गोंडवाना रियासत का इतिहास : गोंडवाना के 52 गढ़ | Gondwana Riyasat Ka Itihaas Part 01

 

गोंडवाना रियासत का इतिहास : गोंडवाना के 52 गढ़ 

Gondwana Riyasat Ka Itihaas Part 01

गोंडवाना रियासत का इतिहास : गोंडवाना के 52 गढ़  Gondwana Riyasat Ka Itihaas Part 01

गोंडवाना रियासत का अध्ययन निम्न भागों में करेंगे 


गोंडवाना रियासत 

  • नौवीं शताब्दी तक मध्य प्रांत के संपूर्ण पूर्वी भाग और संबलपुर के एक बहुत बड़े क्षेत्र में गोंडों का साम्राज्य स्थापित हो गया थाजिसे गोंडवाना के नाम से जाना जाता था।इसमें आज के मध्य प्रदेशमहाराष्ट्रआंध्र प्रदेश और ओडिशा के कुछ हिस्से सम्मिलित थे। 


गोंडवाना का पहला उल्लेख


  • गोंडवाना का पहला उल्लेख चौदहवीं सदी के मुस्लिम अभिलेखों में मिलता है। चौदहवीं से अठारहवीं शताब्दी तक यह क्षेत्र गोंड राजवंश के अधीन था। मुगलों के शासनकाल में यह क्षेत्र या तो स्वतंत्र था या सामंतों के राज्य की तरह कार्य करता था। अठारहवीं सदी में इसे मराठों ने जीत लिया था और गोंडवाना का एक बहुत बड़ा क्षेत्र नागपुर के भोंसला राजा और हैदराबाद के निजाम के अधीन हो गया। सन 1818 और 1853 के बीच अंग्रेजों ने इसे अपने अधीन कर लिया। हालांकि कुछ छोटे राज्यों में गोंड राजाओं का शासनकाल 1947 तक चला।


गोंडवाना  रियासत के 52 गढ़ की जानकारी 

गढ़ा वर्तमान में जबलपुर-नागपुर सड़क पर जबलपुर से ही लगा हुआ स्थान है। यह कर्नल स्लीमेन द्वारा दिये गए गोंडाेें के 52 गढ़ों की सूची में प्रथम स्थान पर है। यहाँ संग्रामशाह द्वारा बनाये गये किले के अवशेष हैं। किले की सामग्री का उपयोग एक रेल कंपनी ने कर लिया है अब केवल ‘‘मदनमहल’’ नामक भवन के ही अवशेष बचे हैं। यह महल दो विशाल चट्टानों पर बना है जो एक पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है। महल एक गुमटी की भाँति खड़ा है जो उस समय का एक ‘‘आराम-गृह’’ है। इसके ऊपर से हवेली का बड़ा मनोरम दृश्य दिखाई देता है।

 

 

माड़ौगढ़ -

 

  • मण्डला रोड पर जबलपुर एवं मण्डला के बीचों-बीच कालपी है। कालपी से 5 मील पूर्व में बालई नदी के किनारे पर माड़ौगढ़ या मारूगढ़ गाँव है। इसे मण्डला के राजा गोपालशाह ने अपने कब्जे में ले लिया था। राजस्थानी भाषा में मारू शब्द का अर्थ होता है-यात्री, अतः मारूगढ़ यात्रियों का विश्राम स्थान रहा होगा। किसी यात्री को मारूगढ़ के राजा ने लूट लिया था तब इसे गढ़ा के राजा गोपालशाह ने अपने राज्य में मिला लिया, यह वर्णन स्लीमेन कृत है।

 

पंचेलगढ़ -

 

  • जबलपुर जिले में सिहोरा के आस-पास के क्षेत्र को पंचेलगढ़ कहते है। निजामशाह ने पूना वाले पेशवा को पनागर का गढ़ दिया था, यहाँ पर पनागर कहने से पंचेलगढ़ का ही अर्थ होना चाहिए क्योंकि सिहोरा और पनागर के क्षेत्र को पंचेल कहते है।

