राजकोषीय नीति क्या है |राजकोषीय नीति का अर्थ क्या है? |प्रति चक्रीय राजकोषीय नीति |Contra-cyclical Fiscal Policy
राजकोषीय नीति (Fiscal
Policy) राजकोषीय नीति क्या है
राजकोषीय नीति का अर्थ क्या है?
राजकोषीय नीति से अभिप्राय स्थिरीकरण या वृद्धि के लिए सरकार द्वारा कराधान और सार्वजनिक व्यय का प्रयोग है।
" राजकोषीय नीति से हम सरकार के उन कार्यों का उल्लेख करते हैं जो सरकार की प्राप्तियों तथा व्ययों को प्रभावित करते हैं जिन्हें हम सामान्य रूप से सरकार की शुद्ध प्राप्तियाँ, उसके आधिक्य अथवा घाटे द्वारा मापित मान लेते हैं।" " (By fiscal policy we refer to government actions affecting its receipts and expenditures which we ordinarily take as measured by the government's net receipts, its surplus or deficit)" निजी उपभोग तथा निवेश में अवांछनीय (undesirable) परिवर्तनों को सरकार सार्वजनिक व्ययों तथा करों के प्रति चक्रीय - (anti-cyclical) परिवर्तनों द्वारा संतुलित कर सकती है। आर्थर स्मिथीज ने राजकोषीय नीति को इस प्रकार परिभाषित किया है, "यह ऐसी नीति है जिसके अंतर्गत सरकार अपने व्यय तथा राजस्व कार्यक्रमों को राष्ट्रीय आय उत्पादन तथा रोजगार पर अपेक्षित प्रभाव उत्पन्न करने और अनपेक्षित प्रभाव रोकने के लिए प्रयोग करती है।" (A policy under which the government uses its expenditure and revenue programmes to produce desirable effects and avoid undesirable effects on the national income, production and employment.) यद्यपि राजकोषीय नीति का अंतिम लक्ष्य अर्थव्यवस्था का दीर्घकालीन स्थिरीकरण है, फिर भी यह लक्ष्य केवल अल्पकालीन आर्थिक उतार-चढ़ावों को संभालने से ही पूरा हो सकता है। इस प्रसंग में ओट्टो एक्स्टीन ने राजकोषीय नीति को यों परिभाषित किया है कि यह "करों तथा व्ययों में परिवर्तन है जिनका लक्ष्य पूर्ण रोजगार तथा कीमत स्तर 44 - स्थिरता के अल्पकालीन उद्देश्यों को पूरा करना है। "
(This refers to "changes in
taxes and expenditures which aim at shortrun goals of full employment and
price-level stability.")
राजकोषीय नीति के उद्देश्य (Objectives of Fiscal Policy)
राजकोषीय नीति के निम्न उद्देश्य हैं-
1. पूर्ण रोजगार प्राप्त और कायम करना ।
2. कीमत स्तर को स्थिर करना।
3. अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को स्थिर करना।
4. भुगतान शेष में संतुलन कायम करना ।
5. अल्पविकसित देशों के आर्थिक विकास को
बढ़ाना।
राजकोषीय नीति के उपकरण क्या है ?
3. राजकोषीय नीति के औजार (Instruments
of Fiscal Policy)
सरकारी व्यय तथा कराधान में परिवर्तन के माध्यम
से राजकोषीय नीति प्रबलरूप से राष्ट्रीय आय, रोजगार, उत्पादन तथा कीमतों को प्रभावित करती
है। मंदी के दौरान सार्वजनिक व्यय में वृद्धि वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए कुल माँग
को बढ़ाती हैं और गुणक प्रक्रिया के मार्ग से आय में बड़ी वृद्धि करती है, जबकि करों में कमी का प्रभाव यह होता
है कि प्रयोज्य आय बढ़ती है जिसके परिणामस्वरूप लोगों के उपभोग तथा निवेश व्यय बढ़
जाते हैं। दूसरी ओर, स्फीति के दौरान सार्वजनिक व्यय में होने वाली कमी कुल माँग
राष्ट्रीय आय, रोजगार, उत्पादन तथा कीमतों को घटा देती है, जबकि करों में वृद्धि प्रयोज्य (disposable)
आय को घटाती है
और परिणामस्वरूप उपभोग तथा निवेश व्ययों को कम कर देती है। इस प्रकार व्यय तथा
कराधान कार्यक्रमों के युक्तियुक्त संयोग द्वारा सरकार अर्थव्यवस्था में
अवस्फीतिकारी तथा स्फीतिकारी दबावों को नियंत्रित कर सकती है। अब हम रोजकोषीय नीति
के विविध साधनों की चर्चा करेंगे।
रोजकोषीय नीति के साधन
1. बजट नीति (Budgetary Policy)
प्रति चक्रीय राजकोषीय नीति (Contra-cyclical Fiscal Policy)
बजट
राजकोषीय नीति का एक प्रमुख साधन है। बजट नीति सरकार की प्राप्तियों तथा व्ययों के
परिमाण तथा संबंध पर नियंत्रण करती है। हम आगे उन सामान्य बजट नीतियों की चर्चा
करते हैं, जो
अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाने के लिए अपनाई जा सकती हैं
(i) बजट घाटा (Budget Deficit)
