श्रेष्ठ राजनीतिक अर्थशास्त्री |Best political Economist in Hindi
श्रेष्ठ राजनीतिक अर्थशास्त्री Best political Economist in Hindi
- 18वीं शताब्दी के श्रेष्ठ राजनीतिक अर्थशास्त्री उस प्रबुद्ध दर्शनशास्त्र से प्रभावित थे जिसने तर्क से ईश्वर के स्थान पर तर्क को प्रतिष्ठित किया और पुजारियों तथा प्रतिनिधि दार्शनिकों के स्थान पर वैज्ञानिकों को प्रतिष्ठित किया उनके अनुसार नागरिक समाज कृत्रिम रचना नहीं है बल्कि विकास का उत्पाद है।
- समाज इसके कानूनों और सिद्धान्तों के अनुसार प्रगति करता है। एडम कागुसन ने नागरिक समाज के विकास मूल प्रगति के उच्चतर दौर से मानव अन्तरकार्य के प्रारंभिक रूपों से माना जो कि श्रम विभाजन उच्चतर नैतिक सांस्कृतिक उपलब्धि तथा कानून के सरकारी नियम के विषय को माना।
- क्रमिक सामाजिक विकास के फलस्वरूप वाणिज्यिक समाज का आविर्भाव हुआ तथा सामाजिक आध्यात्मिकता की वृद्धि हुई यहाँ भौतिक दशाएँ तथा अर्थव्यवस्था में विशेष रूप से समाज की प्रकृति का निर्धारण करने को प्राथमिकता दी गई मनुष्यों को तार्किक प्राणी के रूप में बताया गया जो कि श्रम के जटिल विभाजन के जरिए अपने को एक दूसरे पर आश्रित हो कर सक्षम बनाने में समर्थ होते हैं। नागरिक समाज की आत्मनियंत्रित सम्पत्तियाँ राजनीति तथा राज्य के अवमूल्यन की ओर गई।
- स्वतः नियामी वाली अर्थव्यवस्था तथा समाज की अवधारणा को एडम स्मिथ के लेखों में पर्याप्त अभिव्यक्ति मिली उनके विचार में राज्य का हस्तक्षेप समाज में आर्थिक कारकों की सृजनात्मकता में व्यवधान होता है। राज्य की भूमिका का जीवन स्वतंत्रता तथा नागरिकों की सम्पत्ति की आंतरिक अराजकता तथा बाह्य अनुक्रमण से रक्षा करनी थी। अच्छे जीवन की दशाओं को परिभाषित करना या सामूहिक इच्छा का प्रतिनिधित्व करना राज्य का कार्य व्यापार नहीं था।
- श्रेष्ठ राजनीति अर्थशास्त्रियों ने व्यक्तिवाद सम्पत्ति तथा बाज़ार को प्राथमिकता दी और - बुनियादी स्तर पर उन्होंने तार्किक व्यक्ति को वस्तुओं के केन्द्र में रखा इस प्रकार श्रेष्ठ राजनीतिक अर्थशास्त्रियों द्वारा उदार एजेन्डा तैयार किया गया और उससे ऐसे नागरिक समाज की अवधारणा उभरी जो ऐतिहासिक रूप से व्यक्तियों के अधिकारों और स्वतंत्रता से निकली जहाँ एक दूसरे की प्रतिस्पर्धा में व्यक्ति अपने निजी हितों का अनुसरण करने लगा ( चंडोक 1995)।
- तथापि प्रारंभिक उदार सिद्धान्तवादियों ने सीमित राज्य की अवधारणा को स्थापित किया बाद में विशेषकर जे. एस. मिल तथा तोकमिल ने मानव स्वतंत्रता की धमकी देने वाली राज्य की राजनीतिक शक्ति के बारे में चिन्ता महसूस की। उदाहरण के लिए, तोकविल ने देखा की सामाजिक संस्थाओं के सामने खतरा पैदा हो गया है और राजनीतिक संस्थाओं द्वारा उनका गला घोंटा जा रहा है। इन आवश्यकताओं पर बल दिया जा रहा था कि कानून और व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी राज्य की बताई जा रही थी लेकिन साथ ही साथ यह अनुभव किया जा रहा था कि राज्य के पास असीमित शक्ति कभी नहीं रहनी चाहिए जैसा की पहले उल्लेख किया जा चुका है।
- तोकविल ने पाया कि बहुसामाजिक संघों में यह क्षमता है कि वह राज्य की शक्ति को नियंत्रित कर सके। मुक्त चयन के सिद्धान्त पर आधारित संघ सामूहिक कार्य की आवश्यकता के साथ व्यक्तियों के हित के प्रति सामंजस्य रख रहे थे। इन्हीं नागरिक संघों के जरिये नागरिक लोकतान्त्रिक गुण अंकुरित होते थे और नागरिक समाज को आकार प्रदान करते थे तोकविल की ही तरह मिल का भी विचार था कि सार्वजनिक समारोह में निजी नागरिकों के भाग लेने से सार्वजनिक भावना पैदा होती है!
"सार्वजनिक भावना का यह विद्यालय कहीं नहीं विद्यमान है, इस भावना को शायद ही माना जा सकता है कि निजी व्यक्तियों की प्रमुख सामाजिक स्थिति नहीं होती या समाज के प्रति उनका कोई कर्त्तव्य नहीं बनता। कानून को मानने तथा सरकार की सत्ता में बने रहने के लिए अतिरिक्त उनका और कोई कर्त्तव्य नहीं होता। "
उदारवादी विचारधारा का राज्य समाज संबंध पर स्थाई प्रभाव रहता था। नागरिक समाज के बारे में सामयिक विचारों में उदार अवधारणीकरण इस प्रकार होता था कि वह राज्य की शक्ति पर नागरिक समाज द्वारा सीमाएँ निर्धारित करता था।
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