 

सिंगौरगढ़ -

 

  • सिंगौरगढ़ दमोह-जबलपुर मार्ग पर सिंग्रामपुर से 6 कि.मी. की दूरी पर वीरान पहाड़ी मौजा है। यह गोंडों के 52 गढ़ों में शामिल था और यह मण्डला एवं चैरागढ़ के बाद गोंडों की तीसरी राजधानी थी। वर्तमान में यहाँ एक किले के अवशेष है जो विशाल समतलीय पहाड़ी क्षेत्र में फैले हैं। किला पहाड़ी पर एक बड़े तालाब के बाजू में स्थित है। तालाब का व्यास लगभग 20 किलोमीटर है इसके तल में अब गाँव बसे हुए हैं। 

 

अमोदा -

 

  • सीहोरा तहसील में कैमोर पर्वत माला से लगा हुआ, सीहोरा से 25 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।64 यहाँ से दो गोंड राजाओं के क्रमशः 1559 ई. एवं 1594 ई. के सतीलेख प्राप्त हुए हैं जो यहाँ गोंड राज्य की पुष्टि करते हंै यानि प्रेमशाह के समय यहाँ का राज्यकत्र्ता कृष्णराय था। ऊपर पहाड़ पर किले के निशान मिलते हैं। किला अब पूरी तरह भूमिसात हो चुका है। दंत कथा के अनुसार यहाँ गोंड भिम्मजू भाला रहता था जिसको गढ़ा-मण्डला के राजा ने उसके अद्भुत पराक्रम को देखकर 300 गाँवों की जागीर दे दी थी। अभी भी इस स्थान के निर्धारण में विद्वानों का मतभेद है।

 

कनौजा -

 

  • कनौजा बिलहरी के पास स्थित एक गाँव है यह गोंडवाना के 52 गढ़ों में शामिल था। लेकिन स्थान विशेष से संबंधित कम ही जानकारी है।

 

बागमार (बाघमाड़)-

 

  • बागमार, जिला मण्डला में मवई के पास सठियाँ से 5 मील पूर्व, दलदली के पास, वर्तमान छत्तीसगढ़ में (कवर्धा) दुर्ग जिला के बोंडला विकासखंड में स्थित है।

 

टीपागढ़-

 

  1. स्थान निर्धारण मेें मतभेद है। डाॅ. सुरेश मिश्र के अनुसार बालाघाट में होना चाहिए, जबकि रामभरोस अग्रवाल के अनुसार चाँदा जिले का टीपागढ़ होना चाहिए।

 

रायगढ़ -

 

  • वर्तमान छत्तीसगढ़ मेें दुर्ग जिला के चिल्फी गाँव से 7 कि.मी. दूर, उत्तर-पश्चिम मंे स्थित है। इसका दूसरा नाम गढ़ी है जो पास की पहाड़ी पर स्थित एक प्राचीन गढ़ी के नाम से पड़ा है। गढ़ी अब खण्डहर हो चुकी है।

 

परतापगढ़ -

 

  • स्थान निर्धारण में मतभेद है।

 

अमरगढ़ -

 

  • यह डिंडौरी से 19 कि.मी. दक्षिण-पश्चिम में, रामगढ़ के पास अमरपुर नाम से प्रसिद्ध है। अधिकांश विद्वानों ने इसे ही अमरगढ़ माना है। एक मत के अनुसार रामगढ़ या अमरपुर का महत्व दुर्गावती के बहुत बाद निजाम साहि के समय में हुआ होगा। संभवतः दुर्गावती के समय न रहा हो।

 

देवहार -

 

  • देवहार या देवहारगढ़, डिंडौरी में शाहपुर से 3 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहाँ पहाड़ के ऊपर पहाड़ हैं जिसको देवहारगढ़ कहते है। ऊपर पहाड़ पर एक परकोटे के अवशेष हैैं।

