भारतीय लोकतंत्र को सशक्त बनाने हेतु जयप्रकाश नारायण के सुझाव | JP Naryan Ke Suggestion in HIndi
भारतीय लोकतंत्र को सशक्त बनाने हेतु जयप्रकाश नारायण के सुझाव
जयप्रकाश नारायण ने भारतीय लोकतंत्र में निहित दोषों का न केवल उल्लेख किया अपितु यह सुझाव दिया कि भारतीय लोकतंत्र को किस प्रकार सशक्त बनाया जा सकता है। जयप्रकाश नारायण के अनुसार शासन वहीं श्रेष्ठ है जो जन भावना के अनुरूप हो और लोकतंत्र में जनभावना का सर्वोच्च स्थान है। जिसकी अनदेखी किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसीलिए भारतीय लोकतंत्र के सन्दर्भ में व्यापक बुनियादी बदलाव लाने हेतु सुझाव दिये
भारतीय लोकतंत्र के सन्दर्भ में व्यापक बुनियादी बदलाव लाने हेतु जयप्रकाश नारायण के सुझाव
1 सत्ता का विकेन्द्रीकरण
जयप्रकाश नारायण किसी भी रूप में सत्ता के केन्द्रीकरण को स्वीकार नहीं करते है। इसीलिए सत्ता के विकेन्द्रीकरण का सुझाव दिया। उनका मानना था कि जब तक शासन सत्ता में आम लोगों की ज्यादा से ज्यादा भागीदारी नहीं होगी तब तक लोकतंत्र की सुखद अनुभूति आम लोगों को नहीं होगी। जयप्रकाश नारायण ने गांव को सबसे निचली इकाई माना है। इस तरह पंचायत राज की नींव रखने की आवश्यकता पर बल दिया। साथ राजनीतिक दलों को सुझाव दिया कि उन्हें स्थानीय शासन में हस्तक्षेप या भाग नहीं लेना चाहिए। पंचायती राजव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए निम्न सुझाव दिये:
1. प्रत्येक स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के पास पर्याप्त मात्रा में फंड (कोष) होना चाहिए। सुविधाओं के बिना सत्ता देने का कोई औचित्य नहीं है।
2. विधि स्तरों पर पंचायतों को सत्ता तथा शक्ति जनता से मिलनी चाहिए न कि सरकार से अन्यथा यह संस्थाएं सरकार के हाथों की कटपूतली बन कर रह जाएगी और जिस उद्देश्य प्राप्ति के लिए इनकी स्थापना की जा रही है वह उद्देश्य प्राप्त नहीं किया जा सकता।
3. पंचायतों में कार्यरत कर्मचारी पंचायतों के नियन्त्रण में होना चाहिए। यदि यह कर्मचारी सरकार के नियन्त्रण में रहेंगे तो स्थानीय स्तर पर शक्ति के दो केन्द्र बन जाएंगे। एक पंचायतों के प्रतिनिधि वही दूसरी ओर सरकारी कर्मचारी जो सदैव राज्य के हितों के प्रति ज्यादा गम्भीर रहेगें, परिणामस्वरूप इन निकायों में टकराव की स्थिति पैदा होगी।
4. पंचायत कार्यक्रम में सहयोग देने व पंचायतों के द्वारा किये जा रहे कार्यों का मूल्यांकन के लिए एक गैर राजनीति स्वाशासी निकाय होनी चाहिए जो सरकारी नियन्त्रण से मुक्त रहे।
5. लोकतंत्र की सबसे निचली सीढ़ी ग्राम सभा होनी चाहिए न कि ग्राम पंचायत ।
6. स्थानीय निकाय के चुनाव गैर राजनीति होनी चाहिए अर्थात् राजनीतिक दलों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी रूप में हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
7. उच्च स्तर पर वास्तविक ताकत ग्राम सभा तथा पंचायतों को दी जानी चाहिए तथा जिला परिषद में जिला कलेक्टर राज्य सरकार के प्रतिनिधि के रूप में बैठे, परन्तु उसे वास्तविक शक्ति नहीं होनी चाहिए।
2 विधान सभा तथा लोकसभा चुनाव क्षेत्रों के स्तर पर बदलाव
