चंदेल कालीन धार्मिक स्थापत्य कला |Chandela Religious Architecture
चंदेल कालीन धार्मिक स्थापत्य कला
चंदेल कालीन धार्मिक स्थापत्य कला
चन्देल स्वयं ब्राह्मण धर्म के समर्थक थे, किन्तु अन्य धर्मों के प्रति वे सहिष्णु थे। विभिन्न धर्मों के अनुयायियों को अपने-अपने धर्मों के प्रसार एवं प्रचार की पूर्ण स्वतन्त्रता थी। इसी कारण विभिन्न धर्मों के मंदिर समस्त बुन्देलखण्ड में पाये जाते हैं। धार्मिक स्थापत्य कला पुनः
(अ) ब्राह्मण स्थापत्य कला,
(ब) बौद्ध स्थापत्य कला तथा
(स) जैन स्थापत्य कला में विभक्त की जा सकती है:
चंदेल कालीन ब्राह्मण स्थापत्य कला
- ब्राह्मण स्थापत्य कला भी तीन भागों में विभक्त की जा सकती है। इस युग में ब्राह्मण धर्म के अन्तर्गत अनेक देवताओं का प्रादुर्भाव हो चुका था। अस्तु, इसी के आधार पर शैव, वैष्णव तथा सूर्य, दुर्गा, महेश्वरी आदि अन्य देवताओं के मंदिरों का निर्माण हुआ।
- धार्मिक स्थापत्य कला में प्राधान्य मंदिरों का ही है। अस्तु, भारतीय कला के उत्कृष्ट नमूनों में मंदिरों का प्रमुख स्थान है। यद्यपि ये मंदिर समस्त बुन्देलखण्ड में पाये जाते हैं, किन्तु चन्देलों की धार्मिक राजधानी खजुराहो में हिन्दू तथा जैन मंदिरों के उत्कृष्ट नमूने हैं, जिनकी अपनी स्वयं की श्रेणी है।
- ये मंदिर चहारदीवारी (परिधि) के अन्दर नहीं हैं बल्कि प्रत्येक मंदिर एक ठोस तथा ऊँचे चबूतरे पर स्थित है। ये मंदिर अपनी विशालता के लिए ही प्रसिद्ध नहीं हैं। क्योंकि उनमें सर्वोच्च मंदिर सौ फीट से कुछ ही अधिक ऊँचा है। बल्कि इन मंदिरों की ख्याति इनकी कलापूर्ण कृति पर ही अवलम्बित है।
- चंदेल कालीन मंदिरों के तीन मुख्य भाग हैं गर्भगृह, मण्डप तथा अर्द्ध मण्डप। इनके अतिरिक्त कुछ मंदिरों में अन्तराल का भी प्रावधान होता था और कुछ बड़े मंदिरों में महामण्डप तथा गर्भगृह की परिक्रमा का भी विधान था।
- प्रत्येक भाग की स्वतन्त्र अलग-अलग गोलाकार छत होती थी जो समान रुप से अर्द्ध मण्डप की छत से प्रारम्भ होकर गर्भगृह के उच्चतम शिखर तक जाती है। ये मंदिर अन्दर तथा बाहर दोनों ओर अलंकृत किये जाते थे। ये अलंकारिक मूर्तियाँ यद्यपि विशाल एवं सुन्दर होती थीं, किन्तु कभी-कभी उनसे अश्लीलता टपकती थी।
- चंदेल कालीन शैव मन्दिर
- चंदेल कालीन विष्णु मंदिर
- चंदेल कालीन ब्रह्मा मंदिर
- चंदेल कालीन शाक्त मंदिर
- चंदेल कालीन सूर्योपासना
- चंदेल कालीन जैन-मंदिर
चंदेल कालीन शैव मन्दिर
कन्दरीया महादेव मंदिर (Kandriya Mahadev Mandir)
- खजुराहो के मंदिरों में यह सबसे विशाल है। यह 109 फीट लम्बा तथा 9फीट चौड़ा है।
- भूमि की सतह से इसकी ऊंचाई196 फीट तथा मंदिर के फर्श से इसकी ऊंचाई88८८ फीट है।
- इसमें अर्द्धमण्डप, मंडप, महामंडप, अन्तराल तथा गर्भगृह हैं और सभी के आमलक शिखर हैं। इन शिखरों का तारतम्य सिंहद्वार के शिखर से प्रारम्भ होकर गर्भगृह के उच्चतम शिखर तक जाता है।
- गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणापत्थ है जो दीपकों से प्रकाशित होता था। इस मन्दिर की छतें बहुत सुन्दर हैं। छतों तथा मंदिर की दीवारों पर हिन्दू देवी-देवताओं की बहुसंख्यक मूर्तियां उत्कीर्ण हैं।
- मंदिर की कुर्सी 13 फीट ऊंची है और बड़े तथा मजबूत पत्थरों से बनी है। यह चौकी ऊपर की ओर ढालू होती गई है। कुर्सी के ऊपर मूर्तियों की तीन चौड़ी पट्टियां हैं जो मन्दिर के चारों ओर हैं। उत्कीर्ण मूर्तियों का यह सिलसिला शिखर तक जाता है।
- मूलतः यह शिव मन्दिर है और इसमें साढ़े चार फीट घेरे का संगमरमर का शिव लिंगम् है।
- इस मन्दिर के तिथि निर्धारण के सम्बन्ध में कोई शिलालेख नहीं है। किन्तु ग्यारहवीं शताब्दी के कुटिल लिपि में प्राप्त कुछ वर्णों से प्रतीत होता है कि इस मन्दिर का निर्माण काल लगभग ग्यारहवीं शताब्दी रहा होगा।
खजुराहो का महादेव मन्दिर
