विकेन्द्रीकरण का अर्थ परिभाषा उद्देश्य सिद्धान्त | विकेन्द्रीकृत व्यवस्था के लाभ | Decentralization GK in Hindi
विकेन्द्रीकरण का अर्थ परिभाषा उद्देश्य सिद्धान्त
विकेन्द्रीकरण का अर्थ
- आज प्रशासनिक संगठन का सम्पूर्ण कार्य एक व्यक्ति द्वारा सम्पादित नहीं किया जा सकता है, अपितु संगठन के विभिन्न व्यक्तियों को सौंप दिये जाते हैं। इस प्रकार संगठन में केन्द्रीकरण के स्थान पर विकेन्द्रीकरण की अवधारणा जन्म लेती है।
- यह एक ऐसी व्यवस्था होती है, जिसके अन्तर्गत सभी अधिकार किसी विशिष्ट व्यक्ति या पद के पास एकत्रित न कर उन व्यक्तियों को प्रत्यायोजित कर दिये जाते हैं, जिनसे यह सम्बन्धित होते हैं। संगठन में विकन्द्रीकरण की मात्रा जितनी अधिक होगी उतनी ही अधिक अधीनस्थों की संख्या पर नियंत्रण किया जाना सम्भव हो सकेगा।
विकेन्द्रीकरण की परिभाषा
लुइस ए0 ऐलन के शब्दों में, विकेन्द्रीकरण विकेन्द्रीकरण की परिभाषा
- विकेन्द्रीकरण से आशय केवल केन्द्रीय बिन्दुओं पर ही प्रयोग किये जाने वाले अधिकारों के अतिरिक्त सभी अधिकारों को व्यवस्थित रूप से निम्न स्तरों को सौंपने से है। विकेन्द्रीकरण का सम्बन्ध उत्तर दायित्व के सन्दर्भ में अधिकार प्रदान करने से है।
कुण्ट्ज एवं ओ0 डोनेल के अनुसार विकेन्द्रीकरण की परिभाषा
- अधिकार सत्ता का विकेन्द्रीकरण प्रत्यायोजन का प्राथमिक पहलू है तथा जिस सीमा तक अधिकारों का प्रत्यायोजन नहीं होता है वे केन्द्रित हो जाते हैं।
हेनरी फेयोल के शब्दों में विकेन्द्रीकरण की परिभाषा
- अधीनस्थ वर्ग की भूमिका के महत्व को बढ़ाने के लिये जो भी कदम उठाये जाये, वे सब विकेन्द्रीकरण के अन्तर्गत आते हैं।
विकेन्द्रीकरण की विशेषताएँ
उपर्युक्त परिभाषाओं के विश्लेषणात्मक अध्ययन के आधार पर कहा जा सकता है कि विकेन्द्रीकरण एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें अधीनस्थों का महत्व बढ़ता है। निर्णयन प्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा बनते हैं। इसकी कुछ महत्वपूर्ण विशेषताओं को समझने का प्रयास करें
- उच्च अधिकारी का ध्यान बड़े कार्यों पर केन्द्रित होता है।
- युवा अधिकारियों को स्वतंत्र निर्णय लेने का अवसर मिलता है।
- समन्वय की भावना का प्रसार होता है।
- विकेन्द्रीकरण में विविधीकरण आसान हो जाता है।
- योग्य प्रबन्धक व कर्मचारी संस्था की ओर आकर्षित होते हैं।
- निम्न स्तर के प्रबन्धकों को कार्यभार सुपुर्द किए जाने के कारण उनमें प्रबन्धकीय क्षमता विकसित होती
- निर्णय लेने में सुविधा व शीघ्रता होती है।
विकेन्द्रीकरण के महत्वपूर्ण उद्देश्य
उपरोक्त विशेषताओं के सन्दर्भ में लोक प्रशासन के विचारकों ने विकेन्द्रीकरण के कुछ महत्वपूर्ण उद्देश्यों की स्थापना की है। इन्हें क्रमबद्ध कर विश्लेषित करने का प्रयास करें
उच्च प्रबन्धकों का कार्यभार कम करना
- यदि संगठन में सभी छोटे-बड़े कार्यों पर निर्णय उच्च अधिकारियों को ही करना होगा, तो ऐसी स्थिति में उनका कार्यभार तो बढ़ेगा ही साथ ही ऐसा भी हो सकता है कि महत्वपूर्ण कार्यों या योजनाओं के सम्बन्ध में वे सुव्यवस्थित निर्णय न कर सकें। ऐसी स्थिति में विकेन्द्रीकरण अत्यन्त आवश्यक हो जाता है।
अधीनस्थों का विकास करना
- सहायक अधिकारियों की योग्यता, कार्यकुशलता, अनुभवों, तकनीकियों आदि को परखने तथा विकसित करने के लिए विकेन्द्रीकरण अत्यन्त आवश्यक है। इस प्रकार इनका सही उपयोग एवं उत्तर दायित्व निर्धारित किया जाता है।
प्रतिस्पर्धा का सामना करना
- आज की गलाकाट प्रतिस्पर्धा के युग में जहाँ तुरन्त निर्णय लेने की आवश्यकता होती है, ऐसी स्थिति में केन्द्रीकरण के ऊपर पूर्णरूप से निर्भर नहीं रहा जा सकता है। विकेन्द्रीकरण निर्णय को सरल, प्रभावी एवं मितव्ययी बनाता है।
विविधीकरण की सुविधा के लिए
