विकासशील और विकसित देशों की राजनीतिक विशेषताऐं |Political Characteristics of Developing and Developed Countries
विकसित और विकासशील देशों की विशेषताऐं
विकसित और विकासशील देशों की विशेषताओं को निम्न शीर्षकों से समझने का प्रयास करते हैं।
A विकासशील और विकसित देशों की राजनीतिक विशेषताऐं
1. राजनीतिक स्थायित्व
- कई विकासशील देशों में प्रारम्भिक अथवा वास्तविक राजनीतिक अस्थिरता विद्यमान है। यह अस्थिरता हो सकता है कि, उन पद्धतियों का अवशिष्ट हो जो औपनिवेशिक शक्तियों के विरूद्ध चलाये गये देशगत आन्दोलनों के परिणामस्वरूप विकसित हुई हों। ऐसे देशों में अपूर्ण लक्ष्यों के कारण बहुत अधिक निराशा फैल जाती है। ऐसे देशों में चाहे कैसी भी राजनीतिक संस्थाऐं विद्यमान हों, उनमें सभी जन-समुदायों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलता। ऐसे देशों में विभिन्न जातीय, भाषायी अथवा धार्मिक वर्गों में भेदभाव की भावना जड़ें जमा चुकी हैं। ऐसी स्थितियों में विकासशील देश राजनैतिक दृष्टि से स्थायी नहीं रह सकते।
- विकसित देशों के लिए राजनीतिक स्थिरता एक प्रमुख आवश्यकता है। किसी भी मूल्य पर ये देश की राजनीतिक स्थिरता को बनाये रखना चाहते हैं इस लक्ष्य को ध्यान में रखकर ऐसे देशों ने कुछ ऐसी राजनैतिक संस्थाओं का विकास किया है जो न केवल विभिन्न जातियों को प्रतिनिधित्व देती है, बल्कि उन्होंने कुछ सशक्त प्रथाओं का भी विकास किया है। ऐसे देशों में भेदभाव की बहुत ही कम सम्भावना है।
2. राजनीतिक प्रमुखों की विकास के लिए प्रतिबद्धता
- राजनीतिक प्रमुखों में वचनबद्धता का अभाव होता है। उनका ध्यान लोगों की इच्छाओं की पूर्ति की अपेक्षा स्वार्थ की पूर्ति की ओर अधिक रहता है। उनके जीवन का प्रमुख लक्ष्य हर स्थिति में शक्ति को हथियाना है। हरियाणा राज्य में हाल ही में घटित घटनाऐं तथा अन्य कई राज्यों की घटनाऐं इस बात का संकेत करती हैं कि बन्दूक की नोक पर लोग शक्ति हथियाना चाहते हैं।
- यदि विकासशील देशों में इस प्रकार की परिस्थिति रहती है, तब राजनीतिक नेताओं में विकास के लिए प्रतिबद्ध होना बहुत कम सम्भव है। ऐसे देशों की एक रोचक विशेषता यह है कि ऐसे ने असामाजिक तत्व जिन्हें समाज त्याग दिया है, अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए राजनैतिक क्षेत्र में प्रवेश करने का प्रयत्न कर रहे हैं। स्मगलर, कातिल तथा उग्रवादी ऐसे लोग देश की बागडोर हथियाने का प्रयत्न कर रहे हैं। उदाहरण के लिए लीबिया, सूडान इत्यादि ।
- विकसित देशों में स्थिति सर्वथा विपरीत है। राजनीतिक नेताओं में 'विकास' के सम्बन्ध में पर्याप्त मात्रा में सम्मिलित प्रतिबद्धता है। विकसित देशों में यह प्रतिबद्धता कुछ आदर्शों पर चलती है। साँझे लक्ष्य हैं- कृषि अथवा औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि, जीवन-स्तर, जन-स्वास्थ्य, शिक्षा, व्यक्तिगत पेंशन, स्त्रियों तथा निम्न जातियों की परम्परागत भूमिका में परिवर्तन, एक जाति के प्रति वफादारी का नव निर्मित राष्ट्र के प्रति वफादारी के रूप में परिवर्तन के सम्बनध में नये संशोधित कार्यक्रमों को अपनाना।
3. आधुनिकीकरण करने वाले तथा परम्परागत नेता
- विकासशील देशों में आधुनिकीकरण के पक्षपाती तथा परम्परागत नेताओं के मध्य बड़ा भारी भेद रहता है। आधुनिकीकरण के पक्षधरों का झुकाव नगरीकरण की ओर होता है। वे पश्चिमीकरण में अधिक विश्वास करते हैं। वे सुशिक्षित युवा होते हैं। वे राजनैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक परिवर्तन के लिए प्रतिबद्ध होते हैं। दूसरी ओर परम्परागत नेताओं का झुकाव ग्रामों की ओर अधिक होता है। वे स्थानीय रस्मों-रिवाजों तथा अपने ही धर्म में विश्वास रखने वाले होते हैं। साथ ही इस प्रकार के नेता परिवर्तन के विरूद्ध होते हैं। ऐसे परिवर्तन को वे मूल्यों पर कुठाराघात समझते हैं। नये नेता तकनीकी कौशल को प्राप्त करना चाहेंगे जो राष्ट्र के विकास के लिए बड़ा महत्वपूर्ण है। परन्तु पुराने विचारों वाले नेता ग्रामीण क्षेत्रों तथा गन्दी बस्तियों के प्रति गहरी वफादारी बनाये रखने में अधिक विश्वास रखते हैं।
