पदसोपान- संगठन का प्रथम सिद्धान्त |पदसोपान का अर्थ |Hierarchy - First Principle of Organization
संगठन के सिद्धान्त
संगठन से वास्तविक तथा कार्यात्मक सिद्धान्तों का विस्तार से विवेचना करने का प्रयास करेगी। अध्ययन की सुविधा तथा क्रमबद्धता को ध्यान में रखते हुये इन सिद्धान्तों में पदसोपान, नियंत्रण का क्षेत्र तथा आदेश की एकता को सम्मिलित किया गया है।
पदसोपान- संगठन का प्रथम सिद्धान्त
Hierarchy - First Principle of Organization
पदसोपान का अर्थ
➥ प्रशासनिक दृष्टि से देखा जाय तो पदसोपान का अर्थ किसी अधीनस्थ पर वरिष्ठ की सत्ता या उच्चता से है। यह एक ऐसा बहुस्तरीय संगठन है, जिसमें क्रमवार कई स्तर होते हैं जो आपस में एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। यह एक ऐसी व्यवस्था है, जिससे किसी संगठन के विभिन्न व्यक्तियों के प्रयासों को एक-दूसरे से समन्वित ढंग से सम्बन्धित किया जाता है।
➥ संगठन के विभिन्न सिद्धान्तों में का पदसोपान स्थान महत्वपूर्ण एवं प्रथम है। दूसरे शब्दों में यह अधिकार और आदेश की शीर्ष स्तरीय व्यवस्था है।
➥ संगठन का एक सार्वभौमिक सिद्धान्त है पदसोपान, पदसोपान के अभाव में किसी संगठन की
कल्पना सम्भव नहीं हो सकती है। इसलिए यह सभी संगठनों की एक आधारभूत आवश्यकता होती
है। प्रत्येक प्रशासकीय संगठन पदसोपान के रूप में गठित होता है। अतः शिखर से नीचे
तक उच्च अधिकारियों एवं अधीनस्थों के सम्बन्धों को परस्पर सम्बद्ध करने की
व्यवस्था को ही पद-सोपान की संज्ञा दी जाती है।
संगठन सिद्धान्त के पितामह किसे कहा जाता है ?
संगठन में “सीढ़ीनुमा” का तात्पर्य
➥ प्रत्येक आज्ञा, पत्र-व्यवहार,
तथा संचार आदि
उचित मार्ग द्वारा ही आना जाना चाहिये। अर्थात् तत्काल उच्च अधिकारी द्वारा शिखर
अधिकारी तक क्रम से जाना चाहिये। एक लिपिक, प्रधान लिपिक के अधीन है, प्रधान लिपिक एक कार्यालय अधीक्षक के अधीन है तथा कार्यालय अधीक्षक
अनुभाग अधिकारी के अधीन है आदि। यदि लिपिक को कोई बात अनुभाग अधिकारी से कहनी है, तो वह प्रधान लिपिक के माध्यम से
कार्यालय अधीक्षक तक पहुँचेगा और तब उसके द्वारा अनुभाग अधिकारी तक पहुँचेगा।
➥ इसी प्रकार यदि अनुभाग अधिकारी लिपिक की कोई आदेश देना चाहता है तो वह आदेश कार्यालय अधीक्षक के द्वारा ही प्रधान लिपिक तक पहुँचना चाहिए और तब उसके माध्यम से लिपिक तक आना चाहिए।
पद सोपान सिद्धान्त की विशेषताएं
पद सोपान सिद्धान्त की निम्नलिखित विशेषताओं का प्रतिपादन किया जा सकता है-
उपरोक्त निर्वचन के
उपरान्त पद सोपान सिद्धान्त की निम्नलिखित विशेषताओं का प्रतिपादन किया जा सकता
है। इन्हें क्रमबद्ध कर समझने का प्रयास करें
1. प्रशासनिक संगठन की क्रियाकलाप को इकाइयों और उप- इकाइयों में विभाजित करना सम्भव हो जाता है।
2. इन इकाइयों की स्थापना एक के नीचे एक की जाती है, जिससे पिरामिड के आकार की संरचना का
निर्माण होता है।
3. विभिन्न स्तरों को से सम्बन्धित अधिकारों एवं उत्तर दायित्वों का निर्धारण सम्भव हो पाता है।
4. सोपानक्रम
पर आधारित संगठन सुव्यवस्थित रूप से उचित माध्यम से सिद्धान्त का पालन करता है।
5. कर्मचारी केवल अपने से निकटतम वरिष्ठ अधिकारी से आदेश माँगता है किसी
भी अन्य अधिकारी से नहीं।
6. अधिकार और उत्तर दायित्व में समुचित समन्वय एवं ताल-मेल रेखा जाता है, क्योंकि बिना उत्तर दायित्व के अधिकार खतरनाक होते हैं तथा बिना अधिकार के उत्तर दायित्व महत्वहीन बन जाते हैं।
