 में की गई थी, जिसे कोलंबिया विश्वविद्यालय और ‘पुलित्ज़र पुरस्कार बोर्ड’ द्वारा प्रशासित किया जाता है। 'पुलित्ज़र पुरस्कार बोर्ड' का निर्माण कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा नियुक्त न्यायाधीशों द्वारा होता है। यह पुरस्कार प्रसिद्ध समाचार पत्र प्रकाशक जोसेफ पुलित्ज़र के सम्मान में दिया जाता है। जोसेफ पुलित्ज़र ने कोलंबिया विश्वविद्यालय में पत्रकारिता स्कूल शुरू करने तथा पुरस्कार की शुरुआत करने के लिये अपनी वसीयत से पैसा दिया था। प्रत्येक पुरस्कार विजेता को एक प्रमाण पत्र और 15,000 डॉलर की पुरस्कार राशि प्रदान की जाती है। ‘सार्वजनिक सेवा श्रेणी’ में पुरस्कार विजेता को स्वर्ण पदक भी दिया जाता है।
नफ्ताली बेनेट इज़रायल के नए प्रधानमंत्री
- पूर्व तकनीकी उद्यमी ‘नफ्ताली बेनेट’ ने हाल ही में इज़रायल के नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली है। 49 वर्षीय नफ्ताली बेनेट के माता-पिता अमेरिकी मूल के हैं और बेनेट को धार्मिक-राष्ट्रवादी नेता माना जाता है। इज़रायल के कई विशेषज्ञ नफ्ताली बेनेट को ‘अति-राष्ट्रवादी’ के रूप में भी संबोधित करते हैं। उनकी राजनीति पर नज़र रखने वाले जानकारों का मानना है कि वर्ष 2013 में इज़रायल के राजनीतिक परिदृश्य में आने के बाद से उनका रुख व्यापक रूप से ‘अति-राष्ट्रवादी’ ही रहा है। नफ्ताली बेनेट ने वर्ष 2006 से वर्ष 2008 के बीच नेतन्याहू के लिये वरिष्ठ सहयोगी के रूप में काम किया, हालाँकि बाद में वे नेतन्याहू की पार्टी से अलग हो गए। बेनेट को यहूदी राष्ट्र राज्य के एक मज़बूत अधिवक्ता के रूप में जाना जाता है। हालाँकि उन्होंने गाजा पर इज़रायल के दावों की कभी वकालत नहीं की। नफ्ताली बेनेट का इज़रायल के प्रधानमंत्री के रूप में चुना जाना, उन फिलिस्तीनियों के लिये एक बड़ी चुनौती है, जो शांति के लिये बातचीत की वार्ता करते हैं।
राजा परबा
- 14 जून, 2021 से ओडिशा में 3 दिवसीय ‘राजा परबा’ की शुरुआत हो गई है। इस दिवस का लक्ष्य नारीत्व के महत्त्व और उनके योगदान को रेखांकित करना है। इस अवधि के दौरान यह माना जाता है कि मानसून के आगमन के साथ धरती माता को मासिक धर्म होता है और वह भविष्य की कृषि गतिविधियों के लिये स्वयं को तैयार करती हैं। ज्ञात हो कि मासिक धर्म को प्रजनन क्षमता का संकेत माना जाता है। उत्सव की शुरुआत ‘मिथुन संक्रांति’ से एक दिन पूर्व होती है और उसके दो दिन बाद यह समाप्त होता है। त्योहार के पहले दिन को ‘पहिली राजा’ कहा जाता है, जबकि दूसरे दिन को ‘मिथुन संक्रांति’ और तीसरे दिन को ‘भु दहा’ या ‘बसी राजा’ कहा जाता है। परबा के दौरान ओडिशा के लोग कोई भी निर्माण कार्य, जुताई अथवा कोई ऐसा कार्य नहीं करते हैं, जिसके लिये मिट्टी को खोदने की आवश्यकता होती है। इस प्रकार की गतिविधियों को न करने का प्राथमिक उद्देश्य धरती माँ (भूमि देवी) को उनके नियमित कार्य से अवकाश प्रदान करना होता है। यह त्योहार गर्मी के मौसम की समाप्ति और मानसून के आगमन के साथ भी जुड़ा हुआ है और इसीलिये यह कृषि से संबंधित समुदायों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
चंद्रशेखर वैद्य