- कंदररिया मन्दिर के निकट जीर्णावस्था में एक छोटा शिव मंदिर है जिसकी विगत शताब्दी में महाराजा छतरपुर ने जीर्णोद्धार कराया था।
- वर्तमान मंदिर देखने से यह नहीं ज्ञात होता कि इसके तीन भाग थे अथवा पांच।
- सिंहद्वार के मध्य में शिव प्रतिमा है और उसके दाहिने तथा बाईं ओर ब्रह्मा तथा विष्णु की मूर्तियाँ हैं।
खजुराहो का विश्वनाथ मंदिर
- प्राचीन शिवसागर के पूर्वी किनारे में यह मंदिर स्थित है। इसके पांच भाग हैं और इसकी निर्माण कला कन्दरीय मन्दिर की ही भांति है।
- यह87 फीट लम्बा 46 फीट चौड़ा तथा भूमि से 103 फीट ऊंचा है।
- मंदिर के मण्डप में चार चौकोर स्तम्भ हैं और उन्हीं के आधार पर छत बनी हुई है।
- मंदिर की 3/4 ऊंचाई पर समान रुप से आठ दीवारगीर हैं। जिनमें स्त्री तथा सिंह की प्रतिमाएँ हैं। अब केवल दो प्रतिमायें शेष रह गयी हैं। खम्भों के ऊपर स्तम्भ शीर्ष अलंकृत किये गये हैं। उनके ऊपर चार बड़ी-बड़ी दीवारगीरें हैं जिनके आधार पर मेहराव बने हुए हैं कोनों की ओर चार छोटी-छोटी दीवारगीरें हैं, और उन्हीं के आधार पर चार नारी प्रतिमायें हैं।
- गर्भगृह की प्रवेशवद भी दो स्तम्भों पर आधारित है, किन्तु उनके ऊपरी भाग में कोई मूर्ति नहीं है। उनमें उसी प्रकार के चार दीवारगीर स्तम्भ हैं, जिनमें चार बड़े दीवारगीर मेहराव के लिए हैं और चार छोटे दीवारगीरों पर चार नारी प्रतिमायें हैं, किन्तु अब केवल तीन प्रतिमायें ही शेष बची हैं।
- मंडप की छत इस प्रकार बनी है मानो एक के बाद दूसरा पत्थर रख दिया गया हो। सिंहद्वार की छत दो वर्गों में विभक्त है और उसमें अनेक मूर्तियां उत्कीर्ण हैं।
- यह मंदिर अच्छी दशा में है और इसमें पांच उपमन्दिर चार मुख्य मंदिर के चारों कोनों पर और एक सिंहद्वार के सामने अब भी विद्यमान है। गर्भगृह के मुख्यद्वार में नन्दी पर आरुढ़ भगवान शिव की मूर्ति है। इस मूर्ति के दाहिनी ओर हंसयुक्त ब्रह्मा तथा बाईं ओर गरुड़ युक्त भगवान विष्णु की मूर्ति है।
- मंदिर के अन्दर शिवलिंगम् भी है और मंदिर बहुसंख्यक मूर्तियों से अलंकृत है। इस मंदिर का शिखर एक बहुत बड़े आमलक के सदृश है और उसके चारों ओर अनेक छोटे-छोटे आमलक हैं।
- इस मंदिर में विक्रमाब्द 1056 अथवा 999 ई. का धंगदेव का शिलालेख है। इस लेख का यह निर्देश है कि धंगदेव ने इस मंदिर का निर्माण किया था।
- यह मंदिर प्रमथनाथ के नाम से प्रसिद्ध था, किन्तु अब विश्वनाथ मंदिर के नाम से सम्बोधित किया जाता है। शिलालेख में उल्लिखित मरकत शिवलिंगम् अब उपलब्ध नहीं है, किन्तु मदिर अच्छी दशा में है।
विश्वनाथ मंदिर
- दक्षिणी-पश्चिमी कोने पर भगवान् शिव का एक छोटा मंदिर और है। जिसके गर्भगृह के मुख्यद्वार पर भगवान् शिव की प्रतिमा है।
मृतंग अथवा मृत्युंजय महादेव मंदिर
- यह चतुर्भुज मंदिर के समीप स्थित है और यह अन्दर से 24 वर्ग फीट है और बाहर से 35 वर्ग फीट है। इसके ओसारे की लम्बाई 18 फीट तथा चौड़ाई 9 फीट है। इसकी छत पिरामिड के रुप में त्रिकोणाकार है जो धीरे-धीरे कम चौड़ी होती गयी है। इसके ऊपर स्वर्ण कलश बने हुए हैं। इस मंदिर में इतनी अधिक पुताई हुई है कि दीवारों तथा छतों की मूर्तिकला लुप्तप्राय है।
महोबा का नीलकण्ठ मंदिर
- इस मंदिर का ध्वंसावशेष मात्र है। इसे सामने का भाग गिर गया है। केवल गर्भगृह मात्र शेष है। गर्भगृह के मुख्यद्वार पर शिव की मूर्ति है और उसके दाहिने तथा बायें ब्रह्मा तथा विष्णु की मूर्तियाँ हैं। गर्भगृह के अन्दर अर्घ भी अच्छी दशा में है।
- इस मंदिर में 1174 अथवा 1197७ ई. का एक शिलालेख भी प्राप्त हुआ है। इसके कायस्थ नाजुक द्वारा भगवान् गौर अथवा शिव की पूजा का उल्लेख है।
कुँवर मठ
- यह मंदिर बाहर से 66 फीट लम्बा तथा 33 फीट चौड़ा है और अन्दर से इसकी लम्बाई 49 फीट तथा चौड़ाई 29 फीट है।
