गोंडवाना रियासत के प्रमुख राजा |गोंड वंश के प्रमुख शासक | Gond Vansh Ke Pramukh Raja

गोंडवाना रियासत के प्रमुख राजा 

गोंड़ वंश के प्रमुख शासक/ राजा   

गोंडवाना रियासत के प्रमुख राजा |गोंड वंश के प्रमुख शासक | Gond Vansh Ke Pramukh Raja



गोंड वंश के शासक संग्राम शाह/ शाही 

 

  • संग्राम शाह गोंड़ वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली एवं प्रतापी राजा थे। संग्राम शाह ने एक छोटी सी जागीर के स्वामित्व से आरम्भ करके अपने रण कौशल से बावन गढ़ों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया ।

 

आसीत्सुनुस्तस्य संग्रामसाहिर्विद्धिठ तुलस्तम कलपान्त वह्नि । 

विश्वविव्याप्ते यत्प्रताप प्रकाशे मध्यह नार्को विस्फुलिंगी बभूव ।। 

                                                                       (गढ़ेसानृपर्णनम् श्लोक 14)


  • संग्राम शाह द्वारा 52 गढ़ों के स्थापित किये जाने के कारण बावन गढ़ाधिपति की उपाधि भी प्राप्त थी।

 

बजप्रायैः पवंत प्रौढ़गाढ़ः सुप्राकारैम्बुभिश्चाक्षया 

दद्येन द्वापचाशधीन दुर्गाणि राज्ञां निवृतानि क्षेणिचक्रं विजित्य (राम नगर शिलालेख श्लोक पृ. 15)

 

52 गढ़ों के नाम की सूची


अबुलफजल ने महाराज संग्राम शाह साहि के 52 गढ़ों की सूची दी 

  • अबुलफजल ने महाराज संग्राम साहि के 52 गढ़ों की सूची दी है। 52 गढ़ों के नाम निम्नलिखित है 1. गढ़ा 2. माड़ौ गढ़ 3. पचेलगढ़ 4. सिंगौरगढ़ 5. अमेदा गढ़ 6. कनौजा 7. बाघमाड़ 8. टीप गढ़ 9. राय गढ़ 10. परतापगढ़ 11. अमरगढ़ 12. देवहार गढ़ 13. पाटन गढ़ 14. फतहपुर 15. नमुआ गढ़ 16. भेवर गढ़ 17. बरगी 18. घनसौर 19. चौरई 20. डोंगरताल 21. करवागढ़ 22. भंजनगढ़ 23 लाफागढ़ 24. सन्ता गढ़ 25.दिमागढ़ 26. बांका गढ़ 27. पवई करही 28. शाहनगर 29. धामौनी 30. हटा 31. माड़ियादौ 32. गढ़ा कोटा 33. शाहगढ़ 34. गढ़ पहरा 35. दमोह 36. रहली 37. इटावा 38 खिमलासा 39. गनौर 40. बारी 41. चौकी गढ़ 42. राहत गढ़ 43. माक्र राही 44 कारू वाग 45. कुरवई 46 रायसेन 47. भौरासो 48. भोपाल 49. ओपद गढ़ 50. पूना गढ़ 51. देवरी और 52. गौरझामर

 

  • इस सूची में चौरागढ़रामनगर और मण्डला के नाम नहीं हैं। संग्राम साहि बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने कई तालाबमंदिरकिले आदि बनवाये। अपने राज्य में विभिन्न कलाओं के विद्वानों को संरक्षण देकर उनकी कला का सम्मान कर उन्हें फलने फूलने का अवसर दिया। वह स्वयं प्रतिभाशाली थेउसने संस्कृत में रचनायें भी की थींजिसमें रस रत्न माला प्रमुख है। संग्राम साहि ने सोने के सिक्के चलाएजो लंदन म्यूजियम और कोलकाता म्यूजियम में संग्रहित हैं।

 

गोंड़ वंश के शासक  दलपति साहि

 

  • संग्राम शाह के दो पुत्र थे दलपति साहि एवं चन्द्र साहि। संग्राम साहि की मृत्यु के पश्चात् उसका ज्येष्ठ पुत्र दलपति शाहि सिंहासनरूढ़ हुआ दलपति शाहि सुन्दरशूर वीर और विद्वान था ।

 

रस गज तिथि युक्ते हायने भूद् गढ़ेशे । 

नृप दलपति साहिः दुर्गे स्थितिर्यद ।

                     (गणेश नृप वर्णनम् )

