जवाहर लाल नेहरू का योगदान | Nehru Ka Bharat Ko Yogdaan
जवाहर लाल नेहरू का भारत को योगदान
नेहरू एक महान् राजनेता तथा भारतीय जनता के हृदय सम्राट थे स्वतन्त्रता संग्राम में नेहरू की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इसके बाद उन्होनें 18 वर्ष तक देश का नेतृत्व कर राष्ट्रीय विकास को नवीन दिशा प्रदान तो की ही साथ में विश्व समुदाय को शांति का इकाई पढ़ाया। नेहरू के विचारों को ही आधार मानकर आज हमारी सम्पूर्ण व्यवस्थाओं का संचालन ही रहा।
नेहरू के योगदान को निम्न शीर्षकों द्वारा प्रस्तुत कर सकते है -
1 भारतीय इतिहास की वैज्ञानिक व्याख्या:
पं. नेहरू ने अपनी रचनाओं भारत की खोज", "विश्व इतिहास की झलक तथा आत्म कथा' में भारतीय इतिहास की वैज्ञानिक व्याख्या करने का प्रयास किया गया है। उन्होंने भारत में घटने वाली घटनाओं को विश्व की परिस्थितियों के सन्दर्भ में भी देखने का प्रयास किया। इस दृष्टि से उन्होंने भारतीयों को अलग रहने और अपने आपको संकीर्ण क्षेत्र में सीमित रखने की प्रवृत्ति की आलोचना की।
अन्तरराष्ट्रीयता के पोषक के रूप में जवाहर लाल नेहरू
- ये सभी तत्व भारतीय नीति के मूल आधार हैं।
- इन विचारों को अपनाने से विश्व में स्थायी शांति की स्थापना की जा सकती हैं।
- ये कारक हमें इस बात के लिए प्रेरित करते हैं कि अन्तरराष्ट्रीय समस्याओं पंचनिर्णय और शांतिपूर्ण साधनों से ही किया जा सकता हैं। साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद के नाम पर जो सदियों तक शोषण एवं अन्याय हो रहा था उस पर अंकुश लग सका है।
- विश्व के उन देशों को अन्तरराष्ट्रीय रंगमंचों पर पहचान कायम करने का अवसर मिला जो लम्बी गुलामी के बाद द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् स्वतंत्र हुए थे।
- ये विचार भारत के राष्ट्रीय हितों में अभिवृद्धि करने में सहायक सिद्ध हुए हैं।
- पं. नेहरू की गुटनिरपेक्षता की नीति शीतयुद्ध की बर्फ को पिघलाने में कारगर सिद्ध हुई।
- ये विचार राष्ट्रों में पारस्परिक विश्वास बहाली को बढ़ाते हैं तथा एक दूसरे की सम्प्रभुता का सम्मान करना सिखाते हैं।
2 लोकतंत्र में अटूट आस्था
- नेहरू की लोकतंत्र में अटूट आस्था थी। स्वयं को भारतीय जनता के ह्यदय सम्राट प्राप्त होने पर भी उन्होंने अपन आपको लोकतांत्रिक मान-मर्यादाओं के उल्लंघन से सदैव बचाए रखा। उनके समस्त व्यवहार में गहरी शालीनता और गरिमा थी। उन्होंने भारत में राजनीतिक स्थायित्व प्रदान किया और भारत में संसदीय लोकतंत्र की नींव मजबूत करने का कार्य किया।
3 लोकतांत्रिक समाजवाद का प्रतिपादन
- पं. नेहरू की दृष्टि में केवल राजनीतिक स्वतन्त्रता से भारत की उन्नति नहीं हो सकती। अतः इसके साथ आर्थिक समानता को प्रोत्साहन देने के लिए उन्होंने लोकतांत्रिक समाजवाद का प्रतिदान किया। यद्यपि ये विचार नेहरू का मौलिक अधिकार नहीं था परन्तु इसे लोकप्रिय बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने कांग्रेस को इस बात के लिए प्रेरित किया कि समाजवादी ढंग के समाज के आधार पर जनता के आर्थिक तथा सामाजिक कल्याण के लिए साहस पूर्वक प्रयत्न करे। इस तरह भारत की राजनीतिक एवं आर्थिक दोनों ही नीति पर इस प्रभाव पड़ा।
जवाहर लाल नेहरू का मानवतावाद
नेहरू का मानवतावाद