- हाल ही में वयोवृद्ध अभिनेता और सामाजिक कार्यकर्त्ता चंद्रशेखर वैद्य का 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। चंद्रशेखर वैद्य 1950 के दशक के एक लोकप्रिय अभिनेता थे और उन्होंने ‘काली टोपी लाल रुमाल’, ‘बरा-दरी’, ‘स्ट्रीट सिंगर’ और ‘रुस्तम-ए-बगदाद’ जैसी फिल्मों में काम किया था। चंद्रशेखर वैद्य ने वर्ष 1954 में ‘औरत तेरी ये कहानी’ फिल्म से अपने कॅॅरियर की शुरुआत की और अपने संपूर्ण कॅॅरियर में उन्होंने 112 से भी अधिक फिल्मों में काम किया। चंद्रशेखर वैद्य, रामानंद सागर की टीवी सीरीज़ ‘रामायण’ का भी हिस्सा थे। फिल्म इंडस्ट्री का अभिन्न हिस्सा होने के साथ-साथ चंद्रशेखर वैद्य ने वर्ष 1985 से वर्ष 1996 तक सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन (CINTAA) के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया।
सत्या नडेला
- हाल ही में अमेरिका की दिग्गज टेक कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने ‘जॉन थॉम्पसन’ के स्थान पर मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) सत्या नडेला को अपना नया अध्यक्ष नामित किया है। जॉन थॉम्पसन, जिन्होंने वर्ष 2014 में कंपनी के सह-संस्थापक बिल गेट्स का स्थान लिया था, अब कंपनी के प्रमुख स्वतंत्र निदेशक के रूप में काम करेंगे। 19 अगस्त, 1967 को हैदराबाद में जन्मे सत्या नडेला ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हैदराबाद में ही प्राप्त की। इसके पश्चात् उन्होंने ‘मणिपाल प्रौद्योगिकी संस्थान’ से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की और बाद में उन्होंने अमेरिका से कंप्यूटर साइंस में मास्टर डिग्री हासिल की। सत्या नडेला वर्ष 1992 में एक युवा इंजीनियर के तौर पर माइक्रोसॉफ्ट में शामिल हुए थे। इसके पश्चात् वर्ष 2000 में उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट सेंट्रल के उपाध्यक्ष के रूप में अपनी पहली कार्यकारी भूमिका हासिल की। वर्ष 2011 में उन्हें सर्वर और टूल्स डिवीज़न का अध्यक्ष बनाया गया, जहाँ उनका प्राथमिक कार्य एज़्योर क्लाउड प्लेटफॉर्म, विंडोज़ सर्वर और SQL सर्वर डेटाबेस आदि के डेटा केंद्रों के उत्पादों की देखरेख करना था। स्टीव बाल्मर के पद छोड़ने के बाद सत्या नडेला ने 4 फरवरी 2014 को ‘मुख्य कार्यकारी अधिकारी’ (CEO) के रूप में माइक्रोसॉफ्ट की बागडोर संभाली।
मिल्खा सिंह ‘फ्लाइंग सिख’
- बहुचर्चित एथलीट और ‘फ्लाइंग सिख’ के नाम से प्रसिद्ध मिल्खा सिंह का हाल ही में निधन हो गया है। 20 नवंबर, 1932 को लायलपुर,पाकिस्तान (वर्तमान फैसलाबाद) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के बाद वर्ष 1947 में भारत चले आए। इसके पश्चात् वे भारतीय सेना में शामिल हुए और इस दौरान मिल्खा सिंह ने एक धावक के रूप में अपनी पहचान बनाई। 1958 के एशियाई खेलों में सिंह ने 200 मीटर और 400 मीटर दोनों में जीत हासिल की। इसी वर्ष उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर दौड़ प्रतिस्पर्द्धा में स्वर्ण पदक प्राप्त किया, जो खेलों के इतिहास में भारत का पहला एथलेटिक्स स्वर्ण पदक था। मिल्खा सिंह चार बार के एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता थे, लेकिन उनका सबसे बेहतरीन प्रदर्शन वर्ष 1960 के रोम में 400 मीटर फाइनल में चौथा स्थान हासिल करना था, जहाँ वे मात्र 0.1 सेकंड पीछे होने के कारण कांस्य पदक प्राप्त नहीं कर सके थे। मिल्खा सिंह को वर्ष 1959 में पद्मश्री (भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक) से सम्मानित किया गया था। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने पंजाब में खेल निदेशक के रूप में कार्य किया। मिल्खा सिंह की आत्मकथा ‘द रेस ऑफ माई लाइफ’ वर्ष 2013 में प्रकाशित हुई थी।
डॉ. केनेथ कोंडा जाम्बिया के प्रथम राष्ट्रपति
- राष्ट्रयपति रामनाथ कोविंद ने आधुनिक जाम्बिया के प्रथम राष्ट्रपति और संस्था पक डॉक्टरर केनेथ कोंडा (97) के निधन पर दुख व्य क्तक किया है। केनेथ कोंडा, अफ्रीका खासतौर पर जाम्बिया के अग्रणी नेताओं में से एक थे और उन्होंने जाम्बिया में उपनिवेशवाद को समाप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। एक पैन-अफ्रीका गठित करने के लिये प्रतिबद्ध केनेथ कोंडा ने एक नए जाम्बिया का गठन किया, जो अंतर्राष्ट्रीय मामलों में अपना रास्ता तय करने के लिये स्वतंत्र था। केनेथ डेविड कोंडा का जन्म 28 अप्रैल, 1924 को तत्कालीन उत्तरी रोडेशिया और कांगो की सीमा के पास एक मिशन स्टेशन पर हुआ था। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद केनेथ कोंडा ने एक शिक्षक के तौर पर कार्य करना शुरू किया। वर्ष 1953 में वे उत्तरी रोड्सियन अफ्रीकन नेशनल काॅॅन्ग्रेस के महासचिव बने, लेकिन संगठन श्वेत-शासित फेडरेशन ऑफ रोडेशिया और न्यासालैंड के खिलाफ अश्वेत अफ्रीकियों को लामबंद करने में विफल रहा। रोडेशिया और न्यासालैंड संघ को वर्ष 1963 के अंत में भंग कर दिया गया तथा कुछ ही समय बाद केनेथ कोंडा को उत्तरी रोडेशिया का प्रधानमंत्री चुना गया। बाद में जाम्बिया के रूप में नामित इस देश ने अक्तूबर 1964 में पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त की और केनेथ कोंडा इसके प्रथम राष्ट्रपति बने।
इब्राहिम रईसी ईरान का नया राष्ट्रदपति
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इब्राहिम रईसी को ईरान का नया राष्ट्रदपति बनने पर बधाई दी है। 60 वर्षीय ईरानी नेता सर्वप्रथम राष्ट्रीय पटल पर तब उभरे जब वे मात्र 20 वर्ष की आयु में वर्ष 1980 में करज के प्रासीक्यूटर जनरल बने। इसके पश्चात् वह वर्ष 2004 से वर्ष 2014 के बीच तेहरान के प्रासीक्यूटर बने। वर्ष 2014 से वर्ष 2016 के बीच उन्होंने ईरान के प्रासीक्यूटर जनरल के रूप में कार्य किया। वर्ष 2019 में इब्राहिम रईसी को ईरान की न्यायपालिका का प्रमुख नियुक्त किया गया था, हालाँकि ईरान-इराक युद्ध के बाद वर्ष 1988 में हज़ारों राजनीतिक कैदियों की सामूहिक फाँसी में उनकी भूमिका के कारण इस नियुक्ति का काफी विरोध किया गया। अंतर्राष्ट्रीय संगठन ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ ने इब्राहिम रईसी के विरुद्ध मानवता से संबंधित अपराधों के आरोपों पर मुकदमा चलाने का आह्वान किया है। राजनीतिक कट्टरपंथी माने जाने वाले इब्राहिम रईसी ने वर्ष 2017 में वर्तमान राष्ट्रपति हसन रूहानी के विरुद्ध चुनाव भी लड़ा था। इब्राहिम रईसी का जन्म पूर्वोत्तर ईरान के मशहद में हुआ था, जो एक प्रमुख शहर और शिया मुसलमानों का एक धार्मिक केंद्र है।