 

पाटनगढ़ -

 

  • वर्तमान में जबलपुर की पाटन तहसील को ही पाटनगढ़ कहते हैैं। यह जबलपुर-तेन्दूखेड़ा-दमोह मार्ग पर जबलपुर से 32 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इसका नाम संस्कृत शब्द पट्टनम से बना है जिसका अर्थ नगर होता है।

 

फतेहपुर -

 

  • फतेहपुर होशंगाबाद जिला की सोहागपुर तहसील से लगभग 32 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह गाँव तीन बस्तियों मेें विभाजित है, कहते हैं कि यहाँ तीन अलग-अलग गोंड शाखाओं का राज रहा।

 

निमुआगढ़ -

 

  •   स्थान निर्धारण में मतभेद हैं। संभवतः नरसिंहपुर जिले में हो।

 

भॅंवरगढ़-

 

  •   स्थान निर्धारण में मतभेद हैं। संभवतः नरसिंहपुर में गाडरवारा के पास हो।

 

बरगी -

 

  • यह जबलपुर-नागपुर रोड पर जबलपुर से 29.6 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह गोंडवाना के 52 गढ़ों में शामिल था। जनश्रुति के अनुसार इस पर गोंडराजा संग्रामशाह का अधिपत्य था। पास ही एक शक्वाकार पहाड़ी है जिस पर एक गढ़ी एवं मंदिर के अवशेष हैं। गढ़ी पूरी तरह मिट चुकी है।

 

घनसौर-

 

  • वर्तमान लखनादौन तहसील का छोटा सा गाँव घनसौर है। यह जिला मुख्यालय सिवनी से 48 कि.मी. की दूरी पर है। यहाँ काफी मात्रा में पुराने मंदिरों के ध्वंशावशेष फैले पड़े हैं जो देखने में प्राचीन लगते हैं। इस गढ़ को गोंड राजा नरेंद्रशाह ने बख्तबुलन्द को दिया था।

 

चौरई -

 

  • यह छिन्दवाड़ा से 30 कि.मी. की दूरी पर पूर्व दिशा में स्थित है। वर्तमान में यह रेल्वे स्टेशन भी है। यह स्थान गोंड राजा नरेन्द्रशाह ने बख्तबुलन्द को दिया था।

 

डोंगरताल -

 

  • यह वर्तमान नागपुर से 65 कि.मी. की दूरी पर उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित है। इसे गांेडराजा नरेन्द्रशाह ने देवगढ़ के बख्तबुलन्द को दे दिया था। यहाँ एक छोटे किले के भग्नावशेष हैं।

 

करवागढ़ -

 

  • इस स्थान की स्थिति स्पष्ट नहीं है। संभवतः वारासिवनी जिला का कूवागढ़ हो, मैं उसी स्थान का वर्णन कर रहा हूँ। यह वारासिवनी से 35 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह स्थान आल्हा-ऊदल एवं सोनारानी के प्रेम-प्रसंग की कहानी से जुड़ा है। पास ही रानी कुठार के आरक्षित वन के पास की पहाड़ी पर काले पत्थर की बनी गढ़ी के अवशेष हैं, देखने में यह प्राचीन गोंडों से पूर्व की लगती है।

 

झांझनगढ़ -

 

  • वर्तमान तिगवाँ को ही झांझनगढ़ माना गया है। जहाँ आल्हा और ऊदल माड़ौगढ़ के राजा से लड़े थे। वहीं दूसरी ओर विद्वान इसे तिगवाँ से अलग मानते हैं। अभी भी इस स्थान की स्थिति स्पष्ट नहीं है।

 

लाफागढ़ -

 

  • वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य के जिला बिलासपुर में रतनपुर के पास पाली है। पाली से 19 कि.मी. की दूरी पर लाफागढ़ है। लाफागढ़ मंे एक मजबूत किला है, इसे गोंडराजा शिवराजशाह के समय राघोजी भोंसले ने दबा लिया था। किला पहाड़ी पर मैकल पर्वत श्रेणी पर बना है। यह एक चपटे मैदान में फैला है और लगभग 4 कि.मी. लम्बा और लगभग 1 कि.मी. चैड़ा है। यह प्राकृतिक रूप से सुरक्षित एवं घने जंगल से घिरा है।

 

  • किले में प्रवेश के लिए तीन प्रवेश द्वार हैं। पहला सिंगद्वार, दूसरा मनकादाई द्वार और तीसरा हुुंकार द्वार। मुख्य प्रवेश द्वार को चंडी द्वार (सिंग द्वार) भी कहते है जो दोहरी टिराबीट मेहराब से बना है। इसकी छत चपटी है। द्वारों पर सजावट के तौर पर देवी-देवताओं एवं नर्तकियों के चित्र बने हैं।

 

संतागढ़ -

 

  • स्थान निर्धारित नहीं। अज्ञात।

 

दियागढ़ -

 

  • दियागढ़, डिंडौरी रोड में कोहानी देवरी के पास, महानदी के किनारे स्थित किले के अवशेषों को ही दियागढ़ कहते हैं। इस किले में महानदी की धारा को किले के अन्दर ले लिया गया है और किले की दीवार पर कमानी बनाकर जल के प्रवाह का रास्ता निकाला गया है। किला लगभग अब मिट चुका है। कुछ लोग इसे किला न कहकर सिर्फ बाँध कहते हैं। यह गोंडों के 52 गढ़ों में शामिल था, इसे शिवराजशाह के समय राघोजी भोंसले ने दबा लिया था।

 

बांकागढ़ -

 

  • स्थान निर्धारित नहीं। अज्ञात।

 

पवई-करही -

 

  • वर्तमान में पन्ना जिले की पवई तहसील से कुछ दूरी पर करही ग्राम है। पवई एवं करही को संयुक्त रूप से पवई-करही कहते है। यह गोंडों के 52 गढ़ों में शामिल था। इसे गोंड राजा हृदयशाह ने ओरछा के शासक को दे दिया था। इसी स्थान से सागर के पेशवा बाजीराव, छत्रसाल की सहायता के लिए इसी मार्ग से होकर बुन्देलखंड गये थे।

 

शाहनगर -

 

  • यह पन्ना जिले की शाहनगर तहसील है। यह पन्ना से 104 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह गढ़ गोंड राजा हृदयशाह ने ओरछा के बुन्देला राजा छत्रसाल को दे दिया था।

 

धामौनी -

 

  • धामौनी सागर जिले की बण्डा तहसील से 40 कि.मी. दूर बहरोल-झाँसी रोड पर बसा है। यहा पास ही 1 कि.मी. की दूरी से बांयी तरफ जंगल में किला बना है। किला बड़ा एवं विस्तृत क्षेत्र में फैला है। 

 

हटा -

 

  • दमोह जिले में दमोह-पन्ना मार्ग पर 38 कि.मी. की दूरी पर सुनार नदी के तट पर बसा है। नगर के बाहर ही नदी किनारे किला बना है। पूरे नगर में किले के भग्नावशेष फैले हैं। 

 

मढ़ियादो -          

 

  • दमोह जिले की हटा तहसील से 18 कि.मी. दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है। यहाँ एक किला बना है जो जोगीडाबर सरिता के किनारे से लगा है। किले का बहुत सा हिस्सा नष्ट हो गया है।


गढ़ाकोटा -

 

  • सागर-दमोह मार्ग पर सागर से 45 कि.मी. की दूरी पर बसा है। पास ही सुनार एवं गधेरी नदियों से घिरा किला बना है। किला अभी तक पुरातत्व विभाग के संरक्षण में नहीं हैै इस कारण इसे काफी छती हुई है। 

