क्षतिपूरक राजकोषीय नीति |Compensatory Fiscal Policy in Hindi
क्षतिपूरक राजकोषीय नीति (Compensatory Fiscal Policy)
2. क्षतिपूरक राजकोषीय नीति (Compensatory Fiscal Policy)
- क्षतिपूरक राजकोषीय नीति का लक्ष्य, सार्वजनिक व्ययों तथा करों का जोड़-तोड़ करके, स्फीति तथा अवस्फीति के प्रति चिरकालिक प्रवृत्तियों के विरुद्ध अर्थव्यवस्था की क्षतिपूर्ति करना है। इसलिए इसके लिए आवश्यक हो जाता है कि किसी निश्चित समय पर सदा के लिए उपायों की बजाय दीर्घकाल पर्यंत राजकोषीय उपाय अपनाएँ जाएँ। जब अर्थव्यवस्था में अवस्फीतिकारी प्रवृत्तियाँ हों तो सरकार को चाहिए कि घाटे के बजट तथा करो में कमी के माध्यम से अपने व्यय घटाए। निजी निवेश में कमी की क्षतिपूर्ति के लिए तथा अर्थव्यवस्था के भीतर प्रभावी माँग, रोजगार, उत्पादन और आय बढ़ाने के लिए ऐसा करना आवश्यक है। दूसरी ओर, जब स्फीतिकारी प्रवृत्तियाँ हो तो सरकार को चाहिए कि बचत का बजट बनाकर और करों को बढ़ाकर अपने व्यय घटाए ताकि पूर्ण रोजगार स्तर पर अर्थव्यवस्था स्थिर बनाई जा सके।
क्षतिपूरक राजकोषीय नीति के दो मार्ग हैं:
(i) आभ्यंतरिक स्थिरीकारक (Built-in-Stabilisers); और
(ii) स्वनिर्णयात्मक कार्य (discretionary action)।
(1) आभ्यंतरिक स्थिरीकारक (Built-in Stabilisers) -
- आभ्यंतरिक या स्थिरीकारक का अर्थ होता है सरकार की ओर से किसी योजना के बिना अर्थव्यवस्था के भीतर चक्रीय उतार-चढ़ावों की प्रतिक्रिया में व्ययों तथा करों का अपने आप समायोजन होना। इस व्यवस्था के अंतर्गत बजट में अपने आप परिवर्तन होते हैं, इसलिए इसे स्वचालित स्थिरीकरण की तकनीक भी कहा जाता है।
विविध स्वचालित (automatic) स्थिरीकारक ये हैं-
- निगमित लाभ कर, आय कर, उत्पादन कर, वृद्धावस्था (survivors) तथा बेरोजगारी बीमा और बेरोजगारी राहत भुगतान स्वचालित स्थिरीकरण के साधनों के रूप में कर तथा व्यय राष्ट्रीय आय से संबंध हैं। कर दरों का अपरिवर्तित ढांचा दिया होने पर कर प्राप्तियाँ, राष्ट्रीय आय में गतियों के साथ, सीधे तौर से परिवर्तित करती हैं, जबकि सरकारी व्यय राष्ट्रीय आय में परिवर्तनों के साथ उलट तौर से बदलते हैं। व्यापार-चक्र की अधोगामी अवस्था (downward phase) में जब राष्ट्रीय आय गिरती है तो कर, जो राष्ट्रीय आय की प्रतिशतता पर आधारित हैं अपने आप घट जाते हैं और परिणामस्वरूप कर आय कम हो जाती है। इसके साथ, बेरोजगारी राहत तथा सामाजिक सुरक्षा हितों पर सरकारी व्यय अपने आप बढ़ जाते हैं। बजट में अपने आप घाटा होगा, जो अवस्फीतिकारी प्रवृत्तियों की रोकथाम करेगा।
- दूसरी ओर, व्यापार-चक्र की ऊर्ध्वगामी अवस्था (upward phase) में जब राष्ट्रीय आय तेजी से बढ़ती है, तो कर दरों में वृद्धि होने पर कर प्राप्ति अपने आप बढ़ जाएगी। साथ ही साथ, बेरोजगारी राहत तथा सामाजिक सुरक्षा हितों पर सरकारी व्यय अपने आप घट जाएँगे। ये दोनों शक्तियाँ अपने आप बचत का बजट निर्मित करेंगी और इस प्रकार स्फीतिकारी प्रवृत्तियाँ अपने आप नियंत्रित हो जाएँगी।
राजकोषीय उपाय के रूप में आभ्यंतरिक स्थिरीकारकों के लाभ
- राजकोषीय उपाय के रूप में आभ्यंतरिक स्थिरीकारकों के कई लाभ हैं। प्रथम, जब निजी क्रय शक्ति गिरती हैं तो आभ्यंतरिक स्थिरक उसके लिए गद्दे का काम करते हैं और अवस्फीतिकारी अवधि के दौरान लोगों की कठिनाइयों को कम करते हैं। दूसरे, वे राष्ट्र आय तथा उपभोग व्यय को नीचे स्तर पर गिरने से रोकते हैं। तीसरे, इस उपाय में बजटीय परिवर्तन स्वचालित होते रहते हैं और प्रशासनिक निर्णय लेने में देर नहीं होती। चौथे राजकोषीय उपायों के गलत पूर्वानुमान तथा समय की गलतियों को स्वचालित स्थिरक न्यूनतम बना देते हैं। अंतिम, वे अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन राजकोषीय नीतियों का एकीकरण करते हैं।
राजकोषीय उपाय के रूप में आभ्यंतरिक स्थिरीकारकों की सीमाएँ (Limitations)
- पर स्वचालित क्षतिपूरक उपाय के रूप में आभ्यंतरिक स्थिरीकारक की प्रभावशीलता कर प्राप्तियों की लोच करों के स्तर तथा सार्जजनिक व्ययों के लचीलेपन पर निर्भर करती है। कर प्राप्तियों की लोच जितनी अधिक होगी, स्फीतिकारी तथा अवस्फीतिकारी प्रवृत्तियों को नियंत्रित करने में स्वचालित स्थिरक उतने ही अधिक प्रभावशाली होंगे। परंतु कर प्राप्तियों की लोच इतनी अधिक नहीं होती कि अमरीका जैसे उन्नत देशों में भी यह स्वचालित स्थिर का काम कर सके दूसरे, जब करों का स्तर नीचा हो तो अधोगति (downswing) के दौरान स्वचालित स्थिरक के रूप में कर प्राप्तियों की ऊँची लोच भी बहुत महत्व नहीं रखती।
- तीसरे, आभ्यंतरिक स्थिरीकारक कर देने के बाद, व्यापार आय स्थिरकों के और व्यापार प्रत्याशाओं पर उपभोग व्यय के द्वितीयक प्रभावों पर नहीं विचार करते हैं। चौथे, यह उपाय स्थानीय निकायों, राज्य सरकारों तथा अर्थव्यवस्था के निजी क्षेत्र के स्थिरीकारी प्रभाव के संबंध में मौन रहती। पाँचवें, वे व्यापार-चक्रों को समाप्त नहीं कर सकते हैं। वे केवल उनकी उग्रता को कम कर सकते हैं। छठे, उनके सुस्ती से पुनरुत्थान (recovery) के दौरान प्रभाव अनुकूल नहीं होते हैं। इसलिए अर्थशास्त्रियों ने सुझाव दिया है कि राजकोषीय नीति की स्वनिर्णयात्मक राजकोषीय नीति से आभ्यंतरिक स्थिरकों को अनुपूर्ति की जाए।
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