मार्क्सवाद पर जयप्रकाश नारायण के विचार | जयप्रकाश नारायण और मार्क्सवाद | Jayaprakash Narayan and Marxism in Hindi

मार्क्सवाद पर जयप्रकाश नारायण के विचार 
 जयप्रकाश नारायण और मार्क्सवाद

मार्क्सवाद पर जयप्रकाश नारायण के विचार | जयप्रकाश नारायण और मार्क्सवाद | Jayaprakash Narayan and Marxism in Hindi

विषय सूची 


मार्क्सवाद पर जयप्रकाश नारायण के विचार 

➨ जयप्रकाश नारायण मार्क्स के विचारों तथा लेनिन के नेतृत्व से बहुत अधिक प्रभावित थे परन्तु मार्क्स के प्रति जयप्रकाश नारायण का आकर्षण ज्यादा दिनों तक नहीं रहा। रूस में जिस प्रकार स्टालिन ने अपने विरोधियों को दण्डित करने तथा गांधी जी एवं कांग्रेस को बुजुआ नेता व दल बताया। जिसे उन्होंने स्वीकार नही किया। वे मार्क्सवाद के हिंसात्मक साधनों को किसी भी रूप में स्वीकार नहीं करते हैं। वे सामाजिक परिवर्तन के लिए गांधीवादी व अहिंसात्मक साधनों को माध्यम बनाया। वे गांधीजी के इस विचार से प्रभावित थे कि कांग्रेस को सत्ता से दूर रहने के लिए सक्रिय राजनीति से दूर रहना चाहिए। जयप्रकाश नारायण ने इस विचार के अनुसार अपने चिन्तन को प्रतिपादित किया। विनोबाजी की भूदान आन्दोलन से भी गांधीवादी पद्धति के महत्व तथा उसकी सार्थकता के बारे में प्रभावित हुए। अन्त में वे विनोबाजी के सर्वोदय आन्दोलन में जीवनदानी के रूप में जुड़ गए। सर्वोदय को उन्होंने जनता का समाजवाद बताया।

 

1- बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति की गारंटी

  • जयप्रकाश नारायण का मत था कि कोई भी समाज जो अपने सदस्यों की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने की गारंटी नहीं दे सकताहिंसा तथा अराजकता का शिकार हो जाता है। बुनियादी आवश्यकता रोटीकपड़ामकान व शिक्षा सभ्य व सुसंस्कृत समाज की पहचान है। अतः समाज के प्रत्येक सदस्य की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिए।

 

  • जयप्रकाश नारायण के इसी विचार को आगे चलकर न केवल संविधान में स्थान दिया गया अपितु सरकारों ने अपनी विकास योजनाओं में इसको प्रमुख स्थान दिया। चाहे गरीबी उन्नमूलन योजना हो या महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना या शिक्षा का अधिकार या सूचना का अधिकार या फिर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आयुष्मान भारतइन सब पर उनके विचारों का प्रभाव देखा जा सकता हैं।


2 सार्वजनिक तथा सहकारी कृषि का समर्थन

 

जयप्रकाश नारायण ने कृषि सुधारों पर भी बल दियाजो इस प्रकार हैं - 

 

  • 1. जमींदारी प्रथा का पूर्णतया उन्मूलन 2. कृषि योग्य जमीन को सहकारी कृषि फार्मो के रूप में संगठन 
  • 3. वैज्ञानिक तरीके से कृषि को प्रोत्साहन 
  • 4. सामूहिक फार्मों के रूप में विकसित करने की आवश्यकता 
  • 5. सहकारी प्रथा का अन्त करने पर बल 
  • 6. सामूहिक जीवन पद्धति विकसित के पश्चात् कम्यूजन के रूप में गाँवों को संगठित करने की आवश्यकता पर बल

 

3 भारतीय परम्पराओं पर आधारित समाजवाद

 

  • जयप्रकाश नारायण के अनुसार समाजवाद व भारतीय परम्पराओं के बीच सदियों से अटूट रिश्ता रहा है। और भारतीय संस्कृति एक परम्परा के रूप में समाजवाद रूप रहा है क्योंकि पारस्परिक सहयोग व समन्वय हमारी समाज व संस्कृति की पहचान रही है। अतः हमें समाजवाद के लिए पश्चिम की ओर देखने की जरूरत नहीं है। जैसे हमारे संयुक्त परिवार तथा ग्रामीण जीवन समाजवादी सामूहिक जीवन के ही लक्षण है। समाजवाद के मौलिक आदर्श भारतीय संस्कृति का भाग है।

 

