विकासशील देशों का आर्थिक आधार |Economic base of developing countries

विकासशील देशों का आर्थिक आधार |Economic base of developing countries


विकासशील देशों का आर्थिक आधार

 

निर्धनतासंसार में विकासशील देशों की एक बड़ी प्रमुख विशेषता है। क्रान्ति से पूर्व की स्थिति की तुलना मेंइनमें से अधिक देश अधिक निर्धन तथा कम विकसित हैं। वे तो औद्योगीकरण से पहले की स्थिति वाले पाश्चात्य देशों से भी अधिक निर्धन हैं। यह स्थिति अधिक जनसंख्या वाले देशों से दूसरे देशों की तुलना में अधिक दयनीय है।

 

1. प्राथमिक उत्पाद 

  • विकासशील देशों की एक मूलभूत विशेषता यह भी है कि ये ऐसे देश हैंजिनमें केवल प्राथमिक वस्तुओं का ही उत्पादन होता है। वास्तव में विकासशील देशों में उत्पादन का प्रारूप प्रमुखतया अनाज तथा कच्चे माल के उत्पादन के रूप में होता है। विकासशील देश प्रमुखतया कृषि प्रधान देश होता है। उदाहरणस्वरूप भारत में 70 प्रतिशत से अधिक लोग आजीविका के लिए प्रमुखतया कृषि पर निर्भर करते हैं।

 

2. प्राकृतिक संसाधन 

  • विकासशील देशों में प्राकृतिक संसाधनों का अस्तित्व होता हैपरन्तु तकनीकी ज्ञान के बिना उनका उपयोग पूर्णतया नहीं किया जाता। यह आम धारणा है कि विकासशील देश इस कारण निर्धन हैं कि उनके पास संसाधनों की कमी है।

 

3. अर्थव्यवस्था की प्रकृति 

  • लगभग सभी विकासशील देशों में आर्थिक दोहरापन देखने को मिलता है। कहने का अभिप्राय यह है कि यह दो भागों में विभाजित है। वे हैं- 1. बाजार, 2. आधारभूत। लेकिन विकसित देशों में यह स्थिति या तो नगण्य हैअथवा इसका अभाव है।

 

4. तकनीक का स्तर

  • विकासशील देशों में तकनीक का स्तर बहुत नीचा है। इन दोनों में कृषि क्षेत्र तथा उद्योग-क्षेत्र में जिन तकनीकों का पालन किया जा रहा हैवे पिछड़ी हुई हैं और पुरानी हैं। वह तकनीक जो पाश्चात्य देशों में पुरानी हो जाती हैवह विकासशील देशों द्वारा अपना ली जाती है। इसी प्रकार तकनीकी दोहरापन भी विकासशील देशों की एक प्रमुख विशेषता है।

 

5. रोजगार के अवसर 

  • विकासशील देशों में रोजगार के अवसरों की कमी के कारण अधिक संख्या में लोग कृषि-कार्य में लग जाते हैं। परन्तु विकसित देशों में यह स्थिति नहीं हैलेकिन इसका अभिप्राय यह नहीं कि इन देशों में रोजगार सम्बन्धी कोई समस्याऐं ही नहीं हैं। वास्तविकता तो यह है कि उच्च तकनीकी क्रान्ति के कारण सरकारों के कार्यक्रमों की प्रक्रियाएँ अधिक सरल हो गयी हैंपरन्तु इसके साथ ही अनेक समस्याऐं जिनमें रोजगार की समस्या भी हैउत्पन्न हो गयी हैंलेकिन इन देशों में स्थिति अधिक चिन्ताजनक नहीं है। किन्तु विकासशील देशों में यह बद से बदतर होती जा रही है।

 

6. पूँजी की उपलब्धि 

  • बहुत से विकासशील देशों को प्राय: 'पूँजी की दृष्टि से निर्धनअथवा 'अल्प बचतअथवा अल्प निवेशवाली अर्थ व्यवस्थाऐं कहा जाता है। इसकी तुलना में जापान जैसे देश में यह 45 प्रतिशत से ऊपर है और इसी प्रकार फिनलैण्ड में यह 35 प्रतिशत से ऊपर है। भारत में पूँजी निर्माण 20 प्रतिशत तक पहुँच गया है। इतना होने पर भी इसका लोगों को कोई लाभ नहीं पहुँचा।

 

7. सार्वजनिक क्षेत्र पर निर्भरता

  • नेतृत्व के लिए सार्वजनिक क्षेत्र पर अधिक निर्भर रहना पड़ता है। अनेक विकासशील देशों ने ऐसे सामाजिक ढाँचे का विकास कर लिया है जो सामाजिक या मार्क्सवादी विचारधारा में विश्वास करता है। ऐसे देशों में सार्वजनिक क्षेत्र नेतृत्व प्रदान करता है। विकसित देशों में यह स्थिति नहीं है।

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