प्रबन्ध का महत्व | Importance of Management in Hindi
प्रबन्ध का महत्व (Importance of Management in Hindi)
- किसी भी क्षेत्र में चाहे वह आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, न्यायिक, औद्योगिक अथवा व्यावसायिक हो, प्रबन्ध एवं प्रबन्धकों का एक महत्वपूर्ण स्थान है।
- कूण्ट्ज तथा ओ डोनेल के अनुसार, "प्रबन्ध से अधिक महत्वपूर्ण मानवीय क्रिया का अन्य कोई क्षेत्र नहीं है।”
प्रबन्ध के महत्व अध्ययन निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है-
1. आधुनिक व्यवसाय में प्रबन्ध का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान है-
- प्रोफेसर रोबिन्सन के अनुसार, "कोई भी व्यवसाय स्वयं नहीं चल सकता, चाहे वह संवेग की स्थिति में क्यों न हो । उसके लिए इस नियमित उद्दीपन की आवश्यकता पड़ती है।” इस नियमित उद्दीपन की पूर्ति का एकमात्र स्रोत होता है व्यवसाय का मस्तिष्क अर्थात् प्रबन्ध।
2. औद्योगिक समाज के एक प्रभावी समूह के रूप में
- आधुनिक औद्योगिक समाज में प्रबन्ध एवं पृथक प्रभावी समूह के रूप में माना जाता है। आज हम ‘श्रम तथा पूँजी' की बातें न करके ‘प्रबन्ध तथा श्रम’ की बातें करते हैं। अब हमारे शब्दकोष मे पूंजी के उत्तरदायित्वों के बारे में सुनते हैं। सन् 1952 में जब आइजनहावर के प्रशासन का निर्माण हुआ था, उस समय उसका निर्माण एक प्रबन्ध- प्रशासन के रूप में हुआ था।
3. गलाकाट प्रतियोगिता का सामना करने एवं अस्तित्व के संरक्षण के लिए
- वे दिन बीत गये जब उत्पादन का आकार केवल स्थानीय सीमाओं तक ही सीमित रहने के कारण कारीगर ही उत्पादक, निर्माता, प्रबन्धक तथा विक्रेता होता था। इसके विपरीत, आधुनिक उत्पादन का क्षेत्र राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय रूप धारण कर चुका है। आज के उत्पादक एवं निर्माता को न केवल स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है। जिस कारण विद्धानों का कहना है कि आधुनिक व्यवसाय एवं उद्योग अस्तित्व संरक्षण तथा जटिल एवं गलाकाट प्रतियोगितापूर्ण है। इसका सामना करने के लिए आधुनिक उत्पादक कम लागत पर श्रेष्ठतम वस्तुओं का उत्पादन करने में संलग्न है।
4. वृहत् उत्पादन को कुशलतापूर्वक चलाने के लिए
- आज का युग वृहत् उत्पादन का युग है। इसके लिए एक विशाल एवं सुदृढ़ संगइन की आवश्यकता पड़ती है। कुछ संस्थाओं को विस्तार राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होता है।
5. आधुनिक वैज्ञानिक एवं तकनीकी अविष्कारों आदि का लाभ उठाने के लिए
- आज विज्ञान सभी क्षेत्रों में दिन दूनी रात चौगुनी गति से प्रगति कर रहा है। फिर व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्षेत्र इससे कैसे वंचित रह सकता है? परिणामस्वरूप आज हाथ से चलने वाले यंत्रों का स्थान स्वचालित यंत्रों ने ले लिया है।
6. श्रम समस्याओं के सन्तोषजनक ढंग से समाधान के लिए
- एक समय था जब अधिकांश उद्योगपतियों की यह मान्यता थी कि श्रमिक को जितना भूखा, नंगा, परेशान एवं दयनीय स्थिति में रखा जायेगा वह उतना ही अधिक कार्य करेगा। पूँजीपतियों की इस शोषण की मनोवृत्ति के विरूद्ध श्रमिकों ने एक साथ होकर अपनी आवाज बुलन्द की । परिणामस्वरूप एक शक्ति का उदय हुआ। श्रमिकों ने इसके विरूद्ध श्रम-संघों का निर्माण किया तथा हड़तालों आदि का सहारा लिया।
- श्रम-पूँजी के बीच की खाई दिनो-दिन बढ़ती गयी। उनके इस संघर्ष ने पूँजीपति प्रबन्धकों को अपनी श्रम नीति में आमूल परिवर्तन करने के लिए बाध्य किया। यह अनुभव किया गया कि श्रम उत्पादन का एक सजीव अनिवार्य अंग हैं, अतः इसकी कुशलता में वृद्धि करनी होगी। श्रम जितना अधिक कुशल होगा, वह उतना ही अधिक मितव्य सन्तोषजनक ढंग से समाधान किया जाए तथा श्रम पूँजी के मध्य की खाई को पाटा जाय।