लॉरेल हबर्ड-न्यूज़ीलैंड की भारोत्तोलक
- न्यूज़ीलैंड की भारोत्तोलक ‘लॉरेल हबर्ड’ ओलंपिक के लिये चुनी जाने वाली पहली ट्रांसजेंडर एथलीट बन गई हैं। 43 वर्षीय हबर्ड ने इससे पूर्व वर्ष 2013 में पुरुष वर्ग में हिस्सा लिया था। अब वह टोक्यो में महिला श्रेणी में 87 किलोग्राम वर्ग में प्रतिस्पर्द्धा करेंगी। ट्रांसजेंडर एथलीटों पर अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के दिशा-निर्देश ऐसे एथलीटों को कुछ निर्धारित शर्तों को पूरा करने के बाद ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेने की अनुमति देते हैं, जिन्होंने पुरुष से महिला में ट्रांजीशन किया है। दिशा-निर्देशों के मुताबिक, महिला वर्ग में प्रतिस्पर्द्धा के योग्य होने के लिये ऐसे एथलीटों को अपने टेस्टोस्टेरोन के स्तर को प्रतियोगिता से पहले के 12 महीनों के दौरान 10 नैनोमोल्स प्रति लीटर से कम रखना होगा। टेस्टोस्टेरोन एक हार्मोन है, जो मांसपेशियों को बढ़ाता है। एथलीट्स की नियमित रूप से निगरानी की जाती और यदि वे नियमों का अनुपालन नहीं करते हैं तो वे प्रतियोगिता में शामिल होने के पात्र नहीं होंगे। हालाँकि पुरुष से महिला में ट्रांजीशन करने वाले एथलीटों को ओलंपिक खेलों में शामिल करने संबंधित इस निर्णय पर वाद-विवाद भी शुरू हो गया है, आलोचकों का मानना है कि उन एथलीटों को अनुचित लाभ मिलता है, जबकि समर्थकों का मत है कि इससे खेल में समावेशन को बढ़ावा मिलता है।
जस्टिस महमूद जमाल
- कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारतीय मूल के जस्टिस महमूद जमाल को कनाडा के सर्वोच्च न्यायालय के लिये नामित किया है, जो देश के सर्वोच्च न्यायालय में नामित होने वाले पहले अश्वेत व्यक्ति बन गए हैं। जस्टिस महमूद जमाल, सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत्ति हो रहीं रोज़ली सिलबरमैन अबेला का स्थान लेंगे, जो कि स्वयं ही कनाडा के सर्वोच्च न्यायालय की पहली शरणार्थी और पहली यहूदी महिला न्यायाधीश थीं। भारतीय मूल के जस्टिस महमूद जमाल की वर्ष 2019 में ओंटारियो के अपीलीय न्यायालय में नियुक्ति से पूर्व नि:शुल्क कार्य के प्रति गहरी प्रतिबद्धता के साथ एक लिटिगेटर के रूप में एक विशिष्ट कॅॅरियर रहा है। इसके अलावा उन्होंने मैकगिल विश्वविद्यालय में संवैधानिक कानून और ऑस्गोड हॉल लॉ स्कूल में प्रशासनिक कानून के अध्यापक के रूप में भी कार्य किया है। जस्टिस महमूद जमाल का जन्म केन्या के एक भारतीय परिवार में हुआ था। वर्ष 1981 में उनका परिवार कनाडा चला गया। उन्होंने टोरंटो विश्वविद्यालय, मैकगिल विश्वविद्यालय और येल लॉ स्कूल जैसे प्रसिद्ध संस्थानों से कानून की पढ़ाई की है।
डॉ. श्याबमाप्रसाद मुखर्जी-पुण्येतिथि
