भुगतान संतुलन में असाम्य के प्रकार एवं कारण | प्रतिकूल भुगतान संतुलन को दूर करने के उपाय | Bhugtan Santulan Ke Karan

भुगतान संतुलन में असाम्य के प्रकार एवं कारण 
प्रतिकूल भुगतान संतुलन को दूर करने के उपाय
भुगतान संतुलन में असाम्य के प्रकार एवं कारण  |  प्रतिकूल भुगतान संतुलन को दूर करने के उपाय | Bhugtan Santulan Ke Karan


 

भुगतान संतुलन में असाम्य के प्रकार एवं कारण 

 

1. चक्रीय असंतुलन (Cyclical Equilibrium) 

2. दीर्घकालिक असंतुलन (Secular Equilibrium) 

3. संरचनात्मक असंतुलन (Structural Equilibrium) 

4. अस्थायी असंतुलन (Temporary Equilibrium) 

5. मौलिक असंतुलन (Fundamental Equilibrium) 

6. विनिमय दर में परिवर्तन (Change in Exchange Rate) 

7. राष्ट्रीय आय में परिवर्तन (Change in National Income) 

8. तीव्र प्रदर्शन प्रभाव (Demonstration Effect) 

9. राजनीतिक स्थितियाँ (Political Condition) 

10. आयात व निर्यात की माँग लोच (Elasticity of Export & Import)

 

1. चक्रीय असंतुलन: 

  • व्यापार चक्रीय उच्चावचनों के फलस्वरूप भुगतान संतुलन में असंतुलन देखे जाते है। जब देश में मंदी होती है तो दूसरे देशों के साथ आयातों और निर्यातों की मात्रा में तीव्र गिरावट आती है। परन्तु घरेलु उत्पादनों में कमी से आयात की तुलना में निर्यात में बहुत ज्यादा कमी आ जाती है। इससे भुगतान संतुलन प्रतिकूल हो जाता है। भुगतान संतुलन में इस प्रकार के आने वाले असंतुलन को चक्रीय असंतुलन कहते हैं ।

 

2. दीर्घकालिक असंतुलन: 

  • दीर्घकालिक असंतुलन या चिरकालिक असंतुलन उस समय उत्पन्न होती है जब अर्थव्यवस्था विकास के एक चरण से दूसरे चरण में प्रविष्ट हो रही हो। दीर्घकालिक असाम्यता बहुत से घटकों के कारण उत्पन्न होती है जैसे पूँजी निर्माणजनसंख्या में वृद्धिउत्पादन प्रणाली में सुधारबाजार का विस्तारऔद्योगिक परिवर्तनव्यावसायिक संगठन में सुधार और साधनों की उपलब्ध मात्रा में परिवर्तन आदि । दीर्घकालिक भुगतान असंतुलन की उत्पत्ति देश में बचत एवं विनियोग में अन्तर के कारण होती है ।

 

3. संरचनात्मक असंतुलन: 

  • संचनात्मक असंतुलन की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब किसी देश के भीतर या बाहरी किसी देश के कुछ क्षेत्रों में ऐसे परिवर्तन आ जाएं जो आयात और निर्यात की माँग एवं पूर्ति में मूलभूत परिवर्तन ला दे आयात एवं निर्यात की माँग एवं पूर्ति में मूलभूत परिवर्तनों के कारण उत्पन्न असंतुलन को संचनात्मक परिवर्तन कहते है ।

 

4. अस्थायी असंतुलनः 

  • अल्पकालिक कारणों से उत्पन्न असंतुलन को अस्थायी या अल्पकालीन भुगतान असंतुलन कहते है। व्यापार के आकस्मिक परिवर्तनमौसमी उतार-चढ़ावसूखेबाढ़ या युद्ध की स्थिति लगातार रहने की अपेक्षा नहीं की जाती। यही कारण है कि इस प्रकार की स्थिति से उत्पन्न भुगतान असंतुलन को अस्थायी असंतुलन की संज्ञा दी जाती है।

 

5. मौलिक असंतुलन: 

  • मौलिक असंतुलन को आधारभूत या स्थायी असंतुलन भी कहते है । जब भुगतान संतुलन में असंतुलन दीर्घकालीन और निरन्तर चलता रहता है तो इसे हम मौलिक चिरकालिक आधारभूत या स्थायी असंतुलन के नाम से पुकारते है । 


अन्तराष्ट्रीय मुद्राकोष के अनुसारभुगतान संतुलन में मौलिक असंतुलन के कारण निम्नलिखित है:

 

1. देश एवं विश्व के अन्य देशों में उपभोक्ता रूची में परिवर्तन, 

ii. विदेशी मुद्राकोष में निरन्तर कमी, 

iii. अत्याधिक पूँजी का बहिर्गमन या पूँजी वाह्य प्रवाह,

iv. स्फीतिकारी दबाव तथा विश्व बाजार में प्रतियोगिता में कमी के कारण निर्यात में कमी.  

आप ध्यान दें कि उपर्युक्त सभी बिन्दु भुगतान असंतुलन के प्रकार है तथा इसे आप भुगतान असंतुलन के कारणों में भी लिख सकते है।

 

6. विनिमय दर में परिवर्तन: 

  • घरेलू मुद्रा के अधिमूल्यन से विदेशी ( overvaluation) से विदेशी वस्तुएँ सस्ती हो जाने के कारण आयात की मात्रा निर्यात की तुलना अधि में हो जाती हैफलस्वरूप भुगतान संतुलन में घाटा उत्पन्न होता है. 

