संगठन का महत्व | संगठन का महत्व लिखिए | Importance of Organization
संगठन का महत्वसंगठन का महत्व लिखिए
संगठन का महत्व Importance of Organization
- यद्यपि संगठन का अस्तित्व कई युगों पूर्व हो चुका था, किन्तु प्रारम्भिक अवस्था में इसका समाज में कोई महत्व नहीं था। हाँ, आधुनिक युग में इसका महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है और इसी कारण वर्तमान समाज को संगठनात्मक समाज की संज्ञा दी जा रही है। परिवार को समाज में सबसे पहला संगठन कहा जाता है, उसके बाद समय के साथ-साथ तरह-तरह के संगठन बनते रहे हैं। देश के प्रशासन को चलाने के लिये संगठन अनिवार्य होते हैं। सरकार जब भी कोई नया कार्य हाथ में लेती है तो सरकारी संगठनों की स्थापना की जाती है। संगठन वास्तव में एक ढाँचा है, जिसके जारिए लक्ष्यों की प्राप्त के लिए जनशक्ति, सामग्री और धन का अनुकूलतम उपयोग एवं समन्वय किया जाता है।
- संगठन का उद्देश्य मानवीय तथा भौतिक साधनों पर नियन्त्रण करना है। व्यक्तियों तथा वर्गों के मध्य कार्य विभाजन तथा विशिष्टीकरण होने के कारण संगठन किसी भी वर्गीय क्रिया का अनिवार्य लक्षण है। जब किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिये विभिन्न व्यक्ति एक साथ मिलते हैं तो उनके कार्य में किसी न किसी प्रकार का विशेषीकरण अनिवार्य हो जाता है।
- श्रम-विभाजन के रूप में की जाने वाली वर्गीय क्रिया के समुचित रूप प्रदान करने के लिये संगठन की स्थापना की जाती है। संगठन किस ढंग से काम करेगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि नीतियाँ और योजनाऐं कैसे बनाई जाती हैं और उन्हें कैसे लागू किया जाता है? संगठन में सर्वोच्च प्रशासक वर्ग नीति निर्धारण करता है। मध्य प्रशासकीय वर्ग योजनाऐं और कार्यक्रम बनाता है और नीचे के अधिकारी तथा कर्मचारी उन पर वास्तविक क्रियान्यवयन करते हैं।
- जबकि हम जानते हैं कि हजारों वर्षों से ही समाज में संगठन मौजूद है, किन्तु समय के साथ-साथ संगठनों का रूप बदलता गया और आज तो अनेक प्रकार के संगठन मौजूद हैं। संगठन में कार्यरत व्यक्तियों की संख्या के आधार पर उन्हें बड़ा या छोटा कहा जा सकता है। एक कर्मचारी वाला संगठन छोटा संगठन है और लाखों कर्मचारियों वाला दूरदर्शन एक बड़ा संगठन है।
- संगठन स्वयं में कोई साध्य नहीं है, यह तो मात्र साध्य की प्राप्ति का साधन है। कुशल एवं सृदृढ़ संगठन पर ही प्रभावशाली प्रबन्ध निर्भर करता है। संगठन ही प्रशासन को सफलता की ओर अग्रसर करा सकता है। वास्तव में यदि संगठन को प्रबन्ध की आधारशिला कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। यदि संगठन से सम्बन्धित नियोजन में किसी प्रकार का दोष रह जाता है तो प्रबन्ध का कार्य कठिन एवं प्रभावहीन हो जाता है। इसके ठीक विपरीत, एक नियोजित एवं सुदृढ़ संगठन, स्वस्थ्य संगठन की नींव डालता है।
- वस्तुतः संगठन में मूलतः उसका ढाँचा, उसमें कार्यरत व्यक्तियों के बीच की कार्यशील व्यवस्था और उनके परस्पर सम्बन्ध शामिल होते हैं। वर्तमान परिवेश में व्यक्ति के जीवन और संगठन के बीच अटूट सम्बन्ध हैं, भले ही संगठन सार्वजानिक हो या निजी । व्यक्तियों के बिना संगठन की और संगठन के बिना व्यक्तियों की कल्पना करना कठिन है। वास्तव में व्यक्ति संगठनों में काम करता है, उनसे लाभ उठाता है और प्रभावित भी होता है। इससे उनकी कार्यकुशलता में वृद्धि होती है तथा अनेक श्रम समस्याओं का समाधान होता है।
- कुशल संगठन के अन्तर्गत कार्य को विभिन्न भागों एवं समूहों में बाँटकर कर्मचारियों की योग्यतानुसार उनमें बाँट दिया जाता है। योग्यता एवं रूचि के अनुसार कार्य मिलने पर कर्मचारी उसे अधिक मन लगाकर करता है तथा अधिक वैज्ञनिक ढंग से कार्य के लिये अपने विचार प्रस्तुत करता है, जिससे कार्य निष्पादन सम्भव हो पाता है।
