लोक प्रशासन का विकास: आधुनिक काल |Development of Public Administration: Modern Period

लोक प्रशासन का विकास: आधुनिक काल

लोक प्रशासन का विकास: आधुनिक काल |Development of Public Administration: Modern Period


 

आधुनिक काल में लोक प्रशासन का विकास 

  • 18वीं सदी में जर्मनी और आस्ट्रिया में कैमरलवाद का अभ्युदय हुआ जो सरकारी मामलों के व्यवस्थित प्रबन्धन से जुड़ा हुआ था। कैमरलवादियों ने लोक प्रशासन की संरचनाओंसिद्धान्तों और प्रक्रियाओं के विवरणात्मक अध्ययनों पर और लोक अधिकारियों के पेशेवर प्रशिक्षण पर बल दिया।

 

  • 18वीं सदी के अंतिम वर्षों में संभवतः अमेरिका में पहली बार लोक प्रशासन के अर्थ और उद्देश्य को हैमिल्टन की पुस्तक 'फेडरलिस्टमें पारिभाषित किया गया। 


चार्ल्स ज्यां बूनिन पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अलग से लोक प्रशासन पर फ्रेन्च भाषा में पुस्तक की रचना की । परन्तु परम्परागत रूप से शोध के अलग क्षेत्र के रूप में लोक प्रशासन का विकास उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ। आधुनिक काल में अध्ययन के एक विषय के रूप में लोक प्रशासन के विकास का इतिहास उतार-चढ़ाव से भरा हुआ हैजिसे निम्नलिखित चरणों में समझा जा सकता है


लोक प्रशासन के विकास चरण


लोक प्रशासन के विकास का प्रथम चरण (1887 1926)

  लोक प्रशासन का जनक किसे माना जाता है?

  • विकास के प्रथम चरण में लोक प्रशासन एवं राजनीति के द्विभाजन पर बल दिया गया। वुडरो विल्सनजिन्हें लोक प्रशासन का जनक माना जाता हैने 1887 में एक निबन्ध प्रकाशित किया जिसका शीर्षक था 'दी स्टडी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन' इस निबन्ध में उन्होंने राजनीति और प्रशासन को अलग-अलग बताया तथा यह भी कहा कि "एक संविधान की रचना सरल है पर इसको चलाना बड़ा कठिन है।" उन्होंने इस चलाने के क्षेत्र अर्थात लोक प्रशासन को एक स्वायत्त विषय बनाने पर बल दिया।

 

  • विल्सन के पश्चात फ्रैंक गुडनाउ ने 1900 में अपनी पुस्तक 'पॉलिटिक्स एण्ड एडमिनिस्ट्रेशनमें यह तर्क दिया कि राजनीति राज्य इच्छा को प्रतिपादित करती हैजबकि प्रशासन इस इच्छा या नीतियों के क्रियान्वयन से सम्बन्धित है। इसलिए नीति निर्माण का कार्य नीति- क्रियान्वयन के कार्य से अलग है। 


  • नीति निर्माण का कार्य जनता द्वारा निर्वाचित व्यवस्थापिकाओं द्वारा सम्पादित किया जाना चाहिए तथा उसके क्रियान्वयन का कार्य राजनीतिक रूप से तटस्थयोग्य एवं तकनीकी दक्षता से युक्त प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा सम्पन्न किया जाना चाहिए।


  • 1926 में एल० डी व्हाइट द्वारा 'इंन्ट्रोडक्शन टू द स्टडी ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशननामक पुस्तक प्रकाशित की गयी जिसे लोक प्रशासन की प्रथम पाठ्य पुस्तक होने की मान्यता प्राप्त है। इस पुस्तक में व्हाइट ने राजनीति एवं प्रशासन के मध्य अन्तर को स्वीकार करते हुए इस बात पर बल दिया कि लोक प्रशासन का मुख्य लक्ष्य दक्षता एवं मितव्ययिता हैं। उनके अनुसार प्रशासन किसी विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति के लिए बहुत से व्यक्तियों का निर्देशनसमन्वयीकरण तथा नियन्त्रण की कला है।

 

लोक प्रशासन के विकास द्वितीय चरण (1927-1937)

 

