नागरिक समाज (सिविल सोसायटी) और राज्य | Civil Society and the State GK in Hindi

  
नागरिक समाज (सिविल सोसायटी) और राज्य
Civil Society and the State GK in Hindi
नागरिक समाज (सिविल सोसायटी) और राज्य Civil Society and the State GK in Hindi


 

नागरिक समाज (सिविल सोसायटी) और राज्य

  • राजनीतिक सिद्धान्त में दो ऐसी प्रवृतियाँ रही हैं जिन्होंने राज्य और नागरिक समाज के सम्बंधों को धुँधला बना दिया है। 


  • एक ऐसी प्रवृति रही है कि सभी वस्तुओं के केन्द्र में राज्य को रखा गया है। राजनीति के श्रेष्ठ सैद्धान्तिकरण के दिनों से ही राज्य केन्द्रित दृष्टिकोण के अंतर्गत राज्य को अनावश्यक रूप से अधिक प्रमुखता प्रदान की गई है और राज्य को एक विशेष प्रकार का संस्थागत प्रबंध माना गया है जो समाज के व्यक्तियों की क्षमताओं के विकास तथा अच्छे जीवन की पूर्णता को संभव बना देता है। 


  • इसके विपरीत दूसरी प्रवृति के अन्तर्गत पृष्ठभूमि में पहुँचा देने और व्यक्तिगत उद्गम के प्रोत्साहन के लिए अनियंत्रित बाजार की लगाम थमा दी जाती हैनिजी सम्पत्ति की पहले से ही प्रमुखता तथा अनियंत्रित प्रतिस्पर्धा ला दी जाती है। राज्य की ओर वापसी को नव-उदारवादी परियोजना और बाजार के प्रभुत्त्व को अनुमति देने वाली परियोजना के नागरिक समाज को सुविधा देना अपना उद्देश्य रखा है जो कि राज्य केन्द्रित दृष्टिकोण के विपरीत है।


  • समाज के नियामक के रूप में राजनीतिक प्रथा की सीमाओं को निर्धारित करना चाहता है बदले में नागरिक समाज नागरिकों तथा व्यक्तियों द्वारा न्यायिक रूप से परिभाषित तथा अधिकारों से युक्त व्यक्तियों द्वारा निर्धारित क्षेत्रों की ओर ले जाता है। 


  • राजनीति के खुले प्रचार तथा इसके कार्य के लिए उत्तरदायी राज्य को धारण करने के लिए राजनीतिक भागीदारी नागरिक समाज का प्रमुख लक्ष्य है। चंडोक के शब्दों में राजनीति का आवश्यक तत्य हैबातचीत तथा राज्य के साथ संघर्ष। इसलिए "नागरिक समाज ऐसे तार्किक प्रवचन के उत्पादन की स्थली बन जाता है।" " उस स्थल को रखो जहाँ राज्य के साथ समाज एक सम्बंध में प्रवेश करता है उसे नागरिक समाज के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। मुक्त संप्रेषण तथा प्रचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा संघों के गठन के अधिकार की विशेषताओं से युक्त नागरिक समाज का लोकतान्त्रिक सिद्धान्त में एक गौरवपूर्ण स्थान है। 


  • कोई राज्य लोकतान्त्रिक है या सर्वहारा उसकी प्रकृति के बारे में नागरिक समाज की राजनीति से सम्बंध जोड़कर ही समझा जा सकता है। पुनः नागरिक समाज का प्रभावकारी कार्य (जैसा कि नियंत्रण कार्य से अन्तर समझा जा सकता है) उसके लोकतान्त्रिक स्वरूप पर निर्भर करता है। 


  • लोकतान्त्रिक सिद्धान्त ने नागरिक समाज के महत्व को लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए एक पूर्व शर्त के रूप में माना है। चण्डोक के सुन्दर स्पष्टीकरण का अनुसरण करते हुए अब यह कहा जा सकता है कि राज्य की प्रकृति को नागरिक समाज की राजनीति से जोड़कर समझा जा सकता है। दोनों ही परस्पर एक बंधन से बंधे हुए हैं "नागरिक समाज के सिद्धान्त के बगैर राज्य का कोई सिद्धान्त नहीं हो सकता और इसी के अनुसार राज्य के सिद्धान्त के बिना नागरिक समाज का कोई सिद्धान्त नहीं हो सकता।

 

राज्य नागरिक समाज संबंध: विकासवादी परिप्रेक्ष्य

 

  • राजनीतिक विचार का इतिहास वास्तव में राज्य नागरिक समाज सम्बंध का इतिहास है जैसा कि अनेक राजनीतिक दार्शनिकों ने स्पष्ट किया है। इससे पहले की हम प्रमुख विचारकों के योगदान के बारे में विचार करें सामान्य जानकारी के लिए आइए अपने विचारों की प्रगति के बारे में संक्षेप में विवेचना करें। 