 

दलपति शाहि का विवाह चन्देल वंश की कन्या दुर्गावती से

  • दलपति शाहि का विवाह चन्देल वंश की कन्या दुर्गावती से हुआ। विवाह के कुछ समय पश्चात् दलपति शाहि और दुर्गावती के यहां वीरनारायण नामक पुत्र ने जन्म लिय। सन् 1548 ई. में जब वीरनाराण 05 वर्ष का थादलपति शाहि की मृत्यु हो गई। 

 

रानी  दुर्गावती

 

  • 05 वर्षीय वीर नारायण को राजा घोषित किया गया और वीरनारायण की तरफ से रानी दुर्गावती ने शासन प्रबंध संभाला। 
  • रानी दुर्गावती के काल को 'गोंडवाना का स्वर्णिम युग कहा गया है। रानी दुर्गावती के समय के गोंडवाना क्षेत्र की समृद्धि की प्रशंसा अबुल फजल ने अपनी पुस्तक 'आईन ए अकबरीमें की है।


दुर्गावती के काल में हुये तीन आक्रमण 

  • दुर्गावती के काल में उस पर तीन आक्रमण हुए 1 मियामा अफगानों का 2. बाज बहादुर काजो मालवा का शासक था, 3. मानिकपुर के मुगल सुबेदार आसफ खाँ का प्रथम दोनों लड़ाईयों में महारानी को जीत मिली लेकिन तीसरी लड़ाई में रानी की पराजय हुईरानी वीर गति को प्राप्त हुई। उनका पुत्र वीर नारायण भी मारा गया । रानी के मरने के पश्चात् गोंड़ सम्राज्य कमजोर पड़ गया।

 

  • वीरनारायण की मृत्यु के पश्चात् दलपति शाहि का भाई चन्द्र साहि राजा बना । मुगलोंमराठों के दबाव बढ़ते जाते हैं। हृदय शाहि इस वंश का एक अन्य प्रताती राजा हुआजिसने बुन्देलों पर आक्रमण कर जुझर सिंह को हराया। 



राजगौड़ वंश का वर्णन कीजिये

  • इस शासन की स्थापना से जिले में नये व्यवस्थित शांतिपूर्ण एवं खुशहाली का दौर प्रारंभ होता है । इस राजवंश के उदय का श्रेय यादव राव (यदुराव) को दिया जाता है । जिनने चौदहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षो में गढ़ा कटंगा में स्थापित किया और एक महत्वपूर्ण शासन क्रम की नींव डाली ।


  • इसी राजवंश के प्रसिद्ध शासक संग्राम शाह (1400-1541) ने 52 गढ़ स्थापित कर अपने साम्राज्य को सुदृढ़ बनाया । नरसिंहपुर जिले में चौरागढ़ (चौगान) किले का निर्माण भी उसने ही कराया था जो रानी दुर्गावती के पुत्र वीरनारायण की वीरता का मूक साक्षी है । संग्राम शाह के उत्तराधिकारियों में दलपति शाह ने सात वर्ष शांति पूर्वक शासन किया । उसके पश्चात उसकी वीरांगना रानी दुर्गावती ने राज्य संभाला और अदम्य साहस एवं वीरता पूर्वक 16 वर्ष (1540-1564) शासन किया । 
  • सन् 1564 में अकबर के सिपहसलार आतफ खां से युद्ध करते हुये रानी ने वीरगति प्राप्त की  । नरसिंहपुर जिले में स्थित चौरागढ़ एक सुदृढ़ पहाड़ी किले के रूप में था जहां पहुंच कर आतफ खां ने राजकुमार वीरनारायण को घेर लिया और अंतत: कुटिल चालों से उसका बध कर दिया । 


  • गढ़ा कटंगा राज्य पर 1564 में मुगलों का अधिकार हो गया गौंड़, मुगल, और इनके पश्चात यह क्षेत्र मराठों के शासन काल में प्रशासनिक और सैनिक अधिकारियों तथा अनुवांशिक सरदारों में बंटा हुआ रहा । जिनके प्रभाव और शक्ति के अनुसार ईलाकों की सीमायें समय समय पर बदलती रहती थीं । जिले के चांवरपाठा, बारहा, सांःथ्द्यर्;खेड़ा, शाहपुर, सिंहपुर, श्रीनगर और तेन्दूखेड़ा इस समूचे काल में परगानों के मुख्यालय के रूप में प्रसिद्ध रहे ।

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