7. उत्पत्ति के विभिन्न साधनों में प्रभावी समन्वय स्थापित करने के लिए
- प्रबन्ध मिश्रित अर्थव्यवस्था का एक शक्तिशाली तथ्य है। यह उत्पादन का एक पृथक् एवं महत्वपूर्ण घटक है। आधुनिक प्रशासन एवं प्रबन्ध हमें यह सिखाता है कि किस प्रकार से उत्पादन में सहायता प्रदान करने वाली विभिन्न शक्तियों को एकत्रित किया जाए एवं उनमें प्रभावी समन्वय स्थापित किया जाय।
8. सामाजिक उत्तरदायित्वों को पूरा करने के लिए
- आज क प्रशासन एवं प्रबन्ध का कार्य केवल व्यवसाय अथवा उपयोग की स्थापना करने, आन्तरिक व्यवस्था करने, संचालन करने एवं उससे लाभ कमाने तक ही सीमित नहीं हैं अपितु आधुनिक प्रशासन एवं प्रबन्ध को अनेक सामाजिक उत्तरदायित्वों को भी पूरा करना पड़ता है।
9. निर्धारित उद्देष्यों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए
- जब कभी भी कोई उद्यम दिन की रोशनी देखता है उसे उसके साथ ही उद्देश्य अथवा लक्ष्य उनके क्रम की प्राप्ति करनी होती है। यह एक निर्विरोध तथ्य अथवा सत्य है कि एकाकी व्यक्ति की तुलना में व्यक्तियों का समूह निश्चित उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति अच्छी तरह से कर सकता है। यह कार्य संगठन द्वारा पूरा किया जाता है, जोकि प्रशासन एवं प्रबन्ध का एक अनिवार्य अंग है। संगठन एक प्रकार से दो या दो से अधिक व्यक्तियों की मिल-जुलकर कार्य करने की प्रणाली है।
10. न्यूनतम प्रयत्नों के अधिकतम परिणामों की प्राप्ति के लिए
- प्रबन्ध के द्वारा न्यूनतम प्रयत्नों से अधिकतम परिणामों की उपलब्धि की जा सकती है। उर्विक के शब्दों में, "कोई भी विचारधारा, कोई भी वाद, कोई भी राजनैतिक सिद्धान्त प्रदत्त मानवीय एवं भौतिक साधनों के उपयोग से न्यूनतम प्रयत्नों के द्वारा अधिकतम उत्पादन की प्राप्ति नहीं कर सकता। यह तो केवल दोष रहित प्रबन्ध द्वारा ही सम्भव है.....।” यही कारण है कि प्रबन्ध का महत्व एक समन्वयकारी शक्ति के रूप में निरन्तर बढ़ता चला जा रहा है।
11. किसी संस्था के बाहरी एवं आन्तरिक पक्षों के समन्वय स्थापित करने के लिए
- समन्वय प्रशासन एवं प्रबन्ध का सार है। इसका कारण यह है कि इसके अभाव में सभी क्रियाएँ, चाहे वे बाहरी हों अथवा आन्तरिक, व्यर्थ हो जाती है। आन्तरिक पक्षों से आशय उन कर्मचारियों एवं अधिकारियों से हे जो संस्था के विभिन्न पदों पर आसीन है। इन कर्मचारियों एवं अधिकारियों की क्रियाओं के समन्वय स्थापित करने में प्रबन्ध का महत्वपूर्ण हाथ होता है। इसके विपरीत बाहरी पक्षों के आशय अंशधारियों, सरकार, श्रम-संघों एवं समाज आदि से है। इनमें समन्वय भी प्रबन्ध द्वारा ही स्थापित किया जा सकता है।
12. उत्पादन के सीमित साधनों का अधिकतम उपयोग करने के लिए उत्पादन के
- विभिन्न सीमित साधनों अर्थात् श्रम, पूँजी, यन्त्र एवं सामग्री आदि का अधिकतम उपयोग में प्रशासन एवं प्रबन्ध का महत्वपूर्ण योगदान होता है। हरबर्ट एन. केसन के "प्रत्येक बड़ी संस्था में पूरी गाड़ी भर सोना छिपा होता है, इसे साधनों का सदुपयोग करके एवं अपव्यय को रोक कर प्राप्त किया जा सकता है। "
13. भविष्य के लिए संस्था में पर्याप्त सक्षम प्रषासक एवं प्रबन्धक उपलब्ध कराने के लिए
- किसी भी देश के लिए भावी औद्योगिक विकास की योजनाओं को तैयार करने, उन्हें क्रियान्वित करने, देश को कुशल एवं स्वच्छ प्रशासन प्रदान करने के लिए यह परम आवश्यक है कि पर्याप्त संख्या सक्षम प्रशासक एवं प्रबन्ध उपलब्ध हो। इनका एक मात्र स्रोत प्रबन्धकीय शिक्षण एवं प्रशिक्षण |
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