- उपराष्ट्र पति एम.वेंकैया ने 23 जून, 2021 को डॉ. श्याषमाप्रसाद मुखर्जी की पुण्येतिथि पर उन्हेंज श्रद्धांजलि अर्पित की। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का जन्म 06 जुलाई, 1901 को तत्कालीन कलकत्ता के एक संभ्रांत परिवार में हुआ था। श्यामाप्रसाद मुखर्जी के पिता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे और कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में भी कार्य कर चुके थे। वर्ष 1921 में कलकत्ता से अंग्रेज़ी में स्नातक करने के पश्चात् उन्होंने वर्ष 1923 में कलकत्ता से ही बांग्ला भाषा और साहित्य में परास्नातक की डिग्री प्राप्त की। वर्ष 1934 में मात्र 33 वर्ष की आयु में डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी को कलकत्ता विश्वविद्यालय का सबसे कम उम्र का कुलपति नियुक्त किया गया। कुलपति के तौर पर डॉ. मुखर्जी के कार्यकाल के दौरान ही रवींद्रनाथ टैगोर ने पहली बार बांग्ला भाषा में कलकत्ता विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित किया और उन्ही के कार्यकाल के दौरान कलकत्ता विश्वविद्यालय की उच्च परीक्षा में जनभाषा को एक विषय के रूप में प्रस्तुत किया गया। इसके अलावा डॉ. मुखर्जी स्वतंत्र भारत के पहले उद्योग और आपूर्ति मंत्री भी थे। हालाँकि बाद में उन्होंने विचारों में मतभेद के कारण काॅॅन्ग्रेस पार्टी छोड़ दी और वर्ष 1977-1979 में जनता पार्टी की सह-स्थापना की, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी बन गई। मई 1953 में तत्कालीन जम्मू-कश्मीर में बिना परमिट के प्रवेश करने के मामले में डॉ. मुखर्जी को हिरासत में ले लिया गया, जिसके पश्चात् 23 जून, 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई।
कर्णम मल्लेश्वरी-दिल्ली खेल विश्वविद्यालय’ का पहला कुलपति नियुक्त
- हाल ही में दिल्ली सरकार ने ओलंपिक पदक विजेता कर्णम मल्लेश्वरी को ‘दिल्ली खेल विश्वविद्यालय’ का पहला कुलपति नियुक्त किया है। कर्णम मल्लेश्वरी ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला भारोत्तोलक हैं। उन्होंने वर्ष 2000 में सिडनी ओलंपिक में 'स्नैच' और 'क्लीन एंड जर्क' श्रेणियों में 110 किलोग्राम और 130 किलोग्राम भार उठाकर इतिहास रच दिया था। दिल्ली विधानसभा ने वर्ष 2019 में ‘दिल्ली खेल विश्वविद्यालय’ (DSU) स्थापित करने के लिये एक विधेयक पारित किया था, जो क्रिकेट, फुटबॉल और हॉकी समेत विभिन्न खेलों में स्नातक, स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट की डिग्री प्रदान करेगा। ‘दिल्ली खेल विश्वविद्यालय’ से छात्रों को प्राप्त होने वाली डिग्री मुख्यधारा के पाठ्यक्रमों से प्राप्त होने वाली डिग्री के समान होगी। ‘दिल्ली खेल विश्वविद्यालय’ की स्थापना का उद्देश्य ऐसे एथलीट बनाना और प्रशिक्षित करना है जो खेल के क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन कर देश को गौरवान्वित कर सकें। यह विश्वविद्यालय अत्याधुनिक खेल सुविधाएँ प्रदान कर लोगों की एथलेटिक प्रतिभा का निर्माण करने में मदद करता है। इस खेल विश्विद्यालय का लक्ष्य विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं के लिये एथलीटों को तैयार करने हेतु आवश्यक खेल सुविधाएँ प्रदान करना और संसाधनों की कमी से जूझ रहे एथलीटों को इसके दायरे में लाना है। विदित हो कि दिल्ली का उपराज्यपाल इस विश्वविद्यालय का चांसलर होगा।
सुचेता कृपलानी- जयंती
