प्रत्यायोजन का अर्थ एवं विशेषताएं |प्रत्यायोजन का अर्थ बताइए|Delegation Explanation in Hindi
प्रत्यायोजन Delegation Explanation in Hindi
प्रत्यायोजन का अर्थ बताइए ?
- आज सूचना क्रान्ति के युग में किसी एक व्यक्ति के लिये उपक्रम की सम्पूर्ण व्यवस्था पर नियन्त्रण रखना सम्भव नहीं है। इसलिये व्यक्ति अपना कार्य अन्य व्यक्तियों को सौंप देते हैं। इस प्रकार से अपने कार्य-भार को दूसरे व्यक्तियों को सौंपना ही प्रत्यायोजन कहलाता है। अतः यदि कोई अधिकारी स्वयं कार्य करने में समर्थ नहीं है तो उसके लिए उसे अपने अधिकारों को हस्तान्तरित करना होता है।
- दूसरे शब्दों में, प्रत्येक व्यक्ति को जिसे कुछ कार्य सौंपे जायें तो आवश्यक है कि उसे कुछ अधिकार भी प्रदान किये जायें, क्योंकि अधिकारों के बिना कोई भी व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पूर्णतया पालन करने में असमर्थ रहेगा। अतः यह आवश्यक है कि यदि किसी व्यक्ति को कोई कार्य सौंपा जाये तो उसे कुछ अधिकार भी प्रदान किये जाये | अधिकारों के इस प्रकार के हस्तान्तरण को ही अधिकारों के प्रत्यायोजन की संज्ञा दी जाती है।
प्रत्यायोजन की परिभाषाएँ Definition of Delegation in Hindi
इस सम्बन्ध में लोक प्रशासन के विद्वानों ने विभिन्न परिभाषाऐं प्रस्तुत की हैं
एफ.जी. मूरे के अनुसार प्रत्यायोजन की परिभाषा
“अधिकार प्रत्यायोजन का आशय, कार्यों का अन्य व्यक्तियों को हस्तान्तरण तथा उस कार्य को करने की शक्ति का हस्तांतरण है।
लुईस ए0 ऐलन के अनुसार प्रत्यायोजन की परिभाषाएँ
“प्रत्यायोजन एक क्रियात्मक संचालन शक्ति है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसका अनुसरण करते हुए एक प्रशासक अपने कार्य को इस तरह विभाजित करता है कि इसका ऐसा भाग जो केवल वह स्वयं ही संगठन में अपनी अद्वितीय स्थिति के कारण प्रभावपूर्णता के साथ कर सकता है, वह स्वयं करता है और अन्य भागों के सम्बन्ध में ही दूसरों से सहायता लेता है।”
प्रत्यायोजन की विशेषताएं Features of Delegation
उपरोक्त दृष्टिकोणों के आधार पर प्रत्यायोजन की निम्नलिखित विशेषताओं की स्थापना की जा सकती है-
- प्रत्यायोजन संगठन की वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा अधिकारों या सत्ता का एक भाग अधीनस्थों को सौंपा जाता है। इसमें अधिकारों का स्तान्तरण किया जाता है।
- प्रत्यायोजन के बाद भी इस क्रिया को करने वाले अधिकारी के पास अधिकार बने रहते हैं। इस प्रकार यह अधिकारों का वितरण है, ना कि विकेन्द्रीकरण.