  • इस चरण में लोक प्रशासन के सैद्धान्तिक पहलू पर बल दिया गया। ऐसी आस्था व्यक्त की गयी कि प्रशासन के कुछ निश्चित सिद्धान्त हैं जिनका पता लगाकर इनके क्रियान्वयन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इस सन्दर्भ में 1927 में डब्ल्यू0 एफ0 विलोबी द्वारा लिखित पुस्तक 'प्रिसिंपल्स ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशनअत्यन्त महत्वपूर्ण है। विलोवी इस बात में पूर्ण विश्वास रखते थे कि प्रशासन के अनेक सिद्धान्त हैंजिन्हें कार्यान्वित करने से लोक प्रशासन में सुधार हो सकता है।

 

  • विलोबी के बाद अनेक विद्वानों ने उक्त सन्दर्भ में पुस्तकें लिखी जिनमें मेरी पार्कर फॉलेटहेनरी फेयोलमूने तथा रैले इत्यादि के नाम प्रमुख है।

 

  • 1937 में लूथर गुलिक तथा उर्विक द्वारा लिखित ग्रन्थ 'पेपर्स ऑन दी साइंस ऑफ एडमिनिस्ट्रेशनमें इस बात पर बल दिया गया कि प्रशासन में सिद्धान्त होने के कारण यह एक विज्ञान है। गुलिक तथा उर्विक ने प्रशासन के सिद्धान्तों को 'पोस्डकॉर्बके रूप में व्यक्त किया। इस चरण को लोक प्रशासन के विकास में स्वर्णिम युग माना जाता है।

 

लोक प्रशासन के विकास का तृतीय चरण (1938-1947)

 

  • यह चरण लोक प्रशासन के अध्ययन के विकास में विध्वंसकारी चरण माना जाता हैजिसमें प्रशासनिक सिद्धान्तों को चुनौती दी गयी। 
  • चेस्टर बनार्ड ने 1938 में अपनी पुस्तक 'दी फक्सन्स ऑफ एक्सक्यूटिवमें प्रशासन को एक सहकारी सामाजिक क्रिया बताते हुए इस बात पर बल दिया कि व्यक्तियों के आचारण प्रशासकीय कार्यों को विशेष रूप से प्रभावित करते हैं। 
  • बनार्ड के विचारों के फलस्वरूप लोक प्रशासन के सिद्धान्त वादी दृष्टिकोण पर प्रहार शुरू हुआ। 1946 में हरबर्ट साइमन ने अपना एक लेख प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने तथाकथित सिद्धान्तों का उपहास करते हुए उन्हें मुहावरे की संज्ञा दी । एक वर्ष बाद ही उन्होंने अपनी पुस्तक 'एडमिनिस्ट्रेटिव विहेवियरमें यह भली-भाँति सिद्ध कर दिया कि प्रशासन में सिद्धान्त नाम की कोई चीज नहीं है 
  • 1947 में रॉबर्ट ए0 डॉहल ने अपने एक लेख में सिद्धान्तवादियों की इस मान्यता का जोरदार खण्डन किया कि लोक प्रशासन एक विज्ञान है। उन्होंने लोक प्रशासन के सिद्धान्त की खोज में तीन बांधाओं का जिक्र कियायथा मूल्य सापेक्षतामानव व्यवहार की विविधताएवं सामाजिक ढाँचा | 
  • इस प्रकार लोक प्रशासन का तीसरा चरण चुनौतियों एवं आलोचनाओं से परिपूर्ण रहा।

 

लोक प्रशासन के विकास का चतुर्थ चरण (1948-1970)

 

  • इस चरण में लोक प्रशासन अपनी पहचान के संकट से जूझता रहा। विषय की सिद्धान्तवादी विचारधारा अविश्व सनीय प्रतीत होने लगी तथा इसका वैज्ञानिक स्वरूप भी वाद-विवाद का विषय बन गया।

 

  • विषय को इस पहचान के संकट से उबारने के लिए मोटे तौर पर दो रास्ते अपनाये गये। कुछ विद्वान राजनीति शास्त्र की ओर मुखातिब हुए परन्तु राजनीतिशास्त्र में इस समय कुछ परिवर्तन आ रहे थे। लोक प्रशासन का राजनीति शास्त्र में जितना महत्व पहले थाउसमें गिरावट आ गयी। ऐसी अवस्था में यह विषय सौतेलापन व अकेलापन अनुभव करने लगा।

 

