वैज्ञानिक प्रबन्ध उपागम : लोक प्रशासन के सिद्धान्त |नौकरशाही उपागम, फ्रेडरिक टेलर |Naukrsahi upagam
वैज्ञानिक प्रबन्ध उपागम : लोक प्रशासन के सिद्धान्त
संगठन के अध्ययन सम्बन्धी शास्त्री उपागमों की दृष्टि से दो प्रतिमानों-वैज्ञानिक प्रबन्ध उपागम तथा नौकरशाही उपागम का विश्लेषण अति महत्वपूर्ण है।
फ्रेडरिक टेलर का लोक प्रशासन सिद्धान्त
टेलर ने 'प्रबन्ध विज्ञान' को 30 वर्षों की लम्बी अवधि में विकसित किया था।
- वैज्ञानिक प्रबन्ध में सर्वप्रथम, पुराने प्रबन्ध में पाए जाने वाली सभी प्राविधियों उपकरणों, आदि का अन्वेषण किया जाता है। यदि उपयोगी हुआ तो स्वयं श्रमिकों के परामर्श एवं सहयोग से उन्हें सुधारा एवं विकसित किया जाता है। बाद में उनकी समय गति का अध्ययन किया जाता है और देखा जाता है कि किन बिन्दुओं पर श्रमिक का कार्य सरल बनाया तथा उसकी गति को तेज किया जा सकता है।
- इस प्रकार विभिन्न श्रमिकों द्वारा विविध प्रकार के प्रयोग किए जाने पर उस प्रविधि का समय, गति, उपयोग, उत्पादन, आदि मानकीकृत कर दिया जाता है और उसे समान रूप से लागू कर दिया जाता है। वास्तव में, कार्य प्रबन्ध में 'कार्यकुशलता' को सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
टेलरवादी प्रबन्ध विज्ञान के निम्न आधार स्तम्भ हैं
1. एक सच्चे प्रबन्ध (मैनेजमेण्ट) एवं कार्य (टास्क) विज्ञान का विकास,
2. कार्यकर्ता का वैज्ञानिक आधार पर चयन,
3. उसका वैज्ञानिक शिक्षण एवं विकास,
4. प्रबन्ध एवं श्रमिक के बीच मैत्रीपूर्ण सहयोग।
- टेलर के अनुसार, सार रूप में वैज्ञानिक प्रबन्धवाद 'एक पूर्ण मानसिक क्रान्ति' है जिसमें श्रमिक अपने कार्य, अपने सहयोगियों तथा अपने नियोजकों के प्रति तत्परतापूर्वक अपने कर्तत्यों का पालन करते हैं। उसी तरह प्रबन्धक फोरमैन, अधीक्षक, मालिक, निदेशक मण्डल, आदि अपने सहयोगियों तथा अपने नियोजकों के प्रति अपने दायित्वों को सम्पूर्ण क्षमता के साथ वहन टेलर ने कहा कि प्रबन्ध को जानना जरूरी है।
- प्रबन्ध एक विज्ञान है जो निश्चित कानूनों, नियमों व सिद्धान्तों पर आधारित है। उन्होंने तर्क दिया कि प्रबन्ध में ऐसे अनेक सिद्धान्त शामिल हैं जो निजी तथा सरकारी दोनों संगठनों पर लागू होते हैं। उनके अनुसार प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य नियुक्तिकर्ता की अधिकतम् समृद्धि के साथ-साथ प्रत्येक कामगार को भी अधिकतम धन प्राप्त करना है। उनके वैज्ञानिक प्रबन्ध का दर्शन यह है कि नियुक्तिकर्ता, कामगारों तथा उपभोक्ताओं के हितों में कोई अन्तर्निहित टकराव नहीं हो ।
- टेलर ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि वैज्ञानिक प्रबन्ध के दर्शन को उसकी प्रविधियों का पर्याय नहीं समझा जाना चाहिए। स्पष्टता के लिए इन कतिपय प्रविधियों का विवरण सांकेतिक रूप से दिया जा रहा है- समय अध्ययन, कार्यात्मक फोरमैनवाद, उपकरणों, साधनों तथा क्रियाओं का मानवीकरण, नियोजन कक्ष या विभाग की आवश्यकता, वाले उपकरणों का उपयोग, 'कार्य दशक' इकाई का 'बोनस' सहित विचार, वर्गीकृत तैयार माल योजना, आधुनिक लागत प्रणाली, आदि।
