लोक प्रशासन के सिद्धान्त |शास्त्रीय उपागम | Principles of public administration in Hindi
लोक प्रशासन के सिद्धान्त |principles of public administration in Hindi
लोक प्रशासन के विभिन्न विचारकों एवं विद्वानों ने संगठन का अध्ययन विभिन्न दृष्टिकोणों (उपागमों) से किया है। इन उपागमों (सिद्धान्तों) को निम्नलिखित वर्गों में रखा जा सकता है-
लोक प्रशासन के सिद्धान्त
1. शास्त्रीय उपागमः हेरनी फेयोल, लूथर गुलिक एवं लिंडल उर्विक
2. वैज्ञानिक प्रबन्ध उपागम: फ्रेडरिक टेलर
4. मानवीय सम्बन्धात्मक उपागम: एल्टन मेयो
5. व्यवस्थावादी उपागम: चेस्टर बर्नार्ड
6. व्यवहारवादी उपागम: हर्बर्ट साइमन
7. सामाजिक मनोवैज्ञानिक उपागम: डगलस मैक्ग्रेगर एवं अब्राहम मैस्लों
8. पारिस्थितिकीय उपागम: फ्रेड डब्ल्यू. रिग्स
1. शास्त्रीय उपागम-लोक प्रशासन का सिद्धान्त
- हेनरी फेयोल, लूथर गुलिक एवं लिंडल उर्विक संगठन की शास्त्रीय विचारधारा को पुरातनवादी विचारधारा, प्रतिष्ठित विचारधारा, परम्परावादी विचारधारा, यान्त्रिक विचारधारा, औपचारिक विचारधारा या संरचनात्मक सिद्धान्त के नाम से भी हैं।
- संगठन का शास्त्रीय विचार इस सदी के प्रथम दो दशकों में उदित हुआ था, किन्तु आज भी शास्त्रीय प्रबन्ध विचारधारा प्रशासकों को प्रदत्त रूप से विद्यमान है। शास्त्रीय सिद्धान्तों की सर्वाधिक विशेषता है, इनकी संगठन सिद्धान्तों के निर्माण के विषय में विशेष चिन्ता।
- शास्त्रीय विचारकों ने संगठन में कार्य विभाजन पूर्ण करने के सच्चे आधारों को खोजने तथा कुशलता लिए कार्य समन्वय के प्रभावी तरीकों को ढूंढने का प्रयास किया। उन्होंने विभिन्न गतिविधियों तथा उनके अन्तर्ससम्बन्धों की सही परिभाषा पर बल दिया तथा कार्य सुचारू रूप से कराने के लिए संगठन में कार्यरत लोगों के ऊपर अवरोध तथा नियन्त्रण पद्धति द्वारा सत्ता प्रयोग का सुझाव दिया।
- संगठन का शास्त्रीय सिद्धान्त रचना तथा योजना का एक औपचारिक ढांचा है। इसके अनुसार संगठन सिद्धान्तों का एक ऐसा समूह है जिसके आधार पर मनोनीत उद्देश्य अथवा कार्य के अनुरूप आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संगठन योजना बनायी जा सकती है और फिर उस पूर्वनिर्मित संगठन योजना के अनुसार कार्य करने के लिए क्षमतावान लोगों को नियुक्त किया जाता है।
- संगठन के शास्त्रीय सिद्धान्त के प्रतिपादकों में हेनरी फेयोल, लूथर गुलिक तथा लिंडल उर्विक का योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इन्होंने मुख्य रूप से औपचारिक संगठन के ‘सामान्य सिद्धान्तों’ को आमतौर पर संगठन का 'पुरातन सिद्धान्त' कहा जाता है। इन्होंने संगठन में काम करने वाले लोगों की भूमिका की अपेक्षा संगठन की 'संरचना' को अधिक महत्व दिया।
- हेनरी फेयोल ने संगठन के 14 सिद्धान्त बतलाए जिनमें 5 अत्यन्त महत्वपूर्ण माने गए: योजना, संगठन, आदेश, समन्वय तथा नियन्त्रण | गुलिक एवं उर्विक फेयोल से बहुत प्रभावित थे।
- गुलिक ने प्रशासनिक प्रक्रियाओं में पोस्टकार्ब शब्द का विशेष रूप से प्रयोग किया है। पोस्डकोर्ब के रूप में कार्यपालिका के कार्यों को स्पष्ट करने के पश्चात् गुलिक तथा उर्विक ने संगठन के उन सिद्धान्तों की खोज करने के प्रयासों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया जिनके आधार पर संरचना की जा सके।
- इस दृष्टि से उर्विक ने संगठन के 8 सिद्धान्तों तथा लूथर ने 10 सिद्धान्तों का उल्लेख किया।
उर्विक ने सभी संगठनों में क्रियान्वयन योग्य, 8 सिद्धान्त बतलाए हैं
1. उद्देश्य का सिद्धान्त,
2. अनुरूपता का सिद्धान्त
3. उत्तरदायित्व का सिद्धान्त
4. व्याख्या का सिद्धान्त
5. नियन्त्रण के क्षेत्र का सिद्धान्त
6. विशेषीकरण का सिद्धान्त
7. समन्वय का सिद्धान्त
8. परिभाषा या निर्धारण का सिद्धान्त
गुलिक द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त हैं
1. कार्य विभाजन या विशेषीकरण
2. विभागीय संगठनों के आधार
3. पदसोपान द्वारा समन्वय
4. सोद्देश्य समन्वय
5. समितियों के अन्तर्गत समन्वय
6. विकेन्द्रीकरण
7. आदेश की एकता
8. स्टाफ तथा सूत्र
9. प्रत्यायोजन
10. नियन्त्रण का क्षेत्र
- हेनरी फेयोल, गुलिक तथा उर्विक जैसे शास्त्रीय विचारकों का पक्का विश्वास था कि प्रशासकों के अनुभवों तथा कुछ सिद्धान्तों के आधार पर प्रशासन का एक विज्ञान विकसित किया जा सकता है। इस प्रकार अब तक एक कला के रूप में समझा जाने वाला प्रशासन एक विज्ञान के रूप में विकसित हुआ।
शास्त्रीय सिद्धान्त की आलोचना
- हर्बर्ट साइमन ने शास्त्रीय संगठन की कटु आलोचना की है। वे कहते हैं कि शास्त्रीय सिद्धान्त से यह स्पष्ट नहीं होता कि किस विशेष स्थिति में कौन-सा सिद्धान्त महत्व देने योग्य है | साइमन ने ‘प्रशासन के सिद्धान्तों' को 'प्रशासन की कहावत' मात्र कहा है।
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