प्रबन्ध की प्रकृति |क्या प्रबन्ध एक कला है? Nature of Management in Hindi
प्रबन्ध की प्रकृति Nature of Management in Hindi
प्रबन्ध की प्रकृति कि जब हम बात करते हैं तो प्रकृति से तात्पर्य यह है कि प्रबन्धन है क्या ? क्या यह विज्ञान है या कला ? प्रबन्ध को विज्ञान माना जाय या कला । या इसे कला या विज्ञान दोनों माना जाय । आइये इसे समझने का प्रयास करते हैं ।
प्रबन्ध: कला अथवा विज्ञान
प्रबन्ध एक कला है अथवा विज्ञान, यह एक विवाद का विषय रहा है।किन्तु प्रबन्ध के वर्तमान स्वरूप एवं परिस्थितियों से अब यह निश्चित सा हो गया है कि प्रबन्ध एक कला एवं विज्ञान दोनों ही है। कला एवं विज्ञान के रूप में प्रबन्ध का विवेचन निम्न प्रकार है-
किन कारणों से प्रबन्ध को एक कला माना जाता है ?
क्या प्रबन्ध एक कला है?
- प्रबन्ध एक कला है अथवा नहीं, इस बात की जांच करने के पूर्व हमें कला का आशय जान लेना चाहिए। कला किसी भी कार्य को सर्वोत्तम ढंग से करने की एक विधि है ताकि निर्धारित लक्ष्यों को कुशलतापूर्वक प्राप्त किया जा सके।
थयो हैमेन के अनुसार कला कार्य करने का एक ढंग है, व्यवहार करने की विधि है। जार्ज आर टेरी लिखते हैं कि कला का आशय व्यक्तिगत सृजनात्मक शक्ति एवं निष्पादन कौशल से है। चेस्टर आई बर्नार्ड ने कला को व्यावहारिक ज्ञान कहा ।
कला की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. कला हमें इच्छित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए ज्ञान एवं चातुर्य का प्रयोग करना बताती है। यह कार्य के क्रियान्वयन पक्ष से सम्बन्ध रखती है।
2. कला व्यक्तिगत योग्यता पर निर्भर करती है, जिसे अभ्यास, लगन, परिश्रम व अनुभव द्वारा निखारा जा सकता है।
3. कला व्यक्तिगत पूंजी होती है। यह हस्तांतरणयोग्य कौशल नहीं है, क्योंकि जन्मजात योग्यता है।
4. कला में अभ्यास पक्ष महत्वपूर्ण होता है। केवल मात्र सैद्धान्तिक ज्ञान से व्यक्ति कुशल कलाकार नहीं बन सकता। सफलता के लिए निरन्तर अभ्यास आवश्यक है।
5. कला का संचय संभव नहीं है।
6. मानवीय उद्यमों कला सबसे अधिक सृजनात्मक होती है। वह व्यक्ति की कल्पना में शक्ति, विवके व दूरदर्शिता का परिणाम है।
7. कला का हस्तांतरण नहीं किया जा सकता है। किन्तु इसे सीखा जा सकता है।
8. कला एक मानवीय गुण है।
9. कला कार्य के निष्पादन से सम्बन्धित है।
10. कला सिद्धान्तों को व्यवहार में लाने का कौशल है। कला के शत-प्रतिशत सिद्धान्त नहीं होते।
11. कला परिस्थितियों को उपयोग में लाने का कौशल है।
प्रबन्ध की कला के रूप में कसौटी
कला की सभी विशेषताएं प्रबन्ध में मिलती हैं। निम्न बातों से स्पष्ट है कि प्रबन्ध एक कला है
1. ज्ञान का व्यावहारिक उपयोग
- प्रबन्ध संगठन की समस्याओं को हल करने के लिए अपने प्रबन्धीय ज्ञान का व्यावहारिक उपयोग करता है। वह प्रबन्धीय सिद्धान्तों एवं तकनीकी को समस्या के संदर्भ में व्यावहारिक रूप में प्रदान करता है
2. व्यक्तिगत योग्यता
- संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति में प्रबन्ध के व्यक्तिगत गुण जैसे रचनात्मक चिन्तन, आत्मविश्वास, दूरदर्शिता, गतिशीलता, नेतृत्व एवं निर्णय क्षमता, आशावादिता आदि अत्यन्त सहायक होते हैं।
3. संयोगिक दृष्टिकोण
- प्रबन्ध की शैली एवं तकनीकी परिस्थितियों के अनुरूप रहती है। प्रबन्ध का दृष्टिकोण एवं विधि सदैव समस्या के अनुसार होती है। इसलिए प्रबन्ध की कोई एक क्षेत्र प्रणाली अथवा त्रुटिहीन सिद्धान्तों का निर्माण नहीं किया जा सकता है।
4. सृजनात्मकता प्रबन्ध
सृजनात्मक कला है क्योंकि इसमें निरंतर नयी तकनीकी के साथ साथ नये सामाजिक मूल्यों, आदर्शों व संस्कृति का निर्माण भी किया जाता है। टैरी के अनुसार प्रबन्ध सब कलाओं में सबसे अधिक सृजानात्मक है। यह कलाओं की कला है क्योंकि यह मानवीय प्रतिभा की संगठनकर्ता एवं प्रयोगकर्ता है।
1. प्रबन्ध कला का हस्तांतरण सम्भव नहीं है क्योंकि यह व्यक्तिपरक होती है। प्रत्येक प्रबन्धक इसे अपने प्रयासों से विकसित करता है।
2. अभ्यास- प्रबन्ध कला काफी सीमा तक अभ्यास एवं अनुभव पर निर्भर करती है।पीटर ड्रकर लिखते हैं कि प्रबन्ध एक व्यवहार है। इसका सारतत्व जानना नहीं वरन् करना है। इसका विकास व्यवहार से ही हुआ है और यह व्यवहार पर ही केन्द्रित है।
3. अनुभव परक प्रबन्ध में अनुभव एवं चातुर्य का उपयोग किया जाता है।
4. सफलता का आधार- प्रबन्ध कला की सफलता का आधार प्रबन्धक का निजी चातुर्य, ज्ञान एवं अनुभव होता है, अतः स्पष्ट है कि प्रबन्ध एक कला है।
5. लोचपूर्ण सिद्धान्त प्रबन्ध के सिद्धान्त विकसति किये जा सकते हैं किन्तु उनके शत प्रतिशत रूप से खरे उतरने की संभावना परिस्थितियों पर निर्भर करती है।
6. निर्णयों का प्रभाव नहीं - प्रबन्धकों द्वारा निर्णय कुछ सिद्धान्तों के आधार पर लिए जा सकते हैं, किन्तु परिवर्तनशील परिस्थितियों के कारण उन निर्णयों का प्रभाव सदैव समान नहीं होता है।
7. कार्य लेने की कला प्रबन्ध वास्तव में कर्मचारियों को प्रभावित एवं अभिप्रेरित करके उनसे कार्य लेने की कला ही है।
इन सभी कारणों से प्रबन्ध को एक कला माना जा सकता है।
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