- टेलरवाद वैज्ञानिक प्रबन्ध को लोक प्रशासन के निकट लाने में भी सफल सिद्ध हुआ है। इससे ‘सगठन के विशुद्ध सिद्धान्त' को विकसित करने की प्रेरणा मिली। टेलरवाद के परिणामस्वरूप शासन एवं उसकी प्रक्रियाओं के प्रति सर्वत्र नया दृष्टिकोण अपनाया गया। शोध, तथ्य और मापन उसका अमूल्य योगदान है। उसके 'समय और गति सम्बन्धी अध्ययन वैज्ञानिक प्रबन्ध की मुख्य आधारशिला बन गए। सभी दृष्टिकोणों से टेलर को कार्यरत मानव के अध्ययन में अग्रणी माना जाना चाहिए। वे प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने अच्छे कार्य निष्पादन की खोज की शुरूआत कीं औद्योगिक प्रबन्ध के अध्यन में परिमाणवाचक तकनीकों का प्रयोग करने वा भी वे प्रथम व्यक्ति थे। आधुनिक वैज्ञानिक प्रबन्ध, अनुसंधान पद्वति अध्ययन, समय अध्ययन, प्रणाली या व्यवस्था विश्लेषण, आदि सभी टेलर की विरासत का हिस्सा हैं।
- टेलर के साथियों हेनरी एल, गैण्ट तथा फैंक गिल्ब्रेथ ने उसके कार्यों को आगे बढ़ाया। गैण्ट ने टेलर की प्रेरणात्मक पद्धति सुधार किया और 'कार्य एवं बोनस योजना' का विकास किया। फ्रैंक में गिल्बैरथ ने गति अध्ययन में रूचि ली। उन्होंने कार्य पर 18 गतियों की पहचान की जिसे वे ‘THE RBLIGS’ की संज्ञा देते हैं। टेलर ने मूलतः औद्योगिक क्षेत्र में काम किया था, किन्तु शीघ्र ही उनके विचारों का प्रभाव अन्य क्षेत्रों, सरकारी तथा सैनिक संगठनों तक पहुंचने लगा।
नौकरशाही उपागमःलोक प्रशासन के सिद्धान्त का
मैक्स वेबर का लोक प्रशासन का सिद्धान्त
- नौकरशाही शब्द वेबर के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, किन्तु उसका प्रयोग अर्वाचीन है। प्रारम्भ में 18वीं शताब्दी में इस शब्द का प्रयोग फ्रेंच सरकार के अधिकारियों की डेस्कों को ढकने वाले कपड़े के लिए किया जाता था। बाद में जहां-जहां सरकार में निरंकुशता, संकुचित दृष्टिकोण तथा सरकारी अधिकारियों की स्वेच्छाचारिता दिखाई पड़ी, वहीं उसे 'नौकरशाही' कहा जाने लगा। धीरे-धीरे इसका भावार्थ नियमों का कठोर पालन, अनुत्तरदायित्व, जटिल प्रक्रियाओं तथा निहित स्वार्थों से लिया जाने लगा।
- द्वितीय महायुद्ध के बाद इसे 'पार्किन्सन कानून' की प्रतिमूर्ति मान लिया गया जिसका संकेत नौकरशाही द्वारा सत्ता साम्राज्य निर्माण, साधनों का अपव्वय, उदासीनता, आत्म प्रसार, आदि दुष्प्रभावपूर्ण प्रवृत्तियों से था।
- आधुनिक विचारकों में मैक्स वेबर सर्वप्रमुख समाजशास्त्री हैं जिनके नौकरशाही सम्बन्धी विचार महत्वपूर्ण माने जाते हैं। वेबर का नौकरशाही सिद्धान्त प्रभुत्व के सिद्धान्त का ही एक अंग है।
- वेबर ने नौकरशाही तथा उससे सम्बन्धित अन्य संरचनाओं जैसे, सत्ता, औचित्यपूर्ण या वैधानिकता, वर्ग आदि का अध्ययन किया है। उसकी विश्लेषणात्मक विषय परिधि व्यापक है। इसलिए वह समाज, विशेषतः पश्चिमी समाज (मूलतः प्रशिया का राजतन्त्र), के का विश्लेषण प्रस्तुत कता है। उनके अनुसार समाज के संगठन के मूल प्रमुख में शक्ति और प्रभुत्व (डोमिनेशन) है। मूल्य सहभागिता के कारण ये सत्ता नेत्तृव और औचित्यपूर्ण बन जाते हैं।
