जयप्रकाश नारायण जीवन परिचय | जयप्रकाश नारायण एक राजनीतिक चिन्तक | JP Narayan Political Thinker
जयप्रकाश नारायण एक राजनीतिक चिन्तक
जयप्रकाश नारायण सामान्य परिचय
- आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिन्तकों में जयप्रकाश नारायण को एक प्रमुख विचारक के रूप में माना जाता है। जिन्होंने हमारे समाज व राजनीति को नई दिशा देने का सफलतक प्रयास किया।
- उनके विचारों से प्रभावित होकर भारतीय राजनीति का एक बहुत बड़ा तबका तैयार हुआ जिन्होंने आगे चलकर न केवल भारतीय राजनीति को जे.पी. के विचारों के अनुसार दिशा दी बल्कि युवाओं की वह फौज तैयार की जो समाजवादी विचारों का बढ़ाने में मददगार बने।
- जे.पी. भारतीय राजनीति के ऐसे सूरज थे जिन्होंने समाज के कमजोर, शोषित, पिछड़ा, पीड़ित, युवा, किसान, मजदूर की आवाज बने ।
- उनका मानना था कि भारत में जब तक लोकतंत्र को मजबूत नहीं किया जा सकता तब तक सामाजिक व आर्थिक रूप से समुचित विकास न हो जाता है। सर्वोदय व समपूर्ण क्रांति के माध्यक से भारतीय व्यवस्थाओं को सशक्त दिशा देने का प्रयास किया। उनके द्वारा मूल्यों पर आधारित राजनीति का आगाज किया गया।
- स्वतंत्रता के पश्चात् जिस तरह भारत का नवनिर्माण को आगे बढ़ाया जा रहा था, उस नव निर्माण को जनता से जोड़ने व जनता की आवाज बनने का कार्य जय प्रकाश नारायण के द्वारा किया गया। वे अपने दौर के पहले विचारक थे, जिन्होंने सरकार व व्यवस्थाओं पर विरोध सकारात्मक दृष्टिकोण से किया। उनके विचारों में जाति व धर्म का कोई स्थान नहीं था उनका केवल एक ही ध्येय था समग्र क्रांति सभी का उदय।
- समाजवाद उनके विचारों का मूल आधार था। वे एक ऐसी सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्था चाहते थे जिसमें समाज में उपलब्ध संसाधनों का उचित संरक्षण व सम्बर्द्धन किया जाएं। जमींदारी प्रथा का पूर्ण उन्नमूलन कर सार्वजनिक व सामूहिक कृषि को बढ़ावा दिया जाए। लोकतांत्रिक समाजवाद व लोकतंत्र में दूसरे के मतों के प्रति सहिष्णुता उनकी प्रमुख पहचान है। उनका मानना था कि विरोधी मतों को भी उतना महत्व दिया जाए जितना अपने समर्थक को दिया जाता है। विरोधी की भावना को दबाने की बजाए यदि उसका सम्मान किया जाता है और पूरी निष्ठा से सुना जाता है तो उसे लोकतंत्र व लोकतांत्रिक मूल्यों को बल मिलेगा।
- उनका यह भी मानना था कि राजनीतिक दलों का उद्देश्य केवल जन भावना को भड़काकर सत्ता प्राप्त करना नहीं होना चाहिए बल्कि जन सेवा होनी चाहिए, परन्तु जिस तरह राजनीतिक दल धर्म, जाति, साम्प्रदायिकता व झूठी राष्ट्रवादिता के नाम पर वोटों का ध्रुवीकरण कर येन केन प्रकारेण सत्ता प्राप्ति ही अपना लक्ष्य बना लिया है उससे भारत का हित पूरा नहीं हो सकता।
- लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण पर बल देकर सत्ता में स्थानीय लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने का संकल्प व्यक्त किया और लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण को भारत के विकास की अनिवार्य शर्त बताया।