- इस मंदिर में पांचों भाग हैं, पर इसके छत का अलंकरण अन्य मंदिरों के अलंकरण से भिन्न है। इसकी छत के निर्माण में एक के बाद दूसरा पत्थर इस प्रकार रखा गया है कि इसके बड़े वृत्त धीरे-धीरे छोटे होते गये हैं। अन्य मंदिरों की भांति इसमें छोटे वृतों का विभाजन नहीं हुआ है।
- यह मंदिर कुँवर मठ के नाम से प्रसिद्ध है। गर्भगृह के मुख्य द्वार पर ब्रह्मा तथा विष्णु के बीच भगवान् शिव की प्रतिमा है।
- जनरल कनिंघम की धारणा है कि संभवतः इस मंदिर का निर्माण किसी चन्देल वंशीय कुमार ने किया था, जिससे यह कुँवर मठ के नाम से प्रसिद्ध है।
- राजगीर के चिह्मों से प्रतीत होता है कि इसका निर्माण 10वीं अथवा 11वीं शताब्दी में हुआ था। इस मंदिर की गणना खजुराहो के सर्वोत्तम मंदिरों में होती हैं।
जतकरी का शिव मंदिर
- खजुराहो से 1 मील दूर एक शिव मंदिर का भग्नावशेष है। इस मंदिर के अंदर संगमरमर का शिवलिंगम् विद्यमान है। जीर्ण-शीर्ण अवस्था में होने के कारण मंदिर के अन्य विवरण उपलब्ध नहीं हैं।
महोबा का ककरामठ अथवा ककरा मंदिर
- मदनसागर के उत्तरी-पश्चिमी तट पर यह मंदिर एक शिला पर स्थित है। यह 103 फीट लम्बा तथा42 फीट चौड़ा है। यह सख्त पत्थर से बना है अतः खजुराहो के अन्य मंदिरों की भाँति इसमें सजावट नहीं है।
- इसमें 5 भाग थे, किन्तु इसका महामंडप खजुराहो के अन्य मंदिरों से बड़ा है। गर्भगृह के बाहर की ओर मूर्तियों को रखने के लिए तीन स्थान बने हुए हैं, किन्तु अब उन स्थानों में वे मूर्तियाँ प्राप्त नहीं हैं।
दौनी का शिवमंदिर
- इस मंदिर का ध्वंसावशेष मात्र है। इसका शिवलिंगम् भी अपने मूल स्थान से किंचित् हटा हुआ है। इसमें 5 भाग हैं, पर इसकी छत खजुराहो के मंदिरों की भाँति नहीं है। इसके मेहराब के ऊपर लम्बी शिलायें रखी हुई हैं, जिनमें किसी प्रकार की सजावट नहीं है। इसके स्तम्भ लगभग सादे हैं किन्तु बीच के खम्भे चार-चार मूर्तियों से अलंकृत हैं।
चंदेल कालीन विष्णु मंदिर
चन्देल राज्यकाल में वैष्णव धर्म का भी बड़ा प्रचार था, किन्तु विष्णु की पूजा के साथ-ही-साथ उसके अवतारों की पूजा का भी प्रचार हो चुका था। अतः चन्देलकालीन मन्दिरों में विष्णु तथा उनके अवतार, दोनों के मंदिर पाये जाते हैं। कुछ विशिष्ट विष्णु मंदिरों का उल्लेख नीचे किया जाता है।
देवी जगदम्बी मंदिर
- वास्तव में यह एक विष्णु मंदिर है, क्योंकि इसके गर्भगृह के मुख्य द्वार पर विष्णु की मूर्ति प्रतिष्ठित है, और उसके दाहिने ओर शिव तथा बाईं ओर ब्रह्मा की मूर्ति है।
- गर्भगृह के अन्दर भगवती लक्ष्मी की 5 फीट 8 इंच ऊंची विशाल मूर्ति भी है और संभवतः इसी कारण यह देवी जगदम्बी का मंदिर कहलाता है। इसमें चार भाग हैं, अर्द्ध मण्डप इस मंदिर में नहीं है। कन्दरीय मन्दिर की भाँति गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणापथ भी इसमें नहीं है।
- यह मंदिर 77 फीट लम्बा तथा 49 फीट चौड़ा है। यह बहुत अधिक अलंकृत है। राजगीर के चिह्मों से यह अनुमान किया जाता है कि इसका निर्माण 10वीं शताब्दी अथवा ११वीं शताब्दी में हुआ था।
खजुराहो का चतुर्भुज मंदिर
- यह रामचन्द्र अथवा लक्ष्मण जी के मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है, किन्तु वास्तव में इसे चतुर्भुज मंदिर ही कहना अधिक उपर्युक्त है, क्योंकि इसमें भगवान् विष्णु की चतुर्भुजी मूर्ति है।
- यह पच्चासी फीट चार इंच लम्बा तथा चौबालीस फीट चौड़ा है।
- खजुराहो के विश्वनाथ मंदिर की भांति इसमें पांच भाग हैं और इससे सम्बद्ध पांच उपमंदिर हैं। चार मंदिर इसके चारों कोनों में तथा पांचवां मन्दिर मुख्य द्वार के सामने स्थित है।
- यह मंदिर उत्कीर्ण मूर्तियों से बहुत अलंकृत है और इसमें चार फीट एक इंच ऊंची मूर्ति है। यह मूर्ति चतुर्भुजी है, उसके तीन सिर हैं। बीच का सिर मनुष्य का है, और शेष दो सिर सिंह के हैं।
- कुटिल अक्षरों में राजगीर के चिह्मों से ज्ञात होता है कि इसका निर्माण 10वीं अथवा 11वीं शताब्दी में हुआ था। चारों कोनों के मंदिरों का "विष्णु-मंदिर' रुप है। उनके मुख्य द्वार पर विष्णु की प्रतिमाएँ हैं।