पदसोपान सिद्धान्त के गुण दोष
संगठन में सोपानक्रम सिद्धान्त के लाभ
संगठन में सोपानक्रम सिद्धान्त के प्रयोग से होने वाले लाभों को निम्नलिखित
ढंग से क्रमबद्ध कर आत्मसात् किया जा सकता है
1. प्रशासनिक संगठन में उद्देश्यों में एकता होनी चाहिए। यह एकता पद
सोपान द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है।
2. संगठन में कार्यों का विभाजन होता है, जिससे विभिन्न कार्य इकाइयाँ अस्तित्व में आती हैं। सोपानक्रम, संगठन की विभिन्न इकाइयों को आपस में
समन्वित कर एक संयुक्त ढाँचे की रचना करता है। जिससे संगठनात्मक एकीकरण एवं समन्वय
द्वारा संगठन को और प्रभावी बनाया जाता है।
3. इस सिद्धान्त में संगठन में नीचे से ऊपर तक एवं ऊपर से नीचे तक
आवश्यक संचार व्यवस्था स्थापित की स्थापना होती है। जिससे प्रत्येक कार्मिक को यह
स्पष्ट हो जाता है कि उसका अगला सम्बन्ध किस कर्मचारी से हैं।
4. यह सिद्धान्त प्रत्येक स्तर और पद पर उत्तर दायित्व निर्धारित करने
में सहायक होता है। प्रत्येक कर्मचारी को संगठन में अपनी स्थिति और उत्तर
दायित्वों का ज्ञान होता है तथा यह भी मालूम होता है कि वह किसके प्रति प्रत्यक्ष
तौर पर उत्तर दायी है।
5. इसके द्वारा उचित माध्यम से व्यवस्था में प्रक्रिया का कड़ाई से नियमानुसार
पालन किया जाता है, जिससे आसान तथा भ्रष्ट रास्तों का
प्रयोग प्रतिबन्धित हो जाता है।
6. सोपानक्रम के फलस्वरूप उच्चतम स्तर पर काम का भार कम हो जाता है तथा
विकेन्द्रीकरण द्वारा निर्णय लेने की प्रक्रिया आसान हो जाती है। संगठन का
प्रत्येक कर्मचारी निर्णय लेने और अपने अधीनस्थों के मार्गनिर्देशन के लिए
प्रशिक्षित किया जाता है,
जिससे अधीनस्थ
कर्मचरियों एवं अधिकारियों में भी संगठन में अपने महत्व की भावना उत्पन्न होती है।
7. सुव्यवस्थित व्यवस्था तथा नियमों का कड़ाई से पालन किये जाने के कारण
कर्यों की गति आसान हो जाती है और यह जानना आसान हो जाता है कि किसी कार्य से
सम्बन्धित पत्रावली किस कर्मचारी विशेष के पास तथा किन कारणों से अवरूद्ध है।
पदसोपान व्यवस्था के दोष
यद्यपि पदसोपान व्यवस्था की उपयोगिता को सामान्य रूप से स्वीकार किया जाता है। परन्तु साथ ही साथ इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि सिक्के के दो पहलू होते हैं। अर्थात इस व्यवस्था के निम्नलिखित दोषों को भी रेखांकित करना आवश्यक है
- यह सिद्धान्त कार्य के निष्पादन में अनावश्यक विलम्ब करता है। इस व्यवस्था में कई दिन सप्ताह तथा महीने लग सकते है। अतः यह सिद्धान्त लालफीताशाही को बढ़ावा मिलता है तथा भ्रष्टाचार का जन्म होता है।
- अत्यधिक औपचारिक के कारण संगठन में उच्च अधिकारियों एवं अधीनस्थों के मध्य औपचारिक सम्बन्ध पैदा हो जाते है। सम्बन्धों के कारण उच्चतर पदाधिकारियों एवं निम्न पदाधिकारियों के मध्य पारस्परिक सहयोग की भावना में कमी हो जाती है तथा सभी यांत्रिक बनकर मूकदर्शक बने रहते है।
वस्तुतः इस सिद्धान्त के गुणों एवं दोषों को देखते हुए यह सिद्ध हो जाता है कि संगठन में पदसोपान के दोषों की अपेक्षा उसके लाभ की अधिकता है। यदि उच्च एवं निम्न अधिकारियों के मध्य समुचित निष्ठा एवं विश्वास पैदा हो जाये, तो कार्य के विलम्ब के दोषों तथा उच्चाधिकारियों एवं अधीनस्थ से उत्पन्न दोषों को निश्चित रूप से कम किया जा सकता है। जिससे एक प्रशासनिक संगठन को अधिक पारदर्शी, जवाबदेह तथा प्रभावी बनाया जा सकता है।
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