 

7. राष्ट्रीय आय में परिवर्तन: 

  • पूर्ण रोजगार की स्थिति में देश की राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने पर आयात में वृद्धि होगी। परिणामस्वरूप भुगतान संतुलन में घाटा उत्पन्न होगा।


8. तीव्र प्रदर्शन प्रभाव:

  • तीव्र प्रदर्शन प्रभाव के कारण देश के लोग विदेशी वस्तुओं की मांग अधिक करते हैजिसके कारण इन देशों में आयात की सीमान्त प्रवृत्ति बलवती होती है. 

 

9. आर्थिक विकास की अवस्था: 

  • जब कोई देश विकास की प्रक्रिया से गुजर रहा हो तो उसे अधिक पूँजीप्रविधि (Technology) इत्यादि की आवश्यकता पड़ती हैफलस्वरूप आयात में वृद्धि होती है जो भुगतान संतुलन में असंतुलन उत्पन्न करता है ।

 

10. जनसंख्या वृद्धिः 

  • अल्पविकसित देशों में जनसंख्या वृद्धि भुगतान संतुलन को प्रतिकूल बनाती है क्योंकि इसके कारण इन देशों में वस्तुओं की माँग में आपूर्ति की अपेक्षा अधिक वृद्धि हो जाती है। इस बढ़े हुए मांग की आपूर्ति आयातित वस्तुओं से की जाती है।

 

11. राजनीतिक स्थितियाँ: 

  • राजनीतिक अस्थिरता भी भुगतान संतुलन को असंतुलित कर सकती है क्योंकि राजनीतिक अस्थिरता विदेशी निवेशकों में अनिश्चितता उत्पन्न करती है परिणामस्वरूप पूँजी का वाह्य प्रवाह होता है और अर्न्तप्रवाह रूक जाता है ।

 

12. आयात और निर्यात की माँग लोच: 

  • विकासशील देशों में सीमान्त आयात प्रवृत्ति विकसित देशों की अपेक्षा अधिक पायी जाती है । इसके अतिरिक्त इन देशों में आयातित वस्तुओं की मूल्य माँग लोच भी कम होती है और विकसित देश इनके मूल्यों में वृद्धि कर दे तब भी आयात की मात्रा में आनुपातिक कमी नहीं हो पाती। इन्हीं सब कारणों से विकासशील देशों को प्रतिकूल भुगतान संतुलन का सामना करना पड़ता है इन सब के अतिरिक्त बड़े पैमाने पर विकास कार्यक्रमविकसित देशों द्वारा लगाये गये आयात नियंत्रणअन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अवसाद या मन्दी भी भुगतान संतुलन की असंतुलित या प्रतिकूल बनाते है।

 

प्रतिकूल भुगतान संतुलन को दूर करने के उपाय

 

  • प्रतिकूल भुगतान संतुलन को दूर करने के सम्बन्ध में सरकार अनेक प्रकार के प्रयास करती है । ये प्रयास मुख्यतः निर्यात की वृद्धि तथा आयात के प्रतिस्थापन या उसकी कटौती से सम्बन्धित होते हैं । 


प्रतिकूल भुगतान संतुलन को दूर करने के लिए गैर-मौद्रिक एवं मौद्रिक उपाय किए जाते है । 

प्रतिकूल भुगतान संतुलन को दूर करने के गैर मौद्रिक उपाय

(क) तटकर या आयात प्रशुल्क (Tarrif),

(ख) आयात अभ्यंश (Import Quota), 

(ग) आयात प्रतिस्थापन के उपाय तथा 

(घ) निर्यात संवर्धन के कार्यक्रम तथा नीतियाँ आती है। 

आयातित वस्तुओं पर तटकर या आयात शुल्क लगाकर उनके मूल्य को ऊँचा कर दिया जाता है जिससे आयातित वस्तुएँ मंहगी हो जाती है फलस्वरूप आयात में कमी आती है । इसके अतिरिक्त आयात प्रतिस्थापन वस्तुओं का निर्माण किया जाता है ।

 

  • आयात अभ्यंश के अन्तर्गत प्रायः एक वर्ष के समय के दौरान मूल्य अथवा परिमाण में एक वस्तु को स्थिर मात्रा में देश के अन्दर आयात करने की आज्ञा दी जाती है जिससे आयात को नियंत्रित किया जा सके। आयात नियंत्रित करने के साथ-साथ सरकार निर्यात संवर्धन के लिए औद्योगिक मेलेव्यापारिक समझौतेनिर्यात से सम्बन्धित छूटेंएवं निर्यात बीमा आदि की व्यवस्था करती है।

 

प्रतिकूल भुगतान संतुलन दूर करने के लिए मौद्रिक उपाय

  • प्रतिकूल भुगतान संतुलन दूर करने के लिए सरकार गैर-मौद्रिक के अतिरिक्त मौद्रिक उपाय का भी प्रयोग करती है मौद्रिक उपाय के अन्तर्गत अवमूल्यनमौद्रिक संकुचन या अवस्फीति (Reflation) और विनिमय नियंत्रण आदि उपाय अपनाती है। 
  • अवमूल्यन तथा मूल्य ह्रास का सम्बन्ध मुद्रा के वाह्य मूल्य में कमी से होता है। इसके विपरीतमुद्रा संकुचन की नीति का उद्देश्य आन्तरिक कीमत स्तर में कमी अर्थात् मुद्रा के आन्तरिक मूल्य में वृद्धि करना होता हैवस्तुओं की कीमतें कम हो जाने पर निर्यात को प्रोत्साहन मिलता है तथा आयात हतोत्साहित है। इस प्रकार मुद्रा संकुचन व अवस्फीति द्वारा प्रतिकूल भुगतान संतुलन ठीक किया जा सकता है।

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