- प्रत्येक मंदिर अठारह फीट लम्बा तथा 11 फीट चौड़ा है। प्रत्येक मंदिर के सामने दो खम्भों वाला एक-एक छोटा बरामदा है।
खजुराहो का वाराह मंदिर
- यह चतुर्भुज मंदिर के पूर्व की ओर स्थित है। और इसमें भगवान् विष्णु के वाराह अवतार की एक विशाल मूर्ति है। यह एक छोटा मंदिर है। इसकी लम्बाई साढ़े बीस फीट है तथा चौड़ाई 16 फीट है। इसके प्रत्येक कोने में तीन-तीन स्तम्भ तथा पश्चिम की ओर दो स्तम्भ हैं, जिसके आश्रय से एक बरामदा तथा एक रास्ता बना हुआ है। इसकी छत एक के बाद दूसरे वर्गाकार पत्थर रखकर बनाई गई है।
- वाराह मूर्ति 8 फीट 9 इंच लम्बी तथा 5 फीट 6 इंच ऊंची है। इसमें खड़े हुए वाराह की मूर्ति है, जिसके दो पैर मूर्ति की पीठिका पर दिखलाये गये हैं। वाराह की मूर्ति के नीचे कुंडली बांधे हुए सर्प की मूर्ति है, जिसकी पूंछ पर वाराह की पूंछ रखी हुई है और उसका सिर किसी बैठे हुए व्यक्ति द्वारा दब-सा गया है।
खजुराहो का वामन मंदिर
- यह मंदिर खजुराहो ग्राम के उत्तरी किनारे पर स्थित है और यह 60 फीट लम्बा तथा 38 फीट चौड़ा है। इस मंदिर की वाराह मूर्ति 4 फीट 8 इंच ऊंची है।
- खजुराहो के मन्दिरों के पश्चिमी मंदिर समूह की तुलना में इस मंदिर की अलंकारिता साधारण है और इसमें उत्कीर्ण मूर्तियाँ भी कम हैं।
- कुटिल वर्णों में कारीगरी के चिह्मों से इस मंदिर का निर्माण काल 10वीं अथवा ११वीं शताब्दी निश्चित किया जाता है।
खजुराहो का जबरा मंदिर
- यह मंदिर खजुराहो के पूर्वी किनारे पर एक टीले पर बना हुआ है। यह 38 फीट लम्बा तथा 26 फीट चौड़ा है। इसे ठाकुर जी तथा लक्ष्मण जी के मंदिर के नाम से पुकारा जाता है। जनरल कनिंघम का विचार है कि जब भूमि में स्थित होने के कारण यह जबरा मंदिर कहलाता है। इस मंदिर में खड़े हुए भगवान् विष्णु की चतुर्भुजी मूर्ति है। इस मंदिर में बहुत थोड़ा अलंकरण है।
खजुराहो का ब्रह्मा अथवा गदाधर मंदिर
- यह खजूरसागर के पूर्वी किनारे में स्थित एक छोटा सूची स्तम्भाकार मंदिर है। मंदिर में चतुर्मुखी मूर्ति प्रतिष्ठित होने के कारण यह ब्रह्मा के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
- जनरल कनिंघम का विचार है कि यह विष्णु का मंदिर है, क्योंकि गदाधर की मूर्ति मुख्य द्वार के मध्य में स्थित है।
- यह मंदिर 19 वर्ग फीट है और अन्दर से इसका विस्तार 10 वर्ग फीट है। इसकी छत सूची स्तंभाकार है जिस पर गुम्बज बने हुए हैं।
- यह मंदिर कड़ी चट्टानों तथा बालुका प्रस्तर से बनी है और पश्चिमी खजुराहो के मंदिरों से अलंकरण में भिन्न हैं। अत- जनरल कनिंघम का अनुमान है कि यह प्राचीन मंदिर है और इसका निर्माण 8वीं तथा नवीं शताब्दी में हुआ था।
खजुराहो का लक्ष्मीनाथ मंदिर
- यह 83 फीट लम्बा तथा 45 फीट चौड़ा है और इसकी शैली प्राचीन चन्देल मंदिरों की भांति है। इस मंदिर में बड़ी अच्छी सजावट है और इसमें विक्रमाब्द 1011 अथवा सन् 954 ई. का बंगदेव का शिलालेख है।
जतकरी का चतुर्भुज मंदिर
- जतकरी ग्राम खजुराहो से लगभग 1 मील दूर है और वहीं पर यह मंदिर ध्वंसावशेष के रुप में स्थित है। यह 40 फीट लम्बा तथा 20 फीट चौड़ा है। इसकी ऊंचाई 44 फीट है।
- गर्भगृह के मध्य में विष्णु की मूर्ति है और उसके दोनों ओर ब्रह्मा तथा शिव की मूर्ति है। विष्णु की विशाल मूर्ति 9 फीट ऊंची है और उसका शिर नग्न है। मंदिर की छत तथा दीवारें अनेक मूर्तियां से अलंकृत है। जनश्रुति के आधार पर बनाकर सरदार आल्हा के भांजे सूजा ने इसका निर्माण किया था।
महोबा का मदारि मंदिर
- यह महोबा के एक चट्टानी भाग पर स्थित है और अब यह भग्नावशेष मात्र है। यह 107 फीट लम्बा तथा 75 फीट चौड़ा है। यह मंदिर कृष्ण के नाम से विख्यात है इसके पूर्वी द्वार के सामने एक अन्य मंदिर की नींव है जो 16 वर्ग फीट की है। कनिंघम का अनुमान है कि यह उपमंदिर वस्तुतः वाराह मंदिर था।
