सामाजिक-मनोवैज्ञानिक उपागम: डगलस मैक्ग्रेगर एवं अब्राहम मैस्लो | Maslo and Duglas Lok prashasan Sidhant
सामाजिक-मनोवैज्ञानिक उपागम: डगलस मैक्ग्रेगर एवं अब्राहम मैस्लो
- सामाजिक मनोवैज्ञानिक उपगाम संगठन तथा मानव के बीच सम्बन्धों को समझने का एक साधन है। यह उपागम मूलतः संगठन के मानव पक्ष पर बल देता है। व्यक्ति तथा संगठन के प्रति उसके योगदान में विश्वास इस उपागम का केन्द्र है। इस उपागम के प्रति अनेक विचारकों तथा लेखकों का योगदान है। उनमें अब्राहम् मैस्लो एवं मैक्ग्रेगर के योगदान अपूर्व हैं।
मैस्लो का आवश्यकता सोपानक्रम सिद्धान्त
- मैस्लो ने 1943 में प्रकाशित अपने एक लेख 'मानव अभिप्रेरणा का एक सिद्धान्त' में अभिप्रेरणा के एक सिद्धान्त की रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने संगठन तथा व्यक्तियों के बीच सम्बन्धों को मानव आवश्यकताओं की दृष्टि से विश्लेषण किया। व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संगठनों के सदस्य बनते हैं। ये आवश्यकताएं अनेक क्षेत्रों में उत्पन्न होती हैं । इन आवश्यकताओं की पूर्ति उन्हें निष्पादन के उच्चतर स्तर की ओर अभिप्रेरित करती है। मांगों का पूरा न होना, संगठनात्मक उद्देश्य प्राप्त करने के लिए संगठन के प्रति लोगों द्वारा योगदान देने की अभिप्रेरणा पर उलटा प्रभाव डालेगा।
- मैस्लो व्यक्ति की अभिप्रेरणात्मक आवश्यकताओं को सोपानात्मक रूप से व्यवस्थित करते हैं। उनके अनुसार संगठन में मानव व्यवहार को बतलाने वाली मनुष्यों की अनेक आवश्यकताएं हैं। इन आवश्यकताओं का सोपानक्रम होता है- शारीरिक आवश्यकताएं, सुरक्षा सम्बन्धी आवश्यकताएं, सामजिक आवश्यकताएं, प्रतिष्ठा या आदर सम्बन्धी आवश्कताएं तथा स्वयंसिद्ध आवश्यकताएं। शारीरिक तथा सुरक्षा की आवश्यकताएं सोपानक्रम में निचले स्तर की आवश्यकताएं हैं तथा स्वयंसिद्ध आवश्यकताएं सोपानक्रम में सर्वोच्च हैं। सामाजिक तथा आदर सम्बन्धी आवश्यकताएं इनके बीच में या सोपानक्रम के मध्य स्तर पर आती हैं। मैस्लो का विश्वास था कि निचले स्तर की आवश्यकताओं को पूरा किए बिना व्यक्ति को अभिप्रेरित नहीं किया जा सकता।
- मैस्लों के अनुसार प्रत्येक आवश्यकता एक समय पर एक व्यक्ति के लिए लक्ष्य होती है। यदि व्यक्ति की मूल आवश्यकताएं पूरी नहीं होतीं तो वह अपनी सारी शक्तियाँ उस क्षेत्र में सन्तुष्टि प्राप्त करने में केन्द्रित करता है। जब वह एक आवश्यकता क्षेत्र में सन्तुष्टि प्राप्त कर लेता है तो वह उसके ऊपर के क्रम की आवश्यकता की ओर चलता है। यह प्रक्रिया मानव जीवन में प्रतिदिन चलती रहती है। एक आवश्यकता क्षेत्र में किसी विशेष लक्ष्य का पूरा न होना व्यक्ति को उसे प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है। जब यह प्राप्त हो जाता है तो फिर यह व्यक्ति को उस क्षेत्र में कार्य करने के लिए अभिप्रेरित नहीं करता। यह मैस्लो के आवश्यकता सोपानक्रम सिद्धान्त की मुख्य आधाशिलाओं में से एक है।
डगलस मैक्ग्रेगर के अनुसार