- प्रत्यायोजन उपरिगामी तथा पार्श्विक प्रकृति का भी हो सकता है। जिससे अधीनस्थों की अधिकार सीमा स्पष्ट होती है।
- प्रत्यायोजन का अर्थ अधिकार त्यागना नहीं है, बल्कि अधिकारों को सौंपना होता है जिससे निष्पादन सरल हो सके।
- प्रत्यायोजन सौंपे गये अधिकारों को कभी भी कम या अधिक कर सकता है।
- प्रत्यायोजन में उस व्यक्ति के कार्य की सीमाऐं भी निश्चित की जाती हैं, जिसे अधिकार सौंपे गये हैं।
- प्रत्यायोजन का उद्देश्य प्रशासकीय एवं क्रियात्मक दक्षता को बढ़ाना होता है। यह सदैव सिद्धान्तों के आधार पर किये जाते हैं।
- ऐसे अधिकारों का प्रत्यायोजन कदापि नहीं किया जा सकता जो स्वयं के पास न हो।
- प्रत्यायोजन में कार्य निष्पादन हेतु अधिकारों का प्रत्यायोजन किया जाता है, न कि पद का।
अब तक हम यह अच्छी तरह जान चुके हैं कि व्यस्तताओं एवं जटिलताओं के कारण कोई भी प्रशासक संगठन की समस्त क्रियाओं का सफल संचालन नहीं कर सकता, क्योंकि प्रायः एक प्रशासक को संगठन की समस्त क्रियाओं का ज्ञान थोड़ा ही होता है।
आधुनिक समय में प्रशासक के लिए प्रत्यायोजन की आवश्यकता के कारण
आधुनिक समय में प्रशासक के लिये निम्नलिखित कारणों से प्रत्यायोजन करना आवश्यक होता है। उन कारणों को क्रमबद्ध कर समझने का प्रयास करें-
- कोई भी प्रशासक कितना ही योग्य क्यों न हो, वह संगठन की समस्त क्रियाओं पर अकेला नियन्त्रण नहीं रख सकता। इसके अतिरिक्त यदि कोई प्रशासक संगठन की विविध क्रियाओं को करना भी चाहे तो, वह अनेक महत्वपूर्ण कार्यों को समय पर पूरा नहीं कर सकेगा। अतः हम कह सकते हैं कि प्रत्येक मानव अपूर्ण है। अतः इस मानवीय अपूर्णता के कारण प्रत्यायोजन करना आवश्यक हो जाता है।
- आधुनिक युग विशिष्टीकरण का युग है और किसी भी एक व्यक्ति के लिये यह सम्भव नहीं है कि वह सभी क्षेत्रों की क्रियाओं में विशिष्टता प्राप्त कर ले। अतः प्रशासकों को विशेषज्ञों के कार्यों का प्रत्यायोजन करना पड़ता है।
- आधुनिक संचार और सूचना क्रान्ति के युग में समाज की बढ़ती हुई आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिये संगठन को अपने कार्यात्मक क्षेत्र के आकार में विस्तार करना पड़ता है। विस्तार करने के लिये अनेक शाखाऐं अथवा उप-विभागों की स्थापना करनी पड़ती है। इन नये उप-विभागों की क्रियाओं को संचालित करने के लिये प्रत्यायोजन की निरन्तर आवश्यकता पड़ती है।
- उच्च अधिकारी अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों का प्रत्यायोजन करके निम्न स्तर के प्रबन्ध अधिकारियों को महत्वपूर्ण विषयों एवं समस्याओं पर निर्णय लेने के अवसर प्रदान करते हैं। इसे निम्न स्तर के कर्मचारियों में भी आवश्यक गुणों का विकास होता है और भविष्य में अच्छे कर्मचारी आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
उपयुक्त विवेचन के आधार पर प्रत्यायोजन की आवश्यकता के समबन्ध में कहा जा सकता है कि जिस प्रकार अधिकार प्रशासन के कार्य की कुन्जी है, ठीक उसी प्रकार अधिकार का प्रत्यायोजन संगठन की कुन्जी है। आधुनिक समय में प्रशासनिक संगठन अधिकारों का प्रत्यायोजन किये बिना सफलता प्राप्त नहीं कर सकता।
प्रत्यायोजन का वर्गीकरण
उपरोक्त आवश्यकताओं के आधार पर लोक प्रशासन के विभिन्न विद्वानों ने प्रत्यायोजन का वर्गीकरण प्रस्तुत किया है। इसके वर्गीकरण को विस्तार से समझने का प्रयास करें
सामान्य प्रत्यायोजन-
- जब संगठन की समस्त क्रियाओं का कार्यभार किसी एक व्यक्ति को सौंप दिया जाता है, तो यह सामान्य प्रत्यायोजन कहलाता है।
निश्चित प्रत्यायोजन-
- जब एक व्यक्ति को निश्चित क्रियाओं के सम्बन्ध में ही कार्यभार सौंपा जाता है, तब निश्चित प्रत्यायोजन अस्तित्व में आता है।
लिखित प्रत्यायोजन-
- जब कार्य-भार का प्रत्यायोजन लिखित रूप में सौंपा जाये तो इसे लिखित भारार्पण की संज्ञा दी जाती है।
मौखिक प्रत्यायोजन-
- जब कार्य-भार मौखिक रूप में सोंपा जाये तो उसे मौखिक प्रत्यायोजन के नाम से जानते हैं। इसकी तुलना में लिखित प्रत्यायोजन को संगठन में अधिक श्रेष्ठ माना जाता है।
