राष्ट्रीय आय तथा राष्ट्रीय कल्याण | National Income and National Welfare in Hindi
राष्ट्रीय आय तथा राष्ट्रीय कल्याणNational Income and National Welfare in Hindi
राष्ट्रीय आय तथा राष्ट्रीय कल्याण
- राष्ट्रीय आय तथा आर्थिक कल्याण के बीच क्या सम्बन्ध है। क्या राष्ट्रीय आय में वृद्धि आर्थिक कल्याण में वृद्धि लाती है। इस अवधारणा को समझने के लिए फिशर की परिभाषा को समझना होगा।
प्रो. इरविंग फिशर के अनुसार-
- 'वास्तविक राष्ट्रीय आय' एक वर्ष में उत्पादित शुद्ध उपज का वह अंश है जिसका उस वर्ष में प्रत्यक्ष रुप से उपभोग किया जाता है। इस परिभाषा से स्पष्ट है कि वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन की मात्रा नहीं बल्कि उस वर्ष में उनकी उपभोग की मात्रा राष्ट्रीय आय का निर्धारण करती है।
- इस परिभाषा के अनुसार राष्ट्रीय आय में वृद्धि आवश्यक रूप से राष्ट्रीय कल्याण में वृद्धि लायेगी। परन्तु राष्ट्रीय आय की परिभाषा का आधार सामान्य तौर पर एक लेखा वर्ष में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा के मूल्य को मानते हैं। ऐसी देशा में राष्ट्रीय आय में होने वाला परिवर्तन राष्ट्रीय कल्याण को सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार से प्रभावित कर सकता है।
राष्ट्रीय आय की वृद्धि के साथ राष्ट्रीय कल्याण का बढ़ना अनेक कारकों पर निर्भर करता है जिसका अध्ययन न निम्नांकित रूपों में कर सकते है:
1. राष्ट्रीय आय को प्राप्त करने का ढंग:
- राष्ट्रीय आय में वृद्धि किस तरह से हो रही है। उदाहरणार्थ, कार्य करने की खराब दशाएँ, लम्बे समय घंटों तक कार्य करना राष्ट्रीय कल्याण में कमी लायेगा।
2. व्यय योग्य आय तथा व्यय का ढंग:-
- सकल राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि के साथ व्यय योग्य आय अत्यधिक करारोपण के कारण कम हो जाय तो लोगों की क्रय शक्ति प्रतिकूल रुप से प्रभावित होगी। इस तरह की जी. एन. पी. में वृद्धि राष्ट्रीय कल्याण में कमी लायेगी।
3. राष्ट्रीय आय का वितरण:-
- राष्ट्रीय आय के वितरण का अर्थ है एक वर्ग के व्यक्तियों से दूसरे वर्ग के व्यक्तियों को आय का हस्तान्तरण इस प्रकार का वितरण या हस्तान्तरण धनी वर्ग के पक्ष में या निर्धन वर्ग के पक्ष में हो सकता है।
राष्ट्रीय आय में वृद्धि राष्ट्रीय कल्याण में तभी वृद्धि करेगी जब राष्ट्रीय आय में वृद्धि का वितरण गरीब वर्ग के पक्ष में हो क्योंकि:
- धनी व्यक्तियों की अपेक्षा निर्धन व्य करता है। अपनी आय का अधिक भाग उपभोग की वस्तुओं पर व्यय
- धनी व्यक्तियों के लिए द्रव्य की सीमान्त उपयोगिता कम होती है।
- पीगू के अनुसार धनी व्यक्तियों की संतुष्टि (कल्याण) का एक बड़ा भाग निरपेक्ष आय से न होकर सापेक्षिक आय से प्राप्त होता है।
उदाहरणार्थ,
- एक धनी व्यक्ति बहुत दुःखी होगा क्योंकि उसके पास मँहगी कार नहीं है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय आय में कुछ कल्याण सम्बन्धी घटकों को नहीं लिया जाता है जबकि वे राष्ट्रीय कल्याण में वृद्धि करती है। उदाहरण के लिए गृहणी की सेवा को लिजिए। गृहणी जब घर में सेवा प्रदान करती है तो उसे राष्ट्रीय आय के आकलन में नहीं सम्मिलित करते हैं पर यही गृहणी वहीं सेवा बाजार के लिए करती है तो इसे राष्ट्रीय आय में शामिल कर लिया जाता है। घर के भीतर परिवार के सदस्यों के लिए की गयी वह सेवा जो राष्ट्रीय आय में सम्मिलित नहीं होगी, आवश्यक रूप से राष्ट्रीय कल्याण को प्रभावित करेगी।
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