पीटर एफ ड्रकर के अनुसार आदर्श संगठन
- पीटर एफ ड्रकर ने इस सम्बन्ध में लिखा है कि आदर्श संगठन वह है जो सामान्य व्यक्तियों को असामान्य कार्य करने में सहायता करता है। संगठन को कई विभागों, शाखाओं, उप-विभागों आदि में बाँटा जाता है, जिससे उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु संगठन को अत्यन्त सुविधाजनक किया जाता है। इसी क्रम में एल० डी० व्हाइट जैसे विद्वान कहते हैं कि आज का व्यक्ति अपने व्यक्तित्व से कम और संगठन से ज्यादा पहचान जा रहा है, क्योंकि आज व्यक्ति "संगठन मानव" बन गया है। वास्तव में आज हम व्यक्ति को उसके संगठन के सदस्य के रूप में पहचानते हैं। आज व्यक्ति ही नहीं, बल्कि समाज में भी संगठन की व्यापक पहुँच हो गई है।
- किसी भी संगठन की सफलता एवं असफलता इसके द्वारा प्रस्तुत कार्य निष्पादन एवं अन्तिम परिणामों से की जा सकती है। यदि निर्धारित लक्ष्य एवं उद्देश्य प्राप्त होते हैं तो संगठन मजबूत एवं सक्षम है और यदि वे प्राप्त नहीं होते हैं तो उसका तात्पर्य यह है कि संगठन में कहीं त्रुटि एवं कमी रह गयी है। संगठन के योजना में कर्तव्यों, उत्तर दायित्वों तथा सम्बन्धों की स्पष्ट व्याख्या होनी चाहिये ।
प्रत्येक अधिकारी को अपने कार्यक्षेत्र, उसकी सीमाओं, कार्य निर्देशन का क्षेत्र आदि के सम्बन्ध में स्पष्ट जानकारी होनी चाहिये। अतः संगठन में यह भी आवश्यक है कि उसमें विकास एवं विस्तार करना सम्भव हो सके। यही नहीं उनमें परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन की भी व्यवस्था होनी चाहिये इस प्रकार सफल प्रशासन हेतु सुव्यवस्थित, समन्वयपूर्ण एवं प्रभावी संगठन एक आधारभूत आवश्यकता है।
प्रशासन क्यों आवश्यक है ?
1. संगठन से प्रशासन में विशिष्टीकरण को बढ़ावा मिलता है। श्रेष्ठ संगठन के अन्तर्गत ही विशेषज्ञों की नियुक्ति की जा सकती है जो प्रशासन के विभिन्न कार्यों से सम्बद्ध किये जाते हैं।
2. आधुनिक युग में प्रत्येक प्रशासन को अपनी क्रियाओं का विकास व विस्तार करना पड़ता है। यह कार्य संगठन द्वारा ही सम्भव होता है।
3. संगठन प्रशासन की विभिन्न क्रियाओं को आनुपतिक एवं सन्तुलित महत्व प्रदान करता है।
4. संगठन सम्बन्धी रचना से विभिन्न विभागों, उपविभागों, स्थितियों, कार्यों तथा क्रियाओं के मध्य समन्वय स्थापित किया जाता है। स्वस्थ संगठन समन्वय को सुविधाजनक बनाता है, जिससे मानवीय प्रसाधनों का श्रेष्ठतम उपयोग सम्भव हो जाता है।
5. स्वस्थ संगठन भ्रष्टाचार को रोकता है, जिससे कर्मचारियों का मनोबल ऊँचा उठता है।
6. संगठन द्वारा कार्यभार, अधिकार, दायित्व तथा विभागीय प्रयासों में सन्तुलन की स्थापना की जाती है। परिणामतः कर्मचारियों में सहयोग व सहभागिता की भावना पनपती है।
7. एक श्रेष्ठ संगठन में अधिकारों का प्रत्यायोजन अत्यन्त सुव्यवस्थित ढंग से किया जा सकता है।
8. संगठन किसी उपक्रम के विकास एवं विस्तार में पर्याप्त सहायता प्रदान करता है।
9. एक प्रभावी संगठन नवीन शोध एवं अनुसंधानों के कारण विकसित हुए तकनीकी सुधारों का नवीनतम उपयोग किया जाना सम्भव बनाते हैं।
10. श्रेष्ठ संगठन संरचना से पूर्व निश्चित सम्बन्धों के कारण सन्देशों का सुव्यवस्थित आदान-प्रदान कर संचार को प्रभावी बनाता है।
विषय सूची -
- संगठन का अर्थ एवं अवधारणा
- संगठन की अवधारणा
- संगठन के उद्देश्य
- संगठन को प्रभावित करने वाले कारक
- संगठन के सिद्धांत
- संगठन का महत्व
- संगठन के प्रकार लोक प्रशासन -औपचारिक संगठन
- अनौपचारिक संगठन
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