औपचारिक प्रत्यायोजन-
- जब प्रत्यायोजन संगठन की अधिकार रेखा द्वारा निर्धारित सीमाओं के आधार पर होता है तो उसे औपचारिक प्रत्यायोजन के नाम से जाना जाता है।
अनौपचारिक प्रत्यायोजन-
- इसके अन्तर्गत अधीनस्थ कर्मचारी उच्च अधिकारियों की आज्ञा पर नहीं, अपितु स्वतः प्रेरणा से कार्य करते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य लालफीताशाही को समाप्त कर भ्रष्टाचार का अन्त करना होता है।
पाश्विक प्रत्यायोजन-
- जब प्रत्यायोजन समस्तरीय अधिकारी को किया जाये तो उसे पर्श्विक प्रत्यायोजन कहा जाता है।
अधोगामी प्रत्यायोजन-
- अधोगामी प्रत्यायोजन के अन्तर्गत प्रत्यायोजन प्राय उच्च अधिकारी से नीचे के अधिकारी की ओर होता है।
प्रत्यायोजन के लिये निरूपित सिद्धान्तों
प्रशासकीय संगठनों में प्रत्यायोजन की सफलता से क्रियान्यवयन हेतु, विभिन्न प्रकार के सिद्धान्तों का निरूपण किया गया है। ज्ञातव्य हो कि वे सिद्धान्त संगठन की प्रकृति और उसकी आवश्यकतानुसार परिवर्तनीय हैं। कभी कभी एक से अधिक सिद्धान्तों का प्रयोग भी लक्ष्यों की सफलता एवं सुव्यवस्थित प्राप्ति के लिये किया जा सकता है।
आइये प्रभावी प्रत्यायोजन के लिये निरूपित कुछ सिद्धान्तों को समझने का प्रयास करें
प्रत्याशित परिणामों के द्वारा कर्तव्यों को सौंपने का सिद्धान्त
- उच्च अधिकारी अपने कर्तव्यों का प्रत्यायोजन अपने अधीनस्थों को करता है। परन्तु ऐसा करते समय उच्च अधिकारी को चाहिये वह अधीनस्थों को उन उद्देश्यों को स्पष्ट कर दे जिन्हें वह प्राप्त करना चाहता है।
अधिकार एवं दायित्व का सिद्धान्त
- इस सिद्धान्त के अनुसार अधीनस्थों को प्रत्यायोजन करते समय उनके अधिकारों एवं दायित्वों को ध्यान में रखा जाता है।
पूर्ण उत्तर दायित्व का सिद्धान्त
- कोई भी अधिकारी केवल अपने अधिकारों को प्रत्यायोजन कर सकता है, उत्तर दायित्वों का नहीं। प्रत्येक अधिकारी जो अपने कार्य को अधीनस्थों को सौंपता है, सौंपे गये कार्यों के सम्बन्ध में पूर्ण उत्तर दायित्व उसी अधिकारी का होता है, अधीनस्थों को नहीं।
आदेश की एकता का सिद्धान्त
- प्रत्यायोजन की प्रक्रिया सम्पन्न करते समय इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए कि अधीनस्थों को आदेश केवल उच्च स्तर से ही प्राप्त हों तथा एक ही अधिकारी आदेश दे ।
क्या प्रत्यायोजन वास्तव में लाभकारी है?
प्रायः सामान्यज्ञों द्वारा यह प्रश्न उठाया जाता है कि क्या प्रत्यायोजन वास्तव में लाभकारी है? इस सम्बन्ध में लोक प्रशासन के विभिन्न विद्वानों ने एक स्वर में निम्नलिखित लाभों को सूचिबद्ध किया है, जिनके आधार पर प्रशासनिक संगठनों में प्रत्यायोजन किया जाना लाभप्रद होता है। इनको समझने का प्रयास करें
- प्रत्यायोजन संगठन में प्रभावशाली आधार का कार्य करता है।
- प्रत्यायोजन निर्णय की प्रक्रिया को प्रभावशाली आधार तक पहुँचाने में सहायता होता है, जिससे पारस्परिक सहयोग बढ़ता है।
- इसके द्वारा अधीनस्थों को प्रशिक्षण प्रदान करने में सहायता मिलती है।
- यह पदोन्नति से सम्बन्धित निर्णय लेने में सहायक होता है।
- यह प्रशासनिक पर्यवेक्षण को अधिक प्रभावी आता है।
- इसके उपयोग से प्रशासन को नीति निर्माण करने का पर्याप्त समय मिलता है।
- प्रत्यायोजन के द्वारा संगठन विस्तार में सुगमता होती है।
- इसका क्रियान्वयन उपकरण प्रत्यायोजन को ही माना जाता है।
- यह सदैव अधीनस्थों के मनोबल में वृद्धि कर कार्य-निष्पादन को सुगम बनाता है। इससे अधीनस्थों को व्यक्तिगत विकास में भी सहायता मिलती है।
उपरोक्त लाभों के विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि अधिकारों का प्रत्यायोजन अधिकारी एवं अधीनस्थों दोनों के ही हित में है और इससे सम्पूर्ण उपक्रम लाभान्वित होता है तथा जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
संगठन के सिद्धान्त
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