- यदि किसी संगठन के पास कार्यों की विविधता है तो उसे विकेन्द्रीकरण के सिद्धान्तों पर आधारित विभागीकरण को अपनाना आवश्यक होगा। इस प्रकार विभागीकरण, विकेन्द्रीकरण अवधारणा के अन्तर्गत ही अस्तित्व में लाया जा सकता है।
विकेन्द्रीकरण के सिद्धान्त
भारतीय गणराज्य जहाँ संवैधनिक व्यवस्था का मूल आधार लोककल्याण है। सभी राज्यों और केन्द्र प्रशासन में विकेन्द्रीकृत व्यवस्था क्रियान्वित है। किन्तु ये व्यवस्था कुछ निश्चित सिद्धान्तों के आधार पर क्रमशः आगे बढ़ती है। लोक प्रशासन में राल्फ जे0 कार्डीनर ने विकेन्द्रीकरण के निम्नलिखित सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। इन्हें समझने का प्रयास करें
- विकेन्द्रीकरण से सम्बन्धित निर्णय लेने का अधिकार सदैव उच्च प्रबन्ध को दिया जाना चाहिए।
- अधीनस्थों में निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए, तभी इसे क्रियान्वित करना चाहिए।
- विकेन्द्रीकरण व्यवस्था को क्रियान्वित करने के लिए अधिकारों का प्रत्यायोजन किया जाना चाहिए। अधीनस्थों को अधिकारों के साथ-साथ उत्तर दायित्व भी उचित मात्रा में सौंपे जाने चाहिए।
- विकेन्द्रीकरण के लिए ऐसी आपसी साझेदारी का होना आवश्यक है, जिसमें स्टाफ का प्रमुख कार्य अनुभवी लोगों के माध्यम से कर्मचारियों को सहायता एवं परामर्श प्रदान करना होता है, ताकि कर्मचारी स्वतंत्रता पूर्वक निर्णय ले सकें और यदि आवश्यकता हो तो उसमें सुधार कर सकें।
- विकेन्द्रीकरण इस मान्यता पर आधारित है कि एक व्यक्ति द्वारा लिये गये निर्णय की तुलना में, सामूहिक रूप से लिये गये निर्णय व्यवसाय में अधिक श्रेष्ठ होते हैं।
- इसमें निर्णय लेते समय अधिकतम ज्ञान व अनुकूलतम साझेदारी से काम लेना चाहिये अन्यथा विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था सफल नहीं होगी।
- इसके लिये सेवीवर्गीय नीतियाँ प्रामाणिक आधार पर हानी चाहिए तथा उनमें समय-समय पर आवश्यक संशोधन किये जाने चाहिए। इसमें श्रेष्ठ कार्य करने वाले व्यक्ति को पुरस्कार तथा खराब कार्य करने वाले व्यक्ति को दण्ड देने का प्रावधान होना चाहिए।
- विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था सामान्य व्यावसायिक उद्देश्यों, संगठन, संरचना, उपक्रम की नीतियों की जानने व समझने की आवश्यकता पर निर्भर करती है।
विकेन्द्रीकृत व्यवस्था के लाभ
लोक प्रशासन में विचारकों ने विकेन्द्रीकृत व्यवस्था के निम्नलिखित लाभों को रेखाकिंत किया है। भारतीय प्रशासनिक प्रणाली इस तथ्य की प्रत्यक्ष गवाह है कि विकेन्द्रीकृत व्यवस्था ने सदैव ही अप्रत्याशित परिणाम दिये हैं। इसके कुछ प्रमुख लाभों को जानने का प्रयास करें-
- इस अवधारणा सें निर्णय लेने में सुविधा रहती है।
- इसमें उच्च प्रबन्ध व अधीनस्थों के मध्य सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध होते हैं।
- इस अवधारणा से संगठन में राजनीति का अभाव रहता है, जिससे अधिकारियों एवं कर्मचारियों में टकराहट नहीं होती।
- इससे अनौपचारिकता व लोकतन्त्र को बढ़ावा मिलता है।
- इसमें अधीनस्थों के अच्छे कार्य की प्रशंसा की जाती है।
- इसमें विभागों के मध्य स्वस्थ प्रतिस्पर्धा से, उनकी कमजोरियों का ज्ञान प्राप्त होता है, जिसमें उन्हें तुरन्त दूर किया जा सकता है। जिससे निरीक्षण कार्य प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।
- इसमें निर्णय लेते समय अधिकारी को सभी बातों का ज्ञान रहता है।
इस प्रकार प्रशासनिक संगठन के विकेन्द्रीकरण में कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि होती है और योग्य कर्मचारियों की प्राप्ति होती है। इसमें उच्च अधिकारियों पर कार्यभार भी कम रहता है।
संगठन के सिद्धान्त
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