गोंड का विष्णु मंदिर
- यह ग्राम बाँदा जिले के अन्तर्गत कर्बी से तेरह मील दूर है। इस गांव में अनेक मंदिर हैं जो चन्देल मंदिर कहलाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि उन मंदिरों को आल्हा-ऊदल तथा राजा परमाल ने बनवाया था।
- इनमें सबसे बडे मंदिर में अर्द्ध-मंडप तथा गर्भगृह हैं। इसका मुख्य द्वार पूर्व की ओर है। वस्तुतः यह विष्णु मंदिर है, क्योंकि इसके मुख्य द्वार पर विष्णु की मूर्ति प्रतिष्ठित है।
- इसी के निकट एक छोटा मंदिर है जो भगवती लक्ष्मी का है।
- मुख्य विष्णु मंदिर का शिखर अब भी सुरक्षित है, जिसमें केवल कलश मात्र शेष है। यह मुख्य मंदिर 55 फीट लम्बा, 48 फीट 9 इंच चौड़ा और 40 फीट ऊंचा है।
विलहरिया का विष्णु मंदिर
- यह ग्राम बांदा जिले में रसिन ग्राम से दस मील दूर है। यह मंदिर एक छोटी पहाड़ी पर बना हुआ है जो लगभग 70 फीट ऊंची है। यह एक छोटा मंदिर है किन्तु इसका अलंकरण बहुत सुन्दर है।
- इस मंदिर की उत्तम स्थिति ने इसे बड़ा आकर्षक बना दिया है इसमें केवल गर्भगृह हैं और उसके सामने 9 वर्ग फीट का बरामदा है।
- गर्भगृह बाहर से 11 फीट लम्बा तथा 4 फीट चौड़ा है। उसका शिखर अब भी मौजूद है, किन्तु उसका ऊपरी भाग नष्ट हो गया है। यह विष्णु मंदिर है। मंदिर के मुख्य द्वार में विष्णु की मूर्ति है और दाहिने तथा बाईं ओर क्रमशः ब्रह्मा तथा शिव की मूर्तियाँ हैं।
- इन मंदिरों के अतिरिक्त और भी अनेक विष्णु मंदिर हैं, जिनके ध्वंसावशेष मात्र रह गये हैं। यह भग्नावशेष अजयगढ़, बिलहरिया, चांदपुर, दुघई तथा मदनपुर आदि स्थानों में पाये जाते हैं।
चन्देल काल के ब्रह्मा मंदिर
चन्देल काल में ब्रह्मा की पूजा का अधिक प्रचार न था और इसी कारण ब्रह्मा के मंदिरों की संख्या भी कम है। फिर भी कुछ उल्लेखनीय मंदिरों का विवरण नीचे दिया जाता है।
खजुराहो का ब्रह्मा मंदिर
- यह खजुराहो का एक पुराना मंदिर है और यह एक झील के किनारे पर स्थित है। यह वर्गाकार छोटा मंदिर लाल पत्थर की कड़ी चट्टानों से बना है। जीर्ण-शीर्ण होने के कारण इस मन्दिर के अन्य विवरण संभव नहीं है।
दुघई का ब्रह्मा मंदिर
- यह मन्दिर अन्य चन्देल मंदिरों की भांति है। इसमें सिंहद्वार, अर्द्धमंडप, महामंडप, अन्तराल, गर्भगृह आदि है। यह 42 फीट लम्बा तथा 25 फीट चौड़ा है। इसका अलंकरण सुन्दर है। प्रत्येक मेहराब अनेक प्रकार की सुन्दर खुदाई से युक्त है तथा छत अनेक प्रकार के षट्कोणों से अलंकृत है।
- महामंडप के बीच के चारों स्तम्भ बहुत ही सुन्दर हैं, किन्तु वे एक छोटे मंदिर के लिए ऊंचाई में बहुत बड़े हैं फिर भी मंदिर सर्वांगीण सुन्दर हैं। गर्भगृह के मुख्यद्वार के मध्य में दाढ़ी युक्त त्रिशिर भगवान् ब्रह्मा की मूर्ति है और उसके साथ हंस की भी मूर्ति है।
- यह मूर्ति नवगृह के ऊपर है, चार गृह एक ओर तथा पांच गृह दूसरी ओर हैं। इस मंदिर में प्राप्त लेखों से ज्ञात होता है कि यशोवर्मन के पौत्र तथा कृष्ण के पुत्र देवलब्धि ने इस मंदिर का निर्माण किया था।
चंदेल कालीन शाक्त मंदिर
ब्राह्मण धर्म में त्रिदेवों की पूजा के अतिरिक्त उनकी शक्तियों की भी उपासना होती थी, अतः उनके भी मंदिरों का निर्माण हुआ। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य देवी-देवताओं की भी पूजा होती थी, जिनके मंदिरों का भी निर्माण उस युग में हुआ।
खजुराहो का पार्वती मंदिर
- यह विश्वनाथ मंदिर के दक्षिण की ओर स्थित है। यह एक छोटा मंदिर है और अब ध्वंसावशेष मात्र रह गया है। मंदिर के अन्दर 5 फीट ऊंची खड़ी हुई चतुर्भुजी देवी की मूर्ति है। यह पार्वती की मूर्ति कही जाती है किन्तु कनिंघम का अनुमान है कि लक्ष्मी की मूर्ति है, क्योंकि इस मूर्ति के शिर के ऊपर विष्णु की एक छोटी मूर्ति है।
खजुराहो का लक्ष्मी देवी मंदिर