 

शाहगढ़ -

 

  • सागर से सागर-छतरपुर मार्ग पर 68 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहाँ एक छोटा किला है जो लगभग नष्ट हो चुका है। यह अभी भी पुरातत्व विभाग के संरक्षण मंे नहीं है। वर्तमान में इसे आवारा लोगों ने काफी क्षति पहुँचाई है। नगर में चारों तरफ कई स्मारक बने हैं जो अच्छी हालत में हैं। 

 

गढ़पहरा -

 

  • गढ़पहरा सागर से 12 कि.मी. की दूरी पर सागर-झाँसी मार्ग पर दाँयी ओर स्थित है। यहाँ एक पहाड़ी किला है जिसमें सुन्दर राजप्रसाद के भग्नावशेष हैं। बाहर एक सुंदर ग्रीष्मकालीन भवन है। 

 

दमोह -

 

  • दमोह, जिला मुख्यालय दमोह है। प्राचीन किला तो नष्ट हो चुका है लेकिन उसी समय का एक छोटा किला शहर के बीचों-बीच बना है। यह अच्छी हालत में है और वर्तमान में इसमें संग्रहालय खुला है।

 

रहली-

 

रहली, सागर-रहली रोड पर सागर से 40 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। नगर के दक्षिणी ओर सुनार नदी के तट पर किला बना है। यह कुछ दिन पहले ही पुरातत्व विभाग के संरक्षण में आया है। किले का अधिकांश हिस्सा खण्डहर हो चुका है। 

 

इटवा-

 

  • इटवा (संयुक्त बीना) सागर से, सागर-बीना रोड पर 75 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह बड़ी बस्ती है और पास ही बीना स्टेशन का जंक्शन है। आइन-ए-अकबरी में इसका उल्लेख मालवा सूबे में चंदेरी की सरकार के एक महाल के रूप में किया गया है। गोंडों के शासक नरेन्द्रशाह ने इसे पन्ना के राजा हृदयशाह को दे दिया था। यहाँ एक गढ़ी है जिसको कहते है कि पन्ना के राजा अनूपसिंह ने बनवाया था। यह गढ़ी सन् 1751 ई. में पेशवा को दे दी गई थी। जब सागर जिला सन् 1818 मेें अँग्रेजी सरकार को सांैप दिया गया तब से यह अँग्रेजांे के अधिपत्य में चली गई। गढ़ी अब नष्ट हो चुकी है।

 

खिमलासा -

 

  • सागर से 66 कि.मी. की दूरी पर उत्तर-पश्चिम दिशा में और बीना (इटावा) से 20 कि.मी. की दूरी पर मालथौन रोड पर स्थित है। कहते हैैं इस नगर को एक मुसलमान एवं राजपूत सरदार ने बसाया था। उन्हीं के समय का एक किला छोटी सी पहाड़ी पर बना है।किला अच्छी हालत में है और इसकी मरम्मत का कार्य भा. पु. सर्वे. भो. के सानिध्य मेें जारी है। 

 

गुनौर (गिन्नौरगढ़) -

 

  • यह भोपाल से 58 कि.मी. की दूरी पर तहसील बुधनी के उत्तर-पश्चिम में स्थित देलावाड़ी ग्राम से लगभग तीन कि.मी. की दूरी पर लगभग 1127 मीटर लम्बी और लगभग 266 मीटर चैड़ी एकान्त पहाड़ी पर स्थित है। इस स्थान का पूर्व नाम गुनौरा माना गया है जिसका उल्लेख उदयवर्मा परमार के ई. सन् 1200 के भोपाल पट्ट पर मिलता है जिसे नर्मदापुर प्रतिजागरण या जिले के बोदासिरा साक्त या 48 ग्रामों के समूह में स्थित कहा गया है। इसके आधार पर यह कहा जा सकता कि उस समय यह महत्वपूर्ण स्थान था।