- उपराष्ट्रपपति एम. वेंकैया नायडू ने विख्याहत स्व तंत्रता सेनानी और भारत की पहली महिला मुख्य मंत्री सुचेता कृपलानी को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी सुचेता कृपलानी का जन्म 25 जून, 1908 को हरियाणा के अंबाला में एक बंगाली परिवार में हुआ था। इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् सुचेता कृपलानी ने ‘बनारस हिंदू विश्वविद्यालय’ में व्याख्याता के रूप में काम करना शुरू किया। अरुणा आसफ अली और उषा मेहता जैसी समकालीन महिलाओं की तरह सुचेता कृपलानी भी भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुईं। सुचेता कृपलानी ने भारत के विभाजन के दौरान हुए दंगों में महात्मा गांधी के साथ मिलकर काम किया। सुचेता कृपलानी उन महिलाओं में से एक थीं, जिन्हें भारतीय संविधान समिति में शामिल किया गया था। भारत की स्वतंत्रता के बाद सुचेता कृपलानी उत्तर भारत की राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल हो गईं। वर्ष 1952 में उन्हें लोकसभा के सदस्य के रूप में चुना गया और वर्ष 1962 में वह कानपुर से उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य के रूप में चुनी गईं। 1963 में वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं और इसी के साथ उन्होंने देश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल किया। वर्ष 1971 में वह सेवानिवृत्त हुईं और वर्ष 1974 में उनकी मृत्यु हो गई।
पी. साईनाथ- ‘पीपल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडिया’ के संस्थापक
- भारत के वरिष्ठ पत्रकार और ‘पीपल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडिया’ के संस्थापक संपादक ‘पी. साईनाथ’ को वर्ष 2021 के जापान के प्रतिष्ठित ‘फुकुओका ग्रैंड पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है। फुकुओका पुरस्कार समिति के मुताबिक, पी. साईनाथ एक प्रतिबद्ध पत्रकार हैं, जिन्होंने भारत में गरीब और कृषि आश्रित गाँवों की रिपोर्टिंग की और ऐसे क्षेत्रों के निवासियों की जीवनशैली की वास्तविकता को दुनिया के समक्ष प्रस्तुत किया। विदित हो कि पी. साईनाथ का जन्म चेन्नई में हुआ था और वह ‘द हिंदू’ अखबार के संपादक एवं राजनीतिक पत्रिका ‘ब्लिट्ज़’ के उप-संपादक के रूप में कार्य कर चुके हैं। पी. साईनाथ को वर्ष 1995 में पत्रकारिता के लिये यूरोपीय आयोग के ‘लोरेंजो नताली पुरस्कार’ और वर्ष 2000 में ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल ग्लोबल ह्यूमन राइट्स जर्नलिज़्म पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें वर्ष 2007 में एशियाई पत्रकारिता में उत्कृष्ट योगदान देने हेतु ‘रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड’ से भी सम्मानित किया गया था। जापान के ‘फुकुओका सिटी इंटरनेशनल फाउंडेशन’ द्वारा स्थापित यह पुरस्कार एशियाई संस्कृति के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले व्यक्तियों और संगठनों को दिया जाता है। इस पुरस्कार का उद्देश्य एशियाई संस्कृतियों के मूल्यों के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना और एक ऐसी नींव स्थापित करना है, जिससे एशियाई लोग सीख सकें और एक-दूसरे के साथ साझा कर सकें। यह पुरस्कार मुख्यतः तीन श्रेणियों- ग्रैंड प्राइज़, अकादमिक प्राइज़ और आर्ट एंड कल्चर प्राइज़ में प्रदान किया जाता है।
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