विकसित एवं विकासशील देश- अर्थ एवं परिभाषा |Developed and Developing Countries - Meaning and Definition

विकसित एवं विकासशील देश क्या हैं ?

विकसित एवं विकासशील देश- अर्थ एवं परिभाषा |Developed and Developing Countries - Meaning and Definition




विकसित एवं विकासशील देश- अर्थ एवं परिभाषा

 

  • विकसित और विकासशील देशों की संक्षिप्त रूप से कोई परिभाषा देना कठिन है। साधारणतया विकासशील शब्द को 'पिछड़ा', 'अविकसित' अथवा 'निर्धन' का पर्यायवाची समझा जाता रहा है। ये शब्द कुछ समय पहले तक एक-दूसरे के स्थान पर इसी अर्थ में प्रयुक्त होते रहे हैं लेकिन इस विषय पर वर्तमान साहित्य में 'अविकसित' शब्द इस अर्थ में दूसरे विकासशील, निर्धन अथवा पिछड़ा शब्दों की तुलना में अधिक ठीक समझा गया है। 


विभिन्न विद्वानों ने विकाशील, विकसित तथा अविकसित देशों की विभिन्न प्रकार से परिभाषा देने का प्रयत्न किया है।


संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों के अनुसारविकसित एवं विकासशील देश- अर्थ एवं परिभाषा


एक विकासशील देश वह है जिसमें आम तौर पर उत्पादन का कार्य तुलनात्मक दृष्टि से कम प्रति व्यक्ति वास्तविक पूँजी की लागत से किया जाता है। इसके साथ ही अन्य देशों की तुलना में कम विकसित तकनीक का प्रयोग किया जाता है।"


इस परिभाषा से प्रति व्यक्ति कम आय तथा उत्पादन की पिछड़ी तकनीक पर जोर दिया गया है। इसका अभिप्राय ऐसे देशों से है जो संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रिया, पश्चिमी यूरोप के देशों की वास्तवकि प्रति व्यक्ति आय की दूर से कम प्रति व्यक्ति आय की दर वाले हैं। इस अर्थ में इन देशों के लिए निर्धन शब्द उचित होगा। यह परिभाषा ठीक अर्थों में विकासशील देशों की धारणा को स्पष्ट नहीं करती।


प्रो0 नर्क्स के अनुसार 'विकासशील देशों की परिभाषा

"विकासशील देश वे हैं जो विकसित देश की तुलना में अपनी जनसंख्या और संसाधनों की तुलना में पूँजी की दृष्टि से कम साधन सम्पन्न हैं।"


यह परिभाषा सन्तोषजनक प्रतीत नहीं होती। इसके केवल पूँजी को आधार बनाया है और विकास को प्रभावि करने वाले अन्य कारकों को छोड़ दिया है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि पूँजी एक आवश्यक तत्व है परन्तु प्रगति का केवल मात्र एक आधार नहीं।

 

भारतीय विद्वानों ने भी विकासशील देशों की परिभाषा करने का प्रयास किया है। प्रथम पंचवर्षीय योजना के में अनुसार,


एक विकासशील देश वह है जिसका सह-अस्तित्व कम अथवा अधिक मात्रा एक ओर अप्रयुक्त अथवा कम प्रयुक्त की गयी जन-शक्ति तथा दूसरी ओर प्राकृतिक संसाधनों के अप्रयोग पर आधारित है।" 


  • इस स्थिति का कारण तकनीक के प्रयोग में स्थान अथवा कुछ विघ्नोत्पादक सामाजिक-आर्थिक कारण हो सकते हैं जो अर्थव्यवस्था में अधिक गतिशील शक्तियों को क्रियात्मक होने से रोकते हैं। भारतीय योजना आयोग अब नीति आयोग  द्वारा दी गयी यह परिभाषा अधिक व्यापक प्रतीत होती है, परन्तु समग्र दृष्टि से यह भी अपूर्ण है। इस परिभाषा में अप्रयुक्त संसाधनों पर बल दिया गया है। ये अप्रयुक्त संसाधन विकसित देशों में भी हो सकते हैं। 


इसी प्रकार कुछ विद्वानों के अनुसार विकासशील देश वे हैं जिनमें पूँजीगत वस्तुओं के स्टाक तथा वित्तीय आपूर्ति की तुलना में अकुशल श्रमिकों की अधिकता हो, अप्रयुक्त कार्यक्षम संसाधन, प्रति व्यक्ति दर से कम उत्पादकता, धीमी उत्पादन कुशलता, जिनमें कृषि तथा आरम्भिक उद्योगों पर अधिक बल दिया जाता है। ऐसे देशों में बेरोजगारी बहुत होती है और स्थायी काम-काज की कमी होती है। 