 

गिन्नौरगढ़ का किला लम्बे समय तक गोंडों का गढ़ रहा। इसे गोंड राजा चन्द्रशाह ने अकबर को दे दिया था।104 बाद में एक स्वतंत्र राजवंश के संस्थापक दोस्त मोहम्मद ने गिन्नौरगढ़ के राजा निजामशाह के उपरान्त इस पर कब्जा कर लिया था।

 

गिन्नौरगढ़ किला-  

 

  • गिन्नौरगढ़ का किला एक पहाड़ी किला है। यह देलावाड़ी की पहाड़ी पर बना है जो विन्ध्याचल श्रेणी के मध्य में पड़ता है। यह चारों ओर से कम ऊँचाई की पहाड़ी से घिरा है। पहाड़ी क्षेत्र में बने होने के कारण यह पूरी तरह से प्राकृतिक रूप से सुरक्षित है और आमो हवा पूर्णतः प्राकृतिक है तथा किले के नीचे की ओर चारों तरफ की सकरी खाई इसे अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करती है। साथ-साथ उत्तर में बनी खाई भी इसे एक और सुरक्षा घेरा प्रदान करती है। यहीं से किले में प्रवेश का मुख्य द्वार है जो दोहरी टिराबीट मेहराब से सज्जित है। प्रवेश द्वार के दोनों तरफ पिलर में आले बने हैं। सबसे ऊपर बीचों-बीच गणेश की मूर्ति विराजित है। इसके ऊपरी किनारों में गुलाब की पत्तियों का चित्रण किया गया है जो इसे आकर्षक रूप प्रदान करती हैं। इसकी छत चपटी है। प्रवेश द्वार के बाजू से सैनिकों के कमरे बने हैं जो अंदर की तरफ खुलते हैं, इन कमरों से अंदर की तरफ गुप्त मार्ग जुड़े हैं। वर्तमान में यहाँ जंगली परिवेश और भय का माहौल है।

 

बारी -

 

  • बारी(बाड़ी) नामक स्थान के बारे में विद्वानों में थोड़ा मतभेद है। रायसेन जिले का बाड़ी उचित जान पड़ता है क्योंकि यह चैकीगढ़ के पास ही हैै। और पुष्टि के लिए पास ही होना चाहिए क्योंकि गोंड राजा चंद्रशाह ने जो दस गढ़ मुगल बादशाह को दिए थे उनमें यह भी शामिल था।

 

चैकीगढ़ -

 

  • वर्तमान रायसेन जिले के बरेली से 22 कि.मी. उत्तर-पश्चिम में बाड़ी कला से कुछ दूरी पर वन स्थित है। इसकी स्थिति पहाड़ी है यहाँ गोंडों का बना एक किला भी है जो पहाड़ी के शिखर पर बना है। किले में भवनों के अवशेष एवं एक बावली बनी है। गोंडराजा चन्द्रशाह ने इसे अकबर को दे दिया था।

 

राहतगढ़ -

 

  • राहतगढ़ सागर से 40 कि.मी. की दूरी पर सागर-भोपाल रोड पर स्थित है। यहाँ पास की पहाड़ी पर किला बना है। यह एक पहाड़ी दुर्ग है जो बड़ा एवं विस्तृत भू-भाग में फैला है। 

 

मकड़ाई -

 

  • मकड़ाई हरदा से 40 कि.मी. दूर दक्षिण में स्थित है। यह भूतपूर्व जागीरी रियासत है। मकड़ाई के इतिहास के बारे में अभी कम ही जानकारी है, गाँव में पहाड़ी पर एक प्राचीन किला है, अनुमान के तौर पर राजघराना राजगौंड परिवार का वंशज बताया जाता है। गोंड राजा चंद्रशाह ने इसे अकबर को दे दिया था।

 

कारूबाग -

 

  • स्थान निर्धारण में मतभेद है।

 