- वेबर के अनुसार प्रभुत्व का अर्थ है नियन्त्रण की अधिकारिता शक्ति दूसरे शब्दों में कहें तो वेबर ने यह प्रश्न उठाया कि कैसे एक व्यक्ति दूसरों पर अपना प्रभुत्व जमाता है और इसी के उत्तर में यह भी कहा कि प्रभुत्व का उपयोग यदि किसी भी तरह न्यायसंगत तथा वैद्य हो, तो वह स्वीकार्य हो जाता है। एक तरह से देखें तो एक प्रकार की वैधता से किसी विशिष्ट प्रकार का प्रभुत्व होता है और दूसरी तरह की वैधता से एक अन्य प्रकार का ।
- अतः वेबर ने प्रभुत्व के कुल तीन प्रकार माने, पहला- पारम्परिक प्रभुत्व, दूसरा- श्रद्धा पर आधार प्रभुत्व, तथा तीसरा वैधानिक या कानूनी प्रभुत्व | नौकरशाही इनमें से अन्तिम श्रेणी में आती है।
वेबर के अनुसार नौकरशाही विशेषताएं
1. संगठन के कार्य को कर्मचारियों में इस प्रकार विभाजित कर दिया जाता है कि प्रत्येक कर्मचारी को कार्य का कोई विशेष भाग पूरा करना होता है। इस पद्धति में वह एक ही कार्य को बार-बार करते हुए उस कार्य में कुशल हो जाता है।
2. प्रत्येक नौकरशाही तन्त्र में प्रशासन की एक श्रंखला या पद क्रम की परम्परा होती है जिससे अधीनस्थ कर्मचारी उच्चस्तरीय कर्मचारियों को देख-रेख में रहते हैं।
3. आधुनिक कार्यालयों की प्रबन्ध व्यवस्था लिखित दस्तावेजों तथा फाइलों पर ही आधारित है।
4. कर्मचारियों का चयन उनकी तकनीकी योग्यताओं के आधार किया जाता है।
5. नौकरशाही के सदस्य के रूप में रोजगार को प्रत्येक व्यक्ति अपनी आजीविका बना लेता है।
6. इस तन्त्र में कर्मचारियों को निश्चित वेतन के रूप में पारिश्रमिक दिया जाता है।
7. इस तन्त्र में प्रबन्ध व्यवस्था द्वारा निर्धारित कुछ नियम होते हैं जिनका सभी कर्मचारियों तथा अनुयायियों को पता होता है।
8. कर्मचारियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे व्यक्तिगत पसन्द और नापसन्दगी से बाधित हुए बिना ही अपने कर्तव्य का निर्वाहन करें |
9. नौकरशाही संगठन एक अत्यन्त कार्यकुशल है जैसे कोई एक मशीन अन्य मशीनों की तुलना में अधिक उत्पादन देती है।
- वेबर के शब्दों में ये सभी विशेषताएं मिलकर संगठन को 'उच्चतम मात्रा में कुशलता प्राप्त करने में सक्षम बना देती हैं। सिद्धान्ततः यह आदर्श प्रकार विभिन्न क्षेत्र में सभी प्रकार के संगठनों के लिए लागू होता है चाहे वह निजी हो या सरकारी नौकरशाही सत्ता अपने विशुद्ध रूप से वहां लागू होती हैं, जहां प्रशासन में अधिकाधिक बौद्धिकता को आधार बनाया गया हो । नौकरशाही की बुराई कितनी ही क्यों न की जाए, सरकारी कार्यालयों में बैठे कर्मचारियों के बिना प्रशासनिक कार्यों को निरन्तर एवं प्रभावशाली ढंग से नहीं कराया जा सकता।
- नौकरशाही प्रशासन का मूलभूत आधार ही ज्ञान पर आश्रित नियन्त्रण का प्रयोग है। यही विशेषता उसे बौद्धिक बना देती है। इसी बौद्धिकता के कारण उसे असाधारण शक्ति प्राप्त हो जाती है।
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लोक प्रशासन के सिद्धान्त
1. शास्त्रीय उपागमः हेरनी फेयोल, लूथर गुलिक एवं लिंडल उर्विक
2. वैज्ञानिक प्रबन्ध उपागम: फ्रेडरिक टेलर
4. मानवीय सम्बन्धात्मक उपागम: एल्टन मेयो
5. व्यवस्थावादी उपागम: चेस्टर बर्नार्ड
6. व्यवहारवादी उपागम: हर्बर्ट साइमन
7. सामाजिक मनोवैज्ञानिक उपागम: डगलस मैक्ग्रेगर एवं अब्राहम मैस्लों
8. पारिस्थितिकीय उपागम: फ्रेड डब्ल्यू. रिग्स
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