- नेहरू का मानव स्वभाव की रचनात्मक सम्भावनाओं में विश्वास था और वे वैज्ञानिक मानवतावाद के आदर्श को स्वीकार करते थे। अपनी पुस्तक भारत की खोज में लिखा है कि टैगोर भारत के महानतम् मानवतावादी थे। टैगोर का मानवतावाद इस दार्शनिक विश्वास पर आधारित था कि परमात्मा सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त हैं। नेहरू का मानवतावाद का आधार इससे भिन्न है। नेहरू और संवेदना युक्त प्रतिक्रिया होती थी, वही उनके मानवतावाद का आधार था
5 अन्तरराष्ट्रवाद
- नेहरू की अन्तरराष्ट्रवाद में दृढ़ आस्था थी। इसीलिए उन्होंने संकीर्ण राष्ट्रवाद का विरोध किया। उनका मत था कि युद्ध या संघर्ष से मानवता का भला नहीं हो सकता। इसके लिए हमें एक ऐसी भावना को फैलाना होगा कि विश्व को एक परिवार के रूप में माने। उन्होंने शीतयुद्ध के स्थान पर शांति पूर्ण सहअस्तित्व का विचार प्रस्तुत किया। संयुक्त राष्ट्र संघ को सशक्त बनाने, निशस्त्रीकरण को प्रोत्साहन देने, विश्व समस्याओं का समाधान पंचशील द्वारा करने तथा महाशक्तियों के बीच सन्तुलन बनने पर बल दिया। इसके लिए उन्होंने गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की अवधारणा स्थापित की जिससे विश्व शांति को प्रोत्साहन तो मिला ही साथ में नव स्वतन्त्र देशों को भी अपनी पहचान कायम करने का सुअवसर प्राप्त हुआ।
6 नेहरू आधुनिक भारत के निर्माता
- जवाहरलाल नेहरू को आधुनिक भारत का निर्माता माना जाता है। स्वतन्त्रता के साथ ही भारत को अनेक चुनौतियाँ मिली थी। अतः नेहरू ने इसके समाधान हेतु ठोस कदम उठाए। इनको मुख्य उद्देश्य भारत को हर क्षेत्र में समृद्ध बनाना था। इसके लिए उनके द्वारा पंचवर्षीय योजना शुरू की गई, औद्योगिकरण को प्रोत्साहन देने के लिए बड़े-बड़े कारखानों की स्थापना की गई, कृषि क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने हेतु हरित क्रांति, दुध उत्पादन में वृद्धि हेतु श्वेत क्रांति लायी गई। इसके अलावा उनके विदेशी नीति के कार्यान्वयन का भी आधार भारत का समग्र विकास था ताकि विश्व के अधिक से अधिक देश भारत के नव निर्माण में अपनी भूमिका अदा कर सके ।
7 गुट निरपेक्षता
- नहेरू द्वारा अन्तरराष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया। इसका अनुसरण उन परिस्थितियों में किया गया था जब सम्पूर्ण विश्व शीतयुद्ध की चपेट में था, विश्व दो खेमों में स्पष्ट रूप से विभाजित हो गया था। एशिया, अफ्रीका तथा लेटिन अमेरिका के देशों के समक्ष ये चुनौती थी कि वे किस गुट में शामिल हो अतः इन नव स्वतन्त्र राष्ट्रों के गरिमा को बनाये रखने के लिए नेहरू ने गुटनिरपेक्षता की अवधारणा का प्रतिपादन किया। इस अवधारणा का प्रभाव व्यापक रूप से देखा गया और आज भी ये आन्दोलन सफलता के साथ अपने नवीन सौपान तय कर रहा हैं।
8 धर्मनिरपेक्षता
- नेहरू भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने के पक्ष में थे। उनका मत था कि भारत में अनेक धर्मों के लोग रहते हैं तो इन स्थितियों में एक धर्म को विशेष स्थान देना अन्य धर्मों की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। इसीलिए उन्होंने भारतीय संविधान धर्म निरपेक्षता के संबंध में सभी प्रावधान शामिल करवाये ताकि प्रत्येक धर्म के लोग भारत के विकास में अपनी भूमिका अदा कर सकें।
इस प्रकार नेहरू के योगदान का न केवल भारत ऋणी है अपितु विश्व समुदाय भी है। उन्होंने जो विचार प्रस्तुत किये वे निश्चित रूप से व्यापक एवं मानवीय सोच लिए हुए थे। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन भारत की स्वतन्त्रता एवं विकास के लिए समर्पित कर दिया। उनके विचार आज भी प्रासंगिक है।
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