- खजुराहो में वाराह मंदिर के निकट स्थित एक छोटा मन्दिर है। इसमें चतुर्भुजी देवी की मूर्ति है। गर्भगृह के मुख्यद्वार के ऊपर विष्णु की मूर्ति है और उसके दाहिनी तथा बाईं ओर शिव और ब्रह्मा की मूर्ति है।
खजुराहो का देवी जगदम्बी मंदिर
- यह एक बड़ा मंदिर है इसकी लंबाई 77 फीट तथा चौड़ाई 49 फीट है। मंदिर के अंदर हाथ में कमल लिये हुए, 5 फीट 8 इंच ऊंची खड़ी हुई चतुर्भुजी देवी की मूर्ति है। इस मंदिर में चार भाग हैं और इसकी पच्चीकारी बड़ी सुन्दर है। कनिंघम का अनुमान है कि यह विष्णु मंदिर है, क्योंकि गर्भगृह के मुख्यद्वार के मध्य में विष्णु की मूर्ति है और उसके दाहिनी और बाईं ओर शिव तथा ब्रह्मा की मूर्तियाँ हैं।
खजुराहो का दुर्गा मंदिर
- वास्तव में यह एक शिव मंदिर था, क्योंकि गर्भगृह के मुख्य द्वार पर शिव की मूर्ति प्रतिष्ठित है। मंदिर के अन्दर त्रिशूल तथा खप्पर लिए हुए अष्टभुजी दुर्गा की मूति है।
चौंसठ-योगिनी मंदिर
- खजुराहो का यह प्राचीन मन्दिर है। यह शिवसागर के दक्षिण-पश्चिम 25 फीट ऊंची चट्टान पर स्थित है।
- यह मंदिर कड़ी चट्टानों के पत्थर से बना है और अब ध्वंसावशेष मात्र रह गया है। इसकी चहारदीवारी में मूर्तियों को रखने के लिए 64 छोटी-छोटी कोठरियाँ बनी हुई हैं। इसका सहन आयताकार है और इसकी लम्बाई 102 फीट तथा चौड़ाई 59 फीट है।
- इसमें 64 कोठरियां चारों दीवारों पर बनी हुई हैं। पिछली दीवार के मध्य में एक बड़ी कोठरी है। प्रत्येक कोठरी 2 फीट 4 इंच चौड़ी तथा 3 फीट 9 इंच गहरी है। इनका प्रवेशद्वार 32 इंच ऊंचा तथा 16 इंच चौड़ा था और इसमें लकड़ी के दरवाजे थे जिनके अब चिह्म मात्र रह गये हैं प्रत्येक कोठरी की छत सूची स्तम्भाकार है जो ऊपर को संकरी होती चली गई है और उसके बाद एक के बाद दूसरे 3 आमलक तथा उसके ऊपर शिखर है। इस प्रकार प्रत्येक कोठरी की अपनी मंदिर रुपी सत्ता है।
- प्रत्येक मंदिर में एक योगिनी की मूर्ति थी। अब अधिकांश मूर्तियाँ उपलब्ध नहीं हैं।
- जनरल कनिंघम को सन् 1883-84 ई. की अध्ययन यात्रा में केवल तीन मूर्तियां प्राप्त हुई थीं, जिनमें सबसे बड़ी मूर्ति 3 फीट ऊंची और शेष दो में से प्रत्येक 2 फीट 3 इंच ऊंची थी।
- बड़ी मूर्ति की आठ भुजायें थीं और भैंसासुरी देवी की मूर्ति थी, जो महिषासुर का वध करते हुए दिखलाई गई थी।
- मूर्ति के पाद पीठ के लेख की लिपि एवं जिस सामग्री से मंदिर का निर्माण हुआ है उसके विवेचन से स्पष्ट है कि यह खजुराहो का सबसे प्राचीन मंदिर है। जनरल कनिंघम का अनुमान है कि चौंसठ योगिनी मंदिर का निर्माण चन्देल-राज्य की स्थापना के समय अथवा नवीं शताब्दी के प्रारम्भ में हुआ था।
मनिया देवी का मंदिर
- मनिया देवी चन्देलों की कुल देवी थीं। कनिंघम का अनुमान है कि मनिया देवी में भगवती पार्वती तथा गोडों में पूजित नग्नदेवी का सम्मिश्रण है।
- यह मंदिर केन नदी के तट पर स्थित मनिया गढ़ में ध्वंसावशेष के रुप में विद्यमान है। यह एक साधारण मंदिर है। इसमें खड्ग-धारिणी मनिया देवी की मूर्ति है।
- मंदिर के ध्वंसावशेष में बिना छत की कोठरी तथा अनेक मेहराब हैं।
- दौनी के जैन मंदिर की भांति इस मंदिर का गर्भगृह आयताकार है। मंदिर के निर्माण काल के सम्बन्ध में कोई साक्ष्य नहीं है। किन्तु यह सर्वमान्य है कि मनियादेवी चन्देलों की कुल देवी है। अस्तु, यह मन्दिर चन्देल-राज्य स्थापना के पूर्व अथवा उसी के आसपास बना होगा।
मैहर की शारदा देवी का मंदिर
- यह मंदिर मैहर में एक छोटी पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। इसकी दशा बड़ी जीर्ण है मुख्य मूर्ति एक छोटे टीले पर रक्खी हुई है और वहां तक पहुँचने के लिए सीढियां बनी हुई है। मंदिर के सहन में एक वृक्ष है, जिसके चारों ओर एक कच्ची दीवार है जिस पर अनेक टूटी-फूटी मूर्तियां रखी हुई हैं और सहस्रों यात्री उनकी पूजा करते हैं। मुख्य मूर्ति तक जानेवाली सीढियों के लिए पत्थर पर खजुराहो शिलालेख की भांति कुटिल लिपि में एक लेख है।