- जयप्रकाश नारायण ने लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव क्षेत्रों के स्तर पर भी सुधार हेतु सुझाव दिये है। उनका मत है कि यदि उच्च स्तर पर केन्द्रीयकरण करना है तो ग्रामीण समुदायों की स्वायतता को बनाये रखना होगा। जयप्रकाश नारायण ने यह सुझाव दिया कि लोकसभा तथा विधानसभा क्षेत्रों के अन्तर्गत आने वाली पंचायते अपने दो प्रतिनिधि चुने जिसमें से एक लोकसभा तथा दूसरा विधानसभा का प्रतिनिधि हो। घोषित उम्मीदवार को कुल मतों का 30 प्रतिशत मत प्राप्त करना अनिवार्य होगा। इस तरह जयप्रकाश नारायण ने लोकसभा व विधानसभा का चुनाव जनता द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से पंचायतों से करवाने पर बल दिया। जिससे पंचायतें राजव्यवस्था की प्रमुख कड़ी बन सकेगी तथा निर्णय की स्थिति में होगी तथा राजनीतिक दलों का भी हस्तक्षेप अपेक्षाकृत कम हो जाएगा क्योंकि दलीय लोकतंत्र में उम्मीदवारों का चयन दल के आधार पर किया जाता है। जो जयप्रकाश नारायण के अनुसार लोकतंत्र के लिए उचित नहीं है।
3 आर्थिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण
- जयप्रकाश नारायण केवल राजनीतिक विकेन्द्रीकरण तक सीमित नहीं थे अपितु आर्थिक विकेन्द्रीकरण को भी आवश्यक मानते है। राजनीतिक सत्ता के विकेन्द्रीकरण से आर्थिक विकेन्द्रीकरण का मार्ग प्रशस्त होगा आत्मनिर्भर तथा स्वशासी ग्रामीणें हेतु जिस तरह की अर्थव्यवस्था की जरूरत होगी, उसे भारी उद्योगों की बजाए लघु व कुटीर उद्योगों की आवश्यकता होगी। जिससे हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी तथा गांवों में रोजगार के अवसर बढ़ेगें।
4 दलविहिन लोकतंत्र
- जयप्रकाश नारायण के अनुसार वर्तमान लोकतंत्र का एक गम्भीर दोष दल प्रणाली है। इसके कार्य दलीय प्रधानता की स्थिति पैदा हो गई है और लोगों की वास्तविक हिस्सेदारी समाप्त हो गई है। जनता व सरकार के बीच प्रत्यक्ष सम्पर्क समाप्त हो गया है। जनता के प्रतिनिधियों का चुनाव राजनीतिक दलों के आधार पर किया जाता है और मतदाता इन उम्मीदवारों में से किसी एक को विजय बनाते है। इस तरह ये उम्मीदवार जनता के प्रतिनिधि न होकर दल का प्रतिनिधि होता है।
- जयप्रकाश नारायण के अनुसार "राजनीतिक दल प्रणाली में लोगों की दशा उन भेड़ों के समान बना दी हैं जिनका सिर्फ मात्र कार्य निर्धारित समय के पश्चात् गड़रियों का चुनाव करना है जो उनके फायदे की देखभाल करेंगें।"
- जयप्रकाश नारायण जी दलविहिन लोकतंत्र की स्थापना करना चाहते थे। उनका मानना है कि दलीय प्रणाली के चलते भ्रष्टाचार व अनैतिकता का जन्म हुआ है। लोग अपने वर्चस्व की स्थापना के लिए एक दूसरे के प्रति हर वैध व अवैध कार्यों में लिप्त है। उनका केवल एक ही लक्ष्य है अपने प्रतिद्वंदी को पूरी तरह समाप्त करना।
- जयप्रकाश नारायण ने अपने दल विहिन लोकतंत्र के मत को मूर्त रूप देने के लिए एक योजना प्रस्तुत की। इस योजना में लोग अपने प्रतिनिधियों का चुनाव सबकी सहमती से करेंगें। पंचायत या ग्राम मण्डल में हर परिवार से एक प्रतिनिधि होगा। यही मण्डल की गांव से संबंधित सभी मामलों में निर्णय लेगा यह ग्राम मण्डल पंचायत चुनाव करेगी। ग्राम पंचायत थाना पंचायत का चुनाव, थाना पंचायत जिला परिषद, जिला परिषद, प्रादेशिक पंचायत ( विधानसभा) तथा केन्द्रीय पंचायत (संसद) का चुनाव करेंगें। इन पंचायतों का चुनाव सर्वसहमति से होगा। राजनितिक दलों को इन चुनावों से पूरी तरह से अलग रखा जाएगा तथा वे सर्वोदय समाज की स्थापना में मदद करेंगें। विधानसभा व लोकसभा में राजनीतिक दलों की तटस्थता होनी चाहिए। उम्मीदवार भले ही राजनीतिक दलों के उम्मीदवार के रूप में विधान सभा व लोकसभा का चुनाव लड़े परन्तु चुनाव जीतने के पश्चात् राजनीतिक दल से उनका कोई वास्ता नहीं होगा क्योंकि वे सदन में एक जनता के प्रतिनिधि की हैसियत से है न कि दल के प्रतिनिधि के रूप में।
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