- मंदी में राजकोषीय नीति (Fiscal Policy under Depression) घाटे का बजट मंदी पर काबू पाने का महत्त्वपूर्ण उपाय है। जब सरकारी व्यय उसकी प्राप्तियों से बढ़ जाता है तो राष्ट्रीय आय की धारा में उनसे अधिक मात्राएँ डाली जाती हैं जितनी कि उससे निकाली जाती हैं। घाटा सरकार के शुद्ध (net) व्यय को व्यक्त करता है, जो राष्ट्रीय आय को शुद्ध व्यय का गुणक गुणा (multiplier times) बढ़ाती है।
- यदि MPC2/3 है तो गुणक 3 होगा और यदि सरकारी व्यय में 100 करोड़ रु. की शुद्ध वृद्धि होती है, तो वह राष्ट्रीय आय को बढ़ाकर 300 करोड़ रु. (100X3) पर पहुँचा देगी।
B |
- इस प्रकार बजट घाटा कुल माँग पर विस्तारक प्रभाव (expansionary effect) डालता है, भले ही राजकोषीय प्रक्रिया से सीमांत प्रवृत्तियाँ अपरिवर्तित अथवा प्रयोज्य प्राप्तियों का पुनर्वितरण हो बजट का विस्तारक प्रभाव चित्र B में आरेखीय रूप से दिखाया गया है।C उपभोग फलन है। C+I+ G, बजट प्रस्तुत करने से पहले उपभोग, निवेश तथा सरकारी व्यय (कुल व्यय फलन) को व्यक्त करता है।
- मान लीजिए कि अर्थव्यवस्था में सरकारी व्यय G बढ़ाया जाता है। परिणामस्वरूप कुल व्यय फलन ऊपर की ओर सरक कर C +I+ G' पर पहुँच जाता है। आय OY से बढ़कर OY1 हो जाती है, जबकि संतुलन स्थिति E से E1 पर चली जाती है।
- सरकारी व्यय में वृद्धि E 1B ( ΔG) की अपेक्षा आय में वृद्धि YY1+ EA= E1 A अधिक है BA (E1A- E1B) उपभोग में वृद्धि को व्यक्त करता है। इस प्रकार बजट घाटा हमेशा विस्तारक होता है क्योंकि वास्तविक सरकारी व्यय को मात्रा की अपेक्षा राष्ट्रीय आय में अधिक वृद्धि होती है। बजट घाटे के इस तरीके में करों को ज्यों-का-त्यों रखा जाता है।
C |
- बजट घाटा करों में कमी करके और बिना सरकारी व्यय में कमी किए भी प्राप्त किया जा सकता है। करों में कमी लोगों के हाथों में अपेक्षाकृत अधिक प्रयोज्य आय छोड़ देती हैं और इस प्रकार बढ़े हुए उपभोग व्यय को प्रेरित करती है। इसके परिणामस्वरूप आगे कुल माँग, उत्पादन आय तथा रोजगार में वृद्धि करती है। इसे चित्र B में स्पष्ट किया गया है, जहाँ C मूल उपभोग फलन है। मान लीजिए कि कर में ET मात्रा घटा दी जाती है। इससे उपभोग फलन ऊपर की ओर सरक C पर पहुँच जाएगा और OY से बढ़कर आय OY1 हो जाएगी। पर, करों में कमी बढ़े हुए उपभोग व्यय के मार्ग से बहुत विस्तारक नहीं होती, क्योंकि हो सकता है कि कर राहत को उपभोग पर न व्यय किए जाए और उसे बचा लिया जाए।
- यदि व्यापार प्रत्याशाएँ नीची हों, तो हो सकता है कि व्यापारी भी अधिक निवेश न करें। इस तरह के खतरों से बचने के लिए सरकार को चाहिए कि वह करों में कमी के साथ बढ़े हुए सरकारी व्यय की नीति का अनुसरण करे। इसका गुणक प्रभाव उस अवस्था में कहीं अधिक होगा, जब हम यह भी मान लें कि कर राहत के कारण कुछ उपभोग तथा निवेश व्यय भी बढ़ते हैं।
(ii) बचत का बजट (Surplus budget)-
- तेजी में राजकोषीय नीति (Fiscal policy under boom) बजट में बचत तब होती है, जब सरकारी व्यय राजस्व से बढ़ जाते हैं। अर्थव्यवस्था के भीतर स्फीतिकारी दबावों पर नियंत्रण करने के लिए बचत के बजट की नीति का अनुसरण किया जाता है। यह कराधान में वृद्धि अथवा सरकारी व्यय में कमी करने अथवा दोनों के माध्यम से हो सकता हैं। इससे आय तथा कुल माँग में कमी होगी, जो (कमी) कि बढ़े हुए करों के परिणामस्वरूप सरकारी अथवा / तथा निजी उपभोग व्यय में कमी का गुणक गुण (multiplier times) के बराबरी होगी।
इसे चित्र C की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है जहाँ अर्थव्यवस्था E1 पर प्रारंभिक संतुलन स्थिति में है। मान लीजिए कि सरकारी व्यय में ΔG मात्रा में कमी हो जाती है जिससे कुल व्यय फलन नीचे की ओर सरक कर C+I+G पर आ जाता है। जब E1 नई संतुलन स्थिति है जो बताती है कि सरकारी व्यय में E1 B की कमी हो जाने के परिणामस्वरूप आय OY, से गिरकर OY1 हो गई है।
(iii संतुलित बजट गुणक (Balanced Budget Multiplier)
- एक अन्य विस्तारवादी राजकोषीय नीति है- संतुलित बजट। इस नीति में करों में वृद्धि तथा सरकारी व्यय में वृद्धि की मात्रा समान होती है। इसका परिणाम यह होता है कि शुद्ध राष्ट्रीय आय बढ़ती है। इसका कारण यह है कि कर लगाने के कारण उपभोग में कमी सरकारी व्यय के बराबर नहीं होती है।
प्रति चक्रीय राजकोषीय नीति
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