राष्ट्रीय आय तथा समानिकाएँ | National Income and Equities in Hindi

राष्ट्रीय आय तथा समानिकाएँ 
National Income and Equities in Hindi
राष्ट्रीय आय तथा समानिकाएँ | National Income and Equities in Hindi


 

राष्ट्रीय आय तथा समानिकाएँ

  • राष्ट्रीय आय के विभिन्न अंगों या घटकों के बीच सम्बन्ध को समानिकाओं के द्वारा समझाया जा सकता है। समानिकाओं को दर्शाने के लिए चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। 


राष्ट्रीय आय की समानिकाओं की व्याख्या को दो भागों में बांट कर अध्ययन करना उचित होगा।

 

1. ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें सिर्फ गृहस्थ क्षेत्र तथा फर्म हो अर्थात् सरकार तथा विदेशी क्षेत्र शामिल नहीं, साधारण अर्थव्यवस्था से आशय ऐसी अर्थव्यवस्था से है जिसके अन्तर्गत सरकार तथा विदेशी क्षेत्र अर्थात् आयात और निर्यात सम्मिलित नहीं होता है। साधारण अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत कुल उत्पादन या कुल आय को Y द्वाराउपभोग C द्वारा तथा निवेश या विनियोग व्यय को I द्वारा व्यक्त करते हैं। इस समानिका को व्यय को सांकेतिक रुप में निम्न प्रकार से लिखा जा सकता है

 

Y= C + I........ (1)

 

जैसा कि आप जानते हैं व्यय दो तरह से किया जाता है। प्रथम गृहस्थ क्षेत्र द्वारा कुल उत्पादन में से एक भाग का उपभोग करते है जिसे उपभोग व्यय कहते है। दूसरे शब्दों में अपने आय का कुछ भाग उपभोग की वस्तुओं पर खर्च कर देते हैं तथा दूसरा फर्म भी उत्पादन के कुछ हिस्से पर व्यय करता है परन्तु यह उपभोग के लिए नहीं करता है। बल्कि निवेश के लिए करता है। इसलिए इसे निवेश या विनियोग व्यय (I) कहते है। कुल उत्पादन का कुछ हिस्सा नहीं खरीदा जाता है। इसे स्टॉक या भण्डारों में शामिल कर लिया जाता है। अतः उपर्युक्त समानिका का अर्थ है। कुल उत्पादन आय या उपभोग व्यय और विनियोग व्यय के बराबर होता है। 


दूसरी समानिका निम्नलिखित है

 

Y=C+S..........(2)

 

यहाँ पर बचत दर्शाता है। उपभोक्ताओं के द्वारा आय का कुछ भाग बचा लिया जाता है। 


  • समानिका 1 में Y = C + I, उपभोग एवं निवेश व्यय का योग है जो अर्थव्यवस्था की समग्र माँग का प्रतिनिधित्व करता है क्योंकि उपभोग की वस्तुओं की माँग और पू पूँजीगत वस्तुओं की माँग को प्रदर्शित करता है। 


  • इसी प्रकार समानिका 2 में, Y = C + S अर्थव्यवस्था में समग्र पूर्ति का प्रतिनिधित्व करता है। इसका कारण यह है कि कुल उपभोग व्यय ( C ) से उपभोक्ता वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन होता है और कुल बचतें (S) पूँजी वस्तुओं के उत्पादन में निवेश की जाती है।


समानिका (1) और (2) को मिलाकर निम्नलिखित निष्कर्ष निकलता है

 

Y= C + I

Y= C+ S

 

C+IΔ Y ΔC +S  ........(3)

 


समानिका तीन में C+I समग्र माँग के दो अंग तथा C+S आय के आवंटन को बताता है। समानिका (3) में थोड़े से परिवर्तन करने पर बचत विनियोग के बराबर हो जाती है जैसे

 I=S

 

(2) ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें गृहस्थ क्षेत्र फर्मसरकार तथा विदेशी क्षेत्र शामिल हो: 


अब समानिका 1 का पुनर्निर्माण इस प्रकार किया जा सकता है

 

YΔC+I+G+ (X-M)   ....................(5)

यहाँ, Y =कुल आय

 

C= कुल उपभोग व्यय

I= कुल विनियोग व्यय

G= कुल सरकार व्यय,

 (X M) = विशुद्ध निर्यात (अर्थात् निर्यात आयात)

 

परन्तु

 

Y=C + I = C+ S = E ............(6)

 

यहाँ E= कुल व्यय

 

इसलिए YΔΔC +I+G+ ( X- M) 

YΔC + S + TΔΔC + I + G + (X - M) 

Y = E

 

इसलिए कुल आय/उत्पाद कुल व्यय के बराबर होती है।

 

व्यय योग्य आय को पाने के लिए आय को राष्ट्रीय आय से कर (T) तथा हस्तान्तरण भुगतान (TP) को जोड़ना होगा यह निम्नलिखित है:

 

DY =Y - T + TP

 

यहाँ Dy= व्यय योग्य है,

T= कर

TP = हस्तान्तरण भुगतान है।

 

उपर्युक्त राष्ट्रीय समानिकाओं से स्पष्ट है कि कुल उत्पादन कुल आय एवं कुल व्यय एक-दूसरे के बराबर होते है।








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