  • दूसरे प्रयास में कुछ विद्वानों ने लोक प्रशासन को निजी प्रबन्धों के साथ जोड़कर प्रशासनिक विज्ञान बनाने का प्रयास किया। इन विद्वानों की यह मान्यता थी कि प्रशासन चाहे दफ्तरों में हो या कारखानों में दोनों ही क्षेत्रों में यह प्रशासन है। इसी प्रयास के अंतर्गत 1956 में एडमिनिस्ट्रेटिव साइंस क्वार्टरलीनामक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया गया। इस प्रयास में भी लोक प्रशासन को अपना निजी स्वरूप गंवाना पड़ा तथा इसे प्रबन्ध विज्ञान की ओर मुखातिब होना पड़ा। इस तरह दोनों ही प्रयासों के बावजूद लोक प्रशासन के पहचान का संकटबरकरार रहा।


लोक प्रशासन के विकास का पंचम चरण (1971 1990)

 

  • इस चरण में विषय के अन्तर्विषयक दृष्टिकोण का विकास हुआ। चतुर्थ चरण के संकट ने लोक प्रशासन के विषय के विकास में अनेक चुनौतियां प्रस्तुत की थीजो इसके लिए वरदान सिद्ध हुआ। अनेक शाखाओं के विज्ञान के समावेश से इसके विकास में सर्वांगीण उन्नति हुई। राजनीतिशास्त्र के विद्यार्थी तो सदैव ही लोक प्रशासन में रूचि लेते रहे हैंइसके साथ-साथ अर्थशास्त्रमनोविज्ञानसमाजशास्त्रमानवशास्त्रआदि शास्त्रों के विद्वान भी इस विषय में रूचि लेने लगे। इन सबके फलस्वरूप लोक प्रशासन अंतर्विषयी बन गया। आज समाजशास्त्रों में यदि कोई सबसे अधिक अन्तर्विषयी है तो वह लोक प्रशासन ही है । 'तुलनात्मक लोक प्रशासनतथा 'विकास प्रशासनका प्रादुर्भाव भी विषय की नूतन प्रवृत्तियों को दर्शाता है। तुलनात्मक लोक प्रशासन विभिन्न संस्कृतियों में कार्यरत विभिन्न देशों की सार्वजनिक प्रशासनिक संस्थाओं के तुलनात्मक अध्ययन से सम्बन्धित है। विकास प्रशासन विकासशील देशों की सरकार के प्रशासन से सम्बन्धित है।

 

लोक प्रशासन के विकास का षष्टम चरण (1991- अब तक)

 

  • इस चरण में उदारीकरण एवं वैश्वीकरण के सन्दर्भ में लोक प्रशासन के अंतर्गत नवीन लोक प्रबन्धन की अवधारणा का विकास हुआ है। ऐसा माना जा रहा है कि लोक प्रशासन को लोक प्रबन्धन में बदला जाना चाहिएताकि लोक निर्णय शीघ्रता एवं मितव्ययिता के साथ की जा सके। नवीन लोक प्रबन्धन लोक प्रशासन में कार्य सम्पादन को अधिक महत्व देता है। 


  • लोक प्रशासन में धीरे-धीरे नियन्त्रणोंनियमनोंलाइसेन्सपरमिट आदि को कम करने के प्रयास किये गये हैं तथा प्रशासन को एक सुविधाकारक तंत्र के रूप में विकसित करने का प्रयत्न किया गया है। दूसरे शब्दों में पारंपरिक लोक प्रशासन को बाजारोन्मुख लोक प्रशासन में परिवर्तित करने पर बल दिया जा रहा है। 


  • नवीन लोक प्रबन्धन का प्रयोग सर्वप्रथम 1991 में क्रिस्टोफर हुड के द्वारा किया गया। इसके उपरान्त इस दृष्टिकोण के विकास में गेराल्ड केइनपी) हैगेटसी0 पौलिटआर रोड्स तथा एल) टेरी ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

 

इस प्रकारअध्ययन के एक विषय के रूप में लोक प्रशासन का स्वरूप बदलते हुए राजनीतिकआर्थिक एवं सामाजिक परिवेश एवं विचारधाराओं के अनुरूप परिवर्तित संशोधित एवं संवर्द्धित होता रहा है।

वर्तमान समय लोक प्रशासन के अध्ययन में राजनैतिक एंव नीति निर्धारण प्रक्रियाओं तथा लोक कार्यक्रमों के में अध्ययन पर विशेष बल दिया जाने लगा है। 19710 के पश्चात से नवीन लोक प्रशासन के विकास ने लोक प्रशासन के अध्ययन को समृद्ध किया है।


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