गोंडवाना के बारे में जानकारी | गोंडवाना परिक्षेत्र | Gondwana Area GK in Hindi
गोंडवाना के बारे में जानकारी गोंडवाना परिक्षेत्र
गोंडवाना के बारे में जानकारी
- भारत के हृदय में स्थित और विंध्याचल तथा सतपुड़ा के अंचल में फैला सम्पूर्ण क्षेत्र सघन वनों और पर्वत श्रेणियों के कारण इतना दुर्गम था कि भारत के इतिहास में इस क्षेत्र का उपयुक्त वर्णन अत्यल्प मिलता है । यह दुर्गम क्षेत्र प्राचीन एवं मध्य युग में उत्तर एवं दक्षिण भारत के मध्य एक दीवार के रूप में रहा। इसकी भौगोलिक स्थिति ने इसे उत्तर एवं दक्षिण की राजनीति से बहुत कम प्रभावित होने दिया | यदि कभी भी यहाँ उत्तर एवं दक्षिण भारत के साम्राज्यों का अधिपत्य रहा भी तो वह नाममात्र का रहा। स्वतंत्र प्रवृत्ति वाले इस क्षेत्र के निवासी आदि व्यवस्था के अनुकूल जीवनयापन करते रहे । हिन्द का यह मध्य पूर्वांचल 'गोंडवाना' नाम से प्रसिद्ध है ।
- नौवीं शताब्दी तक मध्य प्रांत के संपूर्ण पूर्वी भाग और संबलपुर के एक बहुत बड़े क्षेत्र में गोंडों का साम्राज्य स्थापित हो गया था, जिसे गोंडवाना के नाम से जाना जाता था। इसमें आज के मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और ओडिशा के कुछ हिस्से सम्मिलित थे।
गोंड कालखंड
- इस अंचल पर प्राचीन काल में उत्तर एवं दक्षिण भारत के विभिन्न साम्राज्यों का अधिपत्य नाममात्र का रहा। यह क्रम कलचुरियों के उत्थान तक चलता रहा।
- कलचुरियों के समय में इस क्षेत्र के बाद ने पहली बार कुशल और सुदृढ़ शासन का एक लम्बे समय तक अनुभव किया कलचुरियों का का इस क्षेत्र के लिए शांति, सुव्यस्था और उन्नति का काल रहा। इसके उपरांत दो शताब्दियों तक यहाँ राजनीतिक रूप से किसी केन्द्रीय सत्ता का प्रभाव नहीं रहा दो शताब्दियों के अंधकार युग पन्द्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में यहाँ गोंड राजाओं के अंतर्गत पुनः एक सुदृढ़ स्थानीय राज्य निर्मित हुआ ।
- गोंड सत्ता ने यद्यपि सोलहवीं सदी के उत्तरार्ध में मुगल अधिपत्य स्वीकार कर लिया, फिर भी इन क्षेत्रों में गोंड सत्ता का प्रभुत्व न्यूनाधिक विस्तार के साथ अठारहवीं सदी के अंत तक बना रहा लगभग तीन सौ वर्षों तक यह क्षेत्र गोंड शासन के अंतर्गत रहा। यह अपने आप में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य है।
- इसका प्रमुख कारण एक तो यह था कि दुर्गम होने के कारण यहाँ बाहरी शक्तियों का हस्तक्षेप नहीं हो सका, दूसरे यहाँ की सुदृढ़ केंद्रीय शक्ति ने विघटन नहीं होने दिया। गोंडवाना एवं उसके राजाओं के सम्बन्ध में विस्तृत विवरण राजाओं द्वारा प्रदत्त सनदों, उत्कीर्ण शिलालेखों, सिक्कों, प्रचलित परम्पराओं, लोकगीतों, जनश्रुतियों, भग्नावशेषों, दुर्गों, बावड़ियों, सरोवरों, मंदिरों, मराठा काल के दस्तावेजों, अकबरनामा, आईने अकबरी आदि से मिलता है राजपुरोहित परिवारों में उपलब्ध पांडुलिपियाँ भी इसके इतिहास की एक महत्वपूर्ण साक्ष्य है ।
- अकबर के ध्वज तले मुगल साम्राज्य अपनी जड़ें पूरे भारत में फैला रहा था। बहुत से हिन्दू राजाओं ने उनके सामने घुटने टेक दिए तो बहुतों ने अपने राज्यों को बचाने के लिए डटकर मुकाबला किया। राजपुताना से होते हुए अकबर की नजर मध्यभारत तक भी जा पहुँची, लेकिन मध्यभारत को जीतना मुगलों के लिए बिल्कुल भी आसान नहीं रहा और खासकर कि गोंडवाना ! इसलिए नहीं कि कोई बहुत बड़ा राज्य या राजा मुगल सल्तनत का सामना कर रहा था, बल्कि इसलिए क्योंकि एक हिन्दू रानी अपने पूरे स्वाभिमान के साथ अपने राज्य को बचाने के लिए अडिग थीं । वह हिन्दू रानी, जिसकी समाधि पर आज भी गोंड जाति के लोग श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और जिसे वीरांगना के रूप में समस्त भारतवासी अपना प्रेरणास्रोत मानते हैं। गोंड राजवंश के स्वर्णिम उत्थान का इतिहास इन क्षेत्रों के स्थापत्य, कला और संस्कृति में अंकित है।
विषय सूची
- गोंड जनजाति का इतिहास मण्डला के गोंड़ राजवंश
- गोंडवाना के बारे में जानकारी | गोंडवाना परिक्षेत्र
- गोंड वंशावली | बानूर ताम्र पत्र 1730
- गोंड वंश के प्रमुख शासक
- गोंडवाना शासन की विशेषताएँ गोंडवाना के 52 गढ़
- गोंड़ जनजाति उत्पत्ति विषयक अवधारणा |मण्डला के गोंड़ शासक एक संगठक के रूप में
- गोंडवाना का पहला उल्लेख, गोंड शासन वाले क्षेत्र की सिंचाई परियोजनायेँ
- रानी दुर्गावती के बारे में जानकारी
- संग्रामशाह-गोंड वंश का प्रथम प्रतापी सम्राट
- सिंगौरगढ़ का किला दमोह
- गोंड वंश से संबन्धित प्रमुख किले एवं महल
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