कुरवाई -

 

  • कुरवाई विदिशा से 77 कि.मी. की दूरी पर उत्तर-पूर्व में और बीना से बीना-भोपाल रोड पर 17 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह अब रेल्वे स्टेशन का नाम भी है जो कुरवाई-कैथोरा के नाम से बीना-भोपाल मुख्य रेलवे लाइन पर है। नगर के बीचों-बीच एक छोटी पहाड़ी पर किला बना है। किला आज भी सुरक्षित है और इसमें उनके वंशज रहते है।  हैं।

 

रायसेन -

 

  • रायसेन भोपाल से उत्तर-पूर्व मार्ग में 30 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। अबुल-फज़ल ने लिखा है कि यहाँ एक प्रसिद्ध किला है। स्पष्ट यह मध्यकाल का महत्वपूर्ण गढ़ रहा होगा। रायसेन का इतिहास सल्तनत काल से ही उल्लेखनीय रहा और मध्यकाल के अन्त तक गोंडवाना के इतिहास में इसकी अप्रत्यक्ष भूमिका बनी रही। किला एक पहाड़ी पर बना है जो विस्तृत भू-भाग में पूरी पहाड़ी पर फैला है, नीचे तलहटी में शहर बसा है। किला अतिविशाल एवं भव्य है। 

 

भँवरासो -

 

  • भँवरासो कुरवाई से 12 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहाँ एक टूटी-फूटी गढ़ी के अवशेष हैं। यह गढ़ गोंड राजा चन्द्रशाह ने अकबर को दे दिया था।

 

भोपाल -

 

  • स्थान निर्धारण मेें मतभेद है। (संभवतः इस्लाम नगर)

 

ओपदगढ़ -

 

  • स्थान निर्धारण में मतभेद है। (संभवतः रायसेन में)

 

पूनागढ़ -

 

  • स्थान निर्धारण में मतभेद है। (संभवतः नरसिंहपुर जिले मेें)

 

देवरी -

 

  • देवरी सागर से, सागर-नरसिंहपुर रोड पर 55 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। पहले इसे रामगढ़ या ऊजरगढ़ कहते थे, परन्तु एक मंदिर बन जाने के पश्चात इसका देवरी रूप में नामकरण हो गया। नगर के बीचांे-बीच एक किला बना है जिसमें चार दीवारी के अलावा सभी राजभवन एक आगजनी की घटना में नष्ट हो गए। 

 

गौरझामर-

 

  • गौरझाामर सागर से 45 कि.मी. की दूरी पर सागर-करेली मार्ग पर स्थित है। यह एक बड़ा गाँव है। यह गोंड राज्य के 52 गढ़ का आखिरी गढ़ था। इसे देवरी के किसी गोंड शासक ने बसाया था, उस समय इसमेें 750 मौजे लगते थे। उसी समय का यहाँ एक छोटा किला बना है जो अब टूट-फूट चुका है। गोंड शासकों के बाद इसे ओरछा के मधुकर शाह ने अपनी जागीर मेें मिला लिया था। 1592 ई. में इनकी मृत्यु के बाद पुत्र रतनशाह को मिला। छत्रसाल की मृत्यु के पश्चात् इसे निजामशाह (गोंडशासक) ने पेशवा को दे दिया था। यहीं पर सागर के मराठा शासकों ने गोंड राजा सुम्मेरशाह को कैद किया था। 1811 ई. में नागपुर के भोंसला शासकों के विरूद्ध सहायता लेने के बदले में इसे सिंधिया को दे दिया और कुछ समय बाद में यह अँग्रेजों को मिला।

MPPSC Online Study Free

MP-PSC Study Materials 
MP PSC Pre
MP GK in Hindi
MP One Liner GK
One Liner GK 
MP PSC Main Paper 01
MP PSC Mains Paper 02
MP GK Question Answer
MP PSC Old Question Paper

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.