नेहरू के राष्ट्रवाद संबंधी विचार | Nehru Ke Rashtra Vaadi Vichar

नेहरू के राष्ट्रवाद संबंधी विचार | Nehru Ke Rashtra Vaadi Vichar


नेहरू के राष्ट्रवाद संबंधी विचार


➥ पं. नेहरू पर ये आरोप लगाए जाते रहे हैं कि उन्होनें राष्ट्रवाद के स्थान पर अन्तरराष्ट्रीयवाद को ज्यादा तरजीह दी जिससे राष्ट्रवाद की भावना पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। 

➥ लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं था। उन्होनें राष्ट्रीय एकता एवं राष्ट्रवाद के लिए सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। नेहरू के शब्दों में मै एक राष्ट्रवादी हूँ और मुझे राष्ट्रवादी होने पर गर्व है। 


नेहरू के राष्ट्रवाद संबंधी विचार बताओ ? 
नेहरू जी के राष्ट्रवाद संबंधी विचार निम्नलिखित हैं: 


1 सीमित उदार व सन्तुलित राष्ट्रवाद का समर्थन

  • उदारवाद में विश्वास उनके जीवन का मूलमंत्र तथा वे उदार राष्ट्रवादी थे उसमें अपने राष्ट्रवाद के प्रति भावुक होते हुए भी वह दूसरे राष्ट्रों के प्रति घृणा नहीं करतेवहां आधिपत्य स्थापित करने और उनका शोषण करने की बात तक नहीं सोच सकते। उग्रराष्ट्र के आलोचक थे तथा उसे देश कर चिन्तित भी थे। 

 

  • वे लिखते है कि- "राष्ट्रवाद अपनी जगह अच्छा हैलेकिन यह एक अविश्वसनीय मित्र और संदिग्ध इतिहास है। यह कई घटनाओं के प्रति हमारी आंखें मूंद देता है। कभी- सत्य को विद्वप कर है। जब उसका संबंध हमारे देश से हो। नेहरू का राष्ट्रवाद उन्हें भारत की स्वतन्त्रता और इससे आगे बढ़कर प्रत्येक राष्ट्र की स्वतंत्रता की प्रेरणा देता है।

 

2 स्वतन्त्रता का मूल प्रेरणा स्त्रोत

 

  • नेहरू का राष्ट्रवाद साम्राज्यवाद से मुक्ति और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष की प्ररेणा देता है। उन्होंने राष्ट्रवाद को ऐसे संघर्षो की अनुभूति कहा है जब कभी आपत्ति आती हैतब राष्ट्रवाद जन्म लेता है और राष्ट्रीय मंच पर छा जाता है। अपनी पुस्तक "डिस्कवरी ऑफ इण्डिया में वे लिखते हैं कि किसी भी पराधीन देश के लिए राष्ट्रीय स्वतंत्रता प्रथम तथा प्रधान आकांक्षा होनी चाहिए। भारत के लिए जिसको पाना अतीत की एक धरोहर है उसके लिए यह बात और भी सही थी। 


3 विविधता में एकता

  • भारतीय समाज विविधता वाला रहा हैयहां अनेक जातिधर्मभाषाक्षेत्र एवं संस्कृति के लोग रहते हैं। ये सब हमारी उदार छवि एवं वसुदैवकुटुम्बकम की भावना के कारण सम्भव हुआ। पं. नेहरू भारत की विविधता में ही एकता के दर्शन करते थे। यह विविधता राष्ट्र की प्रगति और आधारभूत एकता में तब तक कोई बाधा नहीं बन सकती जब तक कि हम भावनात्मक दृष्टि से राष्ट्र को समर्पित हैं। 


4 धर्म निरपेक्ष राष्ट्रवाद का समर्थन

 

  • पं. नेहरू के राष्ट्रवाद का आधार धर्म निरपेक्षता थी। उनका मत था कि किसी धर्म विशेष को राज्य द्वारा विशेष संरक्षण प्रदान किया जाएगा और न ही धर्म के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव किया जाएगा अपितु सभी को विकास के समान अवसर उपलब्ध करवाये जाऐंगे। धर्म पर आधारित राष्ट्र से भारत का विकास नहीं हो सकता है।

 

5 संकीर्ण राष्ट्रीयता का विरोध

 

  • पं. नेहरू ने संकीर्ण राष्ट्रीयता को राष्ट्र एवं अन्तरराष्ट्रीय दोनों ही स्तरों के लिए घातक मानते हैं। उनकी दृष्टि में संकीर्ण राष्ट्रवाद की भावना कुछ समय के लिए जोश भरकर तत्कालीन राष्ट्रीय हितों को पूरा किया जा सकता हैलेकिन उसके दूरगामी परिणाम राष्ट्रवाद मानवता के लिए घातककारी सिद्ध होते है। वे कहते है कि कुछ शासकों के द्वारा इस भावना को भड़काकर अपनी जनता को तो एकमंच पर लेकर आ गये लेकिन उन्होंने विश्व को युद्धों की विभिषिका में झोंक दिया। उनका तर्क था कि कोई भी राष्ट्र की जनता की नस्ल अपने आप में उच्च नहीं होती है। ऐसा नारा देकर जनता की भावना के साथ खिलवाड़ किया जाता है।

 

6 साम्राज्यवाद का विरोध

  • नेहरू साम्राज्यवाद पर आधारित राश्ट्रीयता की भर्त्सना करते हैं वे इसका विरोध करते हैं कि साम्राज्यवादी किसी राष्ट्र या राष्ट्रों का आर्थिक भोशण करें अथवा अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए दूसरे राश्ट्रों की एकता को खण्डित कर जातियों में विघटन पैदा करें। नेहरू की भावना मानव मात्र की स्वतन्त्रता व कल्याण निहित है। वहां उनमें अन्यायउत्पीड़न व अभाव का निराकरण भी निहित है।

 

7 समन्वयवादी दृष्टिकोण

 

  • नेहरू का राष्ट्रवाद अतीत वर्तमान व भविष्य के समन्वय पर आधारित है यह उसके अतीत का गौरव भविष्य की सम्भावनाओं तथा वर्तमान के सामर्थ्य के तालमेल पर आधारित है। यह भारत के अतीत की इच्छाओं का वर्तमान में अनुसरण करना चाहता है और उन्हें भविष्य की प्ररेणा बनाना चाहता है।


8 लोकशक्ति तथा आत्मशक्ति पर आधारित

 

  • उन्होंने नये इतिहास की रचना के लिए लोगों का आह्वान किया। उनका आग्रह था कि आइये हम सब मिल कर बढ़े और काम में हाथ बंटाये भारत को अपना हृदय के सर्वोच्च शिखरों पर प्रतिष्ठित करें उसे राष्ट्रों में महान बनाएंशांति व प्रगति का अग्रदूत बनाएं।

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