4 सामाजिक पुनर्रचना का दर्शन

 

  • जयप्रकाश नारायण का यह मानना था कि समाजवाद के माध्यम से पूंजीवादी व सामन्तवादी समाज के शोषण को दूर किया जा सकता है। वे समाज में व्याप्त सामाजिकआर्थिकसांस्कृतिक व राजनीतिक असमानता को दूर करने के लिए समाजवाद को सशक्त माध्यम मानते थे। न्याय की अवधारणा को स्थापित करने के लिए समतामूलक समाज की आवश्यकता में जिसमें किसी भी तरह के शोषण का स्थान नहीं है।

 

  • भारत जैसे समाज जहां जाति बंधनों व जमींदारी प्रथा के चलते आवश्यकता हर स्तर पर व्याप्त थी। ऐसे में उनका सामाजिक पुनर्रचना का विचार महत्व रखता है। जिसकी बदौलत हमारे खण्डित समाज को एकता के सूत्र में बांध सकते है। जिसकी जरूरत सदियों से थी और आज भी है। इस तरह उनके विचार भी प्रासंगिक है।

 

5 लोकतांत्रिक समाजवाद

 
जय प्रकाश नारायण का लोकतांत्रिक समाजवाद

  • जयप्रकाश नारायण समाजवाद के लोकतांत्रिकवादी स्वरूप के पक्षधर थे। इसीलिए वे लोकतांत्रिक ढंगों से समाजवाद की स्थापना करना चाहते थे। यहीं कारण था कि उन्होंने मार्क्सवाद के हिंसक व क्रांतिकारी साधनों का विरोध किया। वे समाजवाद की स्थापना हेतु राज्य की मशीनरी के प्रयोग का समर्थन करते थे। इस तरह वे वर्ग संघर्ष को स्वीकार नही करके वर्ग सहयोग पर बल देते है। उन्होंने कहा कि समाजवादी भारत में राज्य पूर्ण रूप से लोकतांत्रिक राज्य होगा। 
  • लोकतंत्र के बिना समाजवाद सम्भव नहीं है। समाजवादी के रूप में जयप्रकाश नारायण ने समाज में व्याप्त असामनताओं को दूर करने पर जोर दिया। उनका मानना था कि समाज में धन में असमान वितरण का मुख्य कारण प्रकृति के माध्यम प्रदत्त पदार्थों तथा पैदावर के साधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व का होना है। समाज के कुछ लोग इनका प्रयोग अपने व्यक्तिगत फायदा हेतु करते हैं। जिसके चलते गरीब और अमीर के बीच की खाई और गहरी हो रही है। समाज का वह वर्ग जो श्रम व परिश्रम करता है जो अभावपूर्ण जीवन जीने के लिए बाध्य है। 
  • अत: जयप्रकाश नारायण का मानना है कि लोकतांत्रिक समाजवाद की बदौलत समाज में आर्थिक व सामाजिक न्याय को बचाया जा सकता है। वर्तमान परिवेश में जब भारत इस चुनौती से जुझ रहा है कि आर्थिक असमानता अपने चरम सीमा पर है। आर्थिक संसाधनों पर चंद आर्थिक घरानों का एकाधिकार हमें उसी सामन्तवाद की याद दिलाता है। इसीलिए लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए संसाधनों का समान वितरण की आवश्यकता है। इस प्रकार जयप्रकाश नारायण के इसी विचार की भी आज पूरी तरह से प्रासंगिकता है।

 

6 निजी सम्पति एवं स्वामित्व के खिलाफ:

 

  • जयप्रकाश नारायण का यह मानना था कि सम्पत्ति व उस पर प्रभुत्व स्थापित करने की प्रवृत्ति के कारण समाज में न्याय की अवधारणा कमजोर होती है और न्याय केवल कल्पनाओं तक सीमित रह जाता है। 


  • अतः समाज में न्याय को सुदृढ़ बनाने के लिए निजी सम्पति पर रोक लगा दी जानी चाहिए। व्यक्ति के पास सम्पति केवल इतनी होनी चाहिए जिससे आवश्यकता की पूर्ति की जाएं। इसी आधार पर बड़े उद्योगोंबैंकोयातायातविद्युत तथा व्यापार के राष्ट्रीयकरण का समर्थन किया।

 

निष्कर्ष :- इस प्रकार कहा जा सकता है कि जयप्रकाश नारायण के द्वारा सामाजिक व आर्थिक न्याय की स्थापना से लोकतंत्र व समाजवाद दोनो को सशक्त बनाने के लिए जरूरी है। उनके ये विचार आज भी पूरी तरह से प्रासंगिक है।

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