गोंड जनजाति का इतिहास | मण्डला के गोंड़ राजवंश | History of Gond Tribes

 गोंड जनजाति का इतिहास ,मण्डला के गोंड़ राजवंश 

गोंड जनजाति का इतिहास | मण्डला के गोंड़ राजवंश | History of Gond Tribes



गोंड जनजाति का इतिहास 

 

  • गोंड जनजाति भारत का सर्वाधिक जनसंख्या वाली, मध्य भारत का विशाल जनजातीय समुदाय है। गौरव पूर्ण इतिहास, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से संयुक्त यह जनजाति मध्यप्रदेश के अतिरिक्त छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गुजरात एवं उत्तर प्रदेश में निवास करती है।


  • विश्व में शायद ही कोई अन्य जनजाति गोंड़ों जैसी प्राचीन गौरवमय इतिहास वाली एवं बदलते हुए समय में अपने को युग के सांचे में ढालने वाली हो, जो सभी परिवर्तनों के साथ ही साथ अपनी जनजातीय विशेषताएँ भी अक्षुण्ण रखे हुए हों।


  • 2001 की जनगणना के अनुसार गोड़ जनजाति की कुल जनसंख्या 97,28,976 है। केवल मध्यप्रदेश में ही 43,57,918 गोंड जनजाति के । लोग निवास करते हैं, जो कि मध्यप्रदेश कि कुल आबादी का 35 प्रतिशत हैं। मण्डला जनपद में सर्वाधिक जनसंख्या गोंड़ जनजाति की है।

 

गोंड जनजाति के इतिहास के बारे में जानकारी 

 

  • वर्तमान मध्यप्रदेश के एक बड़े हिस्से पर गोंड़ों न सफलतापूर्वक शासन किया। वर्तमान छत्तीसगढ़, विन्ध्याचल, बुन्देलखण्ड और बघेलखण्ड के अधिकांश क्षेत्रों पर 18वीं सदी तक गोंड़ों के शासन थे। 

गोंड जनजाति पर क्विक टिप्पणी 

  • गोंड जनजाति विश्व के सबसे बड़े आदिवासी समूहों में से एक है। यह भारत की सबसे बड़ी जनजाति है इसका संबंध प्राक-द्रविड़ प्रजाति से है। 
  • इनकी त्वचा का रंग काला, बाल काले, होंठ मोटे, नाक बड़ी व फैली हुई होती है। ये अलिखित भाषा गोंडी बोली बोलते हैं जिसका संबंध द्रविड़ भाषा से है।
  • ये ज़्यादातर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में पाए जाते हैं।
  • गोंड चार जनजातियों में विभाजित हैं: राज गोंड, माड़िया गोंड, धुर्वे गोंड, खतुलवार गोंड
  • गोंड जनजाति का प्रधान व्यवसाय कृषि है किंतु ये कृषि के साथ-साथ पशु पालन भी करते हैं। इनका मुख्य भोजन बाजरा है जिसे ये लोग दो प्रकार (कोदो और कुटकी) से ग्रहण करते हैं।
  • गोंडों का मानना ​​है कि पृथ्वी, जल और वायु देवताओं द्वारा शासित हैं। अधिकांश गोंड हिंदू धर्म को मानते हैं और बारादेव (जिनके अन्य नाम भगवान, श्री शंभु महादेव और पर्सा पेन हैं) की पूजा करते हैं।
  • भारत के संविधान में इन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित किया गया है।


गोंड़ों के सबसे प्रतापी नरेश संग्राम शाह और दलपत शाह

  • गोंड़ों के सबसे प्रतापी नरेश संग्राम शाह और दलपत शाह थे, जिन्होंने इस वृहद् क्षेत्र में अनेक दुर्गों का निर्माण कराया । मात्र 35 वर्ष की अवस्था में दलपत शाह की आकस्मिक मृत्यु पर रानी दुर्गावती ने राज्य शासन को कुशलतापूर्वक संभाला। दुर्गावती चन्देल राजपूत कन्या थी और उनका विवाह दलपत शाह से हुआ था । 


  • वस्तुतः राजगोंड़ अपने राज्य काल में क्षत्रियत्व का दर्जा प्राप्त कर चुके थे। 1694 ई. में अकबर के सेनापति आसफ खाँ से रानी दुर्गावती का युद्ध हुआ और वे मृत्यु को प्राप्त हुई। इस युद्ध गोंड़ साम्राज्य को गहरी क्षति पहुँची । यद्यपि मुगलों के बाद मराठों तक के राज्य में गोंड़ों ने प्रशासन संबन्धी जिम्मेदारियाँ संभाली, किन्तु गोंड़ जनजाति जो विकास के क्रम में आगे बढ़ चुकी थी, सामाजिक टूटन का शिकार होकर रह गयी। कंद मूल और शिकार पर आश्रित रहने वाले गोंड़ कई वर्गों में बंट गए। गोंड़ों की 50 से अधिक उपजातियाँ हैं। एक वर्ग राज पुरूष का हो गया, और दूसरा सामन्तों या धनाढयों का जो शासन छिन जाने पर स्थाई कृषक के रूप में जीवकोपार्जन करने लगे।

