राष्ट्रीय आय क्या है ? |राष्ट्रीय आय का अर्थ एवं परिभाषा |National income GK in Hindi
राष्ट्रीय
आय क्या है ?राष्ट्रीय आय से क्या आशय है?
राष्ट्रीय आय का अर्थ एवं परिभाषा
Meaning and definitions of National income in Hindi
राष्ट्रीय आय से तात्पर्य किसी देश में एक वर्ष के अन्तर्गत उत्पादित समस्त अन्तिम वस्तुओं व सेवाओं के बाजार मूल्य के जोड़ से है। राष्ट्रीय आय के लिए राष्ट्रीय लाभांश एवं राष्ट्रीय उत्पाद शब्द का भी प्रयोग किया जाता है। राष्ट्रीय आय समष्टि अर्थशास्त्र का अंग है क्योंकि इसके अन्तर्गत देश की समग्र आय की माप की जाती है।
राष्ट्रीय आय की परिभाषा Definition of national income
अध्ययन की दृष्टि से राष्ट्रीय आय की परिभाषा को आप दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं:
(क) नव प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों की परिभाषा;
(ख)
आधुनिक परिभाषा
(क) नव प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों की राष्ट्रीय आय की परिभाषा परिभाषा:
इस परिभाषा के अन्तर्गत नव-प्रतिष्ठित
अर्थशास्त्री जैसे मार्शल,
पीगू, फीशर आदि की परिभाषाएं सम्मिलित हैं;
1) मार्शल की राष्ट्रीय आय की परिभाषा:
मार्शल के अनुसार किसी देश का श्रम व पूँजी उस देश के प्राकृतिक
साधनों पर कार्य करते हुए प्रति वर्ष भौतिक तथा अभौतिक वस्तुओं एवं सभी प्रकार की
सेवाओं का एक विशुद्ध योग उत्पन्न करते हैं। यह किसी देश की वास्तविक विशुद्ध
वार्षिक आय या आगम अथवा राष्ट्रीय लाभांश है।
परिभाषा की विशेषताएँ:- मार्शल के परिभाषा की निम्नलिखित विशेषता है:
क. राष्ट्रीय आय क गणना प्रायः वार्षिक आधार पर की जाती है।
ख. कुल उत्पत्ति में से मशीनों की टूट-फूट तथा घिसाई का व्यय निकाल दिया जाता है।
ग. विदेशी विनियोग से प्राप्त आय को जोड़ दिया जाता है।
घ. मार्शल ने राष्ट्रीय आय की गणना कुल उत्पादन के आधार पर न करके शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन के आधार पर की है।
ङ मार्शल के अनुसार किसी देश की एक वर्ष का कुल उत्पादन ही उस देश की उस वर्ष का कुल आय है।
च. वे सभी सेवाएं जो कोई व्यक्ति बिना किसी पारिश्रमिक के अपने परिवार के सदस्यों के लिए करता है, राष्ट्रीय आय / लाभांश में नहीं जोड़ी जानी चाहिए।
छ. कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक सम्पत्ति से जो लाभ प्राप्त करता है उसे राष्ट्रीय आय में नहीं सम्मिलित किया जाना चाहिए।
संक्षेप में शुद्ध राष्ट्रीय आय वस्तुओं तथा सेवाओं का राष्ट्रीय उत्पादन + विदेशों में विनियोग से प्राप्त शुद्ध आय कच्ची सामग्री की लागत -हास
मार्शल की परिभाषा की आलोचना:
यह परिभाषा सैद्धान्तिक दृष्टिकोण से संतोषजनक
प्रतीत होती है, परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से इसमें कुछ
कमियाँ हैं जो निम्नलिखित है:
क. वस्तुओं एवं सेवाओं के कुल उत्पादन की सांख्यिकीय माप कठिन है।
ख. ऐसी वस्तुएं जिनका बाजार में विनिमय नहीं
होता है जैसे कृषि फसल का एक भाग उत्पादक अपने परिवार के प्रयोग के लिए रख लेता
है। ऐसी वस्तुओं का द्राव्यिक मूल्य ज्ञात नहीं किया जा सकता है, अतः राष्ट्रीय आय की सही गणना नहीं की
जा सकती।
ग. दोहरी गणना की संभावना रहती है। उदाहरणार्थ, कृषि उत्पादन में गन्ने के मूल्य को शामिल किया जा सकता है तथा औद्योगिक उत्पादन में चीनी और गुड़ के मूल्य को भी शामिल किया जा सकता है।
2.) पीगू की राष्ट्रीय आय की परिभाषा:
पीगू के अनुसार, राष्ट्रीय लाभांश समाज की वस्तुगत आय का, जिसमें निसंदेह विदेशों से प्राप्त आय भी शामिल होती है, वह भाग है जो कि द्रव्य में मापा जा सकता है।” पीगू ने अपनी परिभाषा राष्ट्रीय आय की गणना में केवल उन्हीं वस्तुओं एवं सेवाओं को सम्मिलित किया है, जिनको मुद्रा के मापदण्ड द्वारा मापा जा सके।
संक्षेप में राष्ट्रीय आय = मौद्रिक आय +
विदेशों में विनियोग से प्राप्त आय
पीगू की राष्ट्रीय आय की परिभाषा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
क. केवल उन्हीं वस्तुओं एवं सेवाओं की
राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किया जायेगा जिसको माध्यम से मापा जा सकता है। मुद्रा
के
ख. राष्ट्रीय आय की गणना करते समय हर सम्भव
प्रयास किया जाय कि दोहरी गणना न हो ।
ग. देश के उत्पादन के अतिरिक्त देश के नागरिकों
द्वारा विदेशों में किये गये विनियोगों से प्राप्त आय का समावेश भी राष्ट्रीय आय
में किया जाना चाहिए।
पीगू की परिभाषा की आलोचनाएँ:
क. यह परिभाषा मुद्रा अर्थव्यवस्था में लागू
होती है। वस्तु विनिमय अर्थव्यवस्था में नहीं लागू होती है। ख. इसमें उन्हीं
वस्तुओं एवं सेवाओं को लिया गया जो मुद्रा के माध्यम से मापी जा सकती है। यह
सिद्धान्ततः सही नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि राष्ट्रीय लाभांश में उन सभी
वस्तुओं एवं सेवाओं को सम्मिलित करना चाहिए जिससे राष्ट्रीय कल्याण में वृद्धि हो
में
ग. पीगू के अनुसार राष्ट्रीय आय / लाभांश में
केवल उन्हीं वस्तुओं को शामिल किया जाता है जिनका द्रव्य द्वारा विनिमय किया जाता
है परन्तु इसमें कठिनाईयाँ उपस्थित होती है जैसे
- (अ) यदि कोई किसान अपनी पैदावार में से अपने परिवार की आवश्यकता के लिए कुछ अंश निकाल लेता है तो इसे राष्ट्रीय लाभांश में सम्मिलित नहीं किया जायेगा, परन्तु यदि वही किसान अपनी सम्पूर्ण पैदावार बाजार में पहले बेच दे, पुनः उसमें से अपनी आवश्यकता अनुसार खरीद ले तो उसकी पूर्ण उपज राष्ट्रीय आय में सम्मिलित होगी। इस प्रकार उत्पादन दोनों अवस्थाओं में एक ही रहने पर भी पहली अवस्था में राष्ट्रीय आय कम तथा दूसरी में अपेक्षाकृत अधिक होगी।
- (ब) एक सेविका की सेवाएँ राष्ट्रीय आय में सम्मिलित की जाएगी क्योंकि उसकी सेवा के बदले में द्रव्य दिया जाता है, परन्तु यदि मालिक अपनी सेविका से विवाह कर लेता है तो उसकी सेवाएँ राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं की जायेगी
- (स) यदि कोई औरत पैसा लेकर खाना बनाती है तो उसकी सेवा राष्ट्रीय लाभांश में जोड़ी जायेगी पर वही औरत अपने घर में बिना पैसे के खाना बनाती है तो इसे राष्ट्रीय लाभांश / आय में नहीं रखा जायेगा।
3) फिशर की राष्ट्रीय आय की परिभाषा
मार्शल तथा पीगू दोनों ने राष्ट्रीय आय के अनुमान के लिए उत्पादन को आधार बनाया, पर फिशर ने राष्ट्रीय आय के अनुमान के लिए उपभोग को आधार माना। प्रो. इरविंग फिशर के अनुसार, “वास्तविक राष्ट्रीय आय, एक वर्ष में उत्पादित शुद्ध उपज का वह अंश है जिसका उस वर्ष में प्रत्यक्ष रुप से उपभोग किया जाता है।’’
इसे स्पष्ट करते हुए फिशर ने अन्यत्र राष्ट्रीय आय की परिभाषा इस प्रकार दी है-
‘‘राष्ट्रीय लाभांश आय में वहीं सेवायें सम्मिलित की जाती हैं जो कि उपभोक्ताओं को अपने भौतिक अथवा मानवीय वातावरण द्वारा प्राप्त होती है। इस प्रकार एक पियानों अथवा ओवरकोट जो कि मेरे लिए इस वर्ष बनाया गया है, इस वर्ष की आय का भाग नहीं है बल्कि पूँजी में वृद्धि है। केवल वहीं सेवायें जो कि इनके प्रयोग से इस वर्ष मुझे मिलेगी आय होगी।”
इस
परिभाषा से स्पष्ट है कि किसी एक वर्ष में उत्पादित वस्तु एवं सेवाओं के उत्पादन
का वही भाग राष्ट्रीय आय में शामिल होता है जिसका उपभोग किया जाता है।
फिशर की राष्ट्रीय आय की परिभाषा से सम्बन्धित विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
1. फिशर
ने उपभोग के आधार पर राष्ट्रीय आय को परिभाषित किया है जबकि मार्शल तथा पीगू ने ‘उत्पादन' के आधार पर राष्ट्रीय आय को परिभाषित किया है।
2. टिकाऊ
उपभोग वस्तुओं के जीवन काल का अनुमान लगाना कठिन है। उदाहरण के लिए फिशर के ओवरकोट
को ही लें। यदि इसका मूल्य 1000रु.
है और इसका जीवन 10 वर्ष माने तो रु. 100 एक वर्ष के राष्ट्रीय आय में शामिल
होगा जबकि मार्शल और पीगू के अनुसार पूरे रु. 1000 ही
उस वर्ष के राष्ट्रीय आय में शामिल होंगे और सम्भव है ओवरकोट 10 वर्ष से ज्यादा या कम चले।
3. वस्तु
का हस्तान्तरण हो सकता है। वस्तु हस्तान्तरण के फलस्वरूप स्वामित्व व मूल्य में
परिवर्तन होता रहता है ऐसी स्थिति में वस्तु से प्राप्त उपभोग या उपयोगिता का
अनुमान लगाना कठिन हो जाता है।
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