जेकब वाइनर के अनुसार विकासशील देश की परिभाषा 

एक विकासशील देश वह है जिसमें अधिक पूँजी, अधिक श्रम अथवा अधिक उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के भावी प्रयोग की सम्भावना रहती है, ताकि ये देश की वर्तमान जनसंख्या का जीवन स्तर ऊँचा बना सकें अथवा वर्तमान प्रति व्यक्ति उच्च आय दर को बढ़ी हुई जनसंख्या के लिए भी कायम रख सकें।” 


  • विकासशील देशों की दी गयी यह परिभाषा अधिक सटीक है। इसमें आर्थिक विकास को निश्चित करने वाले दो महत्वपूर्ण कारकों पर बल दिया गया हैं। वे हैं- प्रति व्यक्ति की दर से आय तथा विकासशीलता की सामर्थ्य। इसमें विकासशील देशों की प्रकृति के सम्बन्ध में भी संक्षिप्त व्याख्या उपलब्ध है। विकासशील देशों की प्रकृति के सम्बन्ध में दी गयी परिभाषा संक्षिप्त व्याख्या करती है। क्योंकि 'विकास' एक ऐसी धारणा है जो बहुमुखी है । 


  • अतः विकसित तथा विकासशील देशों के सम्बन्ध में हमारा अध्ययन उस समय तक अपूर्ण रहेगा जब तक हम देश की केवल आर्थिक विशिष्टताओं पर बल देते हैं। अतः हमें देश के राजनैतिक, प्रशासनिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक पक्षों का भी अध्ययन करना होगा। परन्तु प्रमुख कठिनाई यह है कि एक विकासशील देश की रूपरेखा कैसे निश्चित की जाये। इससे भी अधिक कठिन काम विश्व में ऐसे देश को ढूँढ़ना है जिसमें विकासशील देशों की सभी विशेषताऐं उपलब्ध हों।


  • कुछ विद्वानों ने सभी विकासशील देशों का वर्गीकरण इस प्रकार किया है उच्च आय वाले, मध्यम आय वाले तथा कम आय वाले देश।

 

  • इस वर्गीकरण से स्पष्ट होता है कि इन देशों में आर्थिक विकास की दृष्टि से बहुत अधिक विषमता है। साथ ही ये देश एक-दूसरे से अन्य दिशाओं में भी काफी भिन्न हैं। 


विकासशील देशों में विषमता के प्रमुख आधार ये हैं

 

1. विकसित देशों की आय प्रति व्यक्ति काफी अधिक होती है, जबकि विकासशील देशों की काफी कम। 

2. विकसित देशों में जनसंख्या की वृद्धि दर अल्प है, वहीं विकासशील देशों में यह अधिक है। 

3. विकसित देशों में औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र का अनुपात कृषि के तुलना में काफी अधिक होता है। विकासशील देशों में कृषि क्षेत्र का अनुपात काफी अधिक होता है। 

4. औद्योगिक क्षेत्र में विकसित राष्ट्र उन्नत प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हैं, जबकि विकासशील देशों में परम्परागत तकनीकों का प्रयोग किया जाता है। 

5. प्राथमिक उपचार की सुविधाऐं, स्कूल, शैक्षिक स्तर विकसित राष्ट्रों में काफी अधिक होता है तथा विकासशील देशों में तुलनात्मक रूप से काफी कम होता है। 

6. विकसित राष्ट्रों में गरीबी एवं बेरोजगारी की समस्या कम है तथा विकासशील देशों में बेरोजगारी की दर काफी अधिक है। 

7. विकासशील देशों में उत्खनन (खनन), पशुपालन एवं प्राथमिक क्षेत्रों से जुड़ी सेवाओं का बाहुल्य है, दूसरी ओर विकसित राष्ट्रों में उच्च मूल्य सबंर्धित सेवाओं तथा उत्पादों की बहुतायत है। 

8. प्रशासनिक इकाईयाँ विकासशील देशों में काफी संकुचित हैं, जबकि विकसित राष्ट्रों में ये काफी दक्ष हैं। 

9. आधारभूत सेवाऐं जैसे- पानी, बिजली, सड़क विकसित राष्ट्रों में उच्च कोटी की हैं, जबकि विकासशील देशों में ये निम्न स्तर की हैं।


विषय सूची -

विकसित एवं विकासशील देश- अर्थ एवं परिभाषा

विकासशील और विकसित देशों की राजनीतिक विशेषताऐं

विकासशील और विकसित देशों की सामाजिक विशेषताऐं

विकासशील और विकसित देशों की प्रशासनिक विशेषताऐं

विकासशील देशों का आर्थिक आधार 

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