 

मण्डला के गोंड़ राजवंश

 

  • जनश्रुति के अनुसार, स्लीमैन (1844) राजा वेन ( श्रीमद भागवत, अध्याय पृष्ठ) के शरीर से उत्पन्न होने के कारण कुछ गोंड़ बेनवंशी गोंड़ कहलाए। इन बेनवंशी गोंड़ों में से एक थे, भुआराव, वे नागवंश थे। उनके पिता राजा कर्ण थे और माता नागवंश की थीं। पंचमढ़ी के तालाब के पास उन दोनों का सहवास हुआ। भुआराव के वंशज नागवंशी गोंड़ कहलाए। इस वंश के अंतिम राजा धारूशाह या धानुपंडा थे, जिनकी पुत्री के साथ यादव राय का विवाह हुआ। धानुपंडा तीन भाई थे। धानुपंडा या धारू शाह, धुरन्धर शाह और महीपत, तीनों भाईयों के बीच राज्य का बंटवारे में, धुरन्धरशाह को छत्तीसगढ़, महीपत को देवगढ़ और धानु पंडा को गढ़ा का राज्य मिला, जिसके अन्तर्गत मण्डला, रायगढ़, लांजी, हटा, कामता, खैरागढ़, धुर्राई, खदान, कवर्धा, पुरुलिया, चौरागढ़, और नरसिंहपुर थे। राजधानी गढ़ा थी। 


यादव राय के संबंध में दो प्रकार की किंवदतिया प्रसिद्ध हैं पहली किंवदन्ती के अनुसार यादव राय दक्षिण के कच्छवाह क्षत्रिय थे । 

या (देव) गयो नागवंश प्रतिष्ठः स्वादेशीय कच्छावाहः स आसीत् 

रामः सीता लक्ष्मणो वायुसुनूटदर्यस्मै दत्तस्माथ राज्यं गढ़ायाः 

(गणेनशनृपवर्णम् श्लोक सं. 1 )

 

द्वितीय जनश्रुति के अनुसार, डॉ. हीरालाल (1926) के अनुसार 

  • यादव राव गोदावरी नदी के तट पर स्थित सेहल गाँव के निवासी जोधासिंह ( राजपूत) के पुत्र थे। इन्होंने गढ़ा के गोंड राजा के यहां नौकरी की। दैवीय कृपा (राम जी की) से नागवंशीय राजा की एक मात्र पुत्री रत्नावली का यादव राय से विवाह हुआ और कालांतर में यादव राय एक गढ़ा के राजा हुए।


  • यादव राय के राज्यारोहण की काल 'गढ़ेश नृप वर्नणम्' में वैशाख शुक्ल पूर्णिमा 215 तदानुसार सन 157 ई. बताया गया है। डॉ. हॉल ने भी निजाम साहिब के ताम्र पक्ष का सन्दर्भ देते हुए यादव राय का समय विक्रम संवत 201 माना है। 


  • मंडला जिले के गजेटियर में यादव राय का समय 1181 ई. माना गया है। रामनगर शिलालेख में 47 गोंडवंशी राजाओं ने नाम अंकित हैं। 


  • मंडला जिला गजेटियर भी लिखता है कि, इस वंशावली में कई नाम हैहयवंशी राजाओं से मिलते हैं। गोंड़ कल्चुरियों के पतन के पश्चात् 14 वीं सदी में इस क्षेत्र में आए। राम भरोसे अग्रवाल ने विविध तथ्यों के आधार पर सिद्ध किया है कि राम नगर शिलालेख में लिखे गये समस्त नाम वास्तविक एवं ऐतिहासिक हैं। उन्होंने कहा है कि गोड़ लोग इस क्षेत्र के प्राचीनतम निवासी हैं, उनमें से कोई धनवान हो गये और छोटे - मोटे राजा भी हो गये। उनका राज्य प्रारम्भ में विस्तृत नहीं था, क्षेत्र उपजाऊ नहीं था, आमदानी कम थी, पर राजा का पद अवश्य था । ऐसी स्थिति यादव राय के 47 पीढ़ी तक चलती रही। आज भी रामनगर शिलालेख में अंकित लगभग सभी राजाओं के नाम के गाँव इस क्षेत्र में मिलते हैं। कल्चुरियों के कमजोर होने के पश्चात् राजा संग्राम साहि ने अपने शासन का विस्तार कर लिया।



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