4. राजनीतिक शक्ति की न्याय संगति
- विकासशील अथवा अपूर्ण विकसित देशों में राजनीतिक शक्ति विधि अनुसार नहीं होती। इन देशों में अवैध तरीकों से शक्ति प्राप्त की जाती है। विकासशील देशों में राजनीतिक व्यवस्था को छः भागों में बाँटा जाता है परम्परागत निरंकुश शासन व्यवस्था; निरंकुश नेतृत्व व्यवस्था; बहुतन्त्रीय स्पर्द्धात्मक व्यवस्था प्रभावी दल अर्द्ध-स्पर्द्धात्मक व्यवस्था और कम्युनिस्ट व्यवस्था परम्परागत निरंकुश व्यवस्थाओं में राजनैतिक नेता चिर-स्थापित सामाजिक व्यवस्था से शक्ति प्राप्त करते हैं, जिनमें अधिकतर बल वंशानुगत राज्य-पद्धति अथवा कुलीनतन्त्रीय शासन व्यवस्था पर दिया जाता है। इस व्यवस्था के कुछ उदाहरण यमन, सऊदी अरब, अफगानिस्तान, इथोपिया, लीबिया मोरक्को और ईरान हैं। ईरान जैसे कुछ देशों में बड़े परिवर्तन हो चुके हैं। लेकिन कुलीनतन्त्र शासन व्यवस्था में सैनिक अधिकारी और कभी-कभी उनके असैनिक मित्र भी शासक होते हैं। दक्षिणी कोरिया, थाईलैण्ड, बर्मा, इण्डोनेशिया और इराक इसके उदाहरण हैं।
- बहुतन्त्रीय स्पर्द्धात्मक व्यवस्था में फिलिपाइन, इजराइल, अर्जेण्टीना, ब्राजील तुर्की तथा नाइजीरिया जैसे राज्यों में पश्चिमी दल अर्द्ध-स्पर्द्धात्मक व्यवस्था में वास्तव में एक दल बहुत प्रभावी होता है। देश की राजनैतिक शक्ति पर उसका लगभग एकाधिकार होता है। ऐसे देशों में दूसरी पार्टियाँ वैध तो होती हैं, परन्तु उनके पास अधिकार नाम मात्र का होता है। इसके उदाहरण भारत और मोरक्को हैं।
5. राजनीति कार्यक्रम की सीमा
- विकासशील देशों में राजनीतिक कार्यक्रमों की मात्रा और कार्य क्षेत्र सीमित होता है, क्योंकि लोगों के अन्दर राजनैतिक जागरूकता का अभाव होता है। इस सम्बन्ध में जो भी संस्थाएँ होती हैं, वे क्रियाशील नहीं होती, क्योंकि इन देशों की शक्ति वैध नहीं होती।
- दूसरी ओर विकसित देशों में इस प्रकार की परिस्थिति नहीं होती। वास्तव में ऐसे समाज कल्याणकारी राज्य होते हैं। कल्याणकारी राज्यों का जन्म ऐसी समस्याओं का समाधान करना है जो औद्योगीकरण, नगरीकरण तथा बढ़ रही जनसंख्या के कारण उत्पन्न हुई हैं, जो विकास-क्रम का एक भाग हैं।
6. राजनीति व्यवस्था में लोगों की रूचि और ग्रस्तता
- विकासशील देशों में राजनीतिक व्यवस्था में लोगों की रूचि तथा भागीदारी उत्साहजनक नहीं है। अनपढ़ता के कारण अधिकतर लोग राजनीतिक कार्यों के महत्व को नहीं समझते। लेकिन भारत जैसे देश में इस प्रकार की स्थिति नहीं है। लोग अपने देशों की राजनैतिक प्रक्रिया में रूचि नहीं रखते और न ही उसमें भाग लेते हैं। लेकिन यह अवस्था नगण्य है। वास्तव में विकसित देशों में लोग राजनीतिक कार्यों में अधिक रूचि लेने के साथ राजनीतिक कार्यों में सक्रिय रूप से भाग भी लेते हैं।
7. राजनीतिक निर्णय
- राजनीतिक नेताओं के सम्बन्ध में पहले की गयी चर्चा में हमने संकेत दिया है कि अविकासशील समाज में परम्परागत नेतृत्व अधिक सशक्त होता जाता है। लेकिन विकसित देशों में परम्परागत नेतृत्व प्रतिदिन दुर्बल होता जाता है। इन परिस्थितियों में जहाँ परम्परागत नेतृत्व निरन्तर शक्ति और प्रभाव को प्राप्त करता जाता है, तर्कसंगत तथा धर्म निरपेक्षता के आधार पर निर्णय लेने सम्भव नहीं होते। न्याय और तर्कसंगति की सभी सीमाओं को लाँघ कर किसी एक अथवा दूसरे समुदाय को लाभ पहुँचाने की दृष्टि से राजनीतिक निर्णय लिये जाते हैं।
8. राजनीतिक दल
- विकसित तथा विकासशील देशों की राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों ने बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है। परन्तु दुर्भाग्य की बात यह है कि विकासशील देशों में राजनैतिक दलों ने अपने उत्तर दायित्व का निर्वाह नहीं किया, ताकि देश को राजनैतिक स्थिरता प्राप्त हो जाये। उदाहरणस्वरूप, भारत जैसे देश में हम सशक्त दल पद्धति का विकास नहीं कर सके, ताकि लोगों को बहुदलीय प्रणाली में स्पष्ट रूप से विकल्प मिल सके। भारत में भाषा, धर्म तथा जाति के आधार पर बहुत से दल विद्यमान हैं। यही नहीं, भारत में राजनीतिक दलों में अनुशासन का पूर्ण अभाव है।
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