गोंडवाना शासन की विशेषताएँ | गोंड़ शासन की विशेषताएँ | Gond Shasan Ki Vishestaayen
गोंडवाना शासन की विशेषताएँ गोंड़ शासन की विशेषताएँ
- इतिहास और अभिलेखों में गोंड़ कालीन प्रशासनिक व्यवस्था के सन्दर्भ में किसी भी प्रकार का विवरण नहीं मिलता। गोंड़कालीन साहित्य भी इस सन्दर्भ में सिर्फ संकेत भर देते हैं।
- मंडला जिला गजेटियर (1912) के अनुसार, लिखित अभिलेख न होने या खत्म हो जाने और स्थानीय परंपराओं के प्रमाणित एवं विश्वसनीय न होने के कारण गोंड़ शासन की विशेषताओं को संभालना अत्यंत कठिन हो जाता है।
- लेकिन सर डब्ल्यू. स्लीमैन (1844 ) को नरसिंहपुर के अभिलेखागार में एक नोट मिला, जिससे गोंड राज्य के आंतरिक नीतियों पर थोड़ा प्रकाश पड़ता है। ऐसा प्रतीत होता है कि गोंड राजाओं के अधीनस्थ अधिकांश भाग सामंती प्रमुखों के बीच बंटा हुआ था।
- राजा और सामंतों (गढ़पतियों) में एक मौखिक अनुबंध था, कि जब भी राजा को आवश्यकता होगी, लोगों का दल / टोली लेकर पहुँच जायेंगे । राजा को 'कर' के रूप में वनोपज, अनाज तथा हाथी भेंट किये जाते थे। रूपया, पैसा या नगदी नहीं। गोंड़ समाज में एक तरफ जहां जंगल / वन के प्रति अगाधप्रेम एवं श्रद्धा थी, वहीं दूसरी तरफ शेष समाज के लोगों के प्रति एक निरपेक्ष या अलगाव का भाव था ।
- जैसे जैसे लोग जनसंख्या वृद्धि एवं अन्य कारणों से इनके क्षेत्रों में प्रवेश करते गये, ये सघन वन एवं बीहड़ क्षेत्रों में और अंदर की तरफ घुसते गये। जब बाहरी लोग अकाल एवं बाहरी झगड़ों की वजह से दक्षिण की ओर बढ़े और उपजाऊ जमीन पर अपना दावा किया तो इन्होंने थोड़े से अन्न और घी के बदले अपरिमित उपजाऊ भूमि इन्हें दे दी।
- गोंड़ न तो गडढा खोदते थे, न ही कुआँ और न ही खेती करते थे। उन्हें अपने मकान की साज सज्जा, व्यक्तिगत जीवन में तड़क - भड़क का कोई विचार नहीं था । उनका जीवन सरल, सरस, अपरिग्रहपूर्ण था। उनके जीवन में एक प्रशांत आलस्य था। धन, संपत्ति सुविधा, विवर्धन की कोई महत्वाकांक्षी विचार उनमें नहीं था। तलवार के बल पर दूसरों तक आतंक स्थापित करने, लूट खसोट, दूसरों से कुछ छीनने की अपेक्षा पंच के माध्यम से कुछ ले देकर मामले के निपटारे में विश्वास था ।
- तथापि किसान गोंड़ शासकों के इस महत्वाकांक्षा रहित नीतियाँ से लाभान्वित थे और हिरदैसाहि के शासन काल तक राज्य धन-धान्य और समृद्धि से सम्पन्न था ।
- हिरदैशाह के मरने के पश्चात् राज घराना आंतरिक रूप से कमजोर हो गया और मराठे इस क्षेत्र के शासक बन गये। (मंडला गजेटियर, 1912) संग्राम साह द्वारा विभिन्न तालों का निर्माण एवं परवर्ती राजाओं द्वारा उनका सरंक्षण यह सिद्ध करता है कि खेती अच्छी होती थी एवं वर्षा तथा नदी के अलावा तालाबों से भी सिंचाई होती थी। अबुल फजल ने भी रानी दुर्गावती के समय राज्य की सम्पन्नता का वर्णन किया है।
क. सामान्य प्रशासन-गोंड़ शासन
- गोंड राजा का दूरवर्ती राज्य क्षेत्र सामंतों, जागीरदारों या ताल्लुकेदारों में बंटी थी, जिन्हें गढ़पति कहा जाता था वे नाम मात्र को कर देते थे, परंतु जब भी राजा या गढ़ाधिपति को युद्ध या अन्य कारणों से आवश्यकता हो, तब एक निश्चित संख्या में लोगों को लेकर राजधानी में आ जाते थे। यह एक प्रकार की संघीय व्यवस्था थी।