रसिन का चण्ड-माहेश्वरी मंदिर
- रसिन से एक मील पूर्व जंगल में एक पहाड़ी की चोटी पर यह मंदिर स्थित है। इसका मंडप 18 फीट 8 इंच लम्बा तथा 17 फीट 7 इंच चौड़ा है। यह दो ओर से खुला हुआ है। सामने की ओर 9 फीट लम्बा तथा 6 फीट चौड़ा एक छोटा बरामदा है। इसका गर्भगृह आठ फीट लम्बा तथा 7 फीट चौड़ा है, जिसमें 2 फीट ऊंची भगवती चण्ड-माहेश्वरी की चतुर्भुजी मूर्ति है। मंदिर के निकट ही एक तालाब है, जो चट्टान काटकर बनाया गया है। यह 80 फीट लम्बा तथा 50 फीट चौड़ा है।
चंदेल कालीन सूर्योपासना मंदिर
- बुन्देलखण्ड में सूर्योपासना का अधिक प्रचार न था। अस्तु, वहाँ सूर्य मंदिरों का नितान्त अभाव है। केवल खजुराहो में एक उल्लेखनीय सूर्य मंदिर है।
- खजुराहो का "छत्र को पत्र' मंदिर यह मंदिर शिवसागर के पश्चिम में स्थित है और "छत्र को पत्र' नाम से प्रसिद्ध है।
- यह 87 फीट लम्बा तथा 58 फीट चौड़ा है। इसका मूल प्रवेश द्वार गिर गया था, किन्तु मोटे गारे से उसका जीर्णोद्धार किया गया है। इसके महामण्डप की बनावट अन्य मंदिरों से भिन्न है।
- इसके किनारों को काटकर बीच के चार खम्भों के चारों ओर कष्टकोण बनाए गए हैं। इन खम्भों को सजावट छेनी से की गयी है और ऐसा प्रतीत होता है कि यह सजावट कारीगर की इच्छानुकूल पूर्ण नहीं हो सकी। मदिर के बाहर नींव के ऊपर मूर्तियों की तीन पंक्तियां हैं।
- यह सूर्य मंदिर है। गर्भगृह के मुख्यद्वार पर सूर्य की तीन मूर्तियां हैं। मंदिर के अन्दर 8 फीट ऊंचा एक विशाल मूर्तिपट है, जिसमें एक पुरुष के रुप में सूर्य की मूर्ति है। यह मूर्ति 5 फीट ऊंची है और उसके दोनों हाथों में कमल के पुष्प हैं।
- मूर्ति की पीठिका में उसके रथ के सप्ताश्वीं की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। इसके अतिरिक्त उसमें और भी छोटी-छोटी मूर्तियाँ हैं। जिनमें ब्रह्मा और सरस्वती, शिव और पार्वती तथा विष्णु और लक्ष्मी विशेष उल्लेखनीय हैं। राजगीर के चिह्मों तथा कुटिल वर्णों में यात्रियों के नामांकन से प्रतीत होता है कि इस मंदिर का निर्माण 10वीं अथवा 11वीं शताब्दी में हुआ था।
चंदेल कालीन जैन -मंदिर
- चन्देल-काल में हिन्दू-धर्म के बाद जैनमत का ही प्रबल प्रचार था। अस्तु, उस युग में वहां अनेक जैन मंदिरों का निर्माण हुआ, जो समस्त बुन्देलखण्ड में पाये जाते हैं, किन्तु खजुराहो में प्राप्त जैन मंदिर अधिक उल्लेखनीय है। अनेक विशाल मंदिरों को मुस्लिम विजेताओं ने मस्जिदों में परिवर्तित कर दिया था और अनेक मंदिर प्रकृति ने नष्ट कर दिये।
- जैन मंदिर अपनी बनावट में ब्राह्मण मंदिरों से भिन्न हैं। जैन मंदिरों में गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणापथ होता है। उनमें मंडप अन्तराल तथा गर्भगृह सब एक ही नाप के होते हैं। साधारण बनावट में जैन मंदिर के प्रत्येक अष्टकोण स्तम्भों में तीन दीवारगीरें होती हैं। इस प्रकार सभी जैन तीथर्ंकरों की मूर्ति रखने के लिए 24 दीवारगीरों का विधान जैन मंदिरों में होता है।
खजुराहों का घंटई मंदिर
- अब यह खुले हुए स्तम्भों का मन्दिर है जो 42 फीट साढ़े दस इंच लम्बा तथा 21 फीट साढ़े छः इंच चौड़ा है। किन्तु मंदिर के चारों ओर दीवारों के चिह्म पाये जाते हैं। मुख्य द्वार के मध्य में एक चतुर्भुजी देवी की मूर्ति है और उसके दोनों ओर एक नग्नपुरुष की छोटी प्रतिमा है।
- मंदिर के अंदर की बनावट तथा वहाँ की मूर्तिकला के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि यह जैन मंदिर है। इसमें आठ अष्टकोण स्तम्भ हैं, जिनकी ऊंचाई 14 फीट 6 इंच है और उनकी सजावट बड़ी सुन्दर है।
खजुराहो का पार्श्वनाथ मंदिर
- यह मंदिर बड़ी ही जीर्णशीर्ण अवस्था में है और मूल मंदिर का गर्भगृह मात्र शेष है। गर्भगृह के द्वार के बाईं ओर एक नग्न पुरुष की प्रतिमा तथा दाहिनी ओर एक नग्न नारी प्रतिमा है और मध्य में तीन बैठी हुई नारी मूर्तियां हैं।