- इस प्रकार जे.पी. के विचार पूरी तरह से व्यवहार पर आधारित हैं, जिन्हें अपनाकर सशक्त भारत का निर्माण संभव है, जो भारतीय संविधान की आत्मा के अनुरूप है। यदि जे.पी. के विचारों के अनुरूप भारत का निर्माण होता तो आज के दौर में जो चुनौतियां हमारे संविधान व लोकतंत्र के समक्ष खड़ी है वे उठ नहीं सकती।
जयप्रकाश नारायण जीवन परिचय JP Naryan Biography in Hindi
- मृत्यु 8 अक्टूबर 1979
- भारत के समाजवादी विचारधारा के अग्रदूत, स्वतंत्रता सेनानी, समग्र विकास के प्रवर्तक, सम्पूर्ण क्रांति का आगाज करने वाले तथा मूल्यों पर आधारित लोकतंत्र के प्रतिपादक जयप्रकाश नारायण का जन्म सिताबा (बिहार) नाम गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था।
- प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में हासिल की। तत्पश्चात् आगे की पढ़ाई के लिए पटना आ गए इसी बीच गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन शुरू हो गया उसमें भी उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया।
- जे.पी. का विवाह प्रमुख कांग्रेसी नेता बाबू ब्रजकिशोर की पुत्री के साथ हुआ । 1922 में जयप्रकाश नारायण उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अमेरिका चले गए। वहां की शिकागो सहित कई विश्वविद्यालयों से शिक्षा हासिल की अमेरिका में रहते हुए वे मार्क्सवादी विचारधारा के सम्पर्क में आये।
- मानवेन्द्र नाथ राय की पुस्तक भारत संक्रमण काल में नामक पुस्तक पढ़ने के पश्चात् मार्क्सवाद में अटूट आस्था हो गई।
जयप्रकाश नारायण की स्वतन्त्रता आन्दोलन में भागीदारी
- जयप्रकाश नारायण जब 1930 में भारत आये तब वे जवाहर लाल नेहरू के संपर्क में आए और 1932 के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लिया जिसके कारण उन्हें जेल में डाल दिया गया।
- 1934 में जब वे जेल से बाहर आये तब उन्होंने अशोक मेहता, अच्युत पटवर्धन, आचार्य नरेन्द्र देव, युसुफ मेहर अली, मीतु मसानी, तथा डॉ. राममनोहर लोहिया आदि के साथ मिलकर कांग्रेस समाजवादी दल की नींव रखी जो कांग्रेस संगठन का ही हिस्सा था। जिसका प्रमुख उद्देश्य कांग्रेस का झुकाव समाजवाद की ओर करना था।
- 1942 में जयप्रकाश नारायण ने स्वतन्त्रता सेनानी के रूप में भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया। 1946 में गांधी जी ने कांग्रेस कार्यकारिणी के समक्ष जयप्रकाश नारायण को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव रखा, परन्तु यह स्वीकार नहीं किया गया।
जयप्रकाश नारायण द्वारा समाजवादी दल का गठन:
- 1948 में कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पारित किया कि अन्य दल का सदस्य कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण नहीं कर सकता है। इस स्थिति को देखते हुए जयप्रकाश नारायण व अन्य समाजवादी ने कांग्रेस से अलग होकर "समाजवादी दल" की स्थापना की। 1952 के प्रथम आम चुनाव में समाजवादी दल ने भाग भी लिया पर सफलता नहीं मिली।
जयप्रकाश नारायण की प्रमुख रचनाएँ
1. समाजवादी ही क्यों? 1934
2. समाजवाद से सर्वोदय 1959
3. समाजवाद, सर्वोदय और लोकतंत्र 1957
4. संघर्ष की तरफ 1946
5. भारतीय राजव्यवस्था की पुनर्रचना हेतु तर्क
6. जयप्रकाश नारायण की जेल डायरी 1977
7. सम्पूर्ण क्रांति की तरफ 1977
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