- राजा, सामान्य लोगों की ही भाँति सरल एवं महत्वाकांक्षा से रहित थे । वे शांति को पसंद करते थे और एक बार राज्य स्थापित करने के पश्चात् शायद ही कभी उन्होंने अपनी तरफ से कोई लड़ाई छेड़ी हो या आक्रमण किया हो (मण्डला गजेटियर, 1914 )
ख. गोंड़ राज्य की प्रशासनिक संरचना (सर्वेक्षण पर आधारित)
- वन क्षेत्रों में एक व्यवस्थित नियम बनाने का श्रेय गोंड़ शासकों का है। गोंड राज्य के प्रत्येक ग्राम में एक स्वतंत्र राजनीतिक इकाई होती थी।
- गाँव के झगड़े इत्यादि सभी गाँव में ही निपटा लिए जाते थे। गाँव के मुखिया को भोई गौंटिया या मुकद्दम कहा जाता था 04 गाँव का चौगान होता था, जिसका मुखिया मुकद्दम कहलाता था। आज कल मुकद्दम या पटेल गाँव के परम्परागत प्रधान को भी कहा जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि मुकद्दम शब्द बाद में इनके शब्द से जुड़ा हो । पहले उसका कुछ अन्य नाम होता हो ।
- 12 गाँव का बरही या परगना, 52 गाँव का गढ़ या गढ़ी एवं कई गढ़ियों से मिलकर गढ़ा बना होता है। अबुल फजल ने आईन ए अकबरी' में संग्राम साहि को 52 गढ़ों का स्वामी कहा है। इसने रानी दुर्गावती को 57 परगनों की स्वामिनी कहा है।
ग. गोंड राज्य की प्रशासनिक सरंचना
गढ़ा कई गढ़ों को मिलाकर
गढ़ी या गढ़ - 25 ग्राम
परगना या बरही - 12 ग्राम
चौगान 04 ग्राम की प्रशासनिक इकाई
ग्राम- प्राथमिक प्रशासनिक इकाई
कुछ लोगों का मानना है कि गोंड़ जनजाति में प्रारम्भ में गणराज्यीय व्यवस्था थी, जिसके अन्तर्गत गाँव सयाने ( बुजुर्ग )गाँव का मुखिया चुनते थे । चार गांव (चैगान) के चारों ओर मुखिया और बुजुर्ग मिलकर परस्पर सहमति से चौगान के प्रमुख को चुनता था। कई चौगानों के प्रमुख मिलकर अपने जातीय प्रमुख को चुनते थे। यह पद औपचारिक मात्र था, एवं आपसी झगड़ों का निपटारा एवं समाज के प्रतिनिधित्व का कार्य राजा का होता था, राजा भी सरल एवं सामान्य जीवन जीने वाला होता था। बाद में पद आनुवांशिक हो गये ।
गोंड़ शासन जनता या प्रजा की सामाजिक स्थिति
- जनता या प्रजा की सामाजिक स्थिति प्रजा सरल, सुखी, शांत एवं संतुष्ठ थी। प्रजा में राजा के प्रति आदर, सम्मान और समर्पण का भाव था, जो आज भी उनके गीतों, त्यौहारों में उनका नाम लेकर तथा गाँवों के नाम उनके नाम पर रखकर उनके प्रति आदर प्रकट करते हैं। आज भी गाँवों में राजा के प्रतिनिधि के रूप में भाई, मुखिया या मुकद्दम की पूजा की जाती है।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि गोंड जनजाति अपने प्राचीन शासक एवं शासन के प्रति आदर एवं सम्मान का भाव रखती है।
- गोंड जनजाति का इतिहास मण्डला के गोंड़ राजवंश
- गोंडवाना के बारे में जानकारी | गोंडवाना परिक्षेत्र
- गोंड वंशावली | बानूर ताम्र पत्र 1730
- गोंड वंश के प्रमुख शासक
- गोंडवाना शासन की विशेषताएँ गोंडवाना के 52 गढ़
- गोंड़ जनजाति उत्पत्ति विषयक अवधारणा |मण्डला के गोंड़ शासक एक संगठक के रूप में
- गोंडवाना का पहला उल्लेख, गोंड शासन वाले क्षेत्र की सिंचाई परियोजनायेँ
- रानी दुर्गावती के बारे में जानकारी
- संग्रामशाह-गोंड वंश का प्रथम प्रतापी सम्राट
- सिंगौरगढ़ का किला दमोह
- गोंड वंश से संबन्धित प्रमुख किले एवं महल
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