- गर्भगृह के अन्दर 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की एक छोटी मूर्ति है।
- मंदिर का बाहरी भाग छोटी मूर्तियों की तीन पंक्तियों से अलंकृत है। यात्रियों के लेखों की लिपि से यह अनुमान है कि मूल मंदिर का निर्माण १०वीं तथा ११वीं शताब्दी में हुआ था।
खजुराहो का जिननाथ मंदिर
- यह खजुराहो समूह के जैन मंदिरों में सर्वाधिक विशाल एवं सुन्दर मंदिर है। इसकी लम्बाई 60 फीट तथा चौड़ाई 30 फीट है। सम्पूर्ण मंदिर का निर्माण विचित्र एवं आकर्षक है।
- मंदिर के भीतरी भाग में तीन कमरे, मंडप, अन्तराल तथा गर्भगृह हैं और इन तीनों के चारों ओर प्रदक्षिणा मार्ग है। मंदिर का बाहरी भाग अनेक उभरी हुई मूर्तियों से सुशोभित है और उसमें घंटई मंदिर की भाँति मूर्तियों की तीन पंक्तियाँ हैं।
- गर्भगृह के मुख्यद्वार पर एक बैठी हुई नग्नमूर्ति है और इसके दोनों ओर खड़ी हुई दो नग्न मूर्तियाँ हैं। इस मदिर के निर्माण काल का कोई अभिलेख नहीं है।
- किन्तु, विक्रमाब्द 1101 अथवा सन् 954 ई. के पहिले के लेख से जिसमें उसके दान में दिए हुए अनेक उद्यानों का विवरण है, स्पष्ट है कि इस मंदिर का निर्माण सन् 954 के पूर्व हुआ था।
खजुराहो का सेतनाथ मंदिर
- यह एक प्राचीन जैन मंदिर है, जिसका हाल ही में जीर्णोद्धार हुआ है। इस मंदिर की मुख्य प्रतिमा आदिनाथ की है, जो 14 फीट ऊंची है। यह विशाल मूर्ति सेतनाथ के नाम से विख्यात है। इस मूर्ति की पीठिका में विक्रमाब्द 1055 अथवा सन् 1028 ई. का अभलेख है।
खजुराहो का आदिनाथ मंदिर
- यह एक छोटा प्रचीन मंदिर है, जो आदिनाथ मंदिर कहलाता है। मंदिर के बाहर की ओर मूर्तियों की केवल एक पंक्ति है, जिनमें कुछ नारी प्रतिमाएँ भी हैं। इस मंदिर का अलंकरण बहुत साधारण है।
दौनी का जैन मंदिर
- बाहर से यह मंदिर आयताकार है और इसमें केवल मंडप तथा गर्भगृह है। मंदिर के अंदर शान्तिनाथ की मूर्ति है, जिसकी पीठिका में एक तिथियुक्त लेख है। इससे ज्ञात होता है कि यह मन्दिर 13वीं शताब्दी में बना था। इसका गर्भगृह छिन्न-भिन्न हो चुका है और मुख्य मूर्ति के दोनों ओर अन्य मूर्तियाँ भी हैं।
दुधई का जैन मंदिर
- इस मंदिर की निर्माण कला बड़ी विचित्र है। देखने में यह गुणा चिह्म (x) की भाँति है, जिसकी दो भुजाएँ मध्य में मिलती हैं। मध्य भाग में दो कमरे हैं जो एक दरवाजे से संयुक्त हैं। इस कारण इसमें पीछे वाली दीवार नहीं है, जहां मूर्ति रखी जा सके। इस मंदिर की लम्बाई 52 फीट तथा चौड़ाई 30 फीट है। ऊंचाई इसकी लम्बाई से भी अधिक है।
कुण्डलपुर का नेमिनाथ मंदिर
- हाटा के निकट ही कुण्डलपुर जैनियों का एक तीर्थ स्थान है। वहां बहोरी वन में एक पहाड़ी की चोटी पर कुछ जैन मंदिर हैं। मुख्य मंदिर में नेमिनाथ की एक विशाल मूर्ति है, मंदिर में पहुँचने के लिए सीढियां बनी हुई हैं। यह मंदिर बटियों के पत्थर तथा गारे से बना हुआ है। मोटी पुताई के कारण दीवारों पर उत्कीर्ण मूर्तियों के सम्बन्ध में कोई प्रकाश नहीं पड़ता है।
मदनपुर का जैन मंदिर
- मदनपुर में तीन प्राचीन मंदिर हैं जो छिन्न-भिन्न दशा में हैं। इसमें मुख्य जैन मंदिर 30 फीट 8 इंच लम्बा तथा 14 फीच 2 इंच चौड़ा है। इसमें दो अन्तराल हैं।
- गर्भगृह अन्दर से 8 फीट लम्बा तथा 8 फीट चौड़ा है। उसमें एक नग्नमूर्ति है और उसकी पीठिका में विक्रमाब्द 1212 अथवा सन् 1155 ई. का एक लेख है। निकट ही एक अन्य जैन मंदिर है, जिसमें पांच जैन मूर्तियां हैं और उनमें से तीन मूर्तियाँ क्रमश- आदिनाथ, तारा तथा शंभुनाथ की हैं।
चांदपुर का जैन मंदिर
- चांदपुर में भी अनेक जैन मंदिरों के चिह्म पाये जाते हैं किन्तु वे सभी अब नष्ट हो चुके हैं। एक छोटे कमरे में एक विशाल नग्न मूर्ति रखी है और उसकी चहारदीवारी में असंख्य जैन मूर्तियाँ हैं।
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