डगलस मैक्ग्रेगर एक ख्याति प्राप्त व्यवहारवादी तथा मनोवैज्ञानिक हैं। वह संगठनात्मक निष्पादन के प्रति योगदान देने में मानव की क्षमताओं पर कटटर विश्वास रखने वाले हैं। उनके संगठनों में लोगों से सर्वोत्तम कार्य लेने में असफलता का कारण संगठन तथा व्यक्ति की ओर देखने का हमारा परम्परावादी दृष्टिकोण है। वे इस दृष्टिकोण ''एक्स सिद्धान्त' कहते हैं।
'एक्स सिद्धान्त' के अनुसार
(1) आम आदमी काम के प्रति स्वाभाविक अरूचि या नापसन्दगी रखता है तथा वह इससे बचने की कोशिश करता है;
(2) काम के प्रति अरूचि की उस मानवीय विशेषता के कारण अधिकतर व्यक्तियों को संगठनात्मक उद्देश्यों को प्राप्त करने के प्रति पर्याप्त प्रयास करने की लिए बाध्य करने, नियन्त्रित करने, निर्देशित करने तथा दण्ड की धमकी देने की आवश्यकता है।
- ‘एक्स सिद्धान्त’ मनुष्यों को सुस्त, कोई आकांक्षा न रखने वाला, परिवर्तन विरोधी, अरचनात्मक और झूठा मानता है। ऐसी स्थिति में प्रबन्ध दो नीतियाँ अपना सकता है- कठोर तथा शिथिल कठोर नीति में गहरा पर्यवेक्षण, कठोर नियन्त्रण, दबाव एवं घमकी जैसी तकनीक निहित है। दूसरी ओर शिथिल नीति अधिक छूट देने वाली होती है, मांगों की पूर्ति करती है तथा संगठन एवं कर्मचारियों की मांगों में मेय या समन्वय स्थापित करने का प्रया करती है ।
- ‘एक्स सिद्धान्त' पुरातनवादी प्रशासनिक सिद्धान्त का प्रतिनिधित्व करता है तथा कुशलता एवं मितव्ययिता पर बल देता है। क्योंकि मानव काम से बचने का प्रयास करता है, प्रबन्ध को इस अन्तर्निहित या स्वाभाविक मानव प्रकृति का प्रतिकार करना चाहिए। इसिलए 'एक्स सिद्धान्त' निदेशन एवं नियन्त्रण पर बल देता है।
- 'एक्स सिद्धान्त' केवल प्रबन्ध नीति के विषय में बतलाता है। यह नहीं बतलाता कि कर्मचारियों को कौन-से कारण अभिप्रेरित करते हैं। अतः मैक्ग्रेगर का मत है कि एक्स सिद्धान्त की संगठन-प्रबन्ध तथा मुनष्य के बारे में जो मान्यताएं हैं वह निष्पादन तथा उत्पादन के मार्ग में बाधाएं हैं। इसलिए एक्स सिद्धान्त के स्थान पर मैक्ग्रेगर ने एक नया सिद्धान्त प्रस्तुत किया जिसे व्यापक रूप से ‘वाई सिद्धान्त' के नाम से जाना जाता है। यह नया सिद्धान्त मनुष्य तथा प्रबन्ध के बीच सम्बन्धों को एक नई दृष्टि प्रदान करता है। इस नए सिद्धान्त में मैक्ग्रेगर निदेशन तथा नियन्त्रण के स्थान पर 'समन्वय' की स्थापना करता है। उसके अनुसार समन्वय का अर्थ ऐसी स्थितियों का निर्माण करने में है जिसमें संगठनों के सदस्य अपने उद्देश्यों को उद्यम की सफलता की ओर अपने प्रयासों को लगाकर सर्वाधिक अच्छे रूप में प्राप्त कर सकते हैं। ' सिद्धान्त' एक ऐसे संगठन को बनाए रखने के महत्व पर बल देता है जिसमें लोग आत्मविश्वासी तथा अभिप्रेरित अनुभव करें।
- संक्षेप में, मैस्लो तथा मैक्ग्रेगर जैसे सामाजिक-मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तवादियों ने संगठनों में मानव तत्व को समझने की सदियों पुरानी समझ को नयी तकनीक प्रदान की।
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4. मानवीय सम्बन्धात्मक उपागम: एल्टन मेयो
5. व्यवस्थावादी उपागम: चेस्टर बर्नार्ड
6. व्यवहारवादी उपागम: हर्बर्ट साइमन
7. सामाजिक मनोवैज्ञानिक उपागम: डगलस मैक्ग्रेगर एवं अब्राहम मैस्लों
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