'सिविल सोसाइटीअर्थात नागरिक समाज शब्द की उत्पत्ति

  • 'सिविल सोसाइटीअर्थात नागरिक समाज शब्द की उत्पत्ति प्राचीन ग्रीक (यूनान) राजनीतिक विचारों से हुई और जिनका उल्लेख सिसरो तथा अन्य रोमन विचारकों की कृतियों में मिला। परन्तु नागरिक समाज की राज्य के साथ समानता व्यक्त की गई आधुनिक रूप से नागरिक समाज (सिविल सोसाइटी) 18वीं शताब्दी के स्काटिश एण्ड कॉटिनेन्टल एनलाइटेनमेन्ट में उभरा। 


  • थॉमस पेन से लेकर हेजेल तक अनेक राजनीतिक सिद्धान्तवादियों ने नागरिक समाज की अवधारणा करते हुए इसे राज्य से अलग किन्तु उसके समानान्तर माना उनके विचार में यही ऐसा क्षेत्र है जहाँ नागरिक अपनी इच्छाओं तथा आकांक्षाओं के साथ सम्बंध कर सकते हैं यह नया विचार उन नई आर्थिक वास्तविकताओं का प्रतिबिंब नहीं था जो निजी सम्पत्ति बाजार प्रतिस्पर्द्धा तथा बुर्जुआ वर्ग यानि मध्यमवर्गीय अभ्युदय के परिणामस्वरूप परिलक्षित हुआ। स्वतंत्रता के लिए माँग दिनों दिन बढ़ती ही जा रही थी जैसा कि अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रान्तियों में देखने को मिला।

 

  • 19वीं शताब्दी के मध्य में नागरिक समाज के विचार को ग्रहण जैसा लगा क्योंकि औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक और आर्थिक परिणामों ने सर्वाधिक ध्यान आकृष्ट किया। 


  • द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् एन्टोनियो ग्रामस्की ने नागरिक समाज के विचारों का पुनर्जीवित किया और नागरिक समाज को स्वतंत्र राजनीतिक कार्यकलाप का विशेष केन्द्र और क्रूरता के खिलाफ संघर्ष के क्षेत्र के रूप में उसका वर्णन किया। तत्कालीन सोवियत संघ के साम्यवादी राज्यों तथा पूर्वी यूरोप में सामाजिक जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में उनके नियंत्रण का विस्तार हो गया। साम्यवादी राज्यों के ध्वस्त होने के बाद राज्य के नियंत्रण क्षेत्रों पर प्रश्न पूछे जाने लगे वास्तव में चेक हंगरियाई और पोलैण्ड के क्रान्तिकारियों ने नागरिक समाज का नारा बुलंद किया। उनके विचार में राज्य की वैधानिक संस्था के बाहर नागरिक समाज (चर्च) की संस्थाओं को फलने-फूलने की माँग की।

 

  • सोवियत प्रणाली के विघटन और पूर्वी ब्लाक के खंडित होने से विश्व भर में लोकतंत्र के लिए तथा लोकतंत्र की ओर अग्रसर होने के लिए अभूतपूर्व गतिविधियाँ चलाई जाने लगी। नागरिक समाज ने गैर राज्य संगठनों के संगठित होने की पहल को उत्तर साम्यवाद प्रशासन की स्थितियों तथा विकसित पश्चिमी देशों जहाँ "पूंजीवादी आणवीकरण” दोनों ही वांछनीय सामाजिक पहल के रूप में उभरेबड़ी जल्दी ही अस्वीकार्य हो गए थे। परम्परागत पार्टी प्रणालियों से थककर बहुत जल्दी ही लोगों ने अपनी दिलचस्पी बढ़ा ली और नए सामाजिक आंदोलनों (महिलावादीपर्यावरण आन्दोलन) ने राज्य के नागरिक समाज पहल के लिए अवसरों के द्वार खोल दिए।

 

नागरिक समाज (सिविल सोयसायटी) विषय सूची- 





सिविल सोसाइटी (नागरिक समाज) का अर्थ , प्रकृति और परिभाषा 

लोकतंत्र और नागरिक समाज  (सिविल सोसायटी)

नागरिक समाज (सिविल सोसायटी) और राज्य 

नागरिक समाज (सिविल सोसायटी) अवधारणीकरण- प्रमुख अंशदाता

श्रेष्ठ राजनीतिक अर्थशास्त्री 

हेजलः नागरिक समाज (सिविल सोसायटी) और राज्य

नागरिक समाज (सिविल सोसायटी) के बारे में मार्क्स के विचार 

नागरिक समाज (सिविल सोसायटी) के बारे में ग्रामस्की के विचार 

नागरिक